भीलवाड़ा. ईटीवी भारत की टीम के समक्ष मजदूरों का दर्द छलक उठा. ईट भट्टों पर काम करने वाले मजदूरों का कहना है कि वे अपने घर उत्तर प्रदेश के पहाड़ी गांव के लिए निकले थे. इनके समूह में कई महिलाओं सहित छोटे-छोटे बच्चे भी हैं, जिनके पैरों में चलते-चलते छाले पड़ गए हैं. उपनगर पुर पहुंचने पर वहां कुछ समाजसेवियों ने उन्हें आशियाना दिया. मजदूरों की यह हालत बताती है कि सरकार के दावे जमीनी हकीकत पर खोखले साबित होते दिखाई दे रहे हैं. श्रमिकों के लिए सुविधाओं का जिक्र सीमित लोगों तक सिमट कर रह गया और आम समय अभी लाचार और बेबसी के आलम में गांव की तरफ रुख कर रहा है.
मजदूर रामचरण भारती ने कहा कि उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के पहाड़ी गांव के रहने वाले हैं और वे राजसमंद में एक भट्टे पर मजदूरी का कार्य करते हैं. कोरोना के कारण उनका काम धंधा बंद हो गया है. जब तक जेब में रुपए थे, तब तक गुजारा किया. जब खतम हो गए, तब वे लोग घर की ओर पैदल ही चल दिए. बता दें कि ये मजदूर जहां से चले हैं, वहां से उनको उनके घर पहुंचने तक करीब 12 सौ किलोमीटर का सफर तय करना पड़ेगा. उन्होंने बताया कि उनके समूह में 35 से 40 लोग हैं, इनमें कई महिलाएं और बच्चे भी हैं. मजदूरों ने कहा कि राजसमंद तक आने में उन्हें कई समस्या हुईं. कई लोगों के पैर में बड़े-बड़े छाले पड़ गए, बच्चों को भी छाले पड़ गए और जो बच्चे चलना नहीं जानते उन्हें कंधों पर उठाकर लाए. इस दौरान पानी और खाने की समस्या तो सबसे बड़ी थी.
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वहीं दूसरी ओर मजदूर महिला पच्ची का कहना है कि हम राजसमंद से पैदल चलकर यहां तक पहुंचे हैं. हमें यहां तक आने में बहुत परेशानी हुई है. हम सब मजदूर एक ही गांव के रहने वाले हैं, जिस भट्टे पर हम कार्य करते थे. वहां काम बंद होने के कारण बच्चे हुए रुपए से हमने वहां गुजारा किया. लेकिन जब वहां बारिश आई तो हमारे घरों में पानी भर गया और हमारा रहना भी दुश्वार हो गया. इस कारण हमें मजबूर होकर अपने नन्हे-मुन्ने बच्चों के साथ पैदल सफर तय करना पड़ा. इस सफर में हर पल हमें यह चिंता सताती है कि हम अपने बच्चों का पेट कैसे भरेंगे. यहां तक तो हम आ गए, अब आगे का पता नहीं कि कैसे जाएंगे. उम्मीद है कि सरकार हमें हमारे घरों तक पहुंचा दे या फिर हमें मजबूर होकर पैदल ही अपने घर की तरफ कदम बढ़ाने होंगे.
मजबूरी का पैदल सफर
12 सौ किलोमीटर के इस सफर में पुरुष मजदूरों के साथ महिलाएं गोद में बच्चे भी पैदल चलने इस 35 से 40 मजदूरों के समूह में 4 से 10 साल तक के बच्चे भी थे और कई बच्चे ऐसे थे. जो चलना भी नहीं जानते थे, जिन्हें कंधों और गोद पर उठाकर लाया गया. पैदल आई महिला और बच्चों के पांव पर बड़े-बड़े छाले हो गए, जिनके कारण उन से चला भी नहीं जा रहा था. इस मजबूरी के सफर में सभी के पैरों पर छाले पड़ गए. बच्चे चलने से मना कर रहे हैं और रोते हैं. लेकिन मजबूरी थी चलकर आना पड़ा. रास्ते में कई स्वयंसेवी और कुछ समाजसेवी मिले, जिन्हें खाने के पैकेट उपलब्ध करवाए.