बूंदी. रोशनी के पर्व दिवाली की तैयारी में लोग जुट गए हैं. बात दीपावली की हो और आतिशबाजी का जिक्र नहीं किया जाए तो कुछ अटपटा लगता है. बूंदी के दो ऐसे परिवार हैं, जो पीढ़ियों से शोरगर का काम कर रहे हैं. उनके बनाए पटाखे का क्रेज राजाओं-महाराजाओं के राज में भी था और आज भी वैसा ही बरकरार है. शोरगर जमील अहमद का पूरा परिवार इस काम में जुटा हुआ है. साल से 2 महीने ही ऐसे होते हैं जब इस काम को बंद करना पड़ता है. जमील अहमद के अनार आतिशबाजी का क्रेज बूंदी में नहीं बल्कि देश के दूसरे भी कई राज्यों में है.
जमील अहमद बताते हैं कि राजस्थान के साथ-साथ महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में अनार का काफी क्रेज है. वह दुकान नहीं लगाते हैं, लेकिन लेने वाले उनके गोदाम पर ही आते हैं. डिमांड को देखते हुए तैयारी चलती रहती है, सीजन में तो घर जाने तक की भी फुर्सत नहीं मिल पाती है. आतिशी आइटम के चलते जमील अहमद कई बार सम्मानित भी हो चुके हैं. जमील अहमद बताते हैं कि बारूद के कारण यह काम काफी खतरेवाला है. ऐसे में विशेष सावधानी रखनी पड़ती है. टोंक से मिट्टी के खाली अनार मंगवाते हैं, जिन्हें तैयार किया जाता है. आइटम चार प्रकार के होते हैं, जिसमें अनार बना होता है. ज्वालामुखी, दहिया की डिमांड ज्यादा होती है.
बूंदी का यह अनार अपने आप में तारीफ-ए-काबिल होता है. बूंदी में पर्यटक भी इसे काफी पसंद करते हैं. इस अनार की आवाज और रोशनी इसकी धुन न नजर आती है या सुनाई देती है. वह अपने आप में तारीफ-ए-काबिल होती है. एक तरफ तो दूसरे पटाखे की ध्वनि कान फाड़ने जैसी होती है और वह रोशनी भी नहीं देती. यहां तक कि प्रदूषण को फैलाती है. वहीं यह अनार कम प्रदूषण फैलाता है और अच्छी चमक पर रोशनी भी देता है. चक्कर, रोलर, रातरानी, बरसाती जाड़, घूमता जाड़, जाड़ों की जोड़ी और इंद्रधनुष की काफी मांग रहती है. यहां हर साल हजारों की संख्या में इस तरीके की आतिशबाजी तैयार की जाती है.
बूंदी में इस अनार की लगातार बढ़ रही मांग
यही कारण है कि बूंदी में इस अनार की लगातार मांग बढ़ती है और यहां पर अनार निर्माता दो परिवार है. वह इसको दीपावली के त्योहार से पहले ही तैयार करने में जुट जाते हैं. करीब 1 दर्जन से ज्यादा कारीगर मजदूर इसमें अनार निर्माण के कार्य करते हैं. जिसमें बारूद मिट्टी के कुल्हड़ में भरा जाता है और उसे लाई के माध्यम से अनार के बारूद को पैक कर दिया जाता है, ताकि बारूद बाहर नहीं निकले और खरीदारी से खरीद कर लेकर जाते हैं और दीपावली के दिन की रोशनी को रंगीन और रंग-बिरंगी देखकर काफी हतोत्साहित होते हैं. पर्यटक भी इसे काफी पसंद करते हैं. इसे यहां तक कि पर्यटक जब इसे देख लेते हैं तो अपने शहर अपने देश भी ले जाते है, ऐसा कहना है लोगों का. दशहरा, कजली, तीज मेला, शादी समारोह में भी काफी डिमांड होती है.
एक अनार को बनाने में 10 से 30 मिनट का समय लगता है
इन दोनों परिवार में दिवाली से पहले ही कारीगर इन अनारों को बनाना शुरू कर देते हैं. यहां करीब चार प्रकार के आधार बनाए जाते हैं छोटे से लेकर बड़े अनार जहां आपको बनाते हुए कारीगर दिखाई देंगे. हालांकि इन अनारों को बनाने में काफी लंबी प्रक्रिया कारीगरों को लगती है. यहां सबसे पहले कार्य कर मिट्टी का कुल्हड़ तैयार करते हैं फिर कुल्हड़ में जगह बनाकर उसमें तरह-तरह का बारूद भरा जाता है. एक अनार को बनाने में करीब 10 से 30 मिनट कारीगर को लगते हैं फिर उसी के साथ ही अनार आकार लेने लग जाता है.
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20 से 200 रुपए का मिलता है अनार
बूंदी में रियासत कालीन समय में भी कई परिवार इस प्रकार के अनार बनाने का कार्य करते थे. लेकिन वक्त के साथ ही अब बूंदी में दो ही परिवार इस कला को जिंदा रखे हुए हैं और अनार बना रहे हैं. एक अनार मार्केट में करीब 20 रुपए का मिलता है. जबकि बड़ा अनार 200 रुपए तक मार्केट में बिकता है. यह परिवार दुकानदारों को थोक के भाव में बेचते हैं.