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मेरे पिताजी नहीं चाहते थे कि में हॉकी खेलूं : अशोक ध्यानचंद

हॉकी के जादूगर कहलाने वाले मेजर ध्यानचंद की प्रतिमा का अनावरण पाली में होने जा रहा है .

हॉकी के जादूगर कहलाने वाले पाली के मेजर ध्यानचंद की प्रतिमा का अनावरण
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Published : Jun 27, 2019, 10:42 AM IST

पाली. देश के लिए लगातार तीन बार गोल्ड मैडल लाने वाले पाली के मेजर ध्यानचंद को अपना जीवन एक आम नागरिक की तरह गुजारना पड़ रहा है. आर्थिक तंगी में ही उन्होंने अपना जीवन निकाला है. ऐसे में अपने पिता की तरह बनने की कोशिश कर रहे मेजर ध्यानचंद के पुत्रों को मेजर कभी हॉकी के खिलाड़ी नहीं बनाना चाहते थे.

हॉकी के जादूगर कहलाने वाले पाली के मेजर ध्यानचंद की प्रतिमा का अनावरण

पाली शहर में मेजर ध्यानचंद की प्रतिमा का अनावरण होने जा रहा है उनकी प्रतिमा का अनावरण उनके दोनों पुत्र करने वाले है. ईटीवी भारत से विशेष बातचीत के दौरान मेजर ध्यानचंद के पुत्रों ने जीवन भर हॉकी का खेल खेलने वाले मेजर ध्यानचंद को मिलने वाले सम्मान के इंतजार को लेकर खुलकर बात की.

उन्होंने बताया कि उनके पिता ने देश का मान बढ़ाने के लिए बहुत किया. लेकिन सरकारों ने उन्हें भुला दिया. पदम विभूषण मिलने के बाद में भी मेजर ध्यानचंद को अपना जीवन एक आम आदमी की तरह जाना पड़ा. देश के लिए तीन बार गोल्ड मेडल लेकर आने वाले मेजर ध्यानचंद का जीवन तंगी में ही बिता. इन सभी को देखकर ही मेजर ध्यानचंद कभी भी नहीं चाहते थे कि उनके बेटे खिलाड़ी बने.

अशोक ध्यानचंद ने बताया कि पहले हॉकी का खेल काफी सस्ता था. लेकिन नेशनल हॉकी संघ के नियमों को लगा कर इस खेल को महंगा कर दिया. इस कारण भारत में धीरे-धीरे हॉकी को पूरी तरह से भुला दिया जाए.

पाली. देश के लिए लगातार तीन बार गोल्ड मैडल लाने वाले पाली के मेजर ध्यानचंद को अपना जीवन एक आम नागरिक की तरह गुजारना पड़ रहा है. आर्थिक तंगी में ही उन्होंने अपना जीवन निकाला है. ऐसे में अपने पिता की तरह बनने की कोशिश कर रहे मेजर ध्यानचंद के पुत्रों को मेजर कभी हॉकी के खिलाड़ी नहीं बनाना चाहते थे.

हॉकी के जादूगर कहलाने वाले पाली के मेजर ध्यानचंद की प्रतिमा का अनावरण

पाली शहर में मेजर ध्यानचंद की प्रतिमा का अनावरण होने जा रहा है उनकी प्रतिमा का अनावरण उनके दोनों पुत्र करने वाले है. ईटीवी भारत से विशेष बातचीत के दौरान मेजर ध्यानचंद के पुत्रों ने जीवन भर हॉकी का खेल खेलने वाले मेजर ध्यानचंद को मिलने वाले सम्मान के इंतजार को लेकर खुलकर बात की.

उन्होंने बताया कि उनके पिता ने देश का मान बढ़ाने के लिए बहुत किया. लेकिन सरकारों ने उन्हें भुला दिया. पदम विभूषण मिलने के बाद में भी मेजर ध्यानचंद को अपना जीवन एक आम आदमी की तरह जाना पड़ा. देश के लिए तीन बार गोल्ड मेडल लेकर आने वाले मेजर ध्यानचंद का जीवन तंगी में ही बिता. इन सभी को देखकर ही मेजर ध्यानचंद कभी भी नहीं चाहते थे कि उनके बेटे खिलाड़ी बने.

अशोक ध्यानचंद ने बताया कि पहले हॉकी का खेल काफी सस्ता था. लेकिन नेशनल हॉकी संघ के नियमों को लगा कर इस खेल को महंगा कर दिया. इस कारण भारत में धीरे-धीरे हॉकी को पूरी तरह से भुला दिया जाए.

Intro:- महोदय वन टू वन में वीडियो के साथ वॉइस ओवर कैसे करूँ।

पाली. हॉकी के जादूगर कहलाने वाले मेजर ध्यानचंद खुद भी नहीं चाहते थे कि उनके बच्चे उनकी के खिलाड़ी बने। मेजर ध्यानचंद द्वारा जो देश के लिए मान बढ़ाने का काम किया गया था। लेकिन, इतना सम्मान उन्हें वापस उनके जीवन में नहीं मिल पाया। देश के लिए लगातार तीन बार गोल्ड मैडल लाने वाले मेजर ध्यानचंद को अपना जीवन एक आम नागरिक की तरह गुजारना पड़ा। आर्थिक तंगी में ही उन्होंने अपना जीवन निकाला। ऐसे में अपने पिता की तरह बनने की कोशिश कर रहे मेजर ध्यानचंद के पुत्रों को मेजर कभी हॉकी के खिलाड़ी नहीं बनाना चाहते।


Body: पाली शहर में मेजर ध्यानचंद की प्रतिमा का अनावरण होने जा रहा है उनकी प्रतिमा का अनावरण उनके दोनों पुत्र करने वाले है। ईटीवी भारत से विशेष बातचीत के दौरान मेजर ध्यानचंद के पुत्रों ने जीवन भारत में हॉकी का खेल व मेजर ध्यानचंद को मिलने वाले सम्मान के इंतजार को लेकर खुलकर बात की। उन्होंने बताया कि उनके पिता ने देश का मान बढ़ाने के लिए बहुत किया। लेकिन सरकारों ने उन्हें भुला। दिया पदम विभूषण मिलने के बाद में भी मेजर ध्यानचंद को अपना जीवन एक आम आदमी की तरह जाना पड़ा। देश के लिए तीन बार लेकर गोल्ड मेडल लेकर आने वाले मेजर ध्यानचंद का जीवन तंगी में ही बिता। इन सभी को देखकर ही मेजर ध्यानचंद कभी भी नहीं चाहते थे कि उनके पुत्र खिलाड़ी बने।


Conclusion:अशोक ध्यानचंद ने बताया कि पहले हॉकी हाथी का खेल काफी सस्ता था। लेकिन नेशनल हॉकी संघ के नियमों को लगा कर इस खेल को महंगा कर दिया। इस कारण से भारत में धीरे-धीरे हॉकी को पूरी तरह से भुला दिया जाए।
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