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Pahadeshwar Mahadev Temple: असुर भक्त की रक्षा के लिए यहां साक्षात प्रकट हुए थे महादेव, इस मंदिर की है खास मान्यता

भरतपुर के इस मंदिर में भगवान महादेव अपने असुर भक्त बाणासुर की रक्षा के लिए स्वयं प्रकट हुए थे. पहाड़ियों पर स्थित इस पहाड़ेश्वर महादेव मंदिर (Glory of Pahadeshwar Mahadev Temple) में पूरी श्रद्धा के साथ श्रद्धालु दर्शन के लिए जाते हैं.

Pahadeshwar Mahadev Temple Bharatpur
पहाड़ेश्वर महादेव मंदिर की महिमा
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Published : Feb 13, 2023, 10:28 AM IST

पहाड़ेश्वर महादेव मंदिर की महिमा

भरतपुर. देवों के देव महादेव ने द्वापर युग में भरतपुर के पास स्थित इस कस्बे में साक्षात प्रकट होकर अपने एक असुर भक्त पर कृपा बरसाई थी. महादेव ने इस असुर को हजार भुजा और अजेय होने का वरदान दिया था. महादेव से वरदान प्राप्त करने के बाद असुर ने भगवान कृष्ण से युद्ध किया. युद्ध में भगवान कृष्ण ने असुर की सभी भुजाएं काट दीं, तभी महादेव प्रकट हो गए और अपने असुर भक्त की रक्षा की.

ये कहानी भरतपुर से 45 किमी दूर स्थित बयाना (तत्कालीन बाणासुर) के असुर राजा बाणासुर की है. बाणासुर के किले में आज भी द्वापरयुगीन शिव मंदिर मौजूद है जहां राक्षसराज ने भगवान शिव की आराधना की थी. यह शिव मंदिर सैकड़ों वर्षों से स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. इस मंदिर को पहाड़ेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है.

Pahadeshwar Mahadev Temple Bharatpur
पहाड़ेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन करता श्रद्धालु

असुर को दिया वरदान
इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि किवदंती है कि द्वापरयुग में राक्षस बाणासुर भगवान शिव का अनन्य भक्त था. उसने अपने किले में भगवान शिव का मंदिर बनवाया और लंबे समय तक कठोर तपस्या की. बाणासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे हजार भुजाएं और अजेय होने का वरदान दिया.

पढ़ें. Lord Shiva Unique Temple: शिव का ऐसा अनूठा शिवलिंग जहां बकरे की आती है गंध, जगतपिता ब्रह्मा ने किया था स्थापित

बाणासुर की बेटी ने किया था श्रीकृष्ण के बेटे का अपहरण
बाणासुर की एक बेटी थी जिसका नाम उषा था. उषा की सहेली चित्रांगदा मायावी थी. उषा भगवान कृष्ण के पुत्र अनिरुद्ध पर मोहित थी. चित्रांगदा अपनी मायावी शक्ति से अनिरुद्ध का अपहरण कर बयाना ले आई. काफी समय तक उषा और अनिरुद्ध साथ रहे. इस घटना से भगवान कृष्ण नाराज थे.

Pahadeshwar Mahadev Temple Bharatpur
पहाड़ेश्वर महादेव मंदिर में लगा विजय घंटा

भगवान शिव ने की असुर की रक्षा
जब भगवान कृष्ण को अपने बेटे अनिरुद्ध के अपहरण की जानकारी मिली तो उन्होंने अपनी चतुरंगिनी सेना के साथ बयाना पर हमला बोल दिया. भगवान कृष्ण और बाणासुर के बीच भयंकर युद्ध हुआ. भगवान कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से बाणासुर की सभी भुजाएं काट दी. उसके बाद जैसे ही भगवान कृष्ण ने बाणासुर के संहार के लिए अपना सुदर्शन चक्र उठाया, तभी भगवान शिव वहां प्रकट हो गए. भगवान शिव ने भगवान कृष्ण को अपने वरदान के बारे में बताया और भक्त बाणासुर को जीवनदान दिलाया. इस तरह महादेव ने भगवान श्री कृष्ण से अपने भक्त बाणासुर की रक्षा की. बाद में भगवान श्री कृष्ण के बेटे अनिरुद्ध और बाणासुर की बेटी उषा का विवाह हो गया.

पढ़ें. Rojgareshwar Mahadev Temple : राजधानी का एक ऐसा शिवालय जिससे डरते हैं सत्ताधारी, बेरोजगारों की होती है मुराद पूरी

आज भी है आस्था का केंद्र
इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि बयाना कई शासकों के अधीन रहा. मुस्लिम, राजपूत, गुर्जर, जाट आदि शासकों ने यहां राज किया. कालांतर में इस किले का नाम विजयगढ़ पड़ गया. ऐतिहासिक शिव मंदिर आज भी विजयगढ़ में मौजूद है. इस शिव मंदिर की बड़ी मान्यता है और शृद्धालु ऊंची पहाड़ी की चढ़ाई कर इस शिव मंदिर में पूजा करने पहुंचते हैं.

51 किलो का विजय घंट
शिव मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को पहाड़ की दुर्गम चढ़ाई पूरी करनी होती है. शिव मंदिर से पहले किले के प्रवेश द्वार के पास 51 किलो वजनी एक विजय घंट लगा हुआ है. श्रद्धालु जब मंदिर जाते वक्त इसे बजाते हैं तो कई किलोमीटर दूर तक इसकी आवाज सुनाई देती है. यह विजय घंट भी रियासतकाल से यहां लगा हुआ है.

पहाड़ेश्वर महादेव मंदिर की महिमा

भरतपुर. देवों के देव महादेव ने द्वापर युग में भरतपुर के पास स्थित इस कस्बे में साक्षात प्रकट होकर अपने एक असुर भक्त पर कृपा बरसाई थी. महादेव ने इस असुर को हजार भुजा और अजेय होने का वरदान दिया था. महादेव से वरदान प्राप्त करने के बाद असुर ने भगवान कृष्ण से युद्ध किया. युद्ध में भगवान कृष्ण ने असुर की सभी भुजाएं काट दीं, तभी महादेव प्रकट हो गए और अपने असुर भक्त की रक्षा की.

ये कहानी भरतपुर से 45 किमी दूर स्थित बयाना (तत्कालीन बाणासुर) के असुर राजा बाणासुर की है. बाणासुर के किले में आज भी द्वापरयुगीन शिव मंदिर मौजूद है जहां राक्षसराज ने भगवान शिव की आराधना की थी. यह शिव मंदिर सैकड़ों वर्षों से स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. इस मंदिर को पहाड़ेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है.

Pahadeshwar Mahadev Temple Bharatpur
पहाड़ेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन करता श्रद्धालु

असुर को दिया वरदान
इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि किवदंती है कि द्वापरयुग में राक्षस बाणासुर भगवान शिव का अनन्य भक्त था. उसने अपने किले में भगवान शिव का मंदिर बनवाया और लंबे समय तक कठोर तपस्या की. बाणासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे हजार भुजाएं और अजेय होने का वरदान दिया.

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बाणासुर की बेटी ने किया था श्रीकृष्ण के बेटे का अपहरण
बाणासुर की एक बेटी थी जिसका नाम उषा था. उषा की सहेली चित्रांगदा मायावी थी. उषा भगवान कृष्ण के पुत्र अनिरुद्ध पर मोहित थी. चित्रांगदा अपनी मायावी शक्ति से अनिरुद्ध का अपहरण कर बयाना ले आई. काफी समय तक उषा और अनिरुद्ध साथ रहे. इस घटना से भगवान कृष्ण नाराज थे.

Pahadeshwar Mahadev Temple Bharatpur
पहाड़ेश्वर महादेव मंदिर में लगा विजय घंटा

भगवान शिव ने की असुर की रक्षा
जब भगवान कृष्ण को अपने बेटे अनिरुद्ध के अपहरण की जानकारी मिली तो उन्होंने अपनी चतुरंगिनी सेना के साथ बयाना पर हमला बोल दिया. भगवान कृष्ण और बाणासुर के बीच भयंकर युद्ध हुआ. भगवान कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से बाणासुर की सभी भुजाएं काट दी. उसके बाद जैसे ही भगवान कृष्ण ने बाणासुर के संहार के लिए अपना सुदर्शन चक्र उठाया, तभी भगवान शिव वहां प्रकट हो गए. भगवान शिव ने भगवान कृष्ण को अपने वरदान के बारे में बताया और भक्त बाणासुर को जीवनदान दिलाया. इस तरह महादेव ने भगवान श्री कृष्ण से अपने भक्त बाणासुर की रक्षा की. बाद में भगवान श्री कृष्ण के बेटे अनिरुद्ध और बाणासुर की बेटी उषा का विवाह हो गया.

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आज भी है आस्था का केंद्र
इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि बयाना कई शासकों के अधीन रहा. मुस्लिम, राजपूत, गुर्जर, जाट आदि शासकों ने यहां राज किया. कालांतर में इस किले का नाम विजयगढ़ पड़ गया. ऐतिहासिक शिव मंदिर आज भी विजयगढ़ में मौजूद है. इस शिव मंदिर की बड़ी मान्यता है और शृद्धालु ऊंची पहाड़ी की चढ़ाई कर इस शिव मंदिर में पूजा करने पहुंचते हैं.

51 किलो का विजय घंट
शिव मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को पहाड़ की दुर्गम चढ़ाई पूरी करनी होती है. शिव मंदिर से पहले किले के प्रवेश द्वार के पास 51 किलो वजनी एक विजय घंट लगा हुआ है. श्रद्धालु जब मंदिर जाते वक्त इसे बजाते हैं तो कई किलोमीटर दूर तक इसकी आवाज सुनाई देती है. यह विजय घंट भी रियासतकाल से यहां लगा हुआ है.

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