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Rammat in Bikaner: बीकानेर में शताब्दियों से निभाई जा रही 'रम्मत' की परंपरा, देर रात से अलसुबह तक जुटते हैं लोग - Holi related tradition in Bikaner

वर्षों पुरानी परम्परा रम्मत आज भी बीकानेर में निभाई जाती है. इसके तहत पात्र अपने संवाद को गाकर पेश करते हैं. इनका आयोजन बसंत पंचमी से होली के मौके तक होता है.

Holi related tradition in Bikaner Rammat begins
Rammat in Bikaner: बीकानेर में शताब्दियों से निभाई जा रही 'रम्मत' की परंपरा, देर रात से अलसुबह तक जुटते हैं लोग
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Published : Mar 2, 2023, 6:06 PM IST

बीकानेर. बसंत पंचमी के साथ ही फाल्गुन की मस्ती और बयार शुरू हो जाती है और होली का माहौल धीरे-धीरे परवान चढ़ने लगता है. बीकानेर में भी बसंत पंचमी से होली के मौके पर 'रम्मत' अभ्यास शुरू हो जाता है. होलाष्टक लगने के साथ ही अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग दिन अलग-अलग रम्मत का आयोजन होता है. रम्मत यानि खेल. रम्मत लोक नाट्य की सदियों पुरानी परंपरा है, जिसमें इसके पात्र अपने संवाद को गाकर पेश करते हैं. रम्मतों का मंचन देर रात शुरू होकर सूर्योदय तक चलता है.

संदेश देने की कोशिश: बीकानेर में आयोजित होने वाली इन रम्मतों में हर एक रम्मत का एक अपना अलग इतिहास है. करीब ढाई सौ साल पुरानी इस परंपरा होली के मौके पर आयोजन बीकानेर शहर की फाल्गुनी मस्ती में चार चांद लगाता है. इन रम्मतों से समाज में एक अच्छा संदेश देने की कोशिश के साथ ही समसामयिक मुद्दों पर भी कटाक्ष और व्यंग्य देखने को मिलता है. हर मोहल्ले की अपनी रम्मत होती है. इससे आपस में लोगों का जुड़ाव होता है. इसमें धार्मिकता भी जुड़ी हुई है.

पढ़ें: बसंत पंचमी पूजन के साथ फाल्गुनी मस्ती शुरू, चंग की थाप से होली की मस्ती शुरु

आने वाली पीढ़ी के लिए: बीकानेर में बिस्सों के चौक में पिछले 2 शताब्दियों से भी ज्यादा समय से आयोजित हो रही रम्मत के कलाकार इन्द्र कुमार बिस्सा कहते हैं कि यह रम्मत हमारी संस्कृति से जुड़ी हुई है. इससे हमारी संस्कृति को पहचाना जाता है. 44 सालों से रम्मत में मुख्य पात्र की भूमिका निभा रहे कृष्ण कुमार बिस्सा कहते हैं कि मेरी पांचवी पीढ़ी से मैं लगातार इस रम्मत का हिस्सा हूं. आने वाली पीढ़ी को भी इसके लिए तैयार कर रहे हैं. उद्देश्य यही है कि हमारी होली परंपरा और त्योहार विरासत के रूप में अगली पीढ़ी तक पहुंचे.

पढ़ें: होली आयोजकों में दो फाड़, एक पक्ष परम्परागत ढंग से मनाने पर अड़ा

रात से सुबह तक चलती: कहने को तो यह एक तरह से खेल है, लेकिन आस्था भी इससे जुड़ी हुई है. रम्मत के मंचन से पहले रात्रि में ठीक 12 किसी नन्हे बच्चे के रूप में देवी स्वरूप का आगमन होता है. इस दौरान बड़ी संख्या में लोग देवी दर्शन के लिए पहुंचते हैं. बीकानेर अपनी सतरंगी संस्कृति के लिए जाना जाता है. होली हो या दिवाली हर त्योहार को अपने ढंग से यहां के लोग मनाते हैं. इन रम्मतों के माध्यम से एक-दूसरे के साथ जुड़ाव भी होता है. इसके साथ ही सबके सुख, शांति और सौहार्द की कामना भी की जाती है.

बीकानेर. बसंत पंचमी के साथ ही फाल्गुन की मस्ती और बयार शुरू हो जाती है और होली का माहौल धीरे-धीरे परवान चढ़ने लगता है. बीकानेर में भी बसंत पंचमी से होली के मौके पर 'रम्मत' अभ्यास शुरू हो जाता है. होलाष्टक लगने के साथ ही अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग दिन अलग-अलग रम्मत का आयोजन होता है. रम्मत यानि खेल. रम्मत लोक नाट्य की सदियों पुरानी परंपरा है, जिसमें इसके पात्र अपने संवाद को गाकर पेश करते हैं. रम्मतों का मंचन देर रात शुरू होकर सूर्योदय तक चलता है.

संदेश देने की कोशिश: बीकानेर में आयोजित होने वाली इन रम्मतों में हर एक रम्मत का एक अपना अलग इतिहास है. करीब ढाई सौ साल पुरानी इस परंपरा होली के मौके पर आयोजन बीकानेर शहर की फाल्गुनी मस्ती में चार चांद लगाता है. इन रम्मतों से समाज में एक अच्छा संदेश देने की कोशिश के साथ ही समसामयिक मुद्दों पर भी कटाक्ष और व्यंग्य देखने को मिलता है. हर मोहल्ले की अपनी रम्मत होती है. इससे आपस में लोगों का जुड़ाव होता है. इसमें धार्मिकता भी जुड़ी हुई है.

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आने वाली पीढ़ी के लिए: बीकानेर में बिस्सों के चौक में पिछले 2 शताब्दियों से भी ज्यादा समय से आयोजित हो रही रम्मत के कलाकार इन्द्र कुमार बिस्सा कहते हैं कि यह रम्मत हमारी संस्कृति से जुड़ी हुई है. इससे हमारी संस्कृति को पहचाना जाता है. 44 सालों से रम्मत में मुख्य पात्र की भूमिका निभा रहे कृष्ण कुमार बिस्सा कहते हैं कि मेरी पांचवी पीढ़ी से मैं लगातार इस रम्मत का हिस्सा हूं. आने वाली पीढ़ी को भी इसके लिए तैयार कर रहे हैं. उद्देश्य यही है कि हमारी होली परंपरा और त्योहार विरासत के रूप में अगली पीढ़ी तक पहुंचे.

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रात से सुबह तक चलती: कहने को तो यह एक तरह से खेल है, लेकिन आस्था भी इससे जुड़ी हुई है. रम्मत के मंचन से पहले रात्रि में ठीक 12 किसी नन्हे बच्चे के रूप में देवी स्वरूप का आगमन होता है. इस दौरान बड़ी संख्या में लोग देवी दर्शन के लिए पहुंचते हैं. बीकानेर अपनी सतरंगी संस्कृति के लिए जाना जाता है. होली हो या दिवाली हर त्योहार को अपने ढंग से यहां के लोग मनाते हैं. इन रम्मतों के माध्यम से एक-दूसरे के साथ जुड़ाव भी होता है. इसके साथ ही सबके सुख, शांति और सौहार्द की कामना भी की जाती है.

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