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तेरस के दिन होने वाले नाहर नृत्य पर कोरोना का साया, संक्रमण के चलते आयोजन पर रोक

कोरोना महामारी का असर अब हर जगह देखने को मिल रहा है. भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे में लगभग 408 वर्ष पूर्व से चली आ रही परंपरा इस बार कोरोना की भेंट चढ़ गई है.

भीलवाड़ा में 408 वर्ष की परंपरा टूटी, Ban on Nahar dance program
नाहर नृत्य आयोजन पर लगी रोक
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Published : Apr 9, 2021, 10:51 PM IST

भीलवाड़ा. कोरोना महामारी का असर अब हर जगह देखने को मिल रहा है. भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे में लगभग 408 वर्ष पूर्व से चली आ रही परंपरा इस बार कोरोना की भेंट चढ़ गई है. भगवान राम और राजाओं के सामने होने वाले विशेष नाहर नृत्य का सामुहिक आयोजन इस बार नहीं होगा. देश में सिर्फ मांडल कस्बे में ही तेरस के दिन यह नृत्य होता है. प्रशासन की ओर से इस बार आयोजन पर रोक लगाए जाने से लोगों में काफी निराशा है.

नाहर नृत्य आयोजन पर लगी रोक

एक ऐसा नृत्‍य जो साल में एक बार भगवान 'राम और राज' के सामने ही होता है. हम बात कर रहे हैं भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्‍बे में 407 सालों से चली आ रही नाहर नृत्‍य की परम्‍परा की. कस्बे में मुगल सम्राट शांहजहां के मनोरंजन के लिए सन् 1614 में शुरू हुई नाहर नृत्‍य की परम्‍परा आज भी बदस्‍तुर जारी है, लेकिन इस बार कोरोना के साए के चलते नाहर नत्य का आयोजन नहीं हो रहा है जिससे क्षेत्रवासियों में मायूसी है.

पढ़ें: चित्तौड़गढ़ पर चढ़ा रंग तेरस का रंग, कोरोना का दिखा असर

भीलवाड़ा जिले के माण्‍डल कस्‍बे में रंग तेरस के दिन होने वाला नाहर नृत्‍य समारोह दिवाली से कम महत्‍व नहीं रखता है. मांडल से देश के विभिन्‍न हिस्‍सों में गये लोग आज के दिन माण्‍डल आना नहीं भुलते हैं. मुगल बादशाह शाहजंहा के 1614 में मांडल पडाव के दौरान उनके मनोरंजन के लिए नर्तकों के शरीर पर रुई लपेटकर शेर के रूप में शुरू हुई यह नाहर नृत्‍य की परम्‍परा आज भी जारी है. इस नृत्‍य की यह विशेषता है कि यह साल में एक बार राम और राज के सामने ही होता है.

माण्‍डल में यह नृत्‍य भगवान चारभुजा नाथ मन्दिर के प्रांगण और कचरी मैदान पर होता है. पिछली तीन पीढ़ियों से नाहर नृत्‍य करने वाले कलाकारों को इस दिन का इंतजार रहता है. जहां इस त्यौहार के दिन मांडल कस्बे के प्रत्येक घरों में मिठाइयां बनाई जाती हैं और परिवार जन के साथ ही रिश्तेदार भी शामिल होते हैं लेकिन इस बार कोरोना जैसी महामारी के चलते नाहर नृत्य का सार्वजनिक तौर पर आयोजन नहीं होगा.

वहीं मांडल विधानसभा क्षेत्र से पूर्व मंत्री कालूलाल गुर्जर ने कहा कि हमारे विधानसभा क्षेत्र में राम व राज के सामने नृत्य करने की काफी पुरानी परंपरा है लेकिन कोरोना जिस तरह से फैल रहा है उसे देखते हुए इस बार नृत्य का आयोजन नहीं होगा. सिर्फ नाहर बनकर शरीर पर रुई लपेटकर घर-घर जाएंगे जबकि सामूहिक आयोजन नहीं होगा.
इस अनूठे नृत्‍य को कलाकारों ने माण्‍डल कस्‍बे की सीमाएं लांघकर देश के कई रंगमंचों तक पहुंचाया है. मगर आज भी माण्‍डल के नाहर नृत्‍य के कलाकार अपने इस हुनर को जिन्‍दा रखने की जद्दोजहद में जुटे हुए हैं.

भीलवाड़ा. कोरोना महामारी का असर अब हर जगह देखने को मिल रहा है. भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे में लगभग 408 वर्ष पूर्व से चली आ रही परंपरा इस बार कोरोना की भेंट चढ़ गई है. भगवान राम और राजाओं के सामने होने वाले विशेष नाहर नृत्य का सामुहिक आयोजन इस बार नहीं होगा. देश में सिर्फ मांडल कस्बे में ही तेरस के दिन यह नृत्य होता है. प्रशासन की ओर से इस बार आयोजन पर रोक लगाए जाने से लोगों में काफी निराशा है.

नाहर नृत्य आयोजन पर लगी रोक

एक ऐसा नृत्‍य जो साल में एक बार भगवान 'राम और राज' के सामने ही होता है. हम बात कर रहे हैं भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्‍बे में 407 सालों से चली आ रही नाहर नृत्‍य की परम्‍परा की. कस्बे में मुगल सम्राट शांहजहां के मनोरंजन के लिए सन् 1614 में शुरू हुई नाहर नृत्‍य की परम्‍परा आज भी बदस्‍तुर जारी है, लेकिन इस बार कोरोना के साए के चलते नाहर नत्य का आयोजन नहीं हो रहा है जिससे क्षेत्रवासियों में मायूसी है.

पढ़ें: चित्तौड़गढ़ पर चढ़ा रंग तेरस का रंग, कोरोना का दिखा असर

भीलवाड़ा जिले के माण्‍डल कस्‍बे में रंग तेरस के दिन होने वाला नाहर नृत्‍य समारोह दिवाली से कम महत्‍व नहीं रखता है. मांडल से देश के विभिन्‍न हिस्‍सों में गये लोग आज के दिन माण्‍डल आना नहीं भुलते हैं. मुगल बादशाह शाहजंहा के 1614 में मांडल पडाव के दौरान उनके मनोरंजन के लिए नर्तकों के शरीर पर रुई लपेटकर शेर के रूप में शुरू हुई यह नाहर नृत्‍य की परम्‍परा आज भी जारी है. इस नृत्‍य की यह विशेषता है कि यह साल में एक बार राम और राज के सामने ही होता है.

माण्‍डल में यह नृत्‍य भगवान चारभुजा नाथ मन्दिर के प्रांगण और कचरी मैदान पर होता है. पिछली तीन पीढ़ियों से नाहर नृत्‍य करने वाले कलाकारों को इस दिन का इंतजार रहता है. जहां इस त्यौहार के दिन मांडल कस्बे के प्रत्येक घरों में मिठाइयां बनाई जाती हैं और परिवार जन के साथ ही रिश्तेदार भी शामिल होते हैं लेकिन इस बार कोरोना जैसी महामारी के चलते नाहर नृत्य का सार्वजनिक तौर पर आयोजन नहीं होगा.

वहीं मांडल विधानसभा क्षेत्र से पूर्व मंत्री कालूलाल गुर्जर ने कहा कि हमारे विधानसभा क्षेत्र में राम व राज के सामने नृत्य करने की काफी पुरानी परंपरा है लेकिन कोरोना जिस तरह से फैल रहा है उसे देखते हुए इस बार नृत्य का आयोजन नहीं होगा. सिर्फ नाहर बनकर शरीर पर रुई लपेटकर घर-घर जाएंगे जबकि सामूहिक आयोजन नहीं होगा.
इस अनूठे नृत्‍य को कलाकारों ने माण्‍डल कस्‍बे की सीमाएं लांघकर देश के कई रंगमंचों तक पहुंचाया है. मगर आज भी माण्‍डल के नाहर नृत्‍य के कलाकार अपने इस हुनर को जिन्‍दा रखने की जद्दोजहद में जुटे हुए हैं.

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