बूंदी. भाई दूज के अवसर पर जिले के बड़ोदिया, टिकरदा, सथूर, सहित करीब 6 से अधिक गांवों में मंगलवार सुबह से ही घास भैरू महोत्सव का आयोजन किया गया. इसमें स्थानीय कलाकार विचित्र वेशभूषा में लोगों का मनोरंजन करते नजर आए. दिन चढ़ने के साथ ही यह कार्यक्रम शुरु हुआ, जिसे देखने के लिए लोग उमड़ पड़े.
दरअसल, इस दिन गांव की गलियां सुबह से ही ग्रामीणों के हुजूम से भर जाती हैं और फिर दोपहर से उत्सव शुरू होता है. बता दें कि गांव की मुख्य गलियों में स्थानीय निवासी अलग-अलग रूप धारण कर नाच गाकर दर्शकों का मनोरंजन करते हैं. गांव की सड़कों पर किसी व्यक्ति का सिर कटा मिला, तो किसी का पैर जमीन पर कटा हुआ मिला. इतना ही नहीं किसी व्यक्ति का पूरा शरीर ही जमीन में समाधि लेते हुए दिखाई दिया.
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यही नहीं कोई नुकीले कांटे की होली खेलता मिला तो कोई जंगली जानवरों से खेलता नजर आया. इसे देखकर लोग हैरान थे. वहीं कई कलाकार पति-पत्नी का रूप बनाए थे और आपस में मिलकर लोक गीत गाते नजर आए. कुछ बच्चे शराबी का रूप धारण किए हुए मिले. कोई कैमरामैन का रुप धारण किए हुए मिला तो कोई शरारती तत्व बनकर सरेआम महिलाओं को छेड़ता हुआ दिखाई दिया.
ये सभी बातें आपको महज एक किस्सा कहानी लग रही होगी. लेकिन यह सच है, यह सब घास भैरू महोत्सव के तहत होता है. जिले भर के हजारों ग्रामीण इकट्ठा होते हैं और मिल जुल कर इस महोत्सव का आनंद लेते हैं.
यहां पांच से अधिक गांवों में होते हैं अनूठे आयोजन, जैसे कि...
व्यक्ति का सिर काटना, पैर काटना, सिर का पानी में तैरना, मोटर साइकिल को कुंड में पत्थर की पट्टी तैरना, कांच के गिलास पर कार खड़ी करना, ट्रैक्टर-ट्रक सहित आदि खड़े करना , अपने जादू से पानी के चरे को घुमाना, एक धागे पर 10 से अधिक पत्थर की ईंट, फूलों की माला पर साइकिल और बाइक लटकाना, अन्य वजनी सामानों को लटकाना, विभिन्न प्रतिमाओं से पानी के फव्वारे निकालना, नोटों पर वाहनों को खड़ा करना, कांच की छोटी बोतल में विभिन्न बड़ी चीजों को भरना, जमीन से पानी निकालना और जादुई कला से शरीर पर तलवार व अन्य धातुओं से जख्म देना आदि. ऐसे अनूठे करतब इन गांव में आज भी होते हैं.
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सदियों से चल रही परंपरा
भाई दूज के दिन इन गांव में उल्लास और उमंग का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है. पूरे गांववासी मिलकर यह उत्सव मनाते हैं. इस उत्सव की परंपरा सदियों से चली आ रही है. विभिन्न जादू करतब और सुंदर झांकियां इस उत्सव में दिखाई देते हैं. इन करतबों में कई बड़े हैरतअंगेज कारनामे होते हैं. हालांकि यह सभी करतब हाथ की सफाई का कमाल होते हैं. बड़ोदिया, सथूर, टिकरदा गांव में घास भैरू की सवारी देखने के लिए राज्य भर से लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है. स्थानीय निवासी विमल शर्मा और महावीर ने बताया कि घास भैरू की सवारी में पानी के पत्थर का जादू, मधुमक्खियों का छत्ता लटकाना सहित कई प्रदर्शन किए जाते हैं. शाम को बैलों की जोड़ी से घास भैरू को खींचते हैं और लोग ढोल मंजीरे बजाते हुए चलते हैं. फिर घास भैरू को ससुराल से पीहर ले जाया जाता है.
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विशेष तौर पर होती है बैलों की पूजा
इस दिन विशेष तौर पर बैलों की पूजा की जाती है और बैलों के साथ बांधकर लोक देवता घास भैरू की सवारी पूरे गांव में निकाली जाती है. बैलों के पीछे लोक देवता घास भेरू का प्रतीक एक पत्थर रस्सी से खींचा जाता है. केसरिया रंग के घास भैरू को बैल खींचते हैं और पूरे गांव की परिक्रमा लगाते हैं. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से देवता खुश हो जाते हैं. यह सब आयोजन ग्रामीण अपने स्तर पर ही करते हैं. कलाकारों और ग्रामीणों की मांग है कि राज्य सरकार के सहयोग में आर्थिक सहायता दें. ताकि इस परंपरा को लंबे अरसे तक जिंदा रखा जा सके.