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आज है उत्पन्ना एकादशी, व्रत-दान से होता है पापों का नाश - ETV Bharat Rajasthan News

सनातन धर्म पुराणों के अनुसार भगवान श्रीहरिविष्णु के शरीर से माता एकादशी उत्पन्न हुईं थीं. एक साल में कुल 24 बार पड़ने वाली एकादशी तिथि का अलग महत्व होता है. एक मास में दो बार एकादशी पड़ती है, एक कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में. मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि उत्पन्ना एकादशी के रूप में मनाया जाता है. जानिए इस दिन व्रत-दान करने का क्या महत्व है...

उत्पन्ना एकादशी
उत्पन्ना एकादशी
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Dec 8, 2023, 6:27 AM IST

बीकानेर. एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है. हर माह में दो बार आने वाली एकादशी तिथि का अपना एक अलग महत्व है और हर एकादशी का भी अपना अलग महत्व है. एकादशी के दिन भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण की पूजा का विधान है. आज मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के पूर्व जन्म के पापों का नाश होता है.

मान्यता है कि इस दिन सुबह स्नान कर भगवान विष्णु की उपासना करनी चाहिए. उन्हें पीले फल, पीले फूल, तुलसी दल और पंचामृत अर्पित कर, गोपाल मंत्र का जाप करना चाहिए. संतान की चाहा रखने वाले दंपती "ॐ क्लीं देवकी सुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते, देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणम गता" बाद में दंपीत एक साथ फल और पंचामृत प्रसाद लें.

पढ़ें. Ekadashi : मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि, करिए भगवान विष्णु की आराधना आज

भगवान विष्णु संग लक्ष्मी जी की पूजा : एकादशी को भगवान विष्णु की पूजा-आराधना करने से कई गुना फल की प्राप्ति होती है. इस दिन को महालक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति आर्थिक रूप से संपन्न होता है. यह भी एक संयोग है कि शुक्रवार माता महालक्ष्मी का वार है और इस दिन भगवान विष्णु की माता महालक्ष्मी के साथ पूजा करनी चाहिए.

पूर्वजन्म के पापों से मुक्ति : मान्यता है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत तीर्थस्नान का फल देने के समान है. इस व्रत के साथ दान करने से कई गुना फल मिलता है. उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के पूर्व जन्म के पापों का नाश होता है.

बीकानेर. एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है. हर माह में दो बार आने वाली एकादशी तिथि का अपना एक अलग महत्व है और हर एकादशी का भी अपना अलग महत्व है. एकादशी के दिन भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण की पूजा का विधान है. आज मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के पूर्व जन्म के पापों का नाश होता है.

मान्यता है कि इस दिन सुबह स्नान कर भगवान विष्णु की उपासना करनी चाहिए. उन्हें पीले फल, पीले फूल, तुलसी दल और पंचामृत अर्पित कर, गोपाल मंत्र का जाप करना चाहिए. संतान की चाहा रखने वाले दंपती "ॐ क्लीं देवकी सुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते, देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणम गता" बाद में दंपीत एक साथ फल और पंचामृत प्रसाद लें.

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भगवान विष्णु संग लक्ष्मी जी की पूजा : एकादशी को भगवान विष्णु की पूजा-आराधना करने से कई गुना फल की प्राप्ति होती है. इस दिन को महालक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति आर्थिक रूप से संपन्न होता है. यह भी एक संयोग है कि शुक्रवार माता महालक्ष्मी का वार है और इस दिन भगवान विष्णु की माता महालक्ष्मी के साथ पूजा करनी चाहिए.

पूर्वजन्म के पापों से मुक्ति : मान्यता है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत तीर्थस्नान का फल देने के समान है. इस व्रत के साथ दान करने से कई गुना फल मिलता है. उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के पूर्व जन्म के पापों का नाश होता है.

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