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कारगिल के वीर: भरतपुर के कैप्टन लेखराज ने संभाला मोर्चा तो पोस्ट छोड़कर भाग निकले थे दुश्मन, फिर लहराया था तिरंगा

रविवार को कारगिल विजय दिवस है. जब भी कारगिल युद्ध का जिक्र होता है, वीर सपूत लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया की रेजिमेंट का नाम सबसे पहले लिया जाता है. इसी रेजिमेंट से भरतपुर के कैप्टन लेखराज सिंह भी जुड़े थे. उस दिन को याद करते हुए उन्होंने शौर्य की कहानियां ईटीवी भारत के साथ साझा कीं...

Captain Lekhraj Singh, कैप्टन लेखराज सिंह
कारगिल की कहानी कैप्टन लेखराज सिंह की जुबानी
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Published : Jul 26, 2020, 8:04 AM IST

भरतपुर. दुश्मन के साथ दिनरात युद्ध चल रहा था. दुश्मन दूर ऊंचे पहाड़ों पर था और हम नीचे उनके निशाने पर थे. फिर भी हमने हिम्मत नहीं हारी और 42 दिन तक चले संघर्ष में हमने दुश्मन को भूखा मरने को मजबूर कर दिया. आखिर में दुश्मन पोस्ट छोड़कर भाग निकले और हमने वापस अपनी सरजमीं पर तिरंगा लहरा दिया. संघर्ष की ये कहानी वीर सपूत लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया की रेजिमेंट के साथी और कारगिल के योद्धा कैप्टन लेखराज सिंह ने ईटीवी भारत के साथ साझा की.

कैप्टन लेखराज सिंह ने बताया कि उच्च अधिकारियों के पास कारगिल के अलग-अलग अनोक्यूपाइड पोस्ट पर दुश्मन के घुसपैठ की सूचना मिली. उस समय काकसर क्षेत्र में चौथी जाट रेजिमेंट, बटालिक में 3 पंजाब और द्रास में 16 ग्रेनेडियर रेजिमेंट तैनात थी.

कारगिल की कहानी कैप्टन लेखराज सिंह की जुबानी

पढ़ें- कारगिल विजय दिवसः जानिए शौर्य की कहानी तोपची प्रेमचंद की जुबानी

कैप्टन ने बताया कि कारगिल से सबसे नजदीक काकसर में उनकी जाट रेजीमेंट तैनात थी. 5 मई को कमांडिंग ऑफिसर कर्नल मधुसूदन के निर्देश पर हमारी रेजिमेंट की सबसे पहली पार्टी लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया की अगुवाई में बजरंग पोस्ट के लिए रवाना हुई, जिस पर दुश्मन ने कब्जा कर लिया था. उनके साथ 5 जवान भी थे लेकिन दुश्मन ऊंची पहाड़ियों पर था और हमें आते-जाते अच्छी तरह से देख सकता था.

Captain Lekhraj Singh, कैप्टन लेखराज सिंह
कारगिल विजय दिवस

बजरंग पोस्ट की पहाड़ी की चढ़ाई 80 डिग्री की होने के साथ बहुत ही नुकीली थी. लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया की पार्टी ने बजरंग पोस्ट की चढ़ाई शुरू की तो दुश्मन की नजर उन पर पड़ी. उन पर दुश्मन ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. बचने के लिए लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया और उनकी पार्टी को छुपना पड़ा लेकिन तभी घात लगाकर बैठे दुश्मन ने उन्हें बंदी बना लिया.

Captain Lekhraj Singh, कैप्टन लेखराज सिंह
कारगिल स्मारक

कैप्टन लेखराज सिंह ने बताया कि जब लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया से संपर्क टूट गया, तो कमांडिंग ऑफिसर ने अन्य पार्टियों को रवाना किया. जिनमें से एक पार्टी 14 मई को मेरी अगुवाई में रवाना हुई. कैप्टन सिंह ने बताया कि उनके साथ 9 जवान थे और उन्हें बजरंग टॉप पर जाकर दुश्मन की सप्लाई को रोकने के आदेश मिले थे. बजरंग टॉप तक पहुंचने के लिए दुश्मन से भारी संघर्ष करना पड़ा.

पढे़ं- कारगिल विजय दिवस: कैसे इस जाबांज ने 5 गोलियां खाकर भी दुश्मनों को किया 'पानी-पानी', सुनिए महावीर चक्र विजेता दिगेंद्र सिंह की जुबानी

23 वीर गंवा कर हासिल की बजरंग पोस्ट

कैप्टन लेखराज सिंह ने बताया कि वे अपनी पार्टी के साथ बजरंग टॉप पर पहुंच गए और दुश्मन तक पहुंचने वाली सहायता को रोक दिया. दुश्मन के साथ दिन रात संघर्ष होता था. आखिर में दुश्मन का राशन, गोला-बारूद खत्म हो गया और वह बजरंग पोस्ट से पीछे के रास्ते से भाग निकले. 14 मई से 26 जून तक चले संघर्ष के बाद बजरंग पोस्ट फिर से हमारे कब्जे में आ गई. लेकिन इस पूरे संघर्ष में हमारी रेजिमेंट के 2 सैन्य अधिकारी और 21 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए. इनमें 2 जवान कैप्टन लेखराज सिंह की पार्टी के भी शामिल थे.

भरतपुर. दुश्मन के साथ दिनरात युद्ध चल रहा था. दुश्मन दूर ऊंचे पहाड़ों पर था और हम नीचे उनके निशाने पर थे. फिर भी हमने हिम्मत नहीं हारी और 42 दिन तक चले संघर्ष में हमने दुश्मन को भूखा मरने को मजबूर कर दिया. आखिर में दुश्मन पोस्ट छोड़कर भाग निकले और हमने वापस अपनी सरजमीं पर तिरंगा लहरा दिया. संघर्ष की ये कहानी वीर सपूत लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया की रेजिमेंट के साथी और कारगिल के योद्धा कैप्टन लेखराज सिंह ने ईटीवी भारत के साथ साझा की.

कैप्टन लेखराज सिंह ने बताया कि उच्च अधिकारियों के पास कारगिल के अलग-अलग अनोक्यूपाइड पोस्ट पर दुश्मन के घुसपैठ की सूचना मिली. उस समय काकसर क्षेत्र में चौथी जाट रेजिमेंट, बटालिक में 3 पंजाब और द्रास में 16 ग्रेनेडियर रेजिमेंट तैनात थी.

कारगिल की कहानी कैप्टन लेखराज सिंह की जुबानी

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कैप्टन ने बताया कि कारगिल से सबसे नजदीक काकसर में उनकी जाट रेजीमेंट तैनात थी. 5 मई को कमांडिंग ऑफिसर कर्नल मधुसूदन के निर्देश पर हमारी रेजिमेंट की सबसे पहली पार्टी लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया की अगुवाई में बजरंग पोस्ट के लिए रवाना हुई, जिस पर दुश्मन ने कब्जा कर लिया था. उनके साथ 5 जवान भी थे लेकिन दुश्मन ऊंची पहाड़ियों पर था और हमें आते-जाते अच्छी तरह से देख सकता था.

Captain Lekhraj Singh, कैप्टन लेखराज सिंह
कारगिल विजय दिवस

बजरंग पोस्ट की पहाड़ी की चढ़ाई 80 डिग्री की होने के साथ बहुत ही नुकीली थी. लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया की पार्टी ने बजरंग पोस्ट की चढ़ाई शुरू की तो दुश्मन की नजर उन पर पड़ी. उन पर दुश्मन ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. बचने के लिए लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया और उनकी पार्टी को छुपना पड़ा लेकिन तभी घात लगाकर बैठे दुश्मन ने उन्हें बंदी बना लिया.

Captain Lekhraj Singh, कैप्टन लेखराज सिंह
कारगिल स्मारक

कैप्टन लेखराज सिंह ने बताया कि जब लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया से संपर्क टूट गया, तो कमांडिंग ऑफिसर ने अन्य पार्टियों को रवाना किया. जिनमें से एक पार्टी 14 मई को मेरी अगुवाई में रवाना हुई. कैप्टन सिंह ने बताया कि उनके साथ 9 जवान थे और उन्हें बजरंग टॉप पर जाकर दुश्मन की सप्लाई को रोकने के आदेश मिले थे. बजरंग टॉप तक पहुंचने के लिए दुश्मन से भारी संघर्ष करना पड़ा.

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23 वीर गंवा कर हासिल की बजरंग पोस्ट

कैप्टन लेखराज सिंह ने बताया कि वे अपनी पार्टी के साथ बजरंग टॉप पर पहुंच गए और दुश्मन तक पहुंचने वाली सहायता को रोक दिया. दुश्मन के साथ दिन रात संघर्ष होता था. आखिर में दुश्मन का राशन, गोला-बारूद खत्म हो गया और वह बजरंग पोस्ट से पीछे के रास्ते से भाग निकले. 14 मई से 26 जून तक चले संघर्ष के बाद बजरंग पोस्ट फिर से हमारे कब्जे में आ गई. लेकिन इस पूरे संघर्ष में हमारी रेजिमेंट के 2 सैन्य अधिकारी और 21 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए. इनमें 2 जवान कैप्टन लेखराज सिंह की पार्टी के भी शामिल थे.

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