भरतपुर. विश्व विरासत केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को पक्षियों का स्वर्ग कहा जाता है. यहां पानी से भरे जलाशय, पेड़ों पर चहचहाते हजारों की संख्या में देसी-विदेशी प्रवासी पक्षी और इस खूबसूरत नजारे के दीदार के लिए दुनियाभर से आते लाखों की संख्या में पर्यटक, यही वजह है कि दुनियाभर में घना को पक्षियों के स्वर्ग के रूप में पहचाना जाता है. घना में हर साल 350 से अधिक प्रजाति के पक्षी आते हैं, जिनमें से 200 प्रजाति के पक्षी ऐसे हैं जो अलग-अलग देशों से हजारों किलोमीटर का सफर तय कर यहां पहुंचते हैं.
तीन प्रकार का प्राकृतिक आवास : केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान 2872 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला हुआ है. उद्यान की पहचान यहां के वेटलैंड की वजह से है. यहां करीब 8 वर्ग किमी क्षेत्र वेटलैंड है, जिसमें करीब 250 प्रजाति के पक्षी देखे जाते हैं. इसके अलावा घना में वुडलैंड और ग्रासलैंड का भी बड़ा क्षेत्रफल है. तीन प्रकार के प्राकृतिक आवास की वजह से ही यहां पर बड़ी संख्या में पक्षी पहुंचते हैं.
200 प्रजाति के प्रवासी पक्षी : पर्यावरणविद भोलू अबरार खान ने बताया कि उद्यान में 350 से अधिक प्रजाति के पक्षी प्रवास पर आते हैं. इनमें से करीब 120 प्रजाति के विदेशी पक्षी यहां प्रवास करते हैं. साथ ही करीब 80 से अधिक प्रजाति और विदेशी पक्षी कम समय के लिए या पासिंग प्रवास के लिए यहां रुकते हैं. ऐसे में करीब 200 से अधिक प्रजाति के विदेशी पक्षी घना में सर्दी के मौसम में प्रवास करते हैं.
इसलिए आते हैं विदेशी पक्षी : उन्होंने बताया कि साइबेरिया, मंगोलिया, सेंट्रल एशिया से ज्यादा संख्या में पक्षी यहां पहुंचते हैं. बर्फीले देशों में सर्दी के मौसम में जब बर्फ पड़ती है तो पक्षियों के लिए भोजन उपलब्ध नहीं हो पाता, इसलिए ये पक्षी भोजन और प्रजनन के लिए उड़कर यहां पहुंचते हैं. अक्टूबर में ये पक्षी यहां आना शुरू कर देते हैं और प्रजनन काल पूरा कर फरवरी अंत से मार्च तक बच्चों के साथ उड़ान भर जाते हैं. घना में बार हेडेड गीज, पिंटेल, पोचार्ड, मेलार्ड, हाइड्रोला, कॉमन क्रेन, पेलिकन, फ्लेमिंगो, कूट, ग्रेल लेग गूज, यूटिकेरिया समेत करीब 200 प्रजाति के विदेशी पक्षी पहुंचते हैं. ये करीब 5 से 6 माह का प्रवास कर वापस अपने देश लौट जाते हैं.
कई प्रजाति के जीव पाए जाते हैं : बता दें कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में 350 से अधिक प्रजाति के प्रवासी पक्षियों के अलावा अन्य जीव भी पाए जाते हैं. यहां की जैव विविधता पूरे राजस्थान ही नहीं बल्कि देशभर में अनूठा स्थान रखती है. उद्यान में 57 प्रजाति की मछलियां, 34 प्रजाति के स्तनधारी जीव, करीब 9 प्रजाति के कछुए, 80 प्रजाति की तितलियां और 14 प्रजाति के मेंढक मिलते हैं.