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भीलवाड़ाः धूमधाम से निकली 'जिंदा' पुरुष की शव यात्रा

भीलवाड़ा में शीतला अष्टमी पर आयोजित हंसी ठिठोली के कार्यक्रम मुर्दे की सवारी न‍िकाली गई. जिंदा मुर्दे की शव यात्रा में सैकड़ों की संख्या में शहरवासियों ने भाग लिया. यह यात्रा शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए शहर के प्राचीन बड़े मंदिर के पास पहुंची, जहां उसका अंतिम संस्कार किया गया.

शीतला अष्टमी का आयोजन,  Sheetla Ashtami organized
धूमधाम से निकली 'जिंदा' पुरुष की शव यात्रा
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Published : Mar 16, 2020, 7:15 PM IST

भीलवाड़ा. रंग व गुलाल और हंसी ठिठोली के बीच ही शहर में शीतला अष्टमी पर एक अनोखे तरह का कार्यक्रम होता है. इस कार्यक्रम में मुर्दे की शव यात्रा निकाली जाती है, जिसमें एक जिंदा व्यक्ति को अर्थी पर लिटाया जाता है. बाद में मुर्दा युवक अर्थी से कूदकर भाग जाता है. वस्त्र नगरी भीलवाड़ा में शीतला अष्टमी के मौके पर करीब 200 वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है.

'जिंदा' पुरुष की शव यात्रा

बता दें कि इस बार भी शीतला अष्टमी पर सोमवार को यह कार्यक्रम हुआ. जिंदा मुर्दे की शव यात्रा में सैकड़ों की संख्या में शहरवासियों ने भाग लिया. यह यात्रा शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए शहर के प्राचीन बड़े मंदिर के पास पहुंची, जहां उसका अंतिम संस्कार किया गया. मुर्दे की सवारी को देखते हुए पुलिस प्रशासन की ओर से भी पुख्ता बंदोबस्त किए गए.

पढ़ें- SPECIAL : मुर्दे की सवारी...भीलवाड़ा में अनूठे तरीके से मनाते हैं शीतला अष्टमी

शहरवासी महावीर प्रसाद सेन ने कहा, कि इस शव यात्रा को देखते हुए मुझे 50 साल हो चुके हैं. यह यात्रा पूरे राजस्थान में इकलौते भीलवाड़ा में ही निकाली जाती है. इस जिंदा मुर्दे की शव यात्रा में एक व्यक्ति अर्थी पर लेटता है और उसे शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए ले जाया जाता है. अंत में उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है.

शीतला अष्टमी का आयोजन,  Sheetla Ashtami organized
'जिंदा' पुरुष की शव यात्रा

सेन ने बताया, कि इस यात्रा में जिंदा मुर्दा बना व्यक्ति अपनी स्वेच्छा से अर्थी पलटता है. कार्यक्रम के खत्म होने के बाद शहर के लोगों की ओर से उसे नीक के नाम पर राशि दी जाती है. उन्होंने बताया कि इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को सुख-दुख में मजबूत रहने और खुशी के साथ अपना जीवन यापन करने का संदेश दिया जाता है.

स्थानीय निवासी कमल शर्मा ने कहा, कि मेवाड़ क्षेत्र के भीलवाड़ा में यह शव यात्रा निकाली जाती है. इस शव यात्रा को देखने के लिए पूरे राजस्थान से लोग आते हैं.

वर्षों पुरानी है ये परंपरा

भीलवाड़ा में करीब 200 वर्षों से मनोरंजन के उद्देश्य से यह यात्रा निकाली जाती है. यह यात्रा चित्तौड़ वाली हवेली से शुरू होकर शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए बड़े मंदिर के पास जाकर समाप्त हो जाती है. इस यात्रा में लोग अर्थी के आगे ढ़ोल-नगाड़े के साथ नाचते गाते और हंसी के गुब्बारे छोड़ते हुए और अश्लील फब्तियां कसते हुए चलते हैं.

महिलाओं का प्रवेश वर्जित

शीतला अष्टमी का आयोजन,  Sheetla Ashtami organized
महिलाओं का आना है वर्जित

मुर्दे की शव यात्रा की विशेष बात यह है कि जिन मार्गों से होती हुई यह यात्रा निकलती है, उन मार्गों पर महिलाओं का प्रवेश बिल्कुल वर्जित होता है. यात्रा के अंतिम संस्कार के लिए बड़े मंदिर के पास स्थित बाहला में ले जाकर अर्थी को जला दिया जाता है.

जिंदा व्यक्ति अर्थी से उठकर भाग जाता है...

बता दें कि अर्थी को जलाने से कुछ क्षण पहले जिंदा व्यक्ति अर्थी में से उठकर खड़ा हो जाता है और भाग जाता है. वहीं, पूरे राजस्थान में भीलवाड़ा एक ऐसा शहर है जहां यह शव यात्रा निकाली जाती है.

भीलवाड़ा. रंग व गुलाल और हंसी ठिठोली के बीच ही शहर में शीतला अष्टमी पर एक अनोखे तरह का कार्यक्रम होता है. इस कार्यक्रम में मुर्दे की शव यात्रा निकाली जाती है, जिसमें एक जिंदा व्यक्ति को अर्थी पर लिटाया जाता है. बाद में मुर्दा युवक अर्थी से कूदकर भाग जाता है. वस्त्र नगरी भीलवाड़ा में शीतला अष्टमी के मौके पर करीब 200 वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है.

'जिंदा' पुरुष की शव यात्रा

बता दें कि इस बार भी शीतला अष्टमी पर सोमवार को यह कार्यक्रम हुआ. जिंदा मुर्दे की शव यात्रा में सैकड़ों की संख्या में शहरवासियों ने भाग लिया. यह यात्रा शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए शहर के प्राचीन बड़े मंदिर के पास पहुंची, जहां उसका अंतिम संस्कार किया गया. मुर्दे की सवारी को देखते हुए पुलिस प्रशासन की ओर से भी पुख्ता बंदोबस्त किए गए.

पढ़ें- SPECIAL : मुर्दे की सवारी...भीलवाड़ा में अनूठे तरीके से मनाते हैं शीतला अष्टमी

शहरवासी महावीर प्रसाद सेन ने कहा, कि इस शव यात्रा को देखते हुए मुझे 50 साल हो चुके हैं. यह यात्रा पूरे राजस्थान में इकलौते भीलवाड़ा में ही निकाली जाती है. इस जिंदा मुर्दे की शव यात्रा में एक व्यक्ति अर्थी पर लेटता है और उसे शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए ले जाया जाता है. अंत में उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है.

शीतला अष्टमी का आयोजन,  Sheetla Ashtami organized
'जिंदा' पुरुष की शव यात्रा

सेन ने बताया, कि इस यात्रा में जिंदा मुर्दा बना व्यक्ति अपनी स्वेच्छा से अर्थी पलटता है. कार्यक्रम के खत्म होने के बाद शहर के लोगों की ओर से उसे नीक के नाम पर राशि दी जाती है. उन्होंने बताया कि इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को सुख-दुख में मजबूत रहने और खुशी के साथ अपना जीवन यापन करने का संदेश दिया जाता है.

स्थानीय निवासी कमल शर्मा ने कहा, कि मेवाड़ क्षेत्र के भीलवाड़ा में यह शव यात्रा निकाली जाती है. इस शव यात्रा को देखने के लिए पूरे राजस्थान से लोग आते हैं.

वर्षों पुरानी है ये परंपरा

भीलवाड़ा में करीब 200 वर्षों से मनोरंजन के उद्देश्य से यह यात्रा निकाली जाती है. यह यात्रा चित्तौड़ वाली हवेली से शुरू होकर शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए बड़े मंदिर के पास जाकर समाप्त हो जाती है. इस यात्रा में लोग अर्थी के आगे ढ़ोल-नगाड़े के साथ नाचते गाते और हंसी के गुब्बारे छोड़ते हुए और अश्लील फब्तियां कसते हुए चलते हैं.

महिलाओं का प्रवेश वर्जित

शीतला अष्टमी का आयोजन,  Sheetla Ashtami organized
महिलाओं का आना है वर्जित

मुर्दे की शव यात्रा की विशेष बात यह है कि जिन मार्गों से होती हुई यह यात्रा निकलती है, उन मार्गों पर महिलाओं का प्रवेश बिल्कुल वर्जित होता है. यात्रा के अंतिम संस्कार के लिए बड़े मंदिर के पास स्थित बाहला में ले जाकर अर्थी को जला दिया जाता है.

जिंदा व्यक्ति अर्थी से उठकर भाग जाता है...

बता दें कि अर्थी को जलाने से कुछ क्षण पहले जिंदा व्यक्ति अर्थी में से उठकर खड़ा हो जाता है और भाग जाता है. वहीं, पूरे राजस्थान में भीलवाड़ा एक ऐसा शहर है जहां यह शव यात्रा निकाली जाती है.

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