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SPECIAL: पति मेडिकल सेवा में, पत्नी पुलिस में और 7 साल की बेटी घर में कैद...कुछ ऐसी है कोरोना वॉरियर्स की कहानी...

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Published : Apr 14, 2020, 12:00 PM IST

भीलवाड़ा शहर, जो देखते ही देखते अचानक राजस्थान का कोरोना हॉटस्पॉट क्षेत्र बन गया. ऐसे में भीलवाड़ा के डॉक्टरों और पुलिसकर्मियों ने कोरोना से जंग में अपनी पूरी ताकत झोंक दी. इसका नतीजा ये निकला कि अब भीलवाड़ा कोरोना मुक्त हो चुका है. भीलवाड़ा की इस सफलता के पीछे यहां की ऐसी दंपत्ति का भी योगदान है जिन्होंने इस कठिन समय में अपने परिवार तक को नजरअंदाज कर दिया.

ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट, बेटी को ताले में बंद करने की कहानी, cpuple who lock their daughter, corona virus
एक ऐसी दंपति जो बेटी को घर में कैद करके रहे देश की सेवा

भीलवाड़ा. कोरोना की चेन खत्म करने के कारण आज पूरे देश में 'भीलवाड़ा मॉडल' की चर्चा हो रही है. इसी मॉडल को सफल बनाने में कोरोना वॉरियर्स (चिकित्साकर्मी, पुलिसकर्मी, सफाईकर्मी) की अहम भूमिका रही. इन्हीं कोरोना वॉरियर्स में से एक हैं चिकित्साकर्मी दिलखुश सिंह और उनकी पुलिसकर्मी पत्नी सरोज कंवर.

एक ऐसी दंपति जो बेटी को घर में कैद करके रहे देश की सेवा

ये दोनों ही पति-पत्नी अहम पेशे से जुड़े हैं और वर्तमान हालातों में इन दोनों की ही भूमिका काफी अहम हो जाती है. देश और अपने फर्ज के प्रति इन दोनों के जज्बे का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन्हें अपनी 7 साल की बेटी तक को घर में अकेले बंद करना पड़ रहा है.

15 दिन से बेटी से बना ली है दूरी

इस दंपत्ति ने अपनी बेटी दीक्षिता से 15 दिन से ठीक से बात तक नहीं की है. महज सात साल की यह नन्हीं बच्ची भी अपने माता-पिता के इस नेक काम में पूरा सहयोग करती है. मासूम घंटों घर में बंद रहती हैं. लेकिन कभी अपने माता-पिता से कोई शिकायत नहीं करती है.

यह भी पढ़ें- कोरोना संकट के बीच जयपुर में दिखी 'गंगा-जमुनी तहजीब', हिंदू की मौत पर मुस्लिम भाइयों ने दिया कंधा

बच्ची के पिता दिलखुश महात्मा गांधी जिला चिकित्सालय में बतौर कंपाडर का काम करते हैं. वहीं दिलखुश की पत्नी सरोज भीलवाड़ा पुलिस में कांस्टेबल पद पर कार्यरत हैं.

ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट, बेटी को ताले में बंद करने की कहानी, cpuple who lock their daughter, corona virus
ताले में बंद दीक्षिता

कर्फ्यू ने बढ़ाई जिम्मेदारियां

एक समय में भीलवाड़ा कोरोना का एपीसेंटर बन चुका था. यहां 20 मार्च को कर्फ्यू लगा दिया गया था. इसके बाद भी जब मरीजों की संख्या कम नहीं हुई, तो 3 से 13 अप्रैल तक के लिए महाकर्फ्यू लगा दिया गया. ऐसे में इस दंपत्ति की जिम्मेदारी और भी बढ़ गई. आलम ये हो गया कि इन्हें घर में रहने के लिए वक्त ही नहीं मिला.

महिला कांस्टेबल सरोज कंवर बताती हैं कि उनके पति दिलकुश भीलवाड़ा जिले के महात्मा गांधी चिकित्सालय के आइसोलेशन वार्ड में काम करते हैं. जिसके कारण वह पिछले 15 दिन से घर नहीं लौटे हैं.

यह भी पढे़ं- SPECIAL: खून की कमी से जूझ रहे BLOOD BANK, लॉकडाउन के चलते नहीं आ रहे डोनर

घर में बेटी को रख लगा देते हैं ताला

सरोज बताती हैं कि मेरी एक 7 साल की बेटी भी है. जब मैं अपनी ड्यूटी पर जाती हूं, तो उसे मुझे दिल पर पत्थर रखकर ताले में बंद करके जाना पड़ता है. मुझे पता है कि मेरी बेटी घर पर अकेली काफी परेशान होती है. उसे अकेले में डर भी लगता है, लेकिन मेरे लिए देश सेवा अग्रणी है.

घर में रहकर यह करती है दीक्षिता

वहीं बेटी दीक्षिता का कहना है कि मेरी मम्मी मुझे ताले में बंद कर जब चली जाती हैं, तो मैं घर में पढ़ाई करती हूं. कभी टीवी देखकर समय बिताती हूं और मम्मी के आने का इंतजार करती रहती हूं. डैडी तो घर नहीं आते, इसलिए उनसे फोन पर ही बात करती हूं.

यह भी पढ़ें- Special: लॉकडाउन के दौरान राजस्थान पुलिस की ताबड़तोड़ कार्रवाई जारी, अब तक 1.25 करोड़ का वसूला राजस्वब

संक्रमण न हो जाए इसलिए डरते हैं

ये भी सत्य है कि दंपत्ति का काम जोखिम से भरा है. दोनों पर ही ड्यूटी के दौरान कभी भी संक्रमित लोगों के संपर्क में आने का खतरा मंडराता रहता है. ऐसे में बेटी तक संक्रमण ने फैल जाए. इस डर से उन्होंने मासूम को कई दिनों से छुआ तक नहीं है. देर रात घर पहुंचकर भी बच्ची को खुद से दूर ही रखते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बेटी तक नहीं पहुंच सके.

कोरोना जैसी महामारी में अपने परिवार से पहले देश सेवा को महत्व देने वाले इन कोरोना वॉरियर्स को ईटीवी भारत सलाम करता है.

भीलवाड़ा. कोरोना की चेन खत्म करने के कारण आज पूरे देश में 'भीलवाड़ा मॉडल' की चर्चा हो रही है. इसी मॉडल को सफल बनाने में कोरोना वॉरियर्स (चिकित्साकर्मी, पुलिसकर्मी, सफाईकर्मी) की अहम भूमिका रही. इन्हीं कोरोना वॉरियर्स में से एक हैं चिकित्साकर्मी दिलखुश सिंह और उनकी पुलिसकर्मी पत्नी सरोज कंवर.

एक ऐसी दंपति जो बेटी को घर में कैद करके रहे देश की सेवा

ये दोनों ही पति-पत्नी अहम पेशे से जुड़े हैं और वर्तमान हालातों में इन दोनों की ही भूमिका काफी अहम हो जाती है. देश और अपने फर्ज के प्रति इन दोनों के जज्बे का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन्हें अपनी 7 साल की बेटी तक को घर में अकेले बंद करना पड़ रहा है.

15 दिन से बेटी से बना ली है दूरी

इस दंपत्ति ने अपनी बेटी दीक्षिता से 15 दिन से ठीक से बात तक नहीं की है. महज सात साल की यह नन्हीं बच्ची भी अपने माता-पिता के इस नेक काम में पूरा सहयोग करती है. मासूम घंटों घर में बंद रहती हैं. लेकिन कभी अपने माता-पिता से कोई शिकायत नहीं करती है.

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बच्ची के पिता दिलखुश महात्मा गांधी जिला चिकित्सालय में बतौर कंपाडर का काम करते हैं. वहीं दिलखुश की पत्नी सरोज भीलवाड़ा पुलिस में कांस्टेबल पद पर कार्यरत हैं.

ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट, बेटी को ताले में बंद करने की कहानी, cpuple who lock their daughter, corona virus
ताले में बंद दीक्षिता

कर्फ्यू ने बढ़ाई जिम्मेदारियां

एक समय में भीलवाड़ा कोरोना का एपीसेंटर बन चुका था. यहां 20 मार्च को कर्फ्यू लगा दिया गया था. इसके बाद भी जब मरीजों की संख्या कम नहीं हुई, तो 3 से 13 अप्रैल तक के लिए महाकर्फ्यू लगा दिया गया. ऐसे में इस दंपत्ति की जिम्मेदारी और भी बढ़ गई. आलम ये हो गया कि इन्हें घर में रहने के लिए वक्त ही नहीं मिला.

महिला कांस्टेबल सरोज कंवर बताती हैं कि उनके पति दिलकुश भीलवाड़ा जिले के महात्मा गांधी चिकित्सालय के आइसोलेशन वार्ड में काम करते हैं. जिसके कारण वह पिछले 15 दिन से घर नहीं लौटे हैं.

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घर में बेटी को रख लगा देते हैं ताला

सरोज बताती हैं कि मेरी एक 7 साल की बेटी भी है. जब मैं अपनी ड्यूटी पर जाती हूं, तो उसे मुझे दिल पर पत्थर रखकर ताले में बंद करके जाना पड़ता है. मुझे पता है कि मेरी बेटी घर पर अकेली काफी परेशान होती है. उसे अकेले में डर भी लगता है, लेकिन मेरे लिए देश सेवा अग्रणी है.

घर में रहकर यह करती है दीक्षिता

वहीं बेटी दीक्षिता का कहना है कि मेरी मम्मी मुझे ताले में बंद कर जब चली जाती हैं, तो मैं घर में पढ़ाई करती हूं. कभी टीवी देखकर समय बिताती हूं और मम्मी के आने का इंतजार करती रहती हूं. डैडी तो घर नहीं आते, इसलिए उनसे फोन पर ही बात करती हूं.

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संक्रमण न हो जाए इसलिए डरते हैं

ये भी सत्य है कि दंपत्ति का काम जोखिम से भरा है. दोनों पर ही ड्यूटी के दौरान कभी भी संक्रमित लोगों के संपर्क में आने का खतरा मंडराता रहता है. ऐसे में बेटी तक संक्रमण ने फैल जाए. इस डर से उन्होंने मासूम को कई दिनों से छुआ तक नहीं है. देर रात घर पहुंचकर भी बच्ची को खुद से दूर ही रखते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बेटी तक नहीं पहुंच सके.

कोरोना जैसी महामारी में अपने परिवार से पहले देश सेवा को महत्व देने वाले इन कोरोना वॉरियर्स को ईटीवी भारत सलाम करता है.

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