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हकाई, बुआई और मजदूरी महंगी होने से किसानों की बढ़ी मुसीबतें

अजमेर जिले में बारिश के बाद किसान बुवाई में जुट गए हैं. हकाई और बुआई के लिए सभी किसानों के पास संसाधन नहीं है. लिहाजा किराए पर उन्हें हकाई और बुवाई करवानी पड़ती है जो डीजल के भाव पर निर्भर है. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में लेबर मिलना भी मुश्किल हो गया है. लेबर मिल भी जाए तो उनकी हाई रेट किसानों को भारी पड़ती है.

हकाई, बुआई और मजदूरी महंगी होने से किसानों की बढ़ी मुसीबतें
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Published : Jul 13, 2019, 3:24 PM IST

अजमेर. किसानों के लिए बुवाई का सीजन है. जाहिर है बुवाई से पहले खेत की हकाई जरूरी है. लिहाजा हकाई और बुआई का डबल डोज किसानों को झेलना पड़ता है. जिन किसानों के पास खुद के संसाधन हैं, उन्हें डीजल के बढ़ते भाव की मार झेलनी पड़ती है और जिन किसानों के पास ट्रैक्टर और कृषि यंत्र नहीं है उन्हें किराए के यंत्र पर निर्भर होकर ज्यादा आर्थिक भार झेलना पड़ रहा है.

दरअसल अजमेर जिले में बड़े किसानों की तुलना में छोटे किसानों की संख्या अधिक है. छोटे किसानों के पास कृषि के लिए पर्याप्त संसाधन भी नहीं है. इसका बड़ा कारण अजमेर में बारिश आधारित खेती भी है. बारिश अच्छी हुई तो फसल से पैदावार अच्छी होती है. बारिश नहीं हुई तो किसानों को हकाई, बीज खाद पर किया निवेश सब मिट्टी में मिल जाता है.

किसानों की मानें तो खेतों में बुवाई के लिए किराए के ट्रैक्टर और यंत्रों पर निर्भर रहना उनकी मजबूरी है वहीं खेतों में फसल बड़ी होने पर खरपतवार को हटाने के लिए निराई, फसल पकने पर कटाई के लिए जरूरी लेबर मिलना भी आसान नहीं होता है. लेबर के लिए महिला श्रमिक 300 रुपए और पुरुष 400 रुपए से 500 रुपए मजदूरी की डिमांड करते हैं. जिससे किसानों पर और बोझ बढ़ जाता है. किसान बताते हैं कि किराए से हकाई के लिए 300 रुपए और बुआई के लिए 300 रुपए प्रति बीघा उन्हें देनी पड़ती है

हकाई, बुआई और मजदूरी महंगी होने से किसानों की बढ़ी मुसीबतें

बारिश पर निर्भर खेती की वजह से कुछ किसानों ने बैंकों से कर्ज लेकर ट्रैक्टर और कृषि यंत्र लिए हैं जो किराए पर हकाई जुताई कर इन यंत्रों की बैंक किस्त चुकाते हैं. साथ ही घर का गुजारा कर रहे हैं. ट्रैक्टर चालक बताते हैं कि हकाई जुताई के लिए उन्हें कई कई दिन अन्य गांवों में भी जाकर रहना पड़ता है. उन्होंने बताया कि डीजल की कीमत बढ़ने से उन्हें भी भाव बढ़ाने पड़ते हैं. डीजल की रेट कम होती है तो किराया कम और ज्यादा होती है तो किराए के भाव भी बढ़ाने पड़ते हैं. वर्तमान में भाव 300 रुपए हकाई और बुआई के भाव 300 रुपए प्रति बीघा है.

जिले में सिंचाई की कोई व्यवस्था किसानों के लिए नहीं है वहीं भूजल स्तर अत्यधिक कम होने से ज्यादातर कुएं भी सूख चुके हैं. ऐसे में बारिश पर निर्भर किसानों को ईश्वर से ही आस रहती है.

अजमेर. किसानों के लिए बुवाई का सीजन है. जाहिर है बुवाई से पहले खेत की हकाई जरूरी है. लिहाजा हकाई और बुआई का डबल डोज किसानों को झेलना पड़ता है. जिन किसानों के पास खुद के संसाधन हैं, उन्हें डीजल के बढ़ते भाव की मार झेलनी पड़ती है और जिन किसानों के पास ट्रैक्टर और कृषि यंत्र नहीं है उन्हें किराए के यंत्र पर निर्भर होकर ज्यादा आर्थिक भार झेलना पड़ रहा है.

दरअसल अजमेर जिले में बड़े किसानों की तुलना में छोटे किसानों की संख्या अधिक है. छोटे किसानों के पास कृषि के लिए पर्याप्त संसाधन भी नहीं है. इसका बड़ा कारण अजमेर में बारिश आधारित खेती भी है. बारिश अच्छी हुई तो फसल से पैदावार अच्छी होती है. बारिश नहीं हुई तो किसानों को हकाई, बीज खाद पर किया निवेश सब मिट्टी में मिल जाता है.

किसानों की मानें तो खेतों में बुवाई के लिए किराए के ट्रैक्टर और यंत्रों पर निर्भर रहना उनकी मजबूरी है वहीं खेतों में फसल बड़ी होने पर खरपतवार को हटाने के लिए निराई, फसल पकने पर कटाई के लिए जरूरी लेबर मिलना भी आसान नहीं होता है. लेबर के लिए महिला श्रमिक 300 रुपए और पुरुष 400 रुपए से 500 रुपए मजदूरी की डिमांड करते हैं. जिससे किसानों पर और बोझ बढ़ जाता है. किसान बताते हैं कि किराए से हकाई के लिए 300 रुपए और बुआई के लिए 300 रुपए प्रति बीघा उन्हें देनी पड़ती है

हकाई, बुआई और मजदूरी महंगी होने से किसानों की बढ़ी मुसीबतें

बारिश पर निर्भर खेती की वजह से कुछ किसानों ने बैंकों से कर्ज लेकर ट्रैक्टर और कृषि यंत्र लिए हैं जो किराए पर हकाई जुताई कर इन यंत्रों की बैंक किस्त चुकाते हैं. साथ ही घर का गुजारा कर रहे हैं. ट्रैक्टर चालक बताते हैं कि हकाई जुताई के लिए उन्हें कई कई दिन अन्य गांवों में भी जाकर रहना पड़ता है. उन्होंने बताया कि डीजल की कीमत बढ़ने से उन्हें भी भाव बढ़ाने पड़ते हैं. डीजल की रेट कम होती है तो किराया कम और ज्यादा होती है तो किराए के भाव भी बढ़ाने पड़ते हैं. वर्तमान में भाव 300 रुपए हकाई और बुआई के भाव 300 रुपए प्रति बीघा है.

जिले में सिंचाई की कोई व्यवस्था किसानों के लिए नहीं है वहीं भूजल स्तर अत्यधिक कम होने से ज्यादातर कुएं भी सूख चुके हैं. ऐसे में बारिश पर निर्भर किसानों को ईश्वर से ही आस रहती है.

Intro:अजमेर। अजमेर जिले में बारिश के बाद किसान बुवाई में जुट गए हैं हकाई और बुआई के लिए सभी किसानों के पास संसाधन नहीं है लिहाजा किराए पर उन्हें अकाई एवं बुवाई करवानी पड़ती है जो डीजल के भाव पर निर्भर है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में लेबर मिलना भी मुश्किल हो गया है देवर मिल भी जाए तो उनकी हाई रेट किसानों को भारी पड़ती है अजमेर से विशेष रिपोर्ट

अजमेर में किसानों के लिए बुवाई का सीजन है। जाहिर है बुवाई से पहले खेत की हकाई जरूरी है। लिहाजा हकाई और बुआई का डबल डोज किसानों को झेलना पड़ता है। जिन किसानों के पास खुद के संसाधन हैं उन्हें डीजल के बढ़ते भाव की मार झेलनी पड़ती है और जिन किसानों के पास ट्रैक्टर और कृषि यंत्र नहीं है उन्हें किराए के यंत्र पर निर्भर होकर ज्यादा आर्थिक भार झेलना पड़ रहा है दरअसल अजमेर जिले में बड़े किसानों की तुलना में छोटे किसानों की संख्या अधिक है छोटे किसानों के पास कृषि के लिए पर्याप्त संसाधन भी नहीं है इसका बड़ा कारण अजमेर में बारिश आधारित खेती भी है बारिश अच्छी हुई तो फसल से पैदावार अच्छी होती है बारिश नहीं हुई तो किसानों को हकाई जूता ही बीज खाद पर किया निवेश सब मिट्टी में मिल जाता है किसानों की मानें तो खेतों में बुवाई के लिए किराए के ट्रैक्टर और यंत्रों पर निर्भर रहना उनकी मजबूरी है वहीं खेतों में फसल बड़ी होने पर खरपतवार को हटाने के लिए नन्दाई, फसल पकने पर कटाई के लिए जरूरी लेबर मिलना भी आसान नहीं होता है। लेबर के लिए महिला श्रमिक 300 रुपए और पुरुष 400 रुपए से 500 रुपए मजदूरी की डिमांड करते हैं। जिससे किसानों पर और बोझ बढ़ जाता है। किसान बताते हैं कि किराए से हकाई के लिए ₹300 और बुआई के लिए ₹300 प्रति बीघा उन्हें देनी पड़ती है...
बाइट- चांद किसान
बाइट- नजीर किसान

बारिश पर निर्भर खेती की वजह से कुछ किसानों ने बैंकों से कर्ज लेकर ट्रैक्टर और कृषि यंत्र लिए हैं जो किराए पर हकाई जुताई कर इन यंत्रों की बैंक किस्त झुकाते हैं साथ ही घर का गुजारा कर रहे हैं ट्रैक्टर चालक बताते हैं कि हकाई जुताई के लिए उन्हें कई कई दिन अन्य गांवों में भी जाकर रहना पड़ता है उन्होंने बताया कि डीजल की कीमत बढ़ने से उन्हें भी भाव बढ़ाने पड़ते हैं डीजल की रेट कम होती है तो किराया कम और ज्यादा होती है तो किराए के भाव भी बढ़ाने पड़ते हैं वर्तमान में भाव 300 रुपए हकाई और बुआई के भाव ₹300 प्रति बीघा है...
बाइट असगर ट्रैक्टर चालक
बाइट नफीस ट्रैक्टर चालक

जिले में सिंचाई की कोई व्यवस्था किसानों के लिए नहीं है वही भूजल स्तर अत्यधिक कम होने से ज्यादातर कोई भी सूख चुके हैं ऐसे में बारिश पर निर्भर किसानों को ईश्वर से ही आस रहती है।


Body:प्रियांक शर्मा अजमेर


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