कोटा. 4 दिसम्बर 1962 को जन्मे ओम बिड़ला ने 17 साल की उम्र से राजनीति में उतरे. उन्होंने 2003 में कोटा दक्षिण विधानसभा से पहला चुनाव लड़ा और कांग्रेस के कद्दावर नेता शांति धारीवाल को हराया. इसके बाद 2008 और 2013 में विधानसभा चुनाव जीते.
फिर लोकसभा चुनाव लड़ने का पहला मौका 2014 में मिला. तब उन्होंने कांग्रेस के इज्यराज सिंह जो कि अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं, को 2 लाख से अधिक वोट के अंतर से हराया. 2019 में भी पार्टी ने भरोसा जताया और कांग्रेस के रामनारायण मीणा को हराकर संसद पहुंचे.
इस बार टिकट को लेकर पार्टी के नेता ही उतरे विरोध में
ओम बिरला का विरोध इस बार उन्हीं के पार्टी से विधायक रहे भवानी सिंह राजावत ने उनका विरोध किया था. यह विरोध भवानी सिंह राजावत का पहले भी कई दफा देखा गया. उन्होंने कई मंचों पर ओम बिरला का विरोध किया. 2018 में विधानसभा चुनाव में ओम बिरला का टिकट काट कर इज्यराज सिंह की पत्नी कल्पना को उम्मीदवार बनाया गया. जिसके बाद भवानी सिंह राजावत की बगावत खुले आम हो गई.
ओम बिरला को यह कहकर भवानी सिंह टिकट देने से मना कर रहे थे कि उन्होंने क्षेत्र में ना कोई काम करवाया और ना ही लोगों के बीच रहे. इन सबको दरकिनार करते हुए पार्टी की ओर से उन्हें टिकट दिया गया. जिसके बाद वो भारी मतों से विजयी होकर लोकसभा पहुंचे.
वसुंधरा राजे से भी उनके रिश्ते खास अच्छे नहीं हैं. बिरला शाह और मोदी की पसंद हैं. ओम बिरला इससे पहले भी कई समितियों के सदस्य रह चुके हैं. 2014 की लोकसभा में ओम बिड़ला को कई समितियों में जगह मिली थी. उन्हें प्राक्कलन समिति, याचिका समिति, ऊर्जा संबंधी स्थायी समिति, सलाहकार समिति का सदस्य बनाया गया था. ओम बिड़ला सहकारी समितियों के चुनाव में भी रुचि रखते हैं. 1992 से 1995 के बीच वह राष्ट्रीय सहकारी संघ लिमिटेड के उपाध्यक्ष रहे. कोटा में सहकारी समितियों में आज भी उनका दखल बताया जाता है.
राजस्थान सरकार मे संसदीय सचिव भी रहे. इस दौरान उन्होंने गंभीर रोगों के शिकार लोगों के इलाज के लिए 50 लाख रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की.अगस्त 2004 में बाढ़ पीड़ितों के लिए काम किया. 2006 में तब ओम बिड़ला सुर्खियों में तब आए जब स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर आजादी के स्वर नामक कार्यक्रम में 15 हजार से अधिक अधिकारियों को समानित किया. यह समारोह कोटा और बूंदी में आयोजित हुआ था.