बूंदी. जिले की मिट्टी में पक कर तैयार हो रहे इन अमरूदों का स्वाद अब हर जुबां पर मिठास घोल रहा है. साल दर साल वृद्धि से किसानों को इसकी पैदावार की ओर रुझान अधिक हो गया है. जिले में काफी युद्ध स्तर पर अमरूद की पैदावार की जा रही है और इस वर्ष रकबा भी अमरूदों का बड़ा है. बूंदी में पानी की नमी के चलते वह लगातार ठंड बढ़ने के चलते फल काफी मीठे हो रहे हैं.
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बूंदी के अमरुद दो किस्म के होते हैं लखनवी 49 और इलाहाबादी सफेदा जो पूरे प्रदेश और देश में प्रचलित है. इसका उत्पादन अच्छा होने के साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता (बीमारी कम लगना) होती है. साइज अच्छा होने के साथ इसके फल का आकार गुणवत्ता पूर्ण होता है बूंदी में पानी की नमी होने के कारण इसका प्रचलन बढ़ा है. सर्दी बढ़ने के साथ ही कुदरत की भी मिठास बढ़ने लगी है. बरसात में फल आने लगते हैं उसके बाद बगीचे में पानी दिया जाता है इसके बाद आकार में वृद्धि होती है.
अमरूद की प्रसिद्ध होने के साथ लोगों की जुबान पर मिठास घोल रहा है. इसके आकार को देखकर लोग खुद-ब-खुद खींचे चले आते हैं बूंदी का अमरुद बूंदी के नाम से बिकता है. अमरूद की खेती मुनाफे का सौदा किसानों को इस बार होने के चलते बगीचों की लगातार संख्या बढ़ती जा रही है. बड़े-बड़े आकार के फल उगने के साथ ही इसको पक्षी नष्ट करने का डर भी बना रहता है. अमरूदों के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है इसके भाव से संतुष्ट होकर लोग बगीचे के बाहर ही गाड़ियां लादकर ले जाने लगे हैं. होली तक बूंदी के ये अमरूदों मिलते हैं.
इस बार अच्छी अमरूद की पैदावार से किसानों के चेहरे खिल उठे हैं. सर्दी की शुरुआत होने के साथ ही सर्दी का सितम किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है. बूंदी में अमरूद 20 से 25 रुपए प्रति किलो की दर से खेत पर ही ठेकेदारों द्वारा थोक के भाव में लिया जा रहा है. व्यापारी अमरुद खरीदने आते हैं और पूरे प्रदेश में बूंदी का अमरूद मुंह स्वाद बटोरता जाता है.
यकीनन भले ही जिले में बरसात अधिक होने के चलते धान की फसल बर्बाद हो गई हो लेकिन अमरुद किसानों के लिए यह नमी और ठंड वरदान साबित हुई है. इसी का नतीजा ये रहा कि जिन-जिन किसानों ने अमरूदों के बाग लगाए थे वो खुश है. अच्छी पैदावार से अच्छे पैसे मिल रहे हैं.