बूंदी. राजस्थान की लोक संस्कृति और राजसी ठाठ-बाट की बात ही निराली है. आज भी राजस्थान के किले, ऐतिहासिक इमारतें, मेले और परंपरा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. राजस्थान मेलों और उत्सवों की धरती है. एक ऐसा ही मेला है, बूंदी का कजली तीज मेला, जो हर साल अगस्त के महीने में लगता है. इसका इतिहास गौरवपूर्ण रहा है. आजादी के बाद से हर साल इस मेले का आयोजन किया जाता रहा है. लेकिन पहली बार इस मेले का आयोजन नहीं होगा.
करीब 15 दिनों तक बूंदी में कजली तीज महोत्सव की धूम रहती है. विशाल ऐतिहासिक सवारी का आयोजन होने के साथ ही 15 दिनों का मेला भरता है. देश-विदेश से दुकानदार अपने सामान लेकर बूंदी के मेले में पहुंचते हैं, लेकिन इस साल कोरोना के चलते यह त्योहार फीका पड़ गया है. या यूं कहें कि इस साल कजली तीज की धूम ही नहीं है.
कब है कजली तीज...
सावन मास के खत्म होते ही भादो शुरू हो जाएगा और भादो के कृष्ण पक्ष की तृतीया को कजली तीज का त्योहार मनाया जाता है. हरियाली तीज की तरह ही कजली तीज का पर्व भी महिलाओं के लिए बहुत खास होता है. इस बार कजली तीज का त्योहार 6 अगस्त यानी गुरुवार को मनाया जाएगा.
![बूंदी की खबर, राजस्थान हिंदी न्यूज, bundi latest news, बूंदी की कजली तीज](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8279902_sfs_sfs.png)
कजली तीज का महत्व...
कजली तीज के बारे में ऐसा कहा जाता है कि माता पार्वती ने इस व्रत के प्रभाव से भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया था. इसलिए इस व्रत में भगवान शिव और पार्वती की संयुक्त रूप से पूजा करने का विधान है. कई स्थानों पर कुंवारी कन्याएं भी इस व्रत को करती हैं.
लूट कर लाई गई थीं सोने की तीज माता...
बूंदी में तीज मेला आयोजित होने के पीछे एक बेहद रोचक कहानी है. बूंदी सियासत में गोटड़ा के ठाकुर बलवंत सिंह को एक बार उनके मित्र ने बताया था कि जयपुर में कजली माता की भव्य सवारी निकाली जाती है. बूंदी में ये सवारी निकाली जाए तो हमारी ही शान बढ़ेगी. फिर क्या था, साथी के कहने पर बलवंत सिंह ने ठान लिया की जब तीज माता की सवारी निकाली जाएगी तो वे उसे लूट लेंगे.
![बूंदी की खबर, राजस्थान हिंदी न्यूज, bundi latest news, बूंदी की कजली तीज](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8279902_sfsrdg.png)
यह भी पढ़ें : Special: सच हो रहा सपना, राम मंदिर निर्माण को लेकर कार सेवकों में उत्साह
इसके बाद राव बलवंत सिंह अपने 11 विश्वसनीय जांबाज सैनिकों को लेकर जयपुर के महल पहुंचे. जहां निश्चित कार्यक्रम के अनुसार जयपुर के चहल-पहल वाले बाजारों से तीज की सवारी शाही तौर तरीके से निकल रही थी. तभी ठाकुर बलवंत सिंह हाड़ा ने अपने साथियों के पराक्रम से जयपुर की तीज को लूट लिया और वहां से लूटकर बूंदी की तरफ बढ़ गए. उनके साथ इतने ताकतवर घोड़े थे कि वह तेज रफ्तार से बूंदी की तरफ बढ़ रहे थे, लेकिन जयपुर के सैनिक उनका पीछा तक नहीं कर पाए और जयपुर की तीज को राजा बूंदी का गोठड़ा गांव लेकर आ गए. तभी से तीज माता की सवारी बूंदी में निकलने लगी.
![बूंदी की खबर, राजस्थान हिंदी न्यूज, bundi latest news, बूंदी की कजली तीज](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/teej-mahotav-corona-effect-7204057-hd_03082020161016_0308f_1596451216_994.jpg)
हर साल निकलती है शाही सवारी...
बूंदी रियासत के जागीरदार, ठाकुर और धनाढ्य लोग अपनी परंपरागत पोशाक पहनकर पूरी शानो शौकत के साथ इस सवारी में भाग लेने के लिए तैयार रहते थे और भाग लिया करते थे. इस दौरान सैनिकों द्वारा शौर्य का प्रदर्शन किया जाता था.
कोरोना ने लगाया 'ग्रहण'...
राज परिवार के सदस्य महाराजा बलभद्र सिंह और रानी रोहिणी हाड़ा बताते हैं कि सुहागन महिलाएं सजी-धजी लहरियां पहनकर तीज महोत्सव में चार चांद लगाती थीं. इक्कीस तोपों की सलामी के बाद नवल सागर झील से तीज सवारी प्रमुख बाजारों से होती हुई रानी जी की बावड़ी तक जाती थी. जहां फिर सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे.
कई तरह के डांस प्रोग्राम होते थे. करतब दिखाने वाले कलाकारों को बुलाया जाता था और अच्छा प्रदर्शन करने वाले कलाकारों को सम्मानित भी किया जाता था. अतिथियों का आत्मीय स्वागत किया जाता था. सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बाद सवारी वापस राजभवन लौटती थी. इसके बाद और भी कई तरह के मनोरंजक कार्यक्रम होते थे. जैसे 2 मद मस्त हाथियों का युद्ध चोगन गेट के बाहर होता था. जिसे देखने के लिए भीड़ उमड़ती थी. स्वतंत्रता के बाद भी सवारी निकलने की परंपरा बनी हुई है. हालांकि अब दो दिवसीय की सवारी निकलने का दायित्व नगर परिषद का है.
![बूंदी की खबर, राजस्थान हिंदी न्यूज, bundi latest news, बूंदी की कजली तीज](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8279902_.jpg)
राजघराने ने तीज की प्रतिमा को नगर परिषद को सौंप दिया है. जिसके बाद तीज की दूसरी प्रतिमा बनवाकर हर साल भाद्रपद महीने की तृतीया को सवारी निकालने की सांस्कृतिक परंपरा बनी हुई है, लेकिन आज भी राज परिवारों में तीज केवल महलों में ही निकलती है. जहां पर राज परिवार के लोग शामिल होते हैं और तीज माता की पूजा करते हैं.
यह भी पढे़ं : भगवान राम का मंदिर हमारे देश में एकता और भाईचारे का प्रतीक बन सकता है: सीएम गहलोत
उन्होंने बताया कि बदलते समय के साथ सार्वजनिक रूप से राज परिवार द्वारा तीज महोत्सव की सवारी को नहीं निकाला जाता है. केवल नगर परिषद ही इसका दायित्व निभा रही है, लेकिन इस बार कोरोना वायरस के चलते हमने भी घर में ही तीज महोत्सव मनाने का संकल्प लिया है और यहीं पर ही पूजा की जाएगी. साथ ही कोरोना वायरस को जल्द खत्म करने की मनोकामना तीज माता से की जाएगी.
![बूंदी की खबर, राजस्थान हिंदी न्यूज, bundi latest news, बूंदी की कजली तीज](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8279902_sfs.jpg)
कोरोना वायरस के चलते उत्सव पड़ा फीका...
बूंदी में तीज माता की सवारी 2 दिन तक निकलती है. इस साल 5 अगस्त को इसका आयोजन किया जाना था. शहर के 2 इलाकों से अलग-अलग दिन यह तीज माता की सवारी निकलती है. जिसमें तीज माता की प्रतिमा सहित विभिन्न तरह की झांकियां, हाथी, घोड़े, ऊंट पर विभिन्न मनोरंजन झांकियां निकलती हैं. जिसे देखने के लिए जिले भर के लोग आते हैं.
वहीं, शाम को बालचंद पाड़ा से तीज माता की सवारी शुरू होती है और शहर के विभिन्न मार्केट से होते हुए कुंभा स्टेडियम ऐतिहासिक मैदान में पहुंचती है. उसके बाद 15 दिनों तक का मेला यहां पर शुरू हो जाता है. लेकिन कोरोना वायरस के चलते इस बार ना तीज माता की सवारी निकलेगी और ना ही ऐतिहासिक मेला भर पाएगा. केवल घरों में ही तीज महोत्सव मनाया जाएगा और छोटे रूप में इस बार आयोजन सीमित दायरे में रहेगा.
![बूंदी की खबर, राजस्थान हिंदी न्यूज, bundi latest news, बूंदी की कजली तीज](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8279902_sfs.png)
इस साल प्रशासन ने कजली तीज की सवारी निकालने भी की अनुमित नहीं दी है. ऐसा माना जा रहा कि इस बार ना ही ऐतिहासिक सवारी निकलेगी और ना ही मेला आयोजित होगा. ऐसे में घरों में ही रहकर सुहागिन महिलाएं तीज माता की पूजा करेंगी.