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स्पेशल स्टोरी: देश भर में घुल रही बूंदी के गुड़ की मिठास - बूंदी खबर

सर्दी का मौसम बेदस्तूर जारी है. पूरे प्रदेश में कड़ाके की सर्दी पड़ रही है. और इस कड़ाके की सर्दी में अगर बूंदी का गुड़ नहीं खाया, तो मानो सर्दी फीकी रह गई. जी हां सर्दी के साथ ही मावे के रूप में तैयार हो रहा बूंदी का गुड़ अब दूर दूर तक मिठास फैलाने लगा है. इन दिनों जहां एक ओर खेतों में गुड़ की महक फैली है, तो दूसरी ओर चरखियों में गुड़ तैयार हो रहा है.

बूंदी का गुड़, bundi gud
तैयार हो रहा बूंदी का गुड़
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Published : Jan 1, 2020, 10:39 PM IST

बूंदी. प्रदेश में कड़ाके की ठंड जारी है और कड़ाके की ठंड में अगर बूंदी का गुड़ नहीं खाया तो मानो सर्दी का मजा फीका पड़ जाता है. पूरे प्रदेश में इस गुड़ को मावे के रूप में खाया जाता है. गन्ने से शक्कर बनते तो सुना है लेकिन बाता दें कि देश में बड़े पैमाने पर गन्ने से गुड़ भी बनाया जाता है. जो आज भी पारंपरिक तरीकों से ही बनता है.

बूंदी जिले के कई ग्रामीण क्षेत्रों में बनने वाले इस गुड़ की महक अब दूर-दूर तक फैलने लगी है. बिना केमिकल के तैयार किया गया यह गुड़ दूसरे प्रदेशों के लोगों की पहली पसंद बन रहा है. यह न सिर्फ जायके में बेहतरीन है बल्कि सेहत के लिए लिहाज से भी काफी फायदेमंद है. अब बूंदी जिले के बाजार गुड़ की खुशबू से महक रहे हैं. ऐसे में यहां के किसानों में गुड़ की चरखियाँ लगाने की होड़ मची हुई है. गुड़ की डिमांड ज्यादा होने से किसानों को भी खूब लाभ हो रहा है.

देश भर में घुल रही बूंदी के गुड़ की मिठास

पढ़ें: गणतंत्र दिवस में राजस्थान NCC का INS रणविजय रहेगा आकर्षण का केंद्र

सर्दी की शुरुआत के साथ ही कई इलाकों में गन्ने की चरखी चलने लगी है. इसके साथ ही गुड़ बनाने का काम भी जोरों पर है. दो दशक पूर्व क्षेत्र में गन्ना की खेती बड़े पैमाने पर की जाती थी. लेकिन किसानों को गन्ने का उचित दाम नहीं मिलने और केशवरायपाटन में शुगर मिल बंद होने के चलते किसानों ने गन्ने को लेकर हाथ वापस खींच लिए. वहीं अब फिर से किसानों में जोश देखा गया है और रुझान बढ़ा है. इन दिनों बूंदी के अलोद, दबलाना, बड़ोदिया, सथूर, दांता, खातीखेड़ा, मांगली काला, चीता, मांगली खुर्द, जजावर, देई, नैनवा में लगी गुड़ की चरखिओं से इन क्षेत्रों में गरमा-गरम गुड़ की खुशबू फैली हुई है.

बूंदी का गुड़ प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश के अलग-अलग राज्यों में जाता है. चरखियों में बनता यह देसी गुड़ लोगों की पहली पसंद है और स्वाद में भी यह भरपूर होता है. इस वजह से इसकी डिमांड अधिक होती है. आपको बता दें कि गुड़ का एक पैरा 150 से लेकर 200 रुपए तक बिकता है. यहां का हर एक किसान पूरी सर्दी में 2000 से लेकर 3000 क्विंटल तक गुड़ बाहर बेंच देता है. जिसके जलते उन्हें काफी अच्छा मुनाफा होता है. यहां पर यूपी से आए मजदूरों द्वारा गुड़ बनाने का काम किया जाता है.

गुड़ बनाने के लिए गन्ने की मशीन चलाकर गन्ना पैरा जाता है. फिर बड़ी-बड़ी कड़ाव में उबालकर उसे ठंडा कर गुड़ बनाया जाता है. गांव में कई गन्ने की मशीनें लगी हैं. जिससे गन्ने का रस निकाला जाता है. किसान बताते हैं कि खेत से गन्ना काटने के बाद उसके पत्ते अलग कर दिए जाते हैं. फिर कोल्हू या मशीन में पैरे में से जो रस निकलता है, उसे बड़ी सी कढ़ाई में कई घंटों तक गर्म किया जाता हैं. जब वह गाढ़ा हो जाता है, तो किसी बर्तन में उसे निकाल लेते हैं. इसके बाद गुड़ को पेकेट में भर लेते हैं या फिर छोटे-छोटे लड्डू, जिन्हें बेली कहते हैं, तैयार की जाती हैं.

पढ़ें: खबर का असर: सरकार के स्पेशल गिरदावरी का आदेश अब 98 गांवों के लिए जारी

बता दें कि गन्ने के रस को गर्म करने के लिए सुबह से लेकर शाम तक कड़ाव चढ़ते हैं. वहीं दूसरी ओर बैलों से कोल्हू चलाने में समय लगता है और इंजन वाला कोल्हू लगवाने में खर्च काफी आता है. ऐसे में छोटे किसान कोल्हू का ही इस्तेमाल करते हैं. जबकि मुनाफ़ेदर किसान मशीनों का उपयोग भी करते हुए दिखाई देते हैं. बूंदी जिले में सबसे ज्यादा गुड़ बड़ा नया गांव और तालेड़ा में बनाया जाता है. गुड़ बनाने में सबसे बड़ी बात है कि इन कड़ाव को चलाने के लिए आग नुमा भट्टी की आवश्यकता होती है. लेकिन यहां पर कोई लकड़ी का उपयोग नहीं किया जाता. बल्कि गन्ने से निकलने वाले छिलके को सुखाकर उसको ही आग जलाने के लिए उपयोग में लाया जाता है. किसान बताते हैं कि इस छिलके से काफी अच्छी आग लग जाती है और भट्टी में तपन अच्छा हो जाता है.

यहां के किसानों द्वारा तैयार गुड़ की सबसे खास बात यह है कि गुड़ बनाने में केमिकल का प्रयोग नहीं किया जाता है. चुना और सेलखड़ी भी नहीं मिलाई जाती है. इसमें शुद्ध सरसों का तेल डाला जाता है, जिससे कि गुड़ मुलायम रहता है. वहीं हल्का सा रंग लगाया जाता है ताकि गुड़ दिखने में खूबसूरत लगे. केमिकल का इस्तेमाल नहीं होने से गुड़ जायकेदार और सेहत के लिहाज से काफी फायदेमंद होता है. बता दें कि कई किसानों के लिए उनकी जीविका का आधार गुड़ बन चुका है. पूरा परिवार मिलकर यह काम करता है.

बूंदी. प्रदेश में कड़ाके की ठंड जारी है और कड़ाके की ठंड में अगर बूंदी का गुड़ नहीं खाया तो मानो सर्दी का मजा फीका पड़ जाता है. पूरे प्रदेश में इस गुड़ को मावे के रूप में खाया जाता है. गन्ने से शक्कर बनते तो सुना है लेकिन बाता दें कि देश में बड़े पैमाने पर गन्ने से गुड़ भी बनाया जाता है. जो आज भी पारंपरिक तरीकों से ही बनता है.

बूंदी जिले के कई ग्रामीण क्षेत्रों में बनने वाले इस गुड़ की महक अब दूर-दूर तक फैलने लगी है. बिना केमिकल के तैयार किया गया यह गुड़ दूसरे प्रदेशों के लोगों की पहली पसंद बन रहा है. यह न सिर्फ जायके में बेहतरीन है बल्कि सेहत के लिए लिहाज से भी काफी फायदेमंद है. अब बूंदी जिले के बाजार गुड़ की खुशबू से महक रहे हैं. ऐसे में यहां के किसानों में गुड़ की चरखियाँ लगाने की होड़ मची हुई है. गुड़ की डिमांड ज्यादा होने से किसानों को भी खूब लाभ हो रहा है.

देश भर में घुल रही बूंदी के गुड़ की मिठास

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सर्दी की शुरुआत के साथ ही कई इलाकों में गन्ने की चरखी चलने लगी है. इसके साथ ही गुड़ बनाने का काम भी जोरों पर है. दो दशक पूर्व क्षेत्र में गन्ना की खेती बड़े पैमाने पर की जाती थी. लेकिन किसानों को गन्ने का उचित दाम नहीं मिलने और केशवरायपाटन में शुगर मिल बंद होने के चलते किसानों ने गन्ने को लेकर हाथ वापस खींच लिए. वहीं अब फिर से किसानों में जोश देखा गया है और रुझान बढ़ा है. इन दिनों बूंदी के अलोद, दबलाना, बड़ोदिया, सथूर, दांता, खातीखेड़ा, मांगली काला, चीता, मांगली खुर्द, जजावर, देई, नैनवा में लगी गुड़ की चरखिओं से इन क्षेत्रों में गरमा-गरम गुड़ की खुशबू फैली हुई है.

बूंदी का गुड़ प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश के अलग-अलग राज्यों में जाता है. चरखियों में बनता यह देसी गुड़ लोगों की पहली पसंद है और स्वाद में भी यह भरपूर होता है. इस वजह से इसकी डिमांड अधिक होती है. आपको बता दें कि गुड़ का एक पैरा 150 से लेकर 200 रुपए तक बिकता है. यहां का हर एक किसान पूरी सर्दी में 2000 से लेकर 3000 क्विंटल तक गुड़ बाहर बेंच देता है. जिसके जलते उन्हें काफी अच्छा मुनाफा होता है. यहां पर यूपी से आए मजदूरों द्वारा गुड़ बनाने का काम किया जाता है.

गुड़ बनाने के लिए गन्ने की मशीन चलाकर गन्ना पैरा जाता है. फिर बड़ी-बड़ी कड़ाव में उबालकर उसे ठंडा कर गुड़ बनाया जाता है. गांव में कई गन्ने की मशीनें लगी हैं. जिससे गन्ने का रस निकाला जाता है. किसान बताते हैं कि खेत से गन्ना काटने के बाद उसके पत्ते अलग कर दिए जाते हैं. फिर कोल्हू या मशीन में पैरे में से जो रस निकलता है, उसे बड़ी सी कढ़ाई में कई घंटों तक गर्म किया जाता हैं. जब वह गाढ़ा हो जाता है, तो किसी बर्तन में उसे निकाल लेते हैं. इसके बाद गुड़ को पेकेट में भर लेते हैं या फिर छोटे-छोटे लड्डू, जिन्हें बेली कहते हैं, तैयार की जाती हैं.

पढ़ें: खबर का असर: सरकार के स्पेशल गिरदावरी का आदेश अब 98 गांवों के लिए जारी

बता दें कि गन्ने के रस को गर्म करने के लिए सुबह से लेकर शाम तक कड़ाव चढ़ते हैं. वहीं दूसरी ओर बैलों से कोल्हू चलाने में समय लगता है और इंजन वाला कोल्हू लगवाने में खर्च काफी आता है. ऐसे में छोटे किसान कोल्हू का ही इस्तेमाल करते हैं. जबकि मुनाफ़ेदर किसान मशीनों का उपयोग भी करते हुए दिखाई देते हैं. बूंदी जिले में सबसे ज्यादा गुड़ बड़ा नया गांव और तालेड़ा में बनाया जाता है. गुड़ बनाने में सबसे बड़ी बात है कि इन कड़ाव को चलाने के लिए आग नुमा भट्टी की आवश्यकता होती है. लेकिन यहां पर कोई लकड़ी का उपयोग नहीं किया जाता. बल्कि गन्ने से निकलने वाले छिलके को सुखाकर उसको ही आग जलाने के लिए उपयोग में लाया जाता है. किसान बताते हैं कि इस छिलके से काफी अच्छी आग लग जाती है और भट्टी में तपन अच्छा हो जाता है.

यहां के किसानों द्वारा तैयार गुड़ की सबसे खास बात यह है कि गुड़ बनाने में केमिकल का प्रयोग नहीं किया जाता है. चुना और सेलखड़ी भी नहीं मिलाई जाती है. इसमें शुद्ध सरसों का तेल डाला जाता है, जिससे कि गुड़ मुलायम रहता है. वहीं हल्का सा रंग लगाया जाता है ताकि गुड़ दिखने में खूबसूरत लगे. केमिकल का इस्तेमाल नहीं होने से गुड़ जायकेदार और सेहत के लिहाज से काफी फायदेमंद होता है. बता दें कि कई किसानों के लिए उनकी जीविका का आधार गुड़ बन चुका है. पूरा परिवार मिलकर यह काम करता है.

Intro:सर्दी का मौसम बेदस्तूर जारी है और कड़ाके की सर्दी पूरे प्रदेश में पढ़ रही है । इस कड़ाके की सर्दी में अगर बूंदी का गुड़ नहीं खाया तो मानो सर्दी फीकी रहती है जी हां सर्दी के साथ ही सर्दी के मावे के रूप में तैयार हो रहे बूंदी का गुड़ अब दूर दूर तक मिठास फैलने लगा है । खेतों में गुड़ की महक देखी जा सकती है और चारखियों में गुड़ तैयार हो रहा है ।


Body:बूंदी :- प्रदेश में कड़ाके की ठंड जारी है और कड़ाके की ठंड में अगर बूंदी का गुड़ नहीं खाया तो मानो सर्दी का मजा फीका पड़ जाता है । पूरे प्रदेश में इस गुड को मावे के रूप में जाना जाता है चीनी मिले तो गन्ने से शक्कर बनती है लेकिन देश में बड़े पैमाने पर गन्ने से गुड़ भी बनाया जाता है जो आज भी पारंपरिक तरीकों से ही बनता है । बूंदी जिले में कई ग्रामीण क्षेत्रों में गुड़ की मिठास अब दूर दूर तक फैल रही है बिना केमिकल द्वारा तैयार गुड़ दूसरे प्रदेशों के लोगों की पहली पसंद बन रहा है । यह न सिर्फ जायके में बेहतरीन ने बल्कि सेहत के लिए लिहाज से भी काफी मुफीद है । बूंदी जिले के बाजार गुड़ की खुशबू से महक रहे हैं ऐसे में यहां के किसानों में गुड़ की चारखियाँ लगाने की होड़ मची हुई है गुड़ की डिमांड ज्यादा होने से किसानों को भी खूब लाभ हो रहा है । सर्दी के शुरुआत के साथ ही कई इलाकों में गन्ने की चरखी चलने लगी है इसके साथ ही गुड़ बनाने का काम भी जोरों पर है । दो दशक पूर्व क्षेत्र में गन्ना की खेती बड़े पैमाने पर की जाती थी लेकिन किसानों को गन्ने का उचित दाम नहीं मिलने के चलते व केशवरायपाटन में शुगर मिल बंद होने के चलते किसानों ने गन्ने को लेकर हाथ वापस खींच लिए । लेकिन अब फिर से किसानों में जोश देखा गया है और रुझान बढ़ा है । इन दिनों बूंदी के अलोद, दबलाना ,बड़ोदिया , सथूर , दांता ,खातीखेड़ा , मांगली काला, चीता , मांगली खुर्द ,जजावर , देई ,नैनवा में लगी है चारखिओं में यहां आपको दूर दूर तक गरमा-गरम गुड़ की खुशबू आने लगेगी ।

बूंदी का गुड़ पूरे प्रदेश में ही नहीं देश के अलग-अलग राज्यों में जाता है । गुड दो प्रकार के होते हैं जिसमें बूंदी की चारखियों में देसी गुड़ बनता है । देसी गुड़ लोगों को काफी स्वाद में भरपूर होता है इस वजह से इसकी डिमांड अधिक होती है और गांव में लगातार गन्ने की चारखियों पर गुड़ की भट्टियां दिखाई देगी जहां पर मजदूर गन्ने के रस से गुड़ बनाते हुए दिखाई देंगे और उनकी भेली रूप यानी पेकेट को तैयार करते हुए दिखेंगे । गुड़ का एक पैरा 150 से लेकर ₹200 तक यहां पर बिकता है यहां का हर एक किसान पूरी सर्दी में 2000 से लेकर 3000 तक क्विंटल गुड़ बाहर बेंच देता है उन्हें काफी अच्छा मुनाफा गुड़ के कार्य करने के दौरान हो जाता है । यहां पर यूपी से आए मजदूरों द्वारा गुड़ बनाने का काम किया जाता है और बड़ी संख्या में चरखियों में गन्ने का रस निकाला जाता है और गुड़ बनाने का काम किया जा रहा है और बूंदी में काफी युद्ध स्तर पर सर्दी का मावा तैयार हो रहा है और दूर-दूर तक अपनी मिठास घोल रहा है ।

गन्ने की मशीन चलाकर गन्ना पैरा जाता है फिर बड़ी-बड़ी कड़ाव में उबालकर उसे ठंडा कर गुड़ बनाया जाता है। गांव में कई गन्ने की मशीनें लगी है जिससे गन्ने का रस निकाला जाता है । किसान बताते हैं खेत से गन्ना काटने के बाद उसे पत्ते अलग कर देते हैं फिर कोल्हू या मशीन में पैर में से जो रस निकलता है उसे बड़ी सी कड़ाई में कई घंटों तक गर्म करते हैं जब वह गाढ़ा हो जाता है तो किसी बर्तन में उसे निकाल लेते हैं उसके बाद गुड़ को बाल्टी पेकेट में भर लेते हैं या फिर छोटे-छोटे लड्डू जिन्हें बेली कहते हैं वह तैयार करते हैं । कई किसानों के लिए उनकी जीविका का आधार गुड़ बन चुका है पूरा परिवार मिलकर यह काम करते हैं । गन्ने रस को गर्म करने के लिए सुबह से लेकर शाम तक कड़ाव चलते है एक कढ़ाई गन्ने के रस का उतर जाता है । बेलो से कोल्हू चलाने में समय लगता है लेकिन इंजन वाला कोल्हू लगवाने में खर्च काफी आता है ऐसे में छोटे किसान कोल्हू का ही इस्तेमाल करते हैं वहीं मुनाफ़ेदर किसान मशीनों का उपयोग भी करते हुए दिखाई देते हैं । बूंदी जिले में सबसे ज्यादा गुड , बड़ा नया गांव , तालेड़ा में बनाया जाता है । गुड बनाने में सबसे बड़ी बात है कि इन कड़ाव को चलाने के लिए आग नुमा भट्टी ओर भट्टी को चलाने के लिए आग की आवश्यकता होती है लेकिन यहां पर कोई लकड़ी का उपयोग नहीं किया जाता बल्कि गन्ने से निकलने वाले छिलके को सुखाकर उसी से ही आग का उपयोग किया जाता है और उस गन्ने के छिलके का उपयोग करते हैं । किसान बताते हैं कि इस छिलके से काफी अच्छी आग लग जाती है और भट्टी में तपन अच्छा हो जाता है ।


Conclusion:यहां के किसानों द्वारा तैयार गुड़ की सबसे खास बात यह है कि गुड बनाने में केमिकल का प्रयोग नहीं किया जाता चुना और सेलखड़ी भी नहीं मिलाई जाती । शुद्ध सरसों का तेल डाला जाता है जैसे गुड़ मुलायम रहता है। हल्का सा रंग लगाया जाता है ताकि गुड दिखने में खूबसूरत लगे । केमिकल का इस्तेमाल नहीं होने से गुड़ जायकेदार और सेहत के लिए काफी लिहाज से फायदेमंद भी होता है । सर्दी का मौसम चल रहा है और किसानों को यही समय होता है कि वह अपनी गुड़ की उपज को तैयार करें और अच्छी मात्रा में गुड़ की उपज कर और गुड़ को मार्केट में बेंचे । बूंदी का गुड़ पूरे देश - प्रदेश में अपनी मिठास घोल रहा है ।

बाईट - गुलशन , किसान
बाईट - हनीफ , बनाने वाला
बाईट - जसवीर , मजदूर
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