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राजस्थान का ये किसान चाइना की 1000 साल पुरानी तकनीक से कर रहा बागवानी...पीपल जैसे पेड़ भी गमले में... - chinese

हनुमानगढ़. जिले के एक दसवीं पास किसान ने सबके सामने साबित कर दिया है कि मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो और जुनून हो तो कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है जी हां हनुमानगढ़ के फ्लावर सिंह ने चाइना की हजार साल पुरानी तकनीक को यहां इजाद किया है.

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Published : Feb 6, 2019, 3:37 PM IST

फ्लावर सिंह हनुमानगढ़ की नवा तहसील के एक छोटे से चक में रहते हैं वह अपने माता पिता के साथ ढाणी बनाकर रह रहे हैं. खुद स्कूल की वैन चला कर अपना गुजर-बसर करते हैं हालांकि उनके पास कृषि भूमि भी है लेकिन उनका मन कुछ अलग करने का था इसलिए उन्होंने चाइना की हजार साल पुरानी तकनीक बोनसाई को उत्तर भारत में लाने का कार्य किया. इस तकनीक के माध्यम से किसी भी पौधे को मनचाहा आकार दिया जा सकता है, हाइट कैसे बढ़ाई जा सकती है इस तकनीक से उन्होंने कई पेड़ों को गमलों में लगा रखा है. इसमें बड़ पीपल, बेरी, शहतूत जैसे कई पेड़ों को उगा रखा है, कुछ पेड़ ऐसे भी है जो फल भी देते हैं उन्होंने इस तकनीक को आगे फैलाने के उद्देश्य से एक नर्सरी तैयार कर रखी है.

देखें वीडियो
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उनका मानना है कि इस तकनीक से सजावटी और फल वाले पौधे भी तैयार किए जा सकते हैं, बड़े आकार के पेड़ हो छोटा कर सकते हैं तथा गमले तक सीमित कर सकते हैं लेकिन उसका वजूद वही रहेगा जो एक पेड़ का होता है. उनकी नर्सरी में सैकड़ों की संख्या में पौधे हैं इन्हें तैयार करने में उन्हें करीब 10 से 15 साल लग चुके हैं.

देखें वीडियो
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हालांकि फ्लोर सिंह अपनी कड़ी मेहनत से इन पौधों को उगाने में सक्षम हुए हैं बोनसाई तकनीक को आगे बढ़ाने में प्रगतिशील हैं. लेकिन सरकार और प्रशासन की मदद न मिलने का मलाल भी है अगर सरकार फुल वॉशिंग को मदद दे तथा संरक्षण दे तो निश्चित तौर पर यह तकनीक पूरे राजस्थान ही नहीं भारत में फैल सकती है.

फ्लावर सिंह हनुमानगढ़ की नवा तहसील के एक छोटे से चक में रहते हैं वह अपने माता पिता के साथ ढाणी बनाकर रह रहे हैं. खुद स्कूल की वैन चला कर अपना गुजर-बसर करते हैं हालांकि उनके पास कृषि भूमि भी है लेकिन उनका मन कुछ अलग करने का था इसलिए उन्होंने चाइना की हजार साल पुरानी तकनीक बोनसाई को उत्तर भारत में लाने का कार्य किया. इस तकनीक के माध्यम से किसी भी पौधे को मनचाहा आकार दिया जा सकता है, हाइट कैसे बढ़ाई जा सकती है इस तकनीक से उन्होंने कई पेड़ों को गमलों में लगा रखा है. इसमें बड़ पीपल, बेरी, शहतूत जैसे कई पेड़ों को उगा रखा है, कुछ पेड़ ऐसे भी है जो फल भी देते हैं उन्होंने इस तकनीक को आगे फैलाने के उद्देश्य से एक नर्सरी तैयार कर रखी है.

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उनका मानना है कि इस तकनीक से सजावटी और फल वाले पौधे भी तैयार किए जा सकते हैं, बड़े आकार के पेड़ हो छोटा कर सकते हैं तथा गमले तक सीमित कर सकते हैं लेकिन उसका वजूद वही रहेगा जो एक पेड़ का होता है. उनकी नर्सरी में सैकड़ों की संख्या में पौधे हैं इन्हें तैयार करने में उन्हें करीब 10 से 15 साल लग चुके हैं.

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हालांकि फ्लोर सिंह अपनी कड़ी मेहनत से इन पौधों को उगाने में सक्षम हुए हैं बोनसाई तकनीक को आगे बढ़ाने में प्रगतिशील हैं. लेकिन सरकार और प्रशासन की मदद न मिलने का मलाल भी है अगर सरकार फुल वॉशिंग को मदद दे तथा संरक्षण दे तो निश्चित तौर पर यह तकनीक पूरे राजस्थान ही नहीं भारत में फैल सकती है.

Intro:हनुमानगढ़ के एक दसवीं पास के सामने साबित कर दिया है कि मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो और जुनून हो तो कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है जी हां हनुमानगढ़ के फल और सिंह ने चाइना की हजार साल पुरानी तकनीक को यहां इजाद किया है जिसका नाम है बोनसाई इस तकनीक के माध्यम से पेड़ों के आकार को मनचाहा आकार व हाइट दी जा सकती है


Body:फ्लावर सिंह हनुमानगढ़ की नवा तहसील के एक छोटे से चक में रहते हैं वह अपने माता पिता के साथ ढाणी बनाकर रह रहे हैं खुद स्कूल की वैन चला कर अपना गुजर-बसर करते हैं हालांकि उनके पास कृषि भूमि भी है लेकिन उनका मन कुछ अलग करने का था इसलिए उन्होंने चाइना की हजार साल पुरानी तकनीक बोनसाई को उत्तर भारत में लाने का कार्य किया इस तकनीक को सीखने के लिए वे ग्वालियर भी गए वहां से उन्होंने इस तकनीक की बारी की कोशिका इस तकनीक के माध्यम से किसी भी पौधे को मनचाहा आकार दिया जा सकता है हाइट कैहसे बढ़ाई जा सकती है इस तकनीक से उन्होंने कई पेड़ों को गमलों में होगा रखा है इसमें बड़ पीपल बेरी शहतूत जैसे कई पेड़ों को उगा रखा है कुछ पेड ऐसे भी है जो फल भी देते हैं उन्होंने इस तकनीक को आगे फैलाने के उद्देश्य से एक नर्सरी तैयार कर रखी है उनका मानना है कि इस तकनीक से सजावटी पौधे तैयार किए जाते हैं फल वाले पौधे भी तैयार किए जा सकते हैं कितने भी बड़े आकार का पेड़ हो उसे छोटा कर सकते हैं गमले तक सीमित कर सकते हैं लेकिन उसका वजूद वही रहेगा जो एक पेड़ का होता है उनकी नर्सरी में सैकड़ों की संख्या में पौधे हैं इन्हें तैयार करने में उन्हें करीब 10 से 15 साल लग चुके हैं आगे भी वे मेहनत कर रहे हैं हालांकि मौसम विभाग अनुकूल नहीं होने के चलते काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है इनकी कटिंग के लिए औजार मिलना मुश्किल है जिससे कि इनका कार्य प्रभावित होता है फल और सिंह दसवीं पढ़े हुए हैं लेकिन उनकी जो सोच है वह कहीं अधिक पढ़े-लिखे ज्यादा है हालांकि इस तकनीक के बारे में लोगों को पता नहीं है लेकिन फिर भी वे चाहते हैं इस तकनीक के बारे में अधिक से अधिक किसान लोग सीखे और पूरे भारत में फैलाएं इस तकनीक के माध्यम से कम पानी में भी पौधों को तैयार किया जा सकता है पेड़ों को तैयार किया जा सकता है हालांकि फ्लावर सिंह के मन में पीड़ा भी है कि उन्होंने प्रशासन से सरकार से मदद मांगी थी उन्हें नहीं मिली लेकिन फिर भी उनका धैर्य कमजोर नहीं हुआ है उन का विश्वास कमजोर नहीं हुआ है और वे लगातार इस तकनीक पर और कार्य कर रहे हैं और नवाचार कर रहे हैं निश्चित तौर पर फल और सिंह प्रगतिशील किसान के रूप में उभर रहे हैं पूरे उत्तरी भारत के अंदर एक ऐसे शख्स हैं जो इस तकनीक पर कार्य कर रहे हैं आइए आप भी सुनिए आप भी जानिए क्या है यह तकनीक
one 2 one with फ्लावर सिंह


Conclusion:हालांकि फ्लोर सिंह अपनी कड़ी मेहनत से इन पौधों को उगाने में सक्षम हुए हैं बोनसाई तकनीक को आगे बढ़ाने में प्रगतिशील है लेकिन सरकार व प्रशासन की मदद से मिलने का मलाल भी है अगर सरकार फुल वॉशिंग को मदद दे संरक्षण दे तो निश्चित तौर पर यह तकनीक पूरे राजस्थान ही नहीं भारत में फैल सकती है
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