अजमेर. किसानों के लिए बुवाई का सीजन है. जाहिर है बुवाई से पहले खेत की हकाई जरूरी है. लिहाजा हकाई और बुआई का डबल डोज किसानों को झेलना पड़ता है. जिन किसानों के पास खुद के संसाधन हैं, उन्हें डीजल के बढ़ते भाव की मार झेलनी पड़ती है और जिन किसानों के पास ट्रैक्टर और कृषि यंत्र नहीं है उन्हें किराए के यंत्र पर निर्भर होकर ज्यादा आर्थिक भार झेलना पड़ रहा है.
दरअसल अजमेर जिले में बड़े किसानों की तुलना में छोटे किसानों की संख्या अधिक है. छोटे किसानों के पास कृषि के लिए पर्याप्त संसाधन भी नहीं है. इसका बड़ा कारण अजमेर में बारिश आधारित खेती भी है. बारिश अच्छी हुई तो फसल से पैदावार अच्छी होती है. बारिश नहीं हुई तो किसानों को हकाई, बीज खाद पर किया निवेश सब मिट्टी में मिल जाता है.
किसानों की मानें तो खेतों में बुवाई के लिए किराए के ट्रैक्टर और यंत्रों पर निर्भर रहना उनकी मजबूरी है वहीं खेतों में फसल बड़ी होने पर खरपतवार को हटाने के लिए निराई, फसल पकने पर कटाई के लिए जरूरी लेबर मिलना भी आसान नहीं होता है. लेबर के लिए महिला श्रमिक 300 रुपए और पुरुष 400 रुपए से 500 रुपए मजदूरी की डिमांड करते हैं. जिससे किसानों पर और बोझ बढ़ जाता है. किसान बताते हैं कि किराए से हकाई के लिए 300 रुपए और बुआई के लिए 300 रुपए प्रति बीघा उन्हें देनी पड़ती है
बारिश पर निर्भर खेती की वजह से कुछ किसानों ने बैंकों से कर्ज लेकर ट्रैक्टर और कृषि यंत्र लिए हैं जो किराए पर हकाई जुताई कर इन यंत्रों की बैंक किस्त चुकाते हैं. साथ ही घर का गुजारा कर रहे हैं. ट्रैक्टर चालक बताते हैं कि हकाई जुताई के लिए उन्हें कई कई दिन अन्य गांवों में भी जाकर रहना पड़ता है. उन्होंने बताया कि डीजल की कीमत बढ़ने से उन्हें भी भाव बढ़ाने पड़ते हैं. डीजल की रेट कम होती है तो किराया कम और ज्यादा होती है तो किराए के भाव भी बढ़ाने पड़ते हैं. वर्तमान में भाव 300 रुपए हकाई और बुआई के भाव 300 रुपए प्रति बीघा है.
जिले में सिंचाई की कोई व्यवस्था किसानों के लिए नहीं है वहीं भूजल स्तर अत्यधिक कम होने से ज्यादातर कुएं भी सूख चुके हैं. ऐसे में बारिश पर निर्भर किसानों को ईश्वर से ही आस रहती है.