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Special: साजी और हींग ने बढ़ाई बीकानेर के पापड़ उद्योग की समस्या, किल्लत व बढ़ी कीमत से बेहाल छोटी इकाइयां

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Published : Mar 17, 2023, 7:36 PM IST

Updated : Mar 17, 2023, 10:18 PM IST

नमकीन के तीखेपन और रसगुल्ले की मिठास के लिए दुनिया में मशहूर बीकानेर में पापड़ उद्योग भी अपनी खास पहचान रखता है. खाने में भोजन के बाद पापड़ का चलन सालों से है, लेकिन पुलवामा हमले के बाद बिगड़ने भारत-पाकिस्तान के कारोबारी रिश्ते का असर अब यहां की पापड़ उद्योग पर भी पड़ा (Challenge of Bikaner papad industry) है.

Challenge of Bikaner papad industry
Challenge of Bikaner papad industry
पापड़ व्यवसायी योगेश पारीक

बीकानेर. उड़द और मोठ की दाल से बनने वाले बीकानेरी पापड़ का जायका बीकानेर ही नहीं, बल्कि देश-दुनिया में प्रसिद्ध है. यहां से देश के साथ ही विदेशों तक में पापड़ की सप्लाई होती है. साथ ही यहां की जलवायु रसगुल्ले, भुजिया और पापड़ के लिए मुफीद मानी जाती है. बावजूद इसके आज बीकानेर की फूड इंडस्ट्री और खासकर पापड़ उद्योग संकट के दौर से गुजर रहा है और ये सूरत-ए-हाल पुलवामा हमले के बाद से ही बदस्तूर जारी है. दरअसल, पुलवामा हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में आई खटास के कारण भारत सरकार ने पाकिस्तान से होने वाले व्यापार पर कस्टम ड्यूटी 200 फीसदी कर दी, जिसका सीधा असर यहां के पापड़ उद्योग पर पड़ा. मौजूदा आलम यह है कि बीते चार सालों से यहां के पापड़ उद्योग से जुड़े कारोबारियों की समस्याएं दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं.

साजी ने बढ़ाई समस्या - साल 2019 में भारत सरकार ने पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान से आयात होने वाली वस्तुओं पर आयात शुल्क 200 फीसदी कर दिया. इसको पाकिस्तान को आर्थिक स्तर पर कमजोर करने की कवायद के तौर पर उठाया गया कदम माना गया. एक पहलू बीकानेर के पापड़ उद्योग पर संकट के रूप में इसलिए सामने आया, क्योंकि पापड़ में काम में आने वाली साजी महंगी हो गई.

क्या है साजी - साजी एक तरह का पौधा होता है और इसकी जड़ का ज्यादातर औषधीय इस्तेमाल होता है. जिसकी पैदावार पाकिस्तान के सिंध प्रांत में अधिक होती है और ये इलाका राजस्थान से लगा है. साजी की सबसे खास बात यह है कि ये पौधा आसानी से बंजर जमीन पर उग जाती है. भावलपुर, हमीरगढ़ और कोटवास आदि में साजी की पैदावार अधिक होती है. इस पौधे को सुखाकर जलाया जाता है. जिससे इसका रस टपककर कोयले जैसा सा हो जाता है. इसके के बाद इसे ग्राइंडर में प्रोसेस किया जाता है और बाद में इसका पानी निकाला जाता है. इसके अर्क के रूप में निकले पानी को उड़द की दाल के साथ मिक्स किया जाता है.

इसे भी पढ़ें - Special : बीकानेर है पान के शौकीनों का शहर, हर रोज खाए जाते हैं 1 लाख पान

बिना साजी के नहीं बनता पापड़ - दरअसल, बिना साजी के पापड़ नहीं बन सकता है. पापड़ बनाने के लिए उड़द की दाल में मसालों के साथ साजी से निकाले गए अर्क को मिलाया जाता है और उसके बाद ही पापड़ का कच्चा माल तैयार हो पाता है. वहीं, पाकिस्तान से आने वाली साजी की कीमतों पर लगातार बढ़ोतरी होने से पापड़ उद्योग से जुड़े छोटे कारोबारियों को खासा दिक्कतें पेश आ रही हैं. पुलवामा हमले के पहले जहां साजी 30 से 40 रुपए किलो और वो भी आसानी से मिल जाती थी तो अब इसकी कीमत 150 रुपए प्रति किलो हो गई है.

साजी ही नहीं हींग भी हुई महंगी - बीकानेर में पुश्तैनी रूप से पापड़ उद्योग से जुड़े कारोबारी योगेश पारीक कहते हैं कि हम पिछले 70 साल से इस काम में लगे हैं. साजी के बिना पापड़ बनाना संभव नहीं है. वैसे ही हींग का भी अपना एक महत्व है और पापड़ बनाने में हींग का भी उपयोग होता है. पारीक कहते हैं कि यह भी एक संयोग है कि साजी का उत्पादन पाकिस्तान में सबसे अधिक होता है. वैसे ही हींग भी तजाकिस्तान से आती है. भारत सरकार ने फिलहाल इसके खनन पर रोक लगा रखी है. जिसके चलते अब हींग के दाम भी लगातार आसमान छू रहे हैं. यही कारण है कि अब पापड़ उद्योग से जुड़े छोटी कारोबारियों को अपने काम को सुचारू ढंग से चलाने में दिक्कतें पेश आ रही हैं. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण कच्चे माल की लगातार बढ़ती कीमत है.

एक हजार करोड़ का है कारोबार - एक अनुमान के मुताबिक बीकानेर में पापड़ उद्योग का करीब 1000 करोड़ का कारोबार है. बड़ी इकाइयों से लेकर छोटी इकाइयों तक पापड़ बेलने के लिए बड़ी संख्या में महिला श्रमिक होती है और घरों से ही पापड़ को बेलने का काम किया जाता है. हालांकि अब ऑटोमेटिक मशीन आ गई है लेकिन आज भी 70 से 80 फ़ीसदी पापड़ हाथ से ही बेला जाता है. ऐसे में पापड़ की छोटी इकाइयों के सामने संचालन कि आई समस्या से इन श्रमिकों के सामने भी संकट खड़ा हो रहा है. क्योंकि बड़ी इकाइयों में ऑटोमेटेड मशीनों से काम होने लग गया है.

कई छोटी इकाइयां बंद - योगेश पारीक कहते हैं कि छोटी इकाइयों के सामने संकट इसलिए है, क्योंकि पुलवामा संकट के बाद एक बार साजी के भाव 300 से ऊपर चले गए. वहीं, हींग के दाम भी तीन चार गुना बढ़ गए हैं. इसके अलावा दालों के भाव में आई तेजी के साथ ही पैकिंग मैटेरियल और लेबर चार्ज भी बढ़ गया, लेकिन उस अनुपात में पापड़ के भाव नहीं बढ़े हैं. यही वजह है कि आज छोटी इकाइयों का सरवाइव करना मुश्किल हो गया है.

पापड़ व्यवसायी योगेश पारीक

बीकानेर. उड़द और मोठ की दाल से बनने वाले बीकानेरी पापड़ का जायका बीकानेर ही नहीं, बल्कि देश-दुनिया में प्रसिद्ध है. यहां से देश के साथ ही विदेशों तक में पापड़ की सप्लाई होती है. साथ ही यहां की जलवायु रसगुल्ले, भुजिया और पापड़ के लिए मुफीद मानी जाती है. बावजूद इसके आज बीकानेर की फूड इंडस्ट्री और खासकर पापड़ उद्योग संकट के दौर से गुजर रहा है और ये सूरत-ए-हाल पुलवामा हमले के बाद से ही बदस्तूर जारी है. दरअसल, पुलवामा हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में आई खटास के कारण भारत सरकार ने पाकिस्तान से होने वाले व्यापार पर कस्टम ड्यूटी 200 फीसदी कर दी, जिसका सीधा असर यहां के पापड़ उद्योग पर पड़ा. मौजूदा आलम यह है कि बीते चार सालों से यहां के पापड़ उद्योग से जुड़े कारोबारियों की समस्याएं दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं.

साजी ने बढ़ाई समस्या - साल 2019 में भारत सरकार ने पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान से आयात होने वाली वस्तुओं पर आयात शुल्क 200 फीसदी कर दिया. इसको पाकिस्तान को आर्थिक स्तर पर कमजोर करने की कवायद के तौर पर उठाया गया कदम माना गया. एक पहलू बीकानेर के पापड़ उद्योग पर संकट के रूप में इसलिए सामने आया, क्योंकि पापड़ में काम में आने वाली साजी महंगी हो गई.

क्या है साजी - साजी एक तरह का पौधा होता है और इसकी जड़ का ज्यादातर औषधीय इस्तेमाल होता है. जिसकी पैदावार पाकिस्तान के सिंध प्रांत में अधिक होती है और ये इलाका राजस्थान से लगा है. साजी की सबसे खास बात यह है कि ये पौधा आसानी से बंजर जमीन पर उग जाती है. भावलपुर, हमीरगढ़ और कोटवास आदि में साजी की पैदावार अधिक होती है. इस पौधे को सुखाकर जलाया जाता है. जिससे इसका रस टपककर कोयले जैसा सा हो जाता है. इसके के बाद इसे ग्राइंडर में प्रोसेस किया जाता है और बाद में इसका पानी निकाला जाता है. इसके अर्क के रूप में निकले पानी को उड़द की दाल के साथ मिक्स किया जाता है.

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बिना साजी के नहीं बनता पापड़ - दरअसल, बिना साजी के पापड़ नहीं बन सकता है. पापड़ बनाने के लिए उड़द की दाल में मसालों के साथ साजी से निकाले गए अर्क को मिलाया जाता है और उसके बाद ही पापड़ का कच्चा माल तैयार हो पाता है. वहीं, पाकिस्तान से आने वाली साजी की कीमतों पर लगातार बढ़ोतरी होने से पापड़ उद्योग से जुड़े छोटे कारोबारियों को खासा दिक्कतें पेश आ रही हैं. पुलवामा हमले के पहले जहां साजी 30 से 40 रुपए किलो और वो भी आसानी से मिल जाती थी तो अब इसकी कीमत 150 रुपए प्रति किलो हो गई है.

साजी ही नहीं हींग भी हुई महंगी - बीकानेर में पुश्तैनी रूप से पापड़ उद्योग से जुड़े कारोबारी योगेश पारीक कहते हैं कि हम पिछले 70 साल से इस काम में लगे हैं. साजी के बिना पापड़ बनाना संभव नहीं है. वैसे ही हींग का भी अपना एक महत्व है और पापड़ बनाने में हींग का भी उपयोग होता है. पारीक कहते हैं कि यह भी एक संयोग है कि साजी का उत्पादन पाकिस्तान में सबसे अधिक होता है. वैसे ही हींग भी तजाकिस्तान से आती है. भारत सरकार ने फिलहाल इसके खनन पर रोक लगा रखी है. जिसके चलते अब हींग के दाम भी लगातार आसमान छू रहे हैं. यही कारण है कि अब पापड़ उद्योग से जुड़े छोटी कारोबारियों को अपने काम को सुचारू ढंग से चलाने में दिक्कतें पेश आ रही हैं. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण कच्चे माल की लगातार बढ़ती कीमत है.

एक हजार करोड़ का है कारोबार - एक अनुमान के मुताबिक बीकानेर में पापड़ उद्योग का करीब 1000 करोड़ का कारोबार है. बड़ी इकाइयों से लेकर छोटी इकाइयों तक पापड़ बेलने के लिए बड़ी संख्या में महिला श्रमिक होती है और घरों से ही पापड़ को बेलने का काम किया जाता है. हालांकि अब ऑटोमेटिक मशीन आ गई है लेकिन आज भी 70 से 80 फ़ीसदी पापड़ हाथ से ही बेला जाता है. ऐसे में पापड़ की छोटी इकाइयों के सामने संचालन कि आई समस्या से इन श्रमिकों के सामने भी संकट खड़ा हो रहा है. क्योंकि बड़ी इकाइयों में ऑटोमेटेड मशीनों से काम होने लग गया है.

कई छोटी इकाइयां बंद - योगेश पारीक कहते हैं कि छोटी इकाइयों के सामने संकट इसलिए है, क्योंकि पुलवामा संकट के बाद एक बार साजी के भाव 300 से ऊपर चले गए. वहीं, हींग के दाम भी तीन चार गुना बढ़ गए हैं. इसके अलावा दालों के भाव में आई तेजी के साथ ही पैकिंग मैटेरियल और लेबर चार्ज भी बढ़ गया, लेकिन उस अनुपात में पापड़ के भाव नहीं बढ़े हैं. यही वजह है कि आज छोटी इकाइयों का सरवाइव करना मुश्किल हो गया है.

Last Updated : Mar 17, 2023, 10:18 PM IST
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