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400 साल से लोगों की प्यास बुझा रहे अजान बांध में आज उड़ती है रेत, बूंद- बूंद पानी को तरस रहे लोग

भरतपुर में 15 साल पहले करीब 400 वर्षों से प्यास बुझाने वाले बांध खुद प्यासा है. बांध की यह स्थिति आसपास के क्षेत्रों में पेयजल संकट की तस्वीर है.

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Published : Jun 9, 2019, 8:19 PM IST

राजस्थान में 400 साल से हलक करने वाले बांध में उड़ती है रेत

भरतपुर. भीषण गर्मी के बीच पेयजल संकट से गुजर रहे प्रदेशवासियों का का हाल बेहाल है. भरतपुर में करीब 400 वर्षों से जीवदायी बने अजान बांध पर उड़ती धूल हकीकत बयां करती है. करीब 15 वर्ष पहले पानी से लबालब रहने वाले इस बांध पर महज रेत ही दिखती है.

राजस्थान में 400 साल से हलक करने वाले बांध में उड़ती है रेत

राजस्थान में इस समय पानी को लेकर त्राहि- त्राहि मच गई है. ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों कि दिनचर्या पानी की व्यवस्था करने में ही बीत जाती है. लोग पानी के लिए कई किलोमीटर का सफर करते हैं. आमतौर पर ऐसे संकट का कारण लोग प्रकृति को ही मानते हैं, लेकिन प्रदेश सरकार की अनदेखी के चलते आज लोगों को भीषण जल संकट का सामना करना पड़ है. अजान बांध के पानी निर्भर रहने वाले लोग आज बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं.

करीब 15 वर्ष पहले ये अजान बांध में पानी से लबालब रहा करता था. इस बांध से सैकड़ों गांव के किसानों को सिचाई और पीने के लिए पानी दिया जाता था, लेकिन जब से करौली में पांच मौसमी नदियों को जोड़कर पांचना बांध का निर्माण किया गया. उसमें पानी रोकना शुरू हुआ है तब से अजान बांध को पानी की एक बूंद तक नहीं मिली है. अगर ज्यादा बरसात के समय में पांचना बांध से पानी छोड़ भी दिया जाता है तो बीच में गांव वाले एनीकट बनाकर पानी को रोक लेते हैं जिससे पानी अजान बांध तक नहीं पहुंच पाता है.

अधिक बारिश होने पर जब पांचना बांध में पानी खतरे के निशान से ऊपर चला जाता है. ऐसे में बांध का पानी छोड़ा जाता है. यह पानी अजान बांध तक आता है, लेकिन यह पानी ग्रामीणों को नहीं मिलता. जबकि पांचना बांध के इस पानी को राष्ट्रीय पक्षी उधान केवलादेव को उपलब्ध करा दिया जाता है. वहीं ग्रामीणों को सिंचाई और पीने की पानी की व्यवस्था नहीं हो पाती है. यह बांध करीब 15 वर्ष से यह बांध सूखा पड़ा है. जहां सिर्फ धूल उड़ती दिखाई देती है पानी का कोई नामोनिशान नहीं है.

बता दें कि वर्ष 2008 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत केवलादेव नेशनल पार्क को पानी की कमी के चलते की डेंजर जोन की सूची में डाल दिया था. जिसके बाद सरकार ने करौली के पांचना बांध का पानी कुछ मात्रा में अजान बांध के लिए छोड़ने का फैसला किया. भरतपुर की स्थापना 1733 में महाराजा सूरजमल ने की थी. उस समय यहां का अपवाह तंत्र अद्वतीय था. जिसकी नकल कई देशों ने की थी. यहां का अपवाह तंत्र इस तरह से बनाया गया था की यदि ज्यादा बरसात और बाढ़ के हालात हो जाए तो उसका पानी सीधे यमुना नदी में निकाल दिया जाता था.

अकाल और सूखा की स्थिति से निपटने के लिए यहां सैकड़ों की संख्या में छोटे बड़े बांध बनाये गए थे. जहां बरसात का जल इकठ्ठा होता था. ये जल अकाल के समय लोगों के पीने और सिंचाई के काम आता था, लेकिन वर्तमान समय में यह प्रवाह तंत्र पूर्ण रूप से खत्म हो चुका है. देखरेख के अभाव में बांधों की स्थिति बदतर है.

दूसरा भरतपुर में लंबे समय से अच्छी बरसात ना होने से यहां पानी की समस्या रहती है. यहां जल स्तर करीब 400 फीट तक नीचे जा पहुंचा है. पानी खारा होने के कारण सिंचाई और पीने योग्य नहीं है. किसान लम्बे समय से गुड़गांव-कैनाल से यमुना जल की मांग करते रहे हैं, लेकिन उनकी वह मांग भी आज तक पूरी नहीं हो सकी है.

भरतपुर. भीषण गर्मी के बीच पेयजल संकट से गुजर रहे प्रदेशवासियों का का हाल बेहाल है. भरतपुर में करीब 400 वर्षों से जीवदायी बने अजान बांध पर उड़ती धूल हकीकत बयां करती है. करीब 15 वर्ष पहले पानी से लबालब रहने वाले इस बांध पर महज रेत ही दिखती है.

राजस्थान में 400 साल से हलक करने वाले बांध में उड़ती है रेत

राजस्थान में इस समय पानी को लेकर त्राहि- त्राहि मच गई है. ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों कि दिनचर्या पानी की व्यवस्था करने में ही बीत जाती है. लोग पानी के लिए कई किलोमीटर का सफर करते हैं. आमतौर पर ऐसे संकट का कारण लोग प्रकृति को ही मानते हैं, लेकिन प्रदेश सरकार की अनदेखी के चलते आज लोगों को भीषण जल संकट का सामना करना पड़ है. अजान बांध के पानी निर्भर रहने वाले लोग आज बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं.

करीब 15 वर्ष पहले ये अजान बांध में पानी से लबालब रहा करता था. इस बांध से सैकड़ों गांव के किसानों को सिचाई और पीने के लिए पानी दिया जाता था, लेकिन जब से करौली में पांच मौसमी नदियों को जोड़कर पांचना बांध का निर्माण किया गया. उसमें पानी रोकना शुरू हुआ है तब से अजान बांध को पानी की एक बूंद तक नहीं मिली है. अगर ज्यादा बरसात के समय में पांचना बांध से पानी छोड़ भी दिया जाता है तो बीच में गांव वाले एनीकट बनाकर पानी को रोक लेते हैं जिससे पानी अजान बांध तक नहीं पहुंच पाता है.

अधिक बारिश होने पर जब पांचना बांध में पानी खतरे के निशान से ऊपर चला जाता है. ऐसे में बांध का पानी छोड़ा जाता है. यह पानी अजान बांध तक आता है, लेकिन यह पानी ग्रामीणों को नहीं मिलता. जबकि पांचना बांध के इस पानी को राष्ट्रीय पक्षी उधान केवलादेव को उपलब्ध करा दिया जाता है. वहीं ग्रामीणों को सिंचाई और पीने की पानी की व्यवस्था नहीं हो पाती है. यह बांध करीब 15 वर्ष से यह बांध सूखा पड़ा है. जहां सिर्फ धूल उड़ती दिखाई देती है पानी का कोई नामोनिशान नहीं है.

बता दें कि वर्ष 2008 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत केवलादेव नेशनल पार्क को पानी की कमी के चलते की डेंजर जोन की सूची में डाल दिया था. जिसके बाद सरकार ने करौली के पांचना बांध का पानी कुछ मात्रा में अजान बांध के लिए छोड़ने का फैसला किया. भरतपुर की स्थापना 1733 में महाराजा सूरजमल ने की थी. उस समय यहां का अपवाह तंत्र अद्वतीय था. जिसकी नकल कई देशों ने की थी. यहां का अपवाह तंत्र इस तरह से बनाया गया था की यदि ज्यादा बरसात और बाढ़ के हालात हो जाए तो उसका पानी सीधे यमुना नदी में निकाल दिया जाता था.

अकाल और सूखा की स्थिति से निपटने के लिए यहां सैकड़ों की संख्या में छोटे बड़े बांध बनाये गए थे. जहां बरसात का जल इकठ्ठा होता था. ये जल अकाल के समय लोगों के पीने और सिंचाई के काम आता था, लेकिन वर्तमान समय में यह प्रवाह तंत्र पूर्ण रूप से खत्म हो चुका है. देखरेख के अभाव में बांधों की स्थिति बदतर है.

दूसरा भरतपुर में लंबे समय से अच्छी बरसात ना होने से यहां पानी की समस्या रहती है. यहां जल स्तर करीब 400 फीट तक नीचे जा पहुंचा है. पानी खारा होने के कारण सिंचाई और पीने योग्य नहीं है. किसान लम्बे समय से गुड़गांव-कैनाल से यमुना जल की मांग करते रहे हैं, लेकिन उनकी वह मांग भी आज तक पूरी नहीं हो सकी है.

Intro:भरतपुर 

एंकर - राजस्थान के भरतपुर जिले के लिए अजान बाँध करीब 400 वर्षों से पानी आपूर्ति के लिए जीवनदायिनी सवित रहा वह आज पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहा है जहाँ करीब 15 वर्ष पहले ये अजान बांध में पानी से लबालब रहा करता था और इसी बांध से सेकड़ो गांव में सिचाई व् पीने के लिए पानी दिया जाता था लेकिन जब से करौली में पांच मौसमी नदियों को जोड़कर पांचना बांध का निर्माण किया गया और उसमे पानी रोकना शुरू हुआ है तब से अजान बांध को पानी की एक बूंद तक नहीं मिली है अगर ज्यादा वरसात के समय में पांचना बांध से पानी छोड़ भी दिया जाता है तो बीच में गांव वाले एनीकट बनाकर पानी को रोक लेते है जिससे पानी अजान बांध तक नहीं पहुंच पाता है | 
जब जब ज्यादा वरसात होती है और पांचना बाँध में पानी खतरे के निशान से ज्यादा भर जाता है तो उस स्थिति में पांचना बाँध का पानी छोड़ा जाता है वह भी थोड़ी मात्रा में लेकिन थोड़ा बहुत पानी अजान बाँध तक आ पता है जिसे ग्रामीणों को नहीं देकर सिर्फ राष्ट्रीय पक्षी उधान केवलादेव के लिए आपूर्ति कर दिया जाता है और ग्रामीणों को सिंचाई व् पीने की पानी की व्यवस्था नहीं हो पाती है लिहाजा आज करीब 15 वर्ष से यह बाँध सूखा पड़ा है जहाँ सिर्फ धुल उड़ती दिखाई देती है और पानी नहीं होने से किसानों की कृषि नहीं हो पाती है | 
वर्ष 2008 में जब से यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत केवलादेव नेशनल पार्क को पानी की कमी के चलते डेंजर जोन की सूची में डाल दिया था तब से केंद्र व् राज्य सरकारों की चिंता भी बढ़ गयी थी और सरकारों ने वरसात के समय जब करौली का पांचना बाँध पानी से भर जाता है तब उससे कुछ मात्रा में पानी छोड़ने का फैसला लिया और तब से सिर्फ थोड़ी मात्रा में ही पानी कभी कभी अजान बाँध के लिए छोड़ा जाता है जो सिर्फ राष्ट्रीय पक्षी उधान के लिए अजान बाँध से आपूर्ति कर दिया जाता है और ग्रामीणों को फिर भी प्यासा रहना ही पड़ता है | 
भरतपुर की स्थापना 1733 में महाराजा सूरजमल ने की थी उस समय यहाँ का अपवाह तंत्र अद्वतीय था जिसकी नक़ल कई देशों ने की थी क्योंकि यहाँ का अपवाह तंत्र इस तरह से बनाया गया था की यदि ज्यादा वरसात और बाढ़ के हालात हो जाए तो उसका पानी सीधे यमुना नदी में निकाल दिया जाता था और अकाल व् सूखा की स्थिति से निपटने के लिए यहाँ सैकड़ों की संख्या में छोटे बड़े बाँध बनाये गए जहाँ वरसात का जल इकठ्ठा होता था जो अकाल के समय लोगों को पीने व् सिंचाई के काम आता था लेकिन वर्तमान समय में यह अपवाह तंत्र पूर्ण रूप से ख़त्म हो चूका है व् बाँध देखरेख के अभाव में ख़त्म हो चुके है जिससे आज यहाँ वरसात का पानी जमा नहीं हो पता जो सीधे ही बहकर यमुना नदी में समाहित हो जाता है | 
आज भी यदि अच्छी वरसात होती है तो वरसात का सारा पानी बहकर यमुना नदी में जा समाहित होता है |  जिले में काफी समय से अच्छी वरसात नहीं होने व् अन्य स्रोत्रो से पानी की आवक नहीं होने के कारण यहाँ हमेशा ही अकाल की स्थिति बनी रहती है और जल स्तर करीब 400 फुट तक जा पहुंचा है जहाँ वह भी खारा होने के कारण सिंचाई व् पीने योग्य नहीं है | यहाँ के किसान लम्बे समय से हरियाणा के गुणगाँव कैनाल से यमुना जल की मांग करते रहे है लेकिन उनकी वह मांग भी आज तक पूरी नहीं हो सकी |
बाइट - विनोद,किसान 
बाइट - जयपाल,किसान
बाइट - अजय सिंह,किसान 
बाइट - रतन सिंह,किसान
बाइट - भूपेंद्र सिंह,किसान


Body:जो ऐतिहासिक बाँध पानी आपूर्ति के लिए कभी लोगों के लिए जीवनदायिनी था आज वहां सिर्फ धूल उड़ती है


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