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स्पेशल रिपोर्ट: आतिशबाजी के दीवानों के लिए बूंदी में बने इस मिट्टी के 'अनार' का बढ़ रहा क्रेज

दिवाली का त्यौहार आते ही तैयारियां तेज हो गई हैं. बाजार भी सजने लगे हैं. ऐसे में अगर आतिशबाजी के लिए बूंदी के अनारों की बात ना हो तो बेमानी सा लगता है. पटाखों का क्रेज तो राजाओं-महाराजाओं के राज में भी था और आज भी वैसा ही बरकरार है.

Fireworks of Bundi, बू्ंदी जिले में बनी आतिशबाजी
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Published : Oct 21, 2019, 11:36 PM IST

Updated : Oct 22, 2019, 1:20 PM IST

बूंदी. रोशनी के पर्व दिवाली की तैयारी में लोग जुट गए हैं. बात दीपावली की हो और आतिशबाजी का जिक्र नहीं किया जाए तो कुछ अटपटा लगता है. बूंदी के दो ऐसे परिवार हैं, जो पीढ़ियों से शोरगर का काम कर रहे हैं. उनके बनाए पटाखे का क्रेज राजाओं-महाराजाओं के राज में भी था और आज भी वैसा ही बरकरार है. शोरगर जमील अहमद का पूरा परिवार इस काम में जुटा हुआ है. साल से 2 महीने ही ऐसे होते हैं जब इस काम को बंद करना पड़ता है. जमील अहमद के अनार आतिशबाजी का क्रेज बूंदी में नहीं बल्कि देश के दूसरे भी कई राज्यों में है.

बूंदी जिले में बने ये मिट्टी के अनार हैं खास

जमील अहमद बताते हैं कि राजस्थान के साथ-साथ महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में अनार का काफी क्रेज है. वह दुकान नहीं लगाते हैं, लेकिन लेने वाले उनके गोदाम पर ही आते हैं. डिमांड को देखते हुए तैयारी चलती रहती है, सीजन में तो घर जाने तक की भी फुर्सत नहीं मिल पाती है. आतिशी आइटम के चलते जमील अहमद कई बार सम्मानित भी हो चुके हैं. जमील अहमद बताते हैं कि बारूद के कारण यह काम काफी खतरेवाला है. ऐसे में विशेष सावधानी रखनी पड़ती है. टोंक से मिट्टी के खाली अनार मंगवाते हैं, जिन्हें तैयार किया जाता है. आइटम चार प्रकार के होते हैं, जिसमें अनार बना होता है. ज्वालामुखी, दहिया की डिमांड ज्यादा होती है.

यह भी पढ़ेंः स्पेशल रिपोर्ट: कोटा में स्थित नशा मुक्ति केंद्र 150 से अधिक लोगों के लिए बना वरदान, रोजाना 40 से 50 लोग उपचार के लिए आते हैं

बूंदी का यह अनार अपने आप में तारीफ-ए-काबिल होता है. बूंदी में पर्यटक भी इसे काफी पसंद करते हैं. इस अनार की आवाज और रोशनी इसकी धुन न नजर आती है या सुनाई देती है. वह अपने आप में तारीफ-ए-काबिल होती है. एक तरफ तो दूसरे पटाखे की ध्वनि कान फाड़ने जैसी होती है और वह रोशनी भी नहीं देती. यहां तक कि प्रदूषण को फैलाती है. वहीं यह अनार कम प्रदूषण फैलाता है और अच्छी चमक पर रोशनी भी देता है. चक्कर, रोलर, रातरानी, बरसाती जाड़, घूमता जाड़, जाड़ों की जोड़ी और इंद्रधनुष की काफी मांग रहती है. यहां हर साल हजारों की संख्या में इस तरीके की आतिशबाजी तैयार की जाती है.

बूंदी में इस अनार की लगातार बढ़ रही मांग

यही कारण है कि बूंदी में इस अनार की लगातार मांग बढ़ती है और यहां पर अनार निर्माता दो परिवार है. वह इसको दीपावली के त्योहार से पहले ही तैयार करने में जुट जाते हैं. करीब 1 दर्जन से ज्यादा कारीगर मजदूर इसमें अनार निर्माण के कार्य करते हैं. जिसमें बारूद मिट्टी के कुल्हड़ में भरा जाता है और उसे लाई के माध्यम से अनार के बारूद को पैक कर दिया जाता है, ताकि बारूद बाहर नहीं निकले और खरीदारी से खरीद कर लेकर जाते हैं और दीपावली के दिन की रोशनी को रंगीन और रंग-बिरंगी देखकर काफी हतोत्साहित होते हैं. पर्यटक भी इसे काफी पसंद करते हैं. इसे यहां तक कि पर्यटक जब इसे देख लेते हैं तो अपने शहर अपने देश भी ले जाते है, ऐसा कहना है लोगों का. दशहरा, कजली, तीज मेला, शादी समारोह में भी काफी डिमांड होती है.

एक अनार को बनाने में 10 से 30 मिनट का समय लगता है

इन दोनों परिवार में दिवाली से पहले ही कारीगर इन अनारों को बनाना शुरू कर देते हैं. यहां करीब चार प्रकार के आधार बनाए जाते हैं छोटे से लेकर बड़े अनार जहां आपको बनाते हुए कारीगर दिखाई देंगे. हालांकि इन अनारों को बनाने में काफी लंबी प्रक्रिया कारीगरों को लगती है. यहां सबसे पहले कार्य कर मिट्टी का कुल्हड़ तैयार करते हैं फिर कुल्हड़ में जगह बनाकर उसमें तरह-तरह का बारूद भरा जाता है. एक अनार को बनाने में करीब 10 से 30 मिनट कारीगर को लगते हैं फिर उसी के साथ ही अनार आकार लेने लग जाता है.

यह भी पढ़ें: राजस्थान के इस परिवार ने लगाई गुहार...इंसाफ दो या इच्छामृत्यु

20 से 200 रुपए का मिलता है अनार

बूंदी में रियासत कालीन समय में भी कई परिवार इस प्रकार के अनार बनाने का कार्य करते थे. लेकिन वक्त के साथ ही अब बूंदी में दो ही परिवार इस कला को जिंदा रखे हुए हैं और अनार बना रहे हैं. एक अनार मार्केट में करीब 20 रुपए का मिलता है. जबकि बड़ा अनार 200 रुपए तक मार्केट में बिकता है. यह परिवार दुकानदारों को थोक के भाव में बेचते हैं.

बूंदी. रोशनी के पर्व दिवाली की तैयारी में लोग जुट गए हैं. बात दीपावली की हो और आतिशबाजी का जिक्र नहीं किया जाए तो कुछ अटपटा लगता है. बूंदी के दो ऐसे परिवार हैं, जो पीढ़ियों से शोरगर का काम कर रहे हैं. उनके बनाए पटाखे का क्रेज राजाओं-महाराजाओं के राज में भी था और आज भी वैसा ही बरकरार है. शोरगर जमील अहमद का पूरा परिवार इस काम में जुटा हुआ है. साल से 2 महीने ही ऐसे होते हैं जब इस काम को बंद करना पड़ता है. जमील अहमद के अनार आतिशबाजी का क्रेज बूंदी में नहीं बल्कि देश के दूसरे भी कई राज्यों में है.

बूंदी जिले में बने ये मिट्टी के अनार हैं खास

जमील अहमद बताते हैं कि राजस्थान के साथ-साथ महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में अनार का काफी क्रेज है. वह दुकान नहीं लगाते हैं, लेकिन लेने वाले उनके गोदाम पर ही आते हैं. डिमांड को देखते हुए तैयारी चलती रहती है, सीजन में तो घर जाने तक की भी फुर्सत नहीं मिल पाती है. आतिशी आइटम के चलते जमील अहमद कई बार सम्मानित भी हो चुके हैं. जमील अहमद बताते हैं कि बारूद के कारण यह काम काफी खतरेवाला है. ऐसे में विशेष सावधानी रखनी पड़ती है. टोंक से मिट्टी के खाली अनार मंगवाते हैं, जिन्हें तैयार किया जाता है. आइटम चार प्रकार के होते हैं, जिसमें अनार बना होता है. ज्वालामुखी, दहिया की डिमांड ज्यादा होती है.

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बूंदी का यह अनार अपने आप में तारीफ-ए-काबिल होता है. बूंदी में पर्यटक भी इसे काफी पसंद करते हैं. इस अनार की आवाज और रोशनी इसकी धुन न नजर आती है या सुनाई देती है. वह अपने आप में तारीफ-ए-काबिल होती है. एक तरफ तो दूसरे पटाखे की ध्वनि कान फाड़ने जैसी होती है और वह रोशनी भी नहीं देती. यहां तक कि प्रदूषण को फैलाती है. वहीं यह अनार कम प्रदूषण फैलाता है और अच्छी चमक पर रोशनी भी देता है. चक्कर, रोलर, रातरानी, बरसाती जाड़, घूमता जाड़, जाड़ों की जोड़ी और इंद्रधनुष की काफी मांग रहती है. यहां हर साल हजारों की संख्या में इस तरीके की आतिशबाजी तैयार की जाती है.

बूंदी में इस अनार की लगातार बढ़ रही मांग

यही कारण है कि बूंदी में इस अनार की लगातार मांग बढ़ती है और यहां पर अनार निर्माता दो परिवार है. वह इसको दीपावली के त्योहार से पहले ही तैयार करने में जुट जाते हैं. करीब 1 दर्जन से ज्यादा कारीगर मजदूर इसमें अनार निर्माण के कार्य करते हैं. जिसमें बारूद मिट्टी के कुल्हड़ में भरा जाता है और उसे लाई के माध्यम से अनार के बारूद को पैक कर दिया जाता है, ताकि बारूद बाहर नहीं निकले और खरीदारी से खरीद कर लेकर जाते हैं और दीपावली के दिन की रोशनी को रंगीन और रंग-बिरंगी देखकर काफी हतोत्साहित होते हैं. पर्यटक भी इसे काफी पसंद करते हैं. इसे यहां तक कि पर्यटक जब इसे देख लेते हैं तो अपने शहर अपने देश भी ले जाते है, ऐसा कहना है लोगों का. दशहरा, कजली, तीज मेला, शादी समारोह में भी काफी डिमांड होती है.

एक अनार को बनाने में 10 से 30 मिनट का समय लगता है

इन दोनों परिवार में दिवाली से पहले ही कारीगर इन अनारों को बनाना शुरू कर देते हैं. यहां करीब चार प्रकार के आधार बनाए जाते हैं छोटे से लेकर बड़े अनार जहां आपको बनाते हुए कारीगर दिखाई देंगे. हालांकि इन अनारों को बनाने में काफी लंबी प्रक्रिया कारीगरों को लगती है. यहां सबसे पहले कार्य कर मिट्टी का कुल्हड़ तैयार करते हैं फिर कुल्हड़ में जगह बनाकर उसमें तरह-तरह का बारूद भरा जाता है. एक अनार को बनाने में करीब 10 से 30 मिनट कारीगर को लगते हैं फिर उसी के साथ ही अनार आकार लेने लग जाता है.

यह भी पढ़ें: राजस्थान के इस परिवार ने लगाई गुहार...इंसाफ दो या इच्छामृत्यु

20 से 200 रुपए का मिलता है अनार

बूंदी में रियासत कालीन समय में भी कई परिवार इस प्रकार के अनार बनाने का कार्य करते थे. लेकिन वक्त के साथ ही अब बूंदी में दो ही परिवार इस कला को जिंदा रखे हुए हैं और अनार बना रहे हैं. एक अनार मार्केट में करीब 20 रुपए का मिलता है. जबकि बड़ा अनार 200 रुपए तक मार्केट में बिकता है. यह परिवार दुकानदारों को थोक के भाव में बेचते हैं.

Intro:बूंदी का अनार हर कोई इसको लेने के लिए उत्साहित व खरीदने के लिए लालायित रहता है। यह अनार चौंकाने को मजबूर कर देगा क्योंकि यह अनार खाने वाला नहीं यह तो दीपावली पर चलने वाला और रोशनी करने वाला अनार है । जी हां यह अनार रियासत काल से ही बूंदी जिले में बनाया जा रहा है और बूंदी का यह अनार बूंदी ही नहीं अपितु राजस्थान, मध्य प्रदेश सहित कई राजयो इसकी काफी आयात में निर्यात भी होता है । सबसे बड़ी इस अनार की यह खासियत है कि देसी नुस्खे से इस अनार को यहां पर दो जो कारीगर के परिवार है उनके द्वारा तैयार किया जाता है ।


Body:बूंदी । रोशनी के पर्व दिवाली को अब कुछ ही दिन शेष रहे हैं समृद्धि के इस त्यौहार को मनाने के लिए सभी अपने अपने तरीके से तैयारी में जुटे हुए हैं । बात दीपावली की हो और आतिशबाजी का जिक्र नहीं किया जाए तो कुछ अटपटा लगता है । बूंदी के दो ऐसे परिवार है जो पीढ़ियों से शोरगर का काम कर रहे हैं उनके बनाए पटाखे का क्रेज राजा महाराजाओं के राज में भी था और आज भी वैसा ही बरकरार है । शोरगर जमील अहमद का पूरा परिवार इस काम में जुटा हुआ है। साल से 2 महीने ही ऐसे होते हैं जब इस काम को बंद करना पड़ता है । जमील अहमद के अनार आतिशबाजी का क्रेज बूंदी में नहीं बल्कि देश के कई राज्यों में है। जमील अहमद बताते हैं कि राजस्थान के साथ-साथ महाराष्ट्र, गुजरात ,उत्तर प्रदेश ,मध्य प्रदेश में अनार का काफी क्रेज है। वह दुकान नहीं लगाते हैं लेकिन लेने वाले उनके गोदाम पर ही आते हैं। डिमांड को देखते हुए तैयारी चलती रहती है सीजन में तो घर जाने तक का भी फुर्सत होने नहीं मिल पाती है । आतिशी आइटम के चलते जमील अहमद कई बार सम्मानित भी हो चुके हैं । जमील अहमद बताते हैं कि बारूद के कारण यह काम काफी रिक्सी है ऐसे में विशेष सावधानी रखनी पड़ती है । टोंक से मिट्टी के खाली अनार मंगवाते हैं जिन्हें तैयार किया जाता है । आइटम चार प्रकार के होते हैं जिसमें अनार ( फल अनार की तरह ) बना होता है। ज्वालामुखी ,दहिया की डिमांड रहती है । ऐसे भी कई अनार ,ज्वालामुखी सबसे ज्यादा ग्राहक होते हैं ।

बूंदी का यह अनार अपने आप में तारीफ ए काबिल है बूंदी में पर्यटक भी इसे काफी पसंद करते हैं इस अनार में जो आवाज व रोशनी वह इसकी धुन नजर आती है या सुनाई देती है वह अपने आप में तारीफ ए काबिल होती है । एक तरफ तो दूसरे पटाखे की ध्वनि कान फाड़ देती ओर परेशान करने पर मजबूर कर देती है और वह रोशनी भी नहीं देती यहां तक कि प्रदूषण फैलाने को फैलाती है । वहीं यह अनार कम प्रदूषण फैलाता है और अच्छी चमक पर रोशनी भी देता है। यही कारण है कि बूंदी में इस अनार की लगातार मांग बढ़ती है और यहां पर अनार निर्माता दो परिवार है वह इसको दीपावली के त्यौहार से पहले ही तैयार करने में जुड़ जाते हैं । करीब 1 दर्जन से ज्यादा कारीगर मजदूर इसमें अनार निर्माण के कार्य करते हैं । जिसमें बारूद मिट्टी के कुल्हड़ में भरा जाता है और उसे लाई के माध्यम से अनार के बारूद को पैक कर दिया जाता है ताकि बारूद बाहर नहीं निकले और खरीदारी से खरीद कर लेकर जाते हैं और दीपावली के दिन की रोशनी को रंगीन और रंग बिरंगी देखकर काफी हतोत्साहित होते हैं । पर्यटक भी से काफी पसंद करते हैं । यहां तक कि पर्यटक जब इसे देख लेते हैं तो अपने शहर अपने देश भी ले जाते है। यह हम नहीं खुद निर्माता अनार बनाने वाले लोग कह रहे हैं इस अनार का मुख्य रूप से बूंदी के उत्सव में भी उपयोग किया जाता है। जिसमें दशहरा हुआ कजली तीज मेला हुआ , बूंदी उत्सव हुआ शादी समारोह में भी इसकी काफी डिमांड होती है ।

इन दोनों परिवार मैं दिवाली से पहले ही कारीगर इन अनारो को बनाना शुरू कर देते हैं यहां करीब चार प्रकार के आधार बनाए जाते हैं छोटे से लेकर बड़े अनार जहां आपको बनाते हुए कारीगर दिखाई देंगे । हालांकि इन अनारो को बनाने में काफी लंबी प्रक्रिया कारीगरों को लगती है यहां सबसे पहले कार्य कर मिट्टी का कुल्हड़ तैयार करते हैं फिर कुल्हड़ में जगह बनाकर उसमें तरह-तरह का बारूद भरा जाता है और एक अनार को बनाने में करीब 10 से 30 मिनट कारीगर को लगते हैं फिर उसी के साथ ही बूंदी का अनार आकार लेने लग जाता है यह सिलसिला कई महीनों से कारीगर का जारी रहता है ।



Conclusion:बूंदी में रियासत कालीन में पहले कई परिवार किस प्रकार के अनार बनाने का कार्य करते थे लेकिन वक्त के साथ ही अब बूंदी में दो ही परिवार इस कला को जिंदा रखे हुए हैं और अनार बना रहे हैं । एक अनार मार्केट में ₹20 का मिलता है जबकि बड़े रूप में बनने वाला अनार ₹200 का मार्केट में बिकता है यह परिवार दुकानदारों को थोक के भाव में बेचते हैं ।


आपको बता दें कि दीपावली पर ही इन अनारो का उपयोग नहीं होता जबकि बूंदी में दीपावली के अलावा शादियों एवं अन्य उत्सव में पर भी इस तरीके की आतिशबाजी की जाती है । जहां पर चक्कर, रोलर ,रातरानी ,बरसाती जाड़ ,घूमता जाड़, जाड़ो की जोड़ी, इंद्रधनुष की काफी मांग रहती है । यहां हर वर्ष हजारों की संख्या में इस तरीके की आतिशबाजी तैयार की जा रही है।

बाईट - जमील अहमद , शोरगर
बाईट - राजू , शोरगर
बाईट - सलाम , कारीगर
बाईट - मोसिना , कारीगर
Last Updated : Oct 22, 2019, 1:20 PM IST
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