बूंदी. हमारे देश में कोई भी काम शुरू करने से पहले शुभ मुहूर्त देखा जाता है. अक्षय तृतीया को एक ऐसा ही शुभ दिन माना जाता है, इस दिन देश भर में लाखों जोड़े शादी के बंधन में बंधते हैं, लेकिन इस साल देशव्यापी तालाबंदी के चलते लाखों शादियां टल गई. साथ ही शादी से जुड़े काम धंधों से कमाई कर अपना परिवार चलाने वाले लाखों लोगों के सामने अभूतपूर्व आर्थिक संकट आ खड़ा हुआ. शादियों, हवन, यज्ञ के सीजन में हवन सामग्री के पैकेट बनाने वाले लोगों पर भी रोजी रोटी तक का संकट आ गया था. लेकिन सरकार ने मॉडिफाई लॉकडाउन में शादी विवाह समारोह और धार्मिक कार्यक्रमों में राहत दी है. जिससे गृह उद्योगों का कार्य भी अब तेजी पकड़ने लगा है.
बता दें कि केशवरायपाटन उपखण्ड क्षेत्र के रोटेदा कस्बे में पिछले 76 दिनों से बन्द के बाद अब गृह उद्योग को फिर से गति मिलने लगी है. कस्बे के निवासी देवकीनंदन शर्मा पूरे परिवार के साथ हवन सामग्री के पैकेट तैयार करने में जुटे हुए हैं. उनका मानना है कि लॉकडाउन के चलते पिछले कई दिनों से काम बंद था, क्योंकि सभी आयोजन बन्द होने से माल की खफत भी नहीं हो पा रही थी.
उनका कहना है कि शादियों व हवन यज्ञ का मौसम उनके लिए अच्छी कमाई का मौसम होता है और कमाई के एन मौके पर कोरोना वायरस की मार ने शादी सहित धार्मिक अनुष्ठानों के बाजार को फीका कर दिया था. जिससे उनके सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है. उन्होंने कहा कि अब बाजार खुलने से थोड़ी राहत जरूर मिली है.
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जंगल की शुद्ध लकड़ियों से तैयार करते हैं हवन सामग्री
बता दें कि देवकीनंदन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'स्वदेशी अपनाओ अभियान' से प्रेरित होकर घर बैठे गृह उद्योग चलाते हैं. जो चम्बल नदी के समीप बीहड़ के जंगलों से हवन सामग्री में काम ली जाने वाली सामग्री संग्रहित करते हैं. फिर उनके पैकेट बनाकर बाजार में पहुंचाते हैं.
क्या होती है नवग्रह लकड़ी
शादी विवाह समारोह, पर्यावरण को शुद्ध एवं आत्मिक शांति के लिए देशभर में हवन यज्ञ कर उनमें नव ग्रहों की आहुतियां दी जाती हैं. बता दें कि 9 ग्रहों को अलग-अलग भागों में विभाजित किया गया है. नौ ग्रहों की नौ आहुति दी जाती है. जो इस प्रकार है..
- प्रथम लकड़ी - आंक की लकड़ी, सूर्य के लिए दी जाती है.
- दूसरी लकड़ी - छूरा की लकड़ी जिसे पलाश, ढाक, छोला आदि कहते हैं, जो सोम, चन्द्रमा के लिए दी जाती है.
- तीसरी लकड़ी - खैर की लकड़ी, जो बिल्कुल उपट सी होती है. इसे मंगल के लिए डाला जाता है.
- चौथी लकड़ी - आंधीस झाड़ा की लकड़ी जंगल में उपलब्ध होती है, किन्तु इसके बीज कपड़ों के लिए घातक है. यह बुद्ध के लिए होती है.
- पांचवी लकड़ी - पीपल की लकड़ी, गुरु के लिए होती है.
- छठी लकड़ी - उदम्बर अर्थात गूलर की लकड़ी, शुक्र के लिए होती है.
- सातवीं लकड़ी - खेजड़ी की लकड़ी, जो पहाड़ी क्षेत्र में अधिक होती है. बता दें कि दिनों-दिन जंगल कम होने से बड़ी मुश्किल से मिलती है. यह शनि के लिए होती है.
- आठवीं लकड़ी - दुर्वा, दोब की लकड़ी, जो खेतों से मिल जाती है. यह राहु के लिए होती है.
- नवमी लकड़ी - डाब, कुशा की होती है. यह दिपावली से पहले ही उपलब्ध हो पाती है. जिसकी तीखी धार की बदौलत जगह-जगह से हाथ कट जाते हैं. यह केतु ग्रह के लिए होती है.
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बता दें कि आमतौर पर बाजार में नकली घी और समाधि के नाम पर सरसों पर अलग-अलग ग्रह के लेबल चिपका कर बेचे जाते हैं. उसी से प्रभावित होकर देवकीनंदन और परिवार ने घरेलू उद्योग के जरिए लोगों तक शुद्ध सामग्री पहुंचाने का जिम्मा उठाया है, लेकिन कोरोना की मार के कारण ये काम बंद पड़ गया था. जिसे फिर से पटरी पर लाने की कवायद की जा रही है.