एक समय था जब राजस्थान में भाजपा की राजनीति वसुंधरा राजे के इर्द-गिर्द घूमती थी. राजस्थान में राजे की बादशाहत को चैलेंज देने वाला नेता भाजपा में नजर नहीं आया. और कुछ गुलाबचंद कटारिया समेत नेताओं ने राजे को चैलेंज भी दिया तो वो बाद में वापस राजे के खेमें में वापस आ गए. लेकिन अब समय बदल गया है और विधानसभा चुनाव में भाजपा हार चुकी है. इस हार ने प्रदेश भाजपा में राजे विरोधियों को ना केवल सक्रिय किया बल्कि सियासी रूप से ताकतवर बनने का मौका भी दिया.
इसका यही परिणाम है कि पहले तो वसुंधरा राजे को राजस्थान में भाजपा की सरकार जाने के बाद पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर प्रदेश की राजनीति से दूर किए जाने के संकेत दिए और उसके बाद अब प्रदेश भाजपा मुख्यालय में बना उनका कार्यालय कक्ष में उनसे छीन लिया गया. इस रूम में कुछ दिनों पहले तक वसुंधरा राजे के नाम की तख्ती टंगी हुई थी. वह तख्ती अब हटा ली गई और यहां चुनाव प्रबंधन समिति लिखी तख्ती टांक दी गई. अब इस रूम में केंद्रीय मंत्री और लोकसभा चुनाव प्रभारी प्रकाश जावड़ेकर बैठकर भाजपा नेताओं से चर्चा करते हैं.
परनामी के कार्यकाल में राजे के अलावा किसी ने इस्तेमाल नहीं किया ये रूम
भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी के कार्यकाल के दौरान भाजपा मुख्यालय में यह रूम तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए सुरक्षित रखा गया. बाकायदा इसका रिनोवेशन हुआ और तमाम फर्नीचर्स भी यहां बनवाए गए. परनामी के कार्यकाल के दौरान वसुंधरा राजे जब भाजपा मुख्यालय आती थी तो कभी कभार इस रूम में रुक कर नेताओं से व्यक्तिगत मंत्रणा करती थी लेकिन परनामी के कार्यकाल के दौरान किसी भी नेता की हिम्मत नहीं हुई कि वह वसुंधरा राजे की अनुपस्थिति में इस रूम का उपयोग कर सकें.
लेकिन अब राज्य के शागिर्द रहे अशोक परनामी प्रदेश भाजपा के मुख्य नहीं रहे और संगठन की कमान मदन लाल सैनी के हाथ में है. और प्रदेश संगठन पर पूरा नियंत्रण फिलहाल संगठन महामंत्री चंद्रशेखर का है. यही कारण है कि प्रदेश भाजपा मुख्यालय में बैठक रूम से लेकर अन्य कमरों तक में आमूलचूल परिवर्तन किए गए और अब वसुंधरा राजे की नेमप्लेट को भी यहां से हटाकर इस रूम का उपयोग अन्य कार्य के लिए किया जाने लगा है.
यह तमाम बदलाव इस बात के संकेत है कि वसुंधरा राजे को अब राजस्थान की सियासत से पूरी तरह केंद्र की सियासत में भेजे जाने के इंतजाम किए जा रहे हैं लेकिन राजे समर्थकों को यह शायद ही रास आए.