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बूंदी: धान की रोपाई में जुटे किसान, मानसून पर टिकी सारी उम्मीदें - Paddy farming

बूंदी में धान की रोपाई को लेकर किसान खेत पर जुटे हुए हैं. धान की पौध लगाने के साथ अब किसान रोपाई कर रहे हैं. वहीं धान की रोपाई के दौरान किसानों को मजदूरों और पानी को लेकर परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. बूंदी में 2 लाख से अधिक हेक्टेयर में धान रोपाई लक्ष्य रखा गया है, लेकिन अब तक केवल 93 हजार हेक्टर भूमि पर ही धान की रोपाई हुई है.

Bundi News, बूंदी न्यूज, धान की खेती
धान की रोपाई में जुटे किसान
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Published : Jul 19, 2020, 6:42 PM IST

बूंदी. जिले को राजस्थान के धान का कटोरा भी कहा जाता है. प्रदेश में सबसे ज्यादा धान बूंदी में होती. हर वर्ष हिंदुस्तान के हर कोने में बूंदी के चावल का दबदबा रहता है. इन दिनों बूंदी के किसान धान की रोपाई करने में जुटे हुए हैं. धान का पौध पूरी तरह से तैयार हो गया है और उस धान की पौध को अब किसान खेत में रोपाई करने के लिए जुटे हुए हैं.

धान की रोपाई में जुटे किसान

हालांकि, इस वर्ष किसान को कई तरह की की परेशानी का सामना करना पड़ा. पहले किसानों को बिहारी मजदूर नहीं मिल पाए. ऐसे में किसानों ने खुद अपने दम पर आत्मनिर्भर होते हुए धान की रोपाई की. लेकिन उनके सामने मानसून में बारिश नहीं होने के चलते पानी की किल्लत आ गई. ऐसे में ज्यादातर किसानों ने जैसे तैसे करके पानी की व्यवस्था की और खेत को लबालब कर धान की रोपाई कर दी. अब किसान मानसून का इंतजार कर रहे हैं. वहीं अब किसानों को डर सताने लगा है कि, कहीं उनकी बुवाई खराब नहीं हो जाए. किसानों को बुवाई के दौरान किस तरह से तकलीफ का सामना करना पड़ा है.

बता दें कि जानकारी के मुताबिक वर्ष 2019 जुलाई तक जिले में बारिश का औसत 235.64 हो गया था. इससे 1,86,793 हेक्टेयर में बुवाई का काम पूरा हो गया था. इस बार मात्र 100 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड हुई है. इससे 93,740 हेक्टेयर में बुआई हो पाई है. यानी अभी तक पिछले वर्ष के मुकाबले आधी जमीन भी नहीं गिली हो पाई है. जबकि लक्ष्य 2 लाख 33 हजार का है. उधर बूंदी जिले में किसानों ने मक्का और सोयाबीन की अधिक बुवाई की है. मक्का 20,000 से अधिक हेक्टेयर और सोयाबीन 19,000 हेक्टेयर से अधिक में बुवाई गई है. हालांकि यह बीते वर्ष से आधा भी नहीं हुआ है, लेकिन मानसून में देरी के कारण किसानों का रुझान अब मक्का सोयाबीन की फसल में ही देखा जा रहा है.

ये पढ़ें: बूंदी: 21 जुलाई से प्रदेशव्यापी प्रदर्शन की तैयारी में भारतीय किसान संघ

बूंदी जिले के सभी किसान वर्तमान में खेतों पर अपनी मेहनत कर धान की रोपाई करने में जुटे हुए हैं. बस उन्हें इंतजार मानसून का ही है. अब देखना होगा कि मानसून कब आता है. लेकिन किसानों को डर यही है कि बारिश कम हुई तो चावल की चमक कम हो जाएगी और मार्केट में दाम कम मिलेंगे. लेकिन यह बात भी सच है कि हर साल लाख चुनौतियों के बाद भी बूंदी का चावल लोगों के स्वाद में कोई कमी नहीं लाता.

बूंदी. जिले को राजस्थान के धान का कटोरा भी कहा जाता है. प्रदेश में सबसे ज्यादा धान बूंदी में होती. हर वर्ष हिंदुस्तान के हर कोने में बूंदी के चावल का दबदबा रहता है. इन दिनों बूंदी के किसान धान की रोपाई करने में जुटे हुए हैं. धान का पौध पूरी तरह से तैयार हो गया है और उस धान की पौध को अब किसान खेत में रोपाई करने के लिए जुटे हुए हैं.

धान की रोपाई में जुटे किसान

हालांकि, इस वर्ष किसान को कई तरह की की परेशानी का सामना करना पड़ा. पहले किसानों को बिहारी मजदूर नहीं मिल पाए. ऐसे में किसानों ने खुद अपने दम पर आत्मनिर्भर होते हुए धान की रोपाई की. लेकिन उनके सामने मानसून में बारिश नहीं होने के चलते पानी की किल्लत आ गई. ऐसे में ज्यादातर किसानों ने जैसे तैसे करके पानी की व्यवस्था की और खेत को लबालब कर धान की रोपाई कर दी. अब किसान मानसून का इंतजार कर रहे हैं. वहीं अब किसानों को डर सताने लगा है कि, कहीं उनकी बुवाई खराब नहीं हो जाए. किसानों को बुवाई के दौरान किस तरह से तकलीफ का सामना करना पड़ा है.

बता दें कि जानकारी के मुताबिक वर्ष 2019 जुलाई तक जिले में बारिश का औसत 235.64 हो गया था. इससे 1,86,793 हेक्टेयर में बुवाई का काम पूरा हो गया था. इस बार मात्र 100 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड हुई है. इससे 93,740 हेक्टेयर में बुआई हो पाई है. यानी अभी तक पिछले वर्ष के मुकाबले आधी जमीन भी नहीं गिली हो पाई है. जबकि लक्ष्य 2 लाख 33 हजार का है. उधर बूंदी जिले में किसानों ने मक्का और सोयाबीन की अधिक बुवाई की है. मक्का 20,000 से अधिक हेक्टेयर और सोयाबीन 19,000 हेक्टेयर से अधिक में बुवाई गई है. हालांकि यह बीते वर्ष से आधा भी नहीं हुआ है, लेकिन मानसून में देरी के कारण किसानों का रुझान अब मक्का सोयाबीन की फसल में ही देखा जा रहा है.

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बूंदी जिले के सभी किसान वर्तमान में खेतों पर अपनी मेहनत कर धान की रोपाई करने में जुटे हुए हैं. बस उन्हें इंतजार मानसून का ही है. अब देखना होगा कि मानसून कब आता है. लेकिन किसानों को डर यही है कि बारिश कम हुई तो चावल की चमक कम हो जाएगी और मार्केट में दाम कम मिलेंगे. लेकिन यह बात भी सच है कि हर साल लाख चुनौतियों के बाद भी बूंदी का चावल लोगों के स्वाद में कोई कमी नहीं लाता.

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