बूंदी. कोरोना के कारण हर बार की तरह इस बार जिले में कृष्ण जन्माष्टमी की रौनक नहीं दिखाई देगी. मंदिर में पूजा-पाठ तो होगा, लेकिन आमजन गोविंद लला के दर्शन नहीं कर पाएंगे. वहीं, बाल चंद पाड़ा स्थित गोपाल मंदिर में 300 साल पुरानी जान्माष्टमी उत्सव की परंपरा इस बार टूट जाएगी. मंदिर में सिर्फ पुजारी सादे तरीके से भगवान की पूजा करेंगे.
बूंदी के प्रसिद्ध मंदिर गोपाल मंदिर में भी यह आयोजन नहीं होगा. जिलेवासी घरों में ही खास अंदाज में कृष्ण जन्मोत्सव मनाने की तैयारी कर रहे हैं. कृष्ण जन्म को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं और इस त्योहार को पूरे देश में जोर-शोर से मनाया जाता है. भगवान कृष्ण के जन्म उत्सव सभी अपने-अपने तरीके से मनाते हैं. जन्माष्टमी पर जगह-जगह पर झांकियां सजाई जाती हैं तो कहीं दही-हांडी के खेल का आयोजन किया जाता है, लेकिन इस बार कोई बड़ा आयोजन नहीं होगा.
बता दें कि इस बार भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को कृष्ण जन्मोत्सव लक्ष्य में जन्माष्टमी पर्व मनाया जाता है. विद्वानों के अनुसार वैष्णव परंपरा अनुसार भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि में सूर्योदय होने के अनुसार ही जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है, लेकिन नंद गांव में इसके उलट श्रावण मास की पूर्ण मासी के दिन से आठवें दिन ही जन्माष्टमी मनाने की प्रथा चली आ रही है.
छोटी काशी में कृष्ण जन्मोत्सव की रहती है धूम...
छोटी काशी बूंदी को देवालय का शहर भी कहा जाता है. यहां पग-पग पर मंदिर-मस्जिद हैं और बूंदी को कौमी एकता की मिसाल कहा जाता है. यहां कृष्ण जन्मोत्सव की धूम 1 दिन पहले ही मंदिरों में दिखाई देने लगती है. शाम होने पर विशेष श्रृंगार का आयोजन किया जाता है. मंदिरों के भवन और परिसरों को पूरी तरह से रंग-रोगन करने के साथ ही आकर्षक बल्ब से सजाया जाता है. शहर भर के लोग इन मंदिरों में पहुंच कर भगवान कृष्ण का जन्म महोत्सव में जुट जाते हैं.
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इसी तरह बूंदी के बालचंद पाड़ा स्थित भगवान गोपाल लाल के मंदिर में कृष्ण जन्मोत्सव की धूम रहती है. इसी मंदिर का बूंदी में महत्व माना जाता है. जहां हर वर्ष कृष्ण जन्मोत्सव के कुछ दिन पहले ही मंदिर समिति के लोग कृष्ण जन्मोत्सव को लेकर तैयारी में जुट जाते हैं. कृष्ण जन्म उत्सव की शुरुआत होने के साथ ही हजारों की तादाद में यहां पर शहर के और जिले भर के श्रद्धालु दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं और ठाकुर जी का आशीर्वाद लेते हैं. बूंदी में इस बार कृष्ण जन्मोत्सव कोरोना वायरस के चलते फीका पड़ गया है. गोपाल लाल मंदिर में रौनक हुआ करती थी. आज इस मंदिर के पटों पर ताले लगे हैं, जिससे भक्त निराश नजर आ रहे हैं.
गोपाल मंदिर 300 साल पुराना...
बूंदी शहर के बाल चंद पाड़ा स्थित गोपाल मंदिर 300 साल पुराना है. इसकी स्थापना बूंदी वंश के राजाओं ने की थी. बताया जा रहा है कि भगवान गोपाल वृंदावन से चलकर बूंदी बिराजे थे. तब बूंदी के राजा के सपने में भगवान का वास हुआ और भगवान ने बूंदी के बालचंद पाड़ा में मंदिर बनाने के लिए राजा को कहा. इसी के साथ बूंदी के वंशज राजाओं ने भगवान गोपाल मंदिर की स्थापना की और वहां पर ठाकुर जी की मूर्ति को स्थापित किया और आलीशान हवेली में भगवान गोपाल का मंदिर बनवाया. तभी से ही बूंदी के आराध्य देव के रूप में भगवान गोपाल जाने जाने लगे.
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मंदिर के सेवक पुरुषोत्तम लाल पारीक बताते हैं कि बूंदी दरबार ने इस मंदिर की स्थापना की और भगवान के कई चमत्कार भी रहे हैं. उन्होंने बताया कि प्रमुख मंदिर बूंदी के गोपाल मंदिर को ही दर्जा मिला है. वहीं मंदिर के पुजारी मधुसूदन शर्मा कहते हैं कि इस बार कृष्ण जन्मोत्सव नहीं मनाया जाएगा. कोरोना वायरस के चलते कृष्ण जन्मोत्सव फीका रहा है, केवल आरती यहां पर की जाएगी. आमजन के लिए पट्टे नहीं खुलेंगे और भगवान से आराधना की जाएगी कि वह जल्द से जल्द कोरोना वायरस के संक्रमण से मुक्ति दिलाएं. जिससे ऐसे दिन दोबारा देखने को नहीं मिले.
सभी धार्मिक आयोजनों पर रहेगी रोक...
जिला कलेक्टर आशीष गुप्ता ने बताया कि सभी धार्मिक आयोजनों पर रोक लगने के साथ ही बूंदी प्रशासन ने भी सभी समुदायों को लेकर बैठक आयोजित की. जिसके बाद निर्देश दिया गया है कि अगस्त महीने से लेकर जितने भी त्योहार हैं, वे नहीं मनाए जाएंगे. प्रशासन किसी भी त्योहार की अनुमति नहीं देगा और ना ही सार्वजनिक तौर पर कोई आयोजन होगा.
प्रशासन ने साफ तौर से सभी समाज के लोगों को चेताया है कि वह घर में ही रहकर शांतिपूर्ण तरीके से भगवान के धार्मिक त्योहार को मनाएं. किसी प्रकार की कोई भी भीड़ नहीं करें. इस पर सभी समाजों ने जिला प्रशासन को आश्वासन दिया है कि अगस्त माह से लेकर जब तक कोरोना काल है तब तक प्रशासन की अनुमति के बिना कोई भी धार्मिक आयोजन नहीं किया जाएगा .