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राजस्थान ही नहीं देश भर में अपनी मिठास घोल रहा है बूंदी का अमरूद

बूंदी में पैदा हो रहा अमरूद हाड़ोती में ही नहीं बल्कि देश के कई राज्यों में लोगों की पसंद बन गया है. अमरूदों का आकार देखकर ही लोग खिंचे चले आ रहे हैं बूंदी शहर सहित तालेड़ा, इंदरगढ़, कापरेन और नैनवा क्षेत्रों में अमरूद की खेती का प्रचलन बढ़ा है

Guava of Hadoti, बूंदी का अमरूद
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Published : Nov 23, 2019, 11:45 PM IST

बूंदी. जिले की मिट्टी में पक कर तैयार हो रहे इन अमरूदों का स्वाद अब हर जुबां पर मिठास घोल रहा है. साल दर साल वृद्धि से किसानों को इसकी पैदावार की ओर रुझान अधिक हो गया है. जिले में काफी युद्ध स्तर पर अमरूद की पैदावार की जा रही है और इस वर्ष रकबा भी अमरूदों का बड़ा है. बूंदी में पानी की नमी के चलते वह लगातार ठंड बढ़ने के चलते फल काफी मीठे हो रहे हैं.

राजस्थान ही नहीं देश भर में अपनी मिठास घोल रहा है बूंदी का अमरूद.
बूंदी में पैदा हो रहा अमरूद हाड़ोती में ही नहीं बल्कि देश के कई राज्यों में लोगों की पसंद बन गया है. अमरूदों का आकार देखकर ही लोग खिंचे चले आ रहे हैं बूंदी शहर सहित तालेड़ा, इंदरगढ़, कापरेन और नैनवा क्षेत्रों में अमरूद की खेती का प्रचलन बढ़ा है. वर्ष 2018 में अमरूदों के बगीचों का रकबा बढ़ कर 800 हैक्टेयर तक पहुंच गया है जबकि इस वर्ष भी हैक्टेयर बड़ा है. इसमें किसान अपनी फसल को तैयार कर सीधे किसी ठेकेदारों को बेच रहे हैं जो बाद में स्वयं ही फलाव होने पर तोड़ कर ले जाते हैं. ठेकेदार अब पैकिंग कर बाहर भेजने लगे हैं.प्रदेश में 20 सालों से जिले का अमरुद प्रदेश में प्रचलित है. वर्ष 2000 से पहले तक राजस्थान में बूंदी के अमरुद उद्यान पहले नंबर वन बना हुआ था, तब मौसम की बेरुखी के चलते इसके प्रचलन में कमी आई. लेकिन एक बार फिर यहां के अमरूदों के प्रत्येक किसान रुचि दिखाने लगा है जिसके चलते अमरूद का प्रचार एक बार फिर से पटरी पर लौट आया है. दूर-दराज तक फैली बूंदी जिले के अमरूद की महक के प्रति किसानों का रुझान खूब बढ़ गया है. वर्ष 2012 में कार्यालय खुलने के बाद से विभागीय अधिकारियों कर्मचारियों ने इसका प्रचार-प्रसार भी किया. साथ ही किसानों को आ रही परेशानियों को दूर भी किया इसी का परिणाम यह निकला कि किसानों ने अमरूदों के बगीचों को मुनाफे का सौदा माना और उसकी खेती की.

ये भी पढ़ें: शादी से वापस आ रहे लोगों की पिकअप को लोक परिवहन ने मारी टक्कर, 3 की मौत, 9 घायल

बूंदी के अमरुद दो किस्म के होते हैं लखनवी 49 और इलाहाबादी सफेदा जो पूरे प्रदेश और देश में प्रचलित है. इसका उत्पादन अच्छा होने के साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता (बीमारी कम लगना) होती है. साइज अच्छा होने के साथ इसके फल का आकार गुणवत्ता पूर्ण होता है बूंदी में पानी की नमी होने के कारण इसका प्रचलन बढ़ा है. सर्दी बढ़ने के साथ ही कुदरत की भी मिठास बढ़ने लगी है. बरसात में फल आने लगते हैं उसके बाद बगीचे में पानी दिया जाता है इसके बाद आकार में वृद्धि होती है.

अमरूद की प्रसिद्ध होने के साथ लोगों की जुबान पर मिठास घोल रहा है. इसके आकार को देखकर लोग खुद-ब-खुद खींचे चले आते हैं बूंदी का अमरुद बूंदी के नाम से बिकता है. अमरूद की खेती मुनाफे का सौदा किसानों को इस बार होने के चलते बगीचों की लगातार संख्या बढ़ती जा रही है. बड़े-बड़े आकार के फल उगने के साथ ही इसको पक्षी नष्ट करने का डर भी बना रहता है. अमरूदों के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है इसके भाव से संतुष्ट होकर लोग बगीचे के बाहर ही गाड़ियां लादकर ले जाने लगे हैं. होली तक बूंदी के ये अमरूदों मिलते हैं.

इस बार अच्छी अमरूद की पैदावार से किसानों के चेहरे खिल उठे हैं. सर्दी की शुरुआत होने के साथ ही सर्दी का सितम किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है. बूंदी में अमरूद 20 से 25 रुपए प्रति किलो की दर से खेत पर ही ठेकेदारों द्वारा थोक के भाव में लिया जा रहा है. व्यापारी अमरुद खरीदने आते हैं और पूरे प्रदेश में बूंदी का अमरूद मुंह स्वाद बटोरता जाता है.

यकीनन भले ही जिले में बरसात अधिक होने के चलते धान की फसल बर्बाद हो गई हो लेकिन अमरुद किसानों के लिए यह नमी और ठंड वरदान साबित हुई है. इसी का नतीजा ये रहा कि जिन-जिन किसानों ने अमरूदों के बाग लगाए थे वो खुश है. अच्छी पैदावार से अच्छे पैसे मिल रहे हैं.

बूंदी. जिले की मिट्टी में पक कर तैयार हो रहे इन अमरूदों का स्वाद अब हर जुबां पर मिठास घोल रहा है. साल दर साल वृद्धि से किसानों को इसकी पैदावार की ओर रुझान अधिक हो गया है. जिले में काफी युद्ध स्तर पर अमरूद की पैदावार की जा रही है और इस वर्ष रकबा भी अमरूदों का बड़ा है. बूंदी में पानी की नमी के चलते वह लगातार ठंड बढ़ने के चलते फल काफी मीठे हो रहे हैं.

राजस्थान ही नहीं देश भर में अपनी मिठास घोल रहा है बूंदी का अमरूद.
बूंदी में पैदा हो रहा अमरूद हाड़ोती में ही नहीं बल्कि देश के कई राज्यों में लोगों की पसंद बन गया है. अमरूदों का आकार देखकर ही लोग खिंचे चले आ रहे हैं बूंदी शहर सहित तालेड़ा, इंदरगढ़, कापरेन और नैनवा क्षेत्रों में अमरूद की खेती का प्रचलन बढ़ा है. वर्ष 2018 में अमरूदों के बगीचों का रकबा बढ़ कर 800 हैक्टेयर तक पहुंच गया है जबकि इस वर्ष भी हैक्टेयर बड़ा है. इसमें किसान अपनी फसल को तैयार कर सीधे किसी ठेकेदारों को बेच रहे हैं जो बाद में स्वयं ही फलाव होने पर तोड़ कर ले जाते हैं. ठेकेदार अब पैकिंग कर बाहर भेजने लगे हैं.प्रदेश में 20 सालों से जिले का अमरुद प्रदेश में प्रचलित है. वर्ष 2000 से पहले तक राजस्थान में बूंदी के अमरुद उद्यान पहले नंबर वन बना हुआ था, तब मौसम की बेरुखी के चलते इसके प्रचलन में कमी आई. लेकिन एक बार फिर यहां के अमरूदों के प्रत्येक किसान रुचि दिखाने लगा है जिसके चलते अमरूद का प्रचार एक बार फिर से पटरी पर लौट आया है. दूर-दराज तक फैली बूंदी जिले के अमरूद की महक के प्रति किसानों का रुझान खूब बढ़ गया है. वर्ष 2012 में कार्यालय खुलने के बाद से विभागीय अधिकारियों कर्मचारियों ने इसका प्रचार-प्रसार भी किया. साथ ही किसानों को आ रही परेशानियों को दूर भी किया इसी का परिणाम यह निकला कि किसानों ने अमरूदों के बगीचों को मुनाफे का सौदा माना और उसकी खेती की.

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बूंदी के अमरुद दो किस्म के होते हैं लखनवी 49 और इलाहाबादी सफेदा जो पूरे प्रदेश और देश में प्रचलित है. इसका उत्पादन अच्छा होने के साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता (बीमारी कम लगना) होती है. साइज अच्छा होने के साथ इसके फल का आकार गुणवत्ता पूर्ण होता है बूंदी में पानी की नमी होने के कारण इसका प्रचलन बढ़ा है. सर्दी बढ़ने के साथ ही कुदरत की भी मिठास बढ़ने लगी है. बरसात में फल आने लगते हैं उसके बाद बगीचे में पानी दिया जाता है इसके बाद आकार में वृद्धि होती है.

अमरूद की प्रसिद्ध होने के साथ लोगों की जुबान पर मिठास घोल रहा है. इसके आकार को देखकर लोग खुद-ब-खुद खींचे चले आते हैं बूंदी का अमरुद बूंदी के नाम से बिकता है. अमरूद की खेती मुनाफे का सौदा किसानों को इस बार होने के चलते बगीचों की लगातार संख्या बढ़ती जा रही है. बड़े-बड़े आकार के फल उगने के साथ ही इसको पक्षी नष्ट करने का डर भी बना रहता है. अमरूदों के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है इसके भाव से संतुष्ट होकर लोग बगीचे के बाहर ही गाड़ियां लादकर ले जाने लगे हैं. होली तक बूंदी के ये अमरूदों मिलते हैं.

इस बार अच्छी अमरूद की पैदावार से किसानों के चेहरे खिल उठे हैं. सर्दी की शुरुआत होने के साथ ही सर्दी का सितम किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है. बूंदी में अमरूद 20 से 25 रुपए प्रति किलो की दर से खेत पर ही ठेकेदारों द्वारा थोक के भाव में लिया जा रहा है. व्यापारी अमरुद खरीदने आते हैं और पूरे प्रदेश में बूंदी का अमरूद मुंह स्वाद बटोरता जाता है.

यकीनन भले ही जिले में बरसात अधिक होने के चलते धान की फसल बर्बाद हो गई हो लेकिन अमरुद किसानों के लिए यह नमी और ठंड वरदान साबित हुई है. इसी का नतीजा ये रहा कि जिन-जिन किसानों ने अमरूदों के बाग लगाए थे वो खुश है. अच्छी पैदावार से अच्छे पैसे मिल रहे हैं.

Intro:बूंदी की माटी में पक कर तैयार हो रहे अमरूदों का स्वाद अब हर जुबां पर मिठास घोल रहा है । साल दर साल वृद्धि से किसानों को इसकी पैदावार की ओर रुझान अधिक हो गया है और बूंदी में काफी युद्ध स्तर पर अमरूद की पैदावार की जा रही है और इस वर्ष रकबा भी अमरूदों का बड़ा है । बूंदी में पानी की नमी के चलते वह लगातार ठंड बढ़ने के चलते फल काफी मीठा दार पैदा हो रहा है जिसके चलते किसानों को भी अच्छी मुनाफे दार फसल यह साबित हो रही है ।


Body:बूंदी की माटी में पक कर तैयार हो रहे अमरूदों का स्वाद अब हर जुबां पर मिठास घोल रहा है साल दर साल वृद्धि से किसानों को इसकी पैदावार की ओर रुझान अधिक हो गया है बूंदी में पैदा हो रहे अमरूद हाड़ोती में नहीं बल्कि देश के कई राज्यों में लोगों की पसंद बन गया है । अमरूदों का आकार देखकर ही लोग खिंचे चले आ रहे हैं बूंदी शहर सहित तालेड़ा, इंदरगढ़ , कापरेन व नैनवा क्षेत्रों में अमरूद की खेती का प्रचलन बढ़ा है और वर्ष 2018 में अमरूदों के बगीचों का रकबा बढ़ कर 800 हैक्टेयर तक पहुंच गया है जबकि इस वर्ष भी हैक्टेयर बड़ा है इसमें किसान अपनी फसल को तैयार कर सीधे किसी ठेकेदारों को बेच रहे हैं जो बाद में स्वयं ही फलाव होने पर तोड़ कर ले जाते हैं ठेकेदार अब पैकिंग कर बाहर भेजने लगे हैं ।

प्रदेश में 20 वर्षों से जिले का अमरुद प्रदेश में प्रचलित है । वर्ष 2000 से पहले तक राजस्थान में बूंदी के अमरुद उद्यान पहले नंबर वन बना हुआ था तब मौसम की बेरुखी के चलते इसके प्रचलन में कमी आई । लेकिन एक बार फिर यहां के अमरूदों के प्रत्येक किसान रुचि दिखाने लगा है जिसके चलते अमरूद का प्रचार एक बार फिर से पटरी पर लौट आया है । दूर-दराज तक फैली बूंदी जिले के अमरूद की महक के प्रति किसानों का रुझान खूब बढ़ गया है । वर्ष 2012 में कार्यालय खुलने के बाद से विभागीय अधिकारियों कर्मचारियों ने इसका प्रचार-प्रसार भी किया । साथ ही किसानों को आ रही परेशानियों को दूर भी किया इसी का परिणाम यह निकला कि किसानों ने अमरूदों के बगीचों को मुनाफे का सौदा माना और उसकी खेती की ।

बूंदी के अमरुद दो किस्म के होते हैं लखनवी 49 व इलाहाबादी सफेदा जो पूरे प्रदेश और देश में प्रचलित है। इसका उत्पादन अच्छा होने के साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता (बीमारी कम लगना) होती है । साइज अच्छी होने के साथ इसके फल का आकार गुणवत्ता पूर्ण होता है बूंदी में पानी की नमी होने के कारण इसका प्रचलन बढ़ा है । सर्दी बढ़ने के साथ ही कुदरत की भी मिठास बढ़ने लगी है । बरसात में फल आने लगते हैं उसके बाद बगीचे में पानी दिया जाता है इसके बाद आकार में वृद्धि होती है । अमरूद प्रसिद्ध होने के साथ लोगों की जुबान पर मिठास घोलता है । इसके आकार को देखकर लोग खुद-ब-खुद खींचे चले आते हैं बूंदी का अमरुद बूंदी के नाम से बिकता है । अमरूद की खेती मुनाफे का सौदा किसानों को इस बार होने के चलते बगीचों की लगातार संख्या बढ़ती जा रही है । बड़े बड़े आकार के फल उगने के साथ ही इसको पक्षी नष्ट करने का डर भी बना रहता है । अमरूदों के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है इसके भाव से संतुष्ट होकर लोग बगीचे के बाहर ही गाड़ियां लादकर ले जाने लगे हैं होली तक बूंदी के अमरूदों का प्रचलन चलता रहेगा ।


Conclusion:इस बार अच्छी अमरूद की पैदावार से किसानों के चेहरे खिल उठे हैं सर्दी की शुरुआत होने के साथ ही सर्दी का सितम किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है । बूंदी में अमरूद ₹20 से ₹25 प्रति किलो की दर से खेत पर ही ठेकेदारों द्वारा थोक के भाव में दिया जा रहा है। व्यापारी अमरुद खरीदने आते हैं और पूरे प्रदेश में बूंदी का अमरूद मुंह स्वाद बटोरता जाता है । यकीनन भले ही जिले में बरसात अधिक होने के चलते धान की फसल बर्बाद हो गई हो लेकिन अमरुद किसानों के लिए यह नमी व ठंड वरदान साबित हुई है और इसी का नतीजा ये रहा कि जिन जिन किसानों ने अमरूदों के बाग लगाए थे और वह अब उन्हें मुनाफा दे रहे हैं साथ में अच्छे फल पैदा हो रहे हैं तो फल स्वाद पूरे प्रदेश और देश में बटोर गिर रहा है ।

बाईट - राजेश सोनी , किसान
बाईट - सोहन लाल , किसान
बाईट - कृष्ण मुरारी , किसान
बाईट - मनोज प्रजापत , ग्रामीण
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