बीकानेर. रियासतकालीन समय में परंपरागत रूप से ज्वेलरी के कारोबार से जुड़े बीकानेर के एक जौहरी का नाम आज भी बड़े अदब से लिया जाता है. उन्होंने 44 साल पहले ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया था, बावजूद इसके उनके किए कार्यों को आज भी लोग याद करते हैं. हम बात कर रहे हैं मोतीचंद खजांची की. खजांची का जन्म 14 मार्च, 1925 को बीकानेर के एक ज्वेलरी कारोबारी परिवार में हुआ था. जिन्होंने बीकानेर की मिनिएचर आर्ट और दस्तावेजों के संरक्षण के लिए अतुलनीय कार्य किए थे. वहीं, आज भी देश में लगने वाली मिनिएचर आर्ट प्रदर्शनी में उनके संग्रह को देख लोग अचंभित होते हैं. लेकिन दुख की बात यह है कि महज 54 साल की आयु में 14 मार्च, 1979 को वो इस दुनिया से हमेशा हमेशा के लिए रुखसत हो गए.
क्या है मिनिएचर कला - करीब 1000 साल पुरानी इस शैली के चित्र आज भी देखने में ऐसे लगते हैं जैसे अभी बनाए गए हो. मुगलकाल में इन चित्रों में रंगों का मिश्रण शुरू हुआ था. इस शैली का मतलब उन चित्र से हैं, जिसको देखने से पूरी कहानी का आभास होता है. इस आर्ट में तस्वीरों के जरिए कड़िवार कहानियां पेश की जाती है.
रुकनुद्दीन के बनाए चित्र - मिनिएचर कला की शुरुआत मुगलों के शासनकाल में हुई थी. लघु चित्रकारी को मुगल शैली के साथ ही परपंरागत भारतीय शैली में भी बढ़ाया गया. उस वक्त रियासत के मुगल दरबार से संबंधों के चलते बीकानेर में भी मिनिएचर कला को फलने फूलने का मौका मिला. रुकनुद्दीन इस कला के एक बड़े कलाकार थे, जो उस वक्त बीकानेर आए और उन्होंने बीकानेर में अलग शैली की नींव रखी. जिसमें यहां की हवेलियों देवी-देवताओं के चित्र बनाए गए. वहीं, रुकनुद्दीन ने बीकानेर में जिन चित्रों को बनाया था, उसे मोतीचंद खजांची ने संग्रहित किया और उन तस्वीरों को अपने संग्रहालय में रखा. ताकि लोग यहां आकर उसे देख सके.
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बीकानेर के पहले विधायक - देश की आजादी के बाद साल 1952 में पहली बार आम चुनाव हुआ. इस चुनाव में राजस्थान विधानसभा के निर्दलीय विधायक के तौर पर मोतीचंद खजांची बीकानेर से चुनाव लड़े, जिसमें उन्हें जीत हासिल हुई. हालांकि, इसके बाद उन्होंने एक बार फिर चुनाव लड़ा, लेकिन उस चुनाव में उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा. लेकिन उन्होंने अपने 5 साल के कार्यकाल में अतुलनीय कार्य किए. वहीं, उनके कार्य प्रणाली से तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उस वक्त भारत से चीन भेजे गए एक शिष्टमंडल में मोतीचंद खजांची को बतौर सदस्य शामिल किया. साथ ही बीकानेर में मेडिकल कॉलेज खोलने में भी उनकी अहम भूमिका थी.
1972 में मुंबई में खोला स्टोर - पीढ़ियों से कुंदन जड़ाऊ ज्वेलरी के कारोबार से जुड़े मोतीचंद खजांची ने 1972 में मुंबई के होटल ओबेरॉय में अपना पहला ज्वेलरी स्टोर खोला. हालांकि, इससे पहले से ही पुश्तैनी रूप से वह इस काम से जुड़े थे. खजाना नाम से शुरू किए गए इस स्टोर को साल 1979 में उनके निधन के बाद बंद कर दिया गया, लेकिन आज भी उनकी पीढ़ियां ज्वेलरी और जड़ाऊ ज्वेलरी के कारोबार से जुड़ी हुई है. आज भी देश की कई बड़ी सेलिब्रिटी ज्वेलरी डिजाइन का काम खजांची परिवार से ही करवाते हैं.
शौक के चलते लड़ी कानूनी लड़ाई - मोतीचंद खजांची के पौत्र प्रमोद खजांची बताते हैं कि उनके दादाजी का इस कला के प्रति लगाव और शौक के चलते एक बार आयकर विभाग की ओर से मिले नोटिस के बाद उनको कानूनी लड़ाई भी लड़नी पड़ी थी. वे कहते हैं कि दादाजी के निधन के बाद उनके पिताजी और परिवार के अन्य सदस्यों ने इस कानूनी लड़ाई को लड़ा और आखिरकार उन्हें इसमें जीत मिली.
महत्वपूर्ण ग्रंथ और दस्तावेज - मोतीचंद खजांची के पौत्र प्रमोद खजांची बताते हैं कि इस कला के संरक्षण में उनके दादा का योगदान था. साथ ही पुराने महत्वपूर्ण दस्तावेज और ग्रंथ का भी उन्होंने संग्रह किया था. दस्तावेजों और ग्रंथों को उन्होंने सरकार को दे दिए थे, जो प्राच्य शोध प्रतिष्ठान संग्रहालय में आज भी संग्रहित है. उन्होंने कहा कि तब सरकार ने इस संग्रहालय का नाम उनके दादाजी के नाम से करने का आश्वासन दिया था, लेकिन आज तक कोई ऐसा काम नहीं हुआ. प्रमोद कहते हैं कि मिनिएचर आर्ट के साथी व एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि के रूप में मोतीचंद खजांची को सरकारी स्तर पर जो सम्मान मिलना चाहिए था, शायद सरकार से उन्हें वो नहीं मिला.