भरतपुर. देवों के देव महादेव ने द्वापर युग में भरतपुर के पास स्थित इस कस्बे में साक्षात प्रकट होकर अपने एक असुर भक्त पर कृपा बरसाई थी. महादेव ने इस असुर को हजार भुजा और अजेय होने का वरदान दिया था. महादेव से वरदान प्राप्त करने के बाद असुर ने भगवान कृष्ण से युद्ध किया. युद्ध में भगवान कृष्ण ने असुर की सभी भुजाएं काट दीं, तभी महादेव प्रकट हो गए और अपने असुर भक्त की रक्षा की.
ये कहानी भरतपुर से 45 किमी दूर स्थित बयाना (तत्कालीन बाणासुर) के असुर राजा बाणासुर की है. बाणासुर के किले में आज भी द्वापरयुगीन शिव मंदिर मौजूद है जहां राक्षसराज ने भगवान शिव की आराधना की थी. यह शिव मंदिर सैकड़ों वर्षों से स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. इस मंदिर को पहाड़ेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है.
असुर को दिया वरदान
इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि किवदंती है कि द्वापरयुग में राक्षस बाणासुर भगवान शिव का अनन्य भक्त था. उसने अपने किले में भगवान शिव का मंदिर बनवाया और लंबे समय तक कठोर तपस्या की. बाणासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे हजार भुजाएं और अजेय होने का वरदान दिया.
बाणासुर की बेटी ने किया था श्रीकृष्ण के बेटे का अपहरण
बाणासुर की एक बेटी थी जिसका नाम उषा था. उषा की सहेली चित्रांगदा मायावी थी. उषा भगवान कृष्ण के पुत्र अनिरुद्ध पर मोहित थी. चित्रांगदा अपनी मायावी शक्ति से अनिरुद्ध का अपहरण कर बयाना ले आई. काफी समय तक उषा और अनिरुद्ध साथ रहे. इस घटना से भगवान कृष्ण नाराज थे.
भगवान शिव ने की असुर की रक्षा
जब भगवान कृष्ण को अपने बेटे अनिरुद्ध के अपहरण की जानकारी मिली तो उन्होंने अपनी चतुरंगिनी सेना के साथ बयाना पर हमला बोल दिया. भगवान कृष्ण और बाणासुर के बीच भयंकर युद्ध हुआ. भगवान कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से बाणासुर की सभी भुजाएं काट दी. उसके बाद जैसे ही भगवान कृष्ण ने बाणासुर के संहार के लिए अपना सुदर्शन चक्र उठाया, तभी भगवान शिव वहां प्रकट हो गए. भगवान शिव ने भगवान कृष्ण को अपने वरदान के बारे में बताया और भक्त बाणासुर को जीवनदान दिलाया. इस तरह महादेव ने भगवान श्री कृष्ण से अपने भक्त बाणासुर की रक्षा की. बाद में भगवान श्री कृष्ण के बेटे अनिरुद्ध और बाणासुर की बेटी उषा का विवाह हो गया.
आज भी है आस्था का केंद्र
इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि बयाना कई शासकों के अधीन रहा. मुस्लिम, राजपूत, गुर्जर, जाट आदि शासकों ने यहां राज किया. कालांतर में इस किले का नाम विजयगढ़ पड़ गया. ऐतिहासिक शिव मंदिर आज भी विजयगढ़ में मौजूद है. इस शिव मंदिर की बड़ी मान्यता है और शृद्धालु ऊंची पहाड़ी की चढ़ाई कर इस शिव मंदिर में पूजा करने पहुंचते हैं.
51 किलो का विजय घंट
शिव मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को पहाड़ की दुर्गम चढ़ाई पूरी करनी होती है. शिव मंदिर से पहले किले के प्रवेश द्वार के पास 51 किलो वजनी एक विजय घंट लगा हुआ है. श्रद्धालु जब मंदिर जाते वक्त इसे बजाते हैं तो कई किलोमीटर दूर तक इसकी आवाज सुनाई देती है. यह विजय घंट भी रियासतकाल से यहां लगा हुआ है.