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स्पेशल रिपोर्ट: राजस्थान का ऐसा गांव...जहां हर घर में बनते हैं मिट्टी के बर्तन

एक ओर पूरे देश में पुरानी संस्कृति धीरे-धीरे विलुप्त होने की कगार पर है. वहीं दूसरी तरफ आपको बूंदी जिले के ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे है. जहां आज भी पुराने यंत्रों से मिट्टी के बर्तन बनाने का कारवां जारी है. बूंदी शहर से 8 किलोमीटर दूर ठीकरदा गांव में आज भी कई परिवार मिट्टी के बर्तन बनाने का काम कर रहे हैं. या यूं कहें कि ठीकरदा में बने हुए मिट्‌टी के बर्तनों की ख्याति पूरे हाड़ौती भर में है.

Bundi Thikarda village, बूंदी का ठीकरदा गांव
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Published : Oct 19, 2019, 9:26 PM IST

बूंदी. जिले के ठिकरदा गांव में आज भी पुरानी संस्कृति जिंदा है. यहां पर करीब 500-1000 घर ऐसे हैं. जहां मिट्टी के बर्तनों को बनाने का काम किया जाता है. इन घरों में पूर्वजों से मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य किया जाता था. जिन्हें आज भी नई पीढ़ी लगातार बनाने का काम कर रही है. बूंदी शहर से 8 किलोमीटर दूर ठिकरदा गांव में हर घर के बाहर मिट्टी के ढेर दिखाई देंगे और महिला हो या पुरुष सभी मिलकर मिट्टी के बर्तन को बनाते हुए दिखाई देंगे. कोई चाक के माध्यम से मटकी, दीये, बड़े दीये बनाते हुए नजर आएगा तो कोई उन्हें बनने के बाद धूप में सूखने का काम करता दिखाई देखा.

इस गांव के हर घर में बनते हैं मिट्टी के बर्तन

हर घर में मिट्टी के बर्तन बनाने का काम जोरों पर
यह सारी प्रक्रिया ठिकरदा गांव में हर घर में हो रही है. अब दिवाली का त्योहार नजदीक है. ऐसे में हर घर में इस तरह की मिट्टी के बर्तन बनाने की प्रक्रिया जारी है. वहीं इस काम को लेकर कारीगरों का कहना है कि इन बर्तनों को बनाने के लिए दूसरे गांव से महंगी मिट्टी लाते हैं और मिट्टी को मेहनत करके साफ किया जाता है. फिर उसे बर्तन बनाने योग्य किया जाता है. कारीगरों ने बताया कि सरकार द्वारा आज भी किसी प्रकार की हमारे इस व्यवसाय के लिए कोई मदद नहीं की जा रही है. पुराने समय में काफी अच्छी मिट्टी आया करती थी और उस मिट्टी को सीधा काम ले लेते थे और बर्तन बनाने का काम शुरू कर दिया जाता था. लेकिन आज के समय काफी दूर से और काफी महंगी मिट्टी हमें मिल रही है और उस पर साफ करने में हमें काफी मेहनत का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन इतनी मेहनत करने के बाद भी हमें दाम नहीं मिल पा रहे हैं.

पढ़ें- खास रिपोर्ट: हमारे मिट्टी के दीयों की रोशनी और कुंभकारों के रोजगार को छीन ले गया चीन

बाजार में दीपक की मांग, लेकिन दाम नहीं
हालांकि कारीगरों का कहना है कि इस बार अच्छी बरसात होने से मिट्टी में नमी व कचरे की मात्रा काम आने से हमें मेहनत कम करनी पड़ रही है. वहीं लगातार बरसात की वजह से इस बार किसी भी कारीगरों ने दीपक नहीं बनाए हैं. जिसके चलते बाजारों में दीपक नहीं बिक सकें. इसी कारण अब दीपक की मांग बढ़ गई है. लगातार शहरी क्षेत्र से दुकानदारों की मांग कारीगरों से की जा रही है और हजारों की तादाद में छोटे दीपक व बड़े दीपक के ऑर्डर इन कारीगरों को मिल रहे हैं. जिससे इन कारीगरों के चेहरों पर खुशी है. कारीगरों का कहना है कि हमें ऑर्डर तो मिल रहा है लेकिन हमारी मजदूरी नहीं निकल पा रही है. करीब एक दीपक एक रुपए का बाजार में मिलता है तो हम रिटेल में यानी थोक के भाव में ₹1 में दो दीपक दुकानदारों को बेच रहे हैं. जो कि हमारी मेहनत भी नहीं निकल पा रही है.

Bundi Thikarda village, बूंदी का ठीकरदा गांव
ठीकरदा गांव में मिट्टी से बर्तनों का होता है काम

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: दिवाली नजदीक आई तो चमकने लगा कुम्भकारों की उम्मीदों का दीपक

इलेक्ट्रॉनिक चाक के जरिए होता है मिट्टी के बर्तनों का निर्माण
इन मिट्टी के बर्तनों को बनाने के लिए कारीगरों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि प्राचीन समय में चाक के माध्यम से मिट्टी के बर्तन बनाए जाते थे. लेकिन आज के युग में इलेक्ट्रॉनिक चाक आ गए हैं. जिसके माध्यम से कारीगर उन बर्तनों का निर्माण कर रहे हैं. लेकिन इन ग्रामीण इलाकों में बार-बार विद्युत आपूर्ति बंद हो जाने के चलते चाक नहीं चल सकते तो मिट्टी के बर्तनों का निर्माण भी प्रभावित हो रहा है. कारीगरों ने सरकार से मांग की है कि वह समय पर बिजली और उन्हें आसानी से मिट्टी उपलब्ध करवा दें यह दोनों बड़ी समस्या हल कर दे तो उन्हें काफी आसान इस दौरान होगी.

पढ़ें- बाड़मेर में दीपावली की तैयारियां शुरू, मिट्टी के दीपक बनाने में जुटे कारीगर

यहां से ही हाड़ौती क्षेत्र में बर्तन भिजवाए जाते
ठिकरदा गांव में हर प्रकार की मिट्टी के बर्तन बनते हैं. यहां पर छोटी मटका, बड़े मटके, काली मटकी, लाल मटकी तथा गुल्लक, छोटा दीपक, बड़े दीपक सहित कई प्रकार के बर्तन ठिकरदा गांव में बनते हैं और यही से पूरे जिले में तथा हाड़ौती क्षेत्र में बर्तन भिजवाए जाते हैं. करीब एक बर्तन को बनाने के लिए 1 सप्ताह का समय कारीगरों को लगता है. फिर जाकर वह बर्तन अपनी असल रूप में दिखाई देने लगता है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: चाक की तरह चकरघिन्नी बनी कुम्हारों की जिंदगी, मिट्टी में तलाश रहे 'दो जून की रोटी'

बूंदी में कम नहीं हुई दीपकों की डिमांड
वर्तमान में युद्ध स्तर पर बूंदी के ठिकरदा गांव में सभी प्रकार के बर्तन बनाने का कार्य चल रहा है. अधिकतर घरों में दीपक बनाए जा रहे हैं. तो कई घरों में मटकी बनाने का निर्माण कार्य चल रहा है. इन घरों में दुकानदारों के ऑर्डर के आधार पर कारीगरों द्वारा मटकी तथा दीपकों को आकृति दी जा रही है. वक्त की मार ने कहीं ना कहीं चाइनीस सामानों को बाजारों में अपनी जगह बनाने के लिए मजबूर किया है तो आज भी दीपकों की डिमांड बूंदी में कम नहीं हुई है. ठिकरदा गांव में जिन जिन कारीगरों से हमने बात की उनका कहना था कि बूंदी में इस वर्ष दिवाली के अवसर पर दिए बनाने को लेकर काफी उत्साह देखा जा रहा है और काफी इनकी डिमांड भी है. ऐसे में हम भी काफी रुचि के साथ दिए का निर्माण कर रहे हैं और आर्डर ले रहे हैं.

Bundi Thikarda village, बूंदी का ठीकरदा गांव
मटकों को धूप में सुखाती महिला

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: एक अनोखा गांव...यहां हजारों सालों से बन रही हैं मिट्टी की मूर्तियां​​​​​​​

सरकार से कला को जिंदा रखने के लिए सहयोग
इस कला में माहिर कुम्हार परिवार ही इस कला को जिंदा रखे हुए हैं. लेकिन युवा वर्ग इस कला से दूर हटते जा रहा है. वहीं हालांकि इस ठीकरदा गांव में काफी परिवार हैं. लेकिन 100 से अधिक ही परिवार इस कला को जिंदा रखे हुए हैं. बूंदी जिले में इस ठीकरदा गांव को पुरानी शैली व मिट्टी के रूप में बर्तन बनाने वाले गांव के नाम से भी जाना जाता है और पुरानी शैली व पुरानी संस्कृति इस गांव में आकर दिखाई देती है. क्योंकि हर घर में युद्धस्तर पर मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य किया जाता है. लेकिन इन परिवारों का एक ही कहना है कि सरकार उन्हें किसी प्रकार की योजना में लाकर उनके इस कला को जिंदा रखने के लिए पहल करें, ताकि उन्हें उनके संसाधनों की समय रहते पूर्ति हो जाए और उनके घर पर लालन पोषण हो सकें.

बूंदी. जिले के ठिकरदा गांव में आज भी पुरानी संस्कृति जिंदा है. यहां पर करीब 500-1000 घर ऐसे हैं. जहां मिट्टी के बर्तनों को बनाने का काम किया जाता है. इन घरों में पूर्वजों से मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य किया जाता था. जिन्हें आज भी नई पीढ़ी लगातार बनाने का काम कर रही है. बूंदी शहर से 8 किलोमीटर दूर ठिकरदा गांव में हर घर के बाहर मिट्टी के ढेर दिखाई देंगे और महिला हो या पुरुष सभी मिलकर मिट्टी के बर्तन को बनाते हुए दिखाई देंगे. कोई चाक के माध्यम से मटकी, दीये, बड़े दीये बनाते हुए नजर आएगा तो कोई उन्हें बनने के बाद धूप में सूखने का काम करता दिखाई देखा.

इस गांव के हर घर में बनते हैं मिट्टी के बर्तन

हर घर में मिट्टी के बर्तन बनाने का काम जोरों पर
यह सारी प्रक्रिया ठिकरदा गांव में हर घर में हो रही है. अब दिवाली का त्योहार नजदीक है. ऐसे में हर घर में इस तरह की मिट्टी के बर्तन बनाने की प्रक्रिया जारी है. वहीं इस काम को लेकर कारीगरों का कहना है कि इन बर्तनों को बनाने के लिए दूसरे गांव से महंगी मिट्टी लाते हैं और मिट्टी को मेहनत करके साफ किया जाता है. फिर उसे बर्तन बनाने योग्य किया जाता है. कारीगरों ने बताया कि सरकार द्वारा आज भी किसी प्रकार की हमारे इस व्यवसाय के लिए कोई मदद नहीं की जा रही है. पुराने समय में काफी अच्छी मिट्टी आया करती थी और उस मिट्टी को सीधा काम ले लेते थे और बर्तन बनाने का काम शुरू कर दिया जाता था. लेकिन आज के समय काफी दूर से और काफी महंगी मिट्टी हमें मिल रही है और उस पर साफ करने में हमें काफी मेहनत का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन इतनी मेहनत करने के बाद भी हमें दाम नहीं मिल पा रहे हैं.

पढ़ें- खास रिपोर्ट: हमारे मिट्टी के दीयों की रोशनी और कुंभकारों के रोजगार को छीन ले गया चीन

बाजार में दीपक की मांग, लेकिन दाम नहीं
हालांकि कारीगरों का कहना है कि इस बार अच्छी बरसात होने से मिट्टी में नमी व कचरे की मात्रा काम आने से हमें मेहनत कम करनी पड़ रही है. वहीं लगातार बरसात की वजह से इस बार किसी भी कारीगरों ने दीपक नहीं बनाए हैं. जिसके चलते बाजारों में दीपक नहीं बिक सकें. इसी कारण अब दीपक की मांग बढ़ गई है. लगातार शहरी क्षेत्र से दुकानदारों की मांग कारीगरों से की जा रही है और हजारों की तादाद में छोटे दीपक व बड़े दीपक के ऑर्डर इन कारीगरों को मिल रहे हैं. जिससे इन कारीगरों के चेहरों पर खुशी है. कारीगरों का कहना है कि हमें ऑर्डर तो मिल रहा है लेकिन हमारी मजदूरी नहीं निकल पा रही है. करीब एक दीपक एक रुपए का बाजार में मिलता है तो हम रिटेल में यानी थोक के भाव में ₹1 में दो दीपक दुकानदारों को बेच रहे हैं. जो कि हमारी मेहनत भी नहीं निकल पा रही है.

Bundi Thikarda village, बूंदी का ठीकरदा गांव
ठीकरदा गांव में मिट्टी से बर्तनों का होता है काम

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: दिवाली नजदीक आई तो चमकने लगा कुम्भकारों की उम्मीदों का दीपक

इलेक्ट्रॉनिक चाक के जरिए होता है मिट्टी के बर्तनों का निर्माण
इन मिट्टी के बर्तनों को बनाने के लिए कारीगरों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि प्राचीन समय में चाक के माध्यम से मिट्टी के बर्तन बनाए जाते थे. लेकिन आज के युग में इलेक्ट्रॉनिक चाक आ गए हैं. जिसके माध्यम से कारीगर उन बर्तनों का निर्माण कर रहे हैं. लेकिन इन ग्रामीण इलाकों में बार-बार विद्युत आपूर्ति बंद हो जाने के चलते चाक नहीं चल सकते तो मिट्टी के बर्तनों का निर्माण भी प्रभावित हो रहा है. कारीगरों ने सरकार से मांग की है कि वह समय पर बिजली और उन्हें आसानी से मिट्टी उपलब्ध करवा दें यह दोनों बड़ी समस्या हल कर दे तो उन्हें काफी आसान इस दौरान होगी.

पढ़ें- बाड़मेर में दीपावली की तैयारियां शुरू, मिट्टी के दीपक बनाने में जुटे कारीगर

यहां से ही हाड़ौती क्षेत्र में बर्तन भिजवाए जाते
ठिकरदा गांव में हर प्रकार की मिट्टी के बर्तन बनते हैं. यहां पर छोटी मटका, बड़े मटके, काली मटकी, लाल मटकी तथा गुल्लक, छोटा दीपक, बड़े दीपक सहित कई प्रकार के बर्तन ठिकरदा गांव में बनते हैं और यही से पूरे जिले में तथा हाड़ौती क्षेत्र में बर्तन भिजवाए जाते हैं. करीब एक बर्तन को बनाने के लिए 1 सप्ताह का समय कारीगरों को लगता है. फिर जाकर वह बर्तन अपनी असल रूप में दिखाई देने लगता है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: चाक की तरह चकरघिन्नी बनी कुम्हारों की जिंदगी, मिट्टी में तलाश रहे 'दो जून की रोटी'

बूंदी में कम नहीं हुई दीपकों की डिमांड
वर्तमान में युद्ध स्तर पर बूंदी के ठिकरदा गांव में सभी प्रकार के बर्तन बनाने का कार्य चल रहा है. अधिकतर घरों में दीपक बनाए जा रहे हैं. तो कई घरों में मटकी बनाने का निर्माण कार्य चल रहा है. इन घरों में दुकानदारों के ऑर्डर के आधार पर कारीगरों द्वारा मटकी तथा दीपकों को आकृति दी जा रही है. वक्त की मार ने कहीं ना कहीं चाइनीस सामानों को बाजारों में अपनी जगह बनाने के लिए मजबूर किया है तो आज भी दीपकों की डिमांड बूंदी में कम नहीं हुई है. ठिकरदा गांव में जिन जिन कारीगरों से हमने बात की उनका कहना था कि बूंदी में इस वर्ष दिवाली के अवसर पर दिए बनाने को लेकर काफी उत्साह देखा जा रहा है और काफी इनकी डिमांड भी है. ऐसे में हम भी काफी रुचि के साथ दिए का निर्माण कर रहे हैं और आर्डर ले रहे हैं.

Bundi Thikarda village, बूंदी का ठीकरदा गांव
मटकों को धूप में सुखाती महिला

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: एक अनोखा गांव...यहां हजारों सालों से बन रही हैं मिट्टी की मूर्तियां​​​​​​​

सरकार से कला को जिंदा रखने के लिए सहयोग
इस कला में माहिर कुम्हार परिवार ही इस कला को जिंदा रखे हुए हैं. लेकिन युवा वर्ग इस कला से दूर हटते जा रहा है. वहीं हालांकि इस ठीकरदा गांव में काफी परिवार हैं. लेकिन 100 से अधिक ही परिवार इस कला को जिंदा रखे हुए हैं. बूंदी जिले में इस ठीकरदा गांव को पुरानी शैली व मिट्टी के रूप में बर्तन बनाने वाले गांव के नाम से भी जाना जाता है और पुरानी शैली व पुरानी संस्कृति इस गांव में आकर दिखाई देती है. क्योंकि हर घर में युद्धस्तर पर मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य किया जाता है. लेकिन इन परिवारों का एक ही कहना है कि सरकार उन्हें किसी प्रकार की योजना में लाकर उनके इस कला को जिंदा रखने के लिए पहल करें, ताकि उन्हें उनके संसाधनों की समय रहते पूर्ति हो जाए और उनके घर पर लालन पोषण हो सकें.

Intro:एक और पूरे देश में पुरानी संस्कृति खत्म होने की कगार पर है लेकिन हम आपको बूंदी जिले के ऐसे गांव से रूबरू करवाने जा रहे हैं जहां आज भी पुराने यंत्रों से मिट्टी के बर्तन बनाने का कारवां जारी है। बूंदी शहर से 8 किलोमीटर दूर टीकरदा गांव में आज भी कई परिवार मिट्टी के बर्तन बनाने का काम कर रहे हैं हालांकि वक्त के मार ने कुछ घरों तक की संस्कृति को जिंदा रखा हुआ है फिर भी वह परिवार इस संस्कृति को मेहनत लगन के साथ जिंदा रखे हुए हैं और मिट्टी के बर्तन बनाकर संस्कृति को बचा रहे हैं ।


Body:बूंदी जिले के टिकरदा गांव में आज भी पुरानी संस्कृति जिंदा है यहां पर करीब 500-100 घर ऐसे हैं जहां मिट्टी के बर्तनों का निर्माण किया जाता है इन घरों में पूर्वजों से मिट्टी बनाने का कार्य किया जाता था जिन्हें आज भी नई पीढ़ी मिट्टी बनाने के कार्य में लगी हुई है । बूंदी शहर से 8 किलोमीटर दूर टिकरदा गांव में हर घर के बाहर मिट्टी के ढेर दिखाई देंगे और महिला हो या पुरुष सभी मिलकर मिट्टी के बर्तन को बनाते हुए दिखाई देंगे ,,कोई चॉक के माध्यम से मटकी , दीये ,बड़े दीये बनाते हुए नजर आएगा तो कोई उसे सुख आता हुआ दिखेगा तो कोई रंग रोगन करते हुए नजर आएगा । हालांकि इन बर्तनों को बनाने और मिट्टी को साफ करने में काफी लंबा समय इन मजदूरों को लगता है यहां पर आसपास के क्षेत्रों से मिट्टी को लाया जाता है और मिट्टी को साफ कर उसे पानी में भिगोया जाता है और मिट्टी का लेप बनाकर उसे चाक के माध्यम से बर्तन बनाने का काम लिया जाता है। चाक पर एक मजदूर मटकी वह बड़े दीये बनाता है तो दूसरा मजदूर उस बनी हुई सामग्री को सुखाने का काम करता है तो तीसरा मजदूर उसे भट्टी में पकाने का काम करता है बाद में बर्तन पकने पर उसे रंग रोगन देने का काम किया जाता है । इस लंबे उसे सिस्टम से गुजरने के बाद तब जाकर कहीं ना कहीं मटकी व दीये का निर्माण होता है ।

यह सारी प्रक्रिया टिकरदा गांव में हर घर में हो रही है अब दिवाली का त्यौहार नजदीक है ऐसे में हर घर में इस तरह की मिट्टी के बर्तन बनाने की प्रक्रिया जारी है । कारीगरों का कहना है कि इन बर्तनों को बनाने के लिए दूसरे गांव से महंगी मिट्टी लाते हैं और मिट्टी को मेहनत करके साफ किया जाता है फिर उसे बर्तन बनाने योग्य किया जाता है । कारीगरों ने कहा कि सरकार द्वारा आज भी किसी प्रकार की हमारे इस व्यवसाय के लिए कोई मदद नहीं की जा रही है । पुराने समय में काफी अच्छी मिट्टी आया करती थी और उस मिट्टी को सीधा काम ले लेते थे ओर बर्तन बनाने का काम शुरू कर दिया जाता था लेकिन आज के समय काफी दूर से और काफी महंगी मिट्टी हमें मिल रही है और उस पर साफ करने में हमें काफी मेहनत का सामना करना पड़ रहा है और उसी मेहनत करने के बाद भी हमें दाम नहीं मिल पा रहे हैं ।

हालांकि कारीगरों का कहना है कि इस बार अच्छी बरसात होने से मिट्टी में नमी व कचरे की मात्रा काम आने से हमें मेहनत कम करनी पड़ रही है तो लगातार बरसात की वजह से इस बार किसी भी कारीगरों ने दीपक नहीं बनाए हैं जिसके चलते बाजारों में दीपक नहीं बिक सके । इसी कारण अब दीपक की मांग बढ़ गई है । लगातार शहरी क्षेत्र से दुकानदारों की मांग कारीगरों से की जा रही है और हजारों की तादाद में छोटे दीपक व बड़े दीपक के आर्डर इन कारीगरों को मिल रहे हैं जिससे इन कारीगरों के चेहरों पर खुशी है। कारीगरों का कहना है कि हमें ऑर्डर तो मिल रहा है लेकिन हमारी मजदूरी नहीं निकल पा रही है । करीब एक दीपक एक रुपए का बाजार में मिलता है तो हम रिटेल में यानी थोक के भाव में ₹1 में दो दीपक दुकानदारों को बेच रहे हैं जो कि हमारी मेहनत भी नहीं निकल पा रही है ।

इन मिट्टी के बर्तनों को बनाने के लिए कारीगरों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि प्राचीन समय में चाक के माध्यम से मिट्टी के बर्तन बनाए जाते थे लेकिन आज के युग में इलेक्ट्रॉनिक चाक आ गए हैं जिसके माध्यम से कारीगर उन बर्तनों का निर्माण कर रहे हैं लेकिन इन ग्रामीण इलाकों में बार-बार विद्युत आपूर्ति बंद हो जाने के चलते चाक नहीं चल सकते तो मिट्टी के बर्तनों का निर्माण भी प्रभावित हो रहा है । कारीगरों ने सरकार से मांग की है कि वह समय पर बिजली और उन्हें आसानी से मिट्टी उपलब्ध करवा दें यह दोनों बड़ी समस्या हल कर दे तो उन्हें काफी आसान इस दौरान होगी ....


Conclusion:टिकरदा गांव में हर प्रकार की मिट्टी के बर्तन बनते हैं यहां पर छोटी मटका ,बड़ी मटका ,काली मटकी, लाल मटकी तथा गुल्लक, छोटा दीपक, बढ़ा दीपक सहित कई प्रकार के बर्तन टिकरदा गांव में बनते हैं और यही से पूरे जिले में तथा हाडौती क्षेत्र में बर्तन भिजवाए जाते हैं । करीब एक बर्तन को बनाने के लिए 1 सप्ताह का समय कारीगरों को लगता है फिर जाकर वह बर्तन अपनी असल रूप में दिखाई देने लगता है ।

वर्तमान में युद्ध स्तर पर बूंदी के टिकरदा गांव में सभी प्रकार के बर्तन बनाने का कार्य चल रहा है अधिकतर घरों में दीपक बनाए जा रहे हैं बड़े दीपक बनाए जा रहे हैं तो अधिकतर घरों में मटकी बनाने का निर्माण कार्य चल रहा है । इन घरों में दुकानदारों के ऑर्डर के आधार पर कारीगरों द्वारा मटकी तथा दीपको को आकृति दी जा रही है । वक्त की मार ने कहीं ना कहीं चाइनीस सामानों को बाजारों में अपनी जगह बनाने के लिए मजबूर किया है तो आज भी दीपको की डिमांड बूंदी में कम नहीं हुई है । टिकरदा गांव में जिन जिन कारीगरों से हमने बात की उनका कहना था कि बूंदी में इस वर्ष दिवाली के अवसर पर दिए बनाने को लेकर काफी उत्साह देखा जा रहा है और काफी इनकी डिमांड भी है ऐसे में हम भी काफी रुचि के साथ दिए का निर्माण कर रहे हैं और आर्डर ले रहे हैं ।

इस कला में माहिर कुमार परिवार ही इस कला को जिंदा रखे हुए हैं लेकिन युवा वर्ग इस कला से दूर हटते जा रहा है । वहीं हालांकि इस टीकरदा गांव में काफी परिवार हैं लेकिन 100 से अधिक ही परिवार इस कला को जिंदा रखे हुए हैं । बूंदी जिले में इस टिकरदा गांव को पुरानी शैली व मिट्टी के रूप में बर्तन बनाने वाले गांव के नाम से भी जाना जाता है और पुरानी शैली व पुरानी संस्कृति इस गांव में आकर दिखाई देती है क्योंकि हर घर में युद्धस्तर पर मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य किया जाता है ... लेकिन इन परिवारों का एक ही कहना है कि सरकार उन्हें किसी प्रकार की योजना में लाकर उनके इस कला को जिंदा रखने के लिए पहल करें ताकि उन्हें उनके संसाधनों की समय रहते पूर्ति हो जाए और उनके घर पर लालन पोषण हो सके ।

बाईट - दिनेश प्रजापत , कारीगर
बाईट - मोहन लाल , बुजुर्ग कारीगर
बाईट - धापू बाई , गृहणी
बाईट - हनुमान , युवा कारीगर
बाईट - गुलाब चंद , कारीगर
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