भरतपुर. प्रदेश में लगातार टाइगर रिजर्व के साथ ही बाघों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है. बाघों का कुनबा बढ़ाने में सवाई माधोपुर का रणथम्भौर टाइगर रिजर्व महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है. रणथम्भौर टाइगर रिजर्व बाघों की नर्सरी साबित हो रहा है. बीते वर्षों में रणथम्भौर के टाइगर ने अलवर के सरिस्का, कोटा के मुकुंदरा और बूंदी के रामगढ़ विषधारी रिजर्व को भी आबाद किया है. इस तरह से प्रदेश के सभी टाइगर रिजर्व में इन दिनों रणथम्भौर के बाघों का कुनबा फलफूल रहा है.
बाघों की नर्सरी बना रणथम्भौर : सेवानिवृत्त डीएफओ सुनयन शर्मा ने बताया कि रणथम्भौर टाइगर रिजर्व में बीते वर्षों में बाघों की संख्या में आशातीत वृद्धि हुई है. यही वजह है कि सिर्फ 56 बाघों के लायक रणथम्भौर टाइगर रिजर्व में इन दिनों करीब 70 से अधिक बाघ विचरण कर रहे हैं. गत वर्ष तो यहां बाघों की संख्या सर्वाधिक 79 तक पहुंच गई थी. इतना ही नहीं वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार रणथम्भौर में वर्ष 2019 से 2021 के दौरान कुल 44 शावकों का जन्म हुआ, जो काफी बड़ा आंकड़ा है.
पुनर्जीवित किया सरिस्का : उन्होंने बताया कि वर्ष 2004 में शिकार की वजह से सरिस्का के सभी बाघ खत्म हो गए. सरिस्का पूरी तरह से बाघ विहीन हो गया था. तब वर्ष 2008 में पहली बार रणथम्भौर टाइगर रिजर्व से ही बाघ को शिफ्ट किया गया. विभागीय आंकड़ों की मानें तो 2008 से अब तक 15 साल में रणथम्भौर ने सरिस्का को 11 बाघ दिए हैं, जिनकी बदौलत सरिस्का पुनर्जीवित हो उठा है. जल्द ही सरिस्का में भी एक और टाइगर शिफ्ट किया जाएगा.
मुकुंदरा व रामगढ़ आबाद : इसी तरह कोटा के मुकुंदरा हिल टाइगर रिजर्व के वर्ष 2013 में टाइगर रिजर्व घोषित होने के बाद वर्ष 2018 में रणथम्भौर से ही टाइगर की शिफ्टिंग की गई. अब तक मुकुंदरा को रणथम्भौर से कुल 6 बाघ-बाघिन उपलब्ध कराए जा चुके हैं, जिनमें से एक बाघिन हाल ही में 9 अगस्त को शिफ्ट की गई, जबकि रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में गत वर्ष 2022 में रिजर्व घोषित होने के कुछ माह बाद ही रणथम्भौर से बाघ शिफ्ट किए गए. हाल ही में 6 अगस्त को भी रणथम्भौर से एक बाघिन रामगढ़ शिफ्ट की गई है. करीब एक साल में ही रणथम्भौर से रामगढ़ में 3 बाघ बाघिन शिफ्ट किए जा चुके हैं.
धौलपुर के जंगलों में दहाड़ : सुनयन शर्मा ने बताया कि रणथम्भौर में बाघों की संख्या तेजी बढ़ने की वजह से यहां के बाघ आसपास के जिलों के जंगलों तक पहुंच रहे हैं. रामगढ़ विषधारी के जंगलों में भी शुरुआत में रणथम्भौर के बाघ ही विचरण करते हुए पहुंचे थे. इसी तरह इन दिनों धौलपुर के जंगलों में भी रणथम्भौर के कई बाघ विचरण कर रहे हैं. वहां अनुकूल परिस्थितियों के चलते एक बाघिन ने तो दो बार शावकों को जन्म भी दे दिया है. यहां के बाघों को धीरे धीरे अन्य रिजर्व में शिफ्ट करना चाहिए. साथ ही नए टाइगर रिजर्व की संभावनाओं को भी तलाशना चाहिए.