बीकानेर: 26 सितंबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत (Beginning of Sharadiya Navratri) हो रही है. नौ दिन के नवरात्रि के इस महापर्व में देवी की आराधना में जहां संन्यासी तांत्रिक पूजा करते हैं तो वहीं, गृहस्थी से जुड़े लोग घट स्थापित कर नौ दिनों तक व्रत रख माता रानी को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं. शास्त्रों के मुताबिक जगतपिता ब्रह्मा ने भगवती मां दुर्गा के नौ रूप को अलग-अलग नाम (9 Durga Names By Brahma) दिए थे. देवी के इन नौ रूपों यानी नौ देवियों की नवरात्रि में पूजा होती है. हर देवी की पूजा का दिन निर्धारित होता है. वहीं, नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा (Worship of Maa Shailputri on the first day) होती है.
कौन हैं शैलपुत्री: पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि मां शैलपुत्री हिमालय की पुत्री (Shailputri daughter of Himalaya) थीं. शैल का मतलब हिमालय होता है. हिमालय ने मां भगवती की आराधना की थी और उन्हें वरदान में पुत्री रूप में पाने की इच्छा प्रकट की थी. देवी ने उनको मनवांछित फल प्रदान किया और उनके घर पुत्री रूप में जन्म लिया.
मां पार्वती ही देवी शैलपुत्री हैं. इनका भगवान शंकर से विवाह हुआ. मां पार्वती के स्वरूप शैलपुत्री का पूजन नवरात्रि के पहले दिन होता है. वैसे तो देवी का वाहन सिंह और देवी हमेशा सिंह पर ही आरूढ़ होती है, लेकिन जब भगवान ब्रह्माजी ने देवी के अलग-अलग नौ रूपों का नामकरण किया तो मां शैलपुत्री वृषभ की सवारी के साथ प्रकट हुईं. इस दौरान उनके हाथों में त्रिशूल था.
जानें क्या है माता को प्रिय: पंडित किराडू बताते हैं कि वैसे तो पूजन में प्रयुक्त होने वाले सभी प्रकार के पुष्पों का अपना महत्व है और देवी को सभी प्रकार के पुष्प अर्पित किए जा सकते हैं. लेकिन शास्त्रों में इस बात उल्लेख मिलता है कि माता शैलपुत्री को श्वेत पुष्प अतिप्रिय हैं. लिहाजा उनकी पूजा में श्वेत पुष्प चढ़ाने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
मंत्र सिद्धि के लिए उपासना: पंडित किराडू आगे बताते हैं कि नवरात्रि में देवी की आराधना के दौरान मंत्रों का जाप कर साधक वरदान प्राप्त करते हैं. नौ दिन नवाहन परायण, देवी अथर्वशीर्ष, दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी होती है.