बूंदी. केंद्रीय विद्यालय के छात्रों ने एक ऐसे शौचालय का निर्माण किया है, जो प्लास्टिक मुक्त भारत और स्वच्छ भारत मिशन का संदेश देता है. प्लास्टिक सहित कई ऐसी चीजों से निर्मित इस शौचालय को स्कूल के छात्रों ने बनाया है. इस स्कूल में शौचालय की आवश्यकता थी और करीब 400 छात्रों को परेशानी का सामना करना पड़ता था. ऐसे में छात्रों ने ठानी और अपने हाथों से शौचालय बना दिया. इस शौचालय को बनाने के बाद मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से बूंदी के केंद्रीय विद्यालय को अवॉर्ड भी दिया है.
20 लीटर वाली पानी के कैन से बनाया शौचालय
दरअसल, बूंदी के केंद्रीय विद्यालय में छात्रों के लिए शौचालय नहीं था और जो शौचालय था वह पूरी तरह से जर्जर हालत में था. ऐसे में छात्र जाए तो कहां जाए, फिर क्या था छात्रों ने खुद शौचालय बनाने की ठानी और टॉयलेट बना दिया. बता दें कि छात्रों ने 20 लीटर वाली प्लास्टिक की कैन के इस्तेमाल से यह शौचालय का निर्माण किया है. सबसे पहले छात्रों ने अपनी प्लानिंग विद्यालय के अध्यापकों को बताई. ऐसे में एक प्रोजेक्ट छात्रों ने तैयार किया गया और वेस्ट पड़ी 20 लीटर पानी के केन को यह छात्र स्कूल लेकर पहुंचे और उस टैंक के माध्यम से इन छात्रों ने जुगाड़ किया और शौचालय बना दिया.
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20 से 25 दिन में तैयार हुआ टॉयलेट
इस शौचालय को बनाने में करीब छात्रों को 20 से 25 दिन लग गए. स्कूल के एक ही स्थान पर यह शौचालय छात्रों ने बनाया. अब शौचालय बनने के बाद स्कूल के सभी छात्र वहां पर बिना परेशानी के शौचालय का उपयोग कर रहे हैं. छात्र बताते हैं कि केंद्रीय विद्यालय में करीब 400 से अधिक छात्र अध्ययनरत है. जब स्कूल में लंच होता था तो शौचालय के लिए छात्रों को इधर-उधर खुली जगह पर जाना पड़ता था. ऐसे में उन्होंने ज्यादा कुछ खर्चा ना करते हुए एक प्रोजेक्ट तैयार किया. छात्रों ने बताया कि पीएम मोदी का सपना है प्लास्टिक मुक्त और स्वच्छ भारत का. बसे उसी को ध्यान में रखते हुए स्कूल में शौचालय का निर्माण किया गया.
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स्कूल को मानव संसाधन मंत्री ने दिया अवॉर्ड
इस शौचालय के बनने के बाद स्कूल के 400 छात्रों को राहत मिली है. यहीं नहीं इसके लिए स्कूल को केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री की ओर से अवॉर्ड भी दिया गया है. बता दें कि बूंदी शहर के नैनवा रोड गेट नंबर 3 पर यह केंद्रीय विद्यालय स्थित है. भले ही यह केंद्रीय विद्यालय व्यवस्थाओं और पढ़ाई में अपना स्थान रखता हो, लेकिन यहां पर शौचालय की बहुत ही बड़ी परेशानी थी. जिसको प्रशासन नहीं समझ पाया, इसके बाद बच्चों ने ही प्रोजेक्ट तैयार कर खुद ही शौचालय बना दिया.