फ्लावर सिंह हनुमानगढ़ की नवा तहसील के एक छोटे से चक में रहते हैं वह अपने माता पिता के साथ ढाणी बनाकर रह रहे हैं. खुद स्कूल की वैन चला कर अपना गुजर-बसर करते हैं हालांकि उनके पास कृषि भूमि भी है लेकिन उनका मन कुछ अलग करने का था इसलिए उन्होंने चाइना की हजार साल पुरानी तकनीक बोनसाई को उत्तर भारत में लाने का कार्य किया. इस तकनीक के माध्यम से किसी भी पौधे को मनचाहा आकार दिया जा सकता है, हाइट कैसे बढ़ाई जा सकती है इस तकनीक से उन्होंने कई पेड़ों को गमलों में लगा रखा है. इसमें बड़ पीपल, बेरी, शहतूत जैसे कई पेड़ों को उगा रखा है, कुछ पेड़ ऐसे भी है जो फल भी देते हैं उन्होंने इस तकनीक को आगे फैलाने के उद्देश्य से एक नर्सरी तैयार कर रखी है.
उनका मानना है कि इस तकनीक से सजावटी और फल वाले पौधे भी तैयार किए जा सकते हैं, बड़े आकार के पेड़ हो छोटा कर सकते हैं तथा गमले तक सीमित कर सकते हैं लेकिन उसका वजूद वही रहेगा जो एक पेड़ का होता है. उनकी नर्सरी में सैकड़ों की संख्या में पौधे हैं इन्हें तैयार करने में उन्हें करीब 10 से 15 साल लग चुके हैं.
हालांकि फ्लोर सिंह अपनी कड़ी मेहनत से इन पौधों को उगाने में सक्षम हुए हैं बोनसाई तकनीक को आगे बढ़ाने में प्रगतिशील हैं. लेकिन सरकार और प्रशासन की मदद न मिलने का मलाल भी है अगर सरकार फुल वॉशिंग को मदद दे तथा संरक्षण दे तो निश्चित तौर पर यह तकनीक पूरे राजस्थान ही नहीं भारत में फैल सकती है.