बीकानेर. भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए नृसिंह अवतार लिया था. उसी दिन से नृसिंह भगवान के प्राकट्य को नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है. बीकानेर में भी भगवान नृसिंह के पांच-छह मंदिर हैं लेकिन इनमें 500 साल पुराना लखोटिया चौक स्थित नृसिंह मंदिर खास है. इस मंदिर में नृसिंह जयंती पर विशेष पूजा अर्चना होती है. कहा जाता है कि यहां की मूर्ति पाकिस्तान के मुल्तान से आई हुई है.
मुल्तान से आई मूर्ति मंदिर में स्थापित
पुरानी बीकानेर शहर के भीतरी क्षेत्र में स्थित इस मंदिर का इतिहास से जुड़ी कई रोचक जानकारियां हैं. कहा जाता है कि जिस जगह भगवान नृसिंह ने पृथ्वी पर अवतार लिया था, वह जगह मुल्तान में थी, जो अब पाकिस्तान में है. इस मंदिर से जुड़े ट्रस्टी बताते हैं कि इस मंदिर में भगवान नृसिंह की जिस मूर्ति की पूजा की जाती है, वह संयोगवश मुल्तान से ही आई हुई है. हालांकि यह एक संयोग मात्र है कि भगवान नृसिंह के प्राकट्य स्थान मुल्तान से ही यहां मूर्ति आई हुई है. दावा यह भी किया जाता है कि मंदिर बीकानेर की स्थापना से पुराना है लेकिन उसके कोई साक्ष्य नहीं मिलते हैं.
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मुल्तान के लोगों ने नागा साधुओं को दी थी नृसिंह भगवान की मूर्ति
मंदिर के ट्रस्ट से जुड़े राजेन्द्र कुमार पुरोहित बताते हैं कि यह मंदिर करीब 500 से भी ज्यादा साल पुराना है. जिसके साक्ष्य आज भी हैं. कहा जाता है कि विक्रम संवत् 1575 में वैशाख की तृतीया को इस मंदिर की स्थापना हुई थी. वे बताते हैं कि जिस स्थान पर आज मंदिर है, कभी वहां पानी की तलाई हुआ करती थी. यहां नागा साधु तपस्या करते थे. उस वक्त मुल्तान से आए लोगों ने भगवान नृसिंह की मूर्ति नागा साधुओं को दी थी. जिसके बाद भगवान नृसिंह के मंदिर की स्थापना यहां हुई.
कागज और मिट्टी के बने मुखौटे से होता है लीला का मंचन
मंदिर के ही ट्रस्टी बलभद्र व्यास कहते हैं कि भगवान नृसिंह के हाथों हिरण्यकश्यप के वध की लीलाओं का मंचन हर साल होता है और मेला भी भरता है. पिछले 500 सालों से यह परंपरा चली आ रही है. इसमें खास बात यह है कि भगवान नृसिंह और हिरण्यकश्यप के पात्र जिन मुखौटों को पहनते हैं, वे कागज और मिट्टी से बने हैं, जो पसीने को सोख लेता है. बाकी मंदिरों में मुखौटे अष्ट धातु और अन्य तरह से बने होते हैं. ये बने हुए मुखौटे भी 500 साल पुराने हैं.
ट्रस्ट से जुड़े सीताराम कहते हैं कि कहा यह भी जाता है कि मुल्तान में उस वक्त भगवान नृसिंह का मुखौटा पहन कर पात्र मंचित करने वाले व्यक्ति ने नृसिंह लीला के दौरान हिरण्यकश्यप बने व्यक्ति का वध कर दिया था और तब भगवान नृसिंह का यह मुखौटा मुल्तान से बीकानेर लाया गया था. तब विधिवत रूप से इसकी पूजा-अर्चना कर इसे मंदिर में स्थापित कर दिया गया. तब से आज तक हर साल मेले के मौके पर ही से इसे बाहर निकाला जाता है. जो व्यक्ति भगवान नृसिंह के रूप में पात्र बनता है, वो इसे पहनता है.
सोने की नक्काशी और कलाकारी आकर्षण का केंद्र
बलभद्र व्यास बताते हैं कि मिट्टी और कागज से बने इन मुखौटों को आज तक बदला नहीं गया है. हर साल केवल सामान्य रंग रोगन किया जाता है. मंदिर ट्रस्ट से ही जुड़े सीताराम कहते हैं कि नागा साधुओं ने इस मंदिर की स्थापना की थी. धीरे-धीरे लोग मंदिर को भव्य रूप देने के लिए आगे आए. अब मंदिर अपने पूर्ण रूप में है. मंदिर में सोने की नक्काशी और कलाकारी से चित्रकारी वाकई दांतों तले अंगुली दबाने को विवश कर देती है.
इस बार नहीं भरेगा मेला
बीकानेर में नृसिंह चतुर्दशी के दिन नृसिंह अवतार और हिरण्यकश्यप के वध को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग जमा होते हैं लेकिन लगातार दूसरी बार कोरोना के चलते मंदिरों के बाहर लगे पाटे जहां हर साल मेला भरता है और नृसिंह लीला का मंचन होता है, वे पाटे इस बार भी सूने रहेंगे.
सोशल मीडिया के जरिए होंगे दर्शन
स्थानीय निवासी चंद्रशेखर श्रीमाली कहते हैं कि मंदिर में केवल पुजारी और प्रमुख ट्रस्टी लोगों की मौजूदगी में ही नृसिंह अवतार होगा और पूजा-अर्चना की जाएगी और इस बार मेला नहीं भरेगा. लेकिन लोगों को सोशल मीडिया के माध्यम से दर्शन करवाएं जाएंगे. लखोटिया चौक के अलावा बीकानेर में डागा चौक, दुजारी गली, नत्थूसर गेट, लालाणी व्यास चौक में भी नृसिंह मंदिर है.