भरतपुर. पक्षियों के स्वर्ग में 'मांगुर' का खतरा मंडरा रहा है. जी हां, हम बात कर रहे हैं राजस्थान के भरतपुर में स्थित केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की, जहां जलाशयों में पैर पसार चुकी यह मछली न केवल छोटे पक्षियों को अपना शिकार बना लेती है, बल्कि पक्षियों के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाली छोटी मछलियों को भी खा जाती है. कई वर्षों से यह मांगुर मछली उद्यान प्रबंधन के लिए सिरदर्द बनी हुई है. इससे छुटकारा पाने के लिए उद्यान प्रशासन हर वर्ष जलाशयों से मांगुर मछली को बाहर निकलवाता है, लेकिन अभी तक इससे पूरी तरह से निजात नहीं मिल पाई है.
ये है मांगुर मछली : डीएफओ नाहर सिंह ने बताया कि अफ्रीकन कैट फिश को मांगुर मछली के नाम से जाना जाता है. सबसे पहले वर्ष 2005 में उद्यान के जलाशयों में मांगुर मछली की मौजूदगी की जानकारी मिली. यह मछली मांसाहारी मछली होती है जो छोटे पक्षी और छोटी मछलियों को खा जाती है. इसकी लंबाई करीब 4 फीट तक और वजन 10 किलो तक हो जाता है. मादा मांगुर हजारों की संख्या में अंडे देती है, जिसकी वजह से इसकी संख्या बहुत तेजी से फैलती है.
11 साल में 78 हजार से अधिक मछली निकाली : डीएफओ नाहर सिंह ने बताया कि चूंकि यह मछली पक्षियों और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा है, इसलिए इसके खिलाफ वर्ष 2009 से अभियान चला रखा है. हर वर्ष मानसून से पहले यहां की 8 झीलों में जाल डलवाकर इस खतरनाक मछली को बाहर निकाला जाता है. वर्ष 2009 से वर्ष 2022 तक उद्यान से 78,403 मांगुर मछलियों को बाहर निकाला जा चुका है.
असल में वर्ष 1997 में केंद्रीय कृषि विभाग ने सभी राज्य सरकारों को पत्र लिखकर इस प्रजाति की मछली के मौजूदा स्टॉक को नष्ट करने की बात कही थी. वर्ष 2000 में कृषि मंत्रालय ने इस प्रजाति के प्रजनन पर प्रतिबंध लगा दिया था. ऐसे में केवलादेव उद्यान में अफ्रीकन कैट फिश (मांगुर) के खिलाफ 12 साल से अभियान चला रखा है.
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गौरतलब है कि उद्यान में सर्दियों के मौसम में देश विदेश से करीब 350 से अधिक प्रजाति के पक्षी प्रवास और प्रजनन करते हैं. इतना ही नहीं, उद्यान अपनी जैव विविधता के लिए भी दुनियाभर में जाना जाता है. ऐसे यहां मांगुर मछली एक बड़ी मुसीबत बनी हुई है, जो कि यहां के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी खतरनाक है.