बीकानेर. नवरात्र में चौथे दिन भगवती मां दुर्गा के देवी कुष्मांडा अवतार की पूजा होती है. देवी कुष्मांडा के उदर से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है. शास्त्रों में दिए गए इसके शाब्दिक अर्थ व्याख्या के अनुसार ही इनका नाम कुष्मांडा हुआ. नवरात्र में आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति प्राप्त करने के लिए अनेक प्रकार के उपवास, संयम, नियम, भजन, पूजन योग साधना आदि करते हैं. सभी नवरात्र में माता के सभी 51 शक्ति पीठ पर भक्त विशेष रूप से माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं.
कुंद के पुष्प, मालपुआ का भोग प्रिय : पांचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि चौथे दिन देवी कुष्मांडा देवी की आराधना करते वक्त कुंद के पुष्प अर्पित करना श्रेष्ठ है. उन्होंने बताया कि देवी कुष्मांडा को कुंद के पुष्प अति प्रिय हैं. कुष्मांडा देवी को कुंद का पुष्प अर्पित कर आराधना करते हुए लक्षार्चन करना चाहिए. उन्होंने बताया कि पूजन में ऋतु फल के साथ ही मिठाई के रूप में देवी कुष्मांडा को मालपुआ का भोग लगाना चाहिए. पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि वैसे तो नौ दिन तक पूजन करने वाले साधक अपने भक्ति भाव से जो सात्विक भोग और पूजन सामग्री अर्पण करते हैं, वो देवी को स्वीकार्य है.
सिद्धि देती हैं देवी : पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि नवरात्र के नौ दिन देवी के मंत्रों के सिद्धि का महापर्व है. इस दौरान साधक को देवी भागवत, नवाहन परायण, देवी अथर्वशीर्ष, दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए. मां कुष्मांडा मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी हैं. चौथे दिन षोडशोपचार के साथ मां की आराधना-पूजा करने वाले साधक को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है.
शांत है देवी कुष्मांडा का स्वभाव : पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि आमतौर पर समझा जाता है कि सभी देवियों का स्वरूप उग्र होता है, लेकिन ऐसा नहीं है. हमारे शास्त्रों में भी इस बात का उल्लेख है. उन्होंने बताया कि देवी मां कुष्मांडा का स्वरूप शांत है.