भरतपुर. विश्व प्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में सर्दी तेज होने के साथ ही साइबेरिया और सेंट्रल एशिया से हजारों की संख्या में कई प्रजातियों के पक्षियों ने यहां पर नेस्टिंग कर ली है. घना की झीलों में बड़ी संख्या में पक्षियों के झुंड के झुंड नजर आने लगे हैं. खास बात यह है कि कई साल के इंतजार के बाद केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में ब्लैक नेक्ड स्टार्क और डस्की आउल ने नेटिंग की है. उम्मीद है कि पर्यटकों को इस बार दोनों प्रजाति के पक्षियों के बच्चे भी नजर आएंगे.
घना निदेशक मानस सिंह ने बताया कि घना में साइबेरिया और सेंट्रल एशिया के प्रवासी पक्षी काफी संख्या में यहां पहुंच गए हैं. यूरेशियन कूट करीब 400 की संख्या में यहां पहुंच गए हैं. दिसंबर मध्य तक इनकी संख्या 2 हजार तक पहुंच जाएगी. साथ ही पोचर्ड, ग्रे लैग गीज, बार हेडेड आदि समेत तमाम अन्य प्रजाति के प्रवासी पक्षी भी अच्छी संख्या में नजर आने लगे हैं.
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घना के जलाशयों में पक्षियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. वहीं घना में पेंटेड स्टार्क, आईबिस, स्पूनबिल आदि पक्षियों के बच्चे बड़े हो गए हैं. पक्षियों के साथ उनके बच्चे दाना चुगता नजर आ रहे हैं. मानस सिंह ने बताया कि साइबेरिया और सेंट्रल एशिया में जैसे-जैसे बर्फबारी और सर्दी बढ़ेगी, वैसे-वैसे पक्षी पलायन कर घना में पहुंचते रहेंगे. दिसंबर अंतिम सप्ताह तक तो घना में पक्षियों की अच्छी संख्या देखने को मिलने लगेगी.
कई साल बाद ब्लैक नेक्ड स्टार्क ने की नेस्टिंग: निदेशक मानस सिंह ने बताया कि कई साल से घना में ब्लैक नेक्ड स्टार्क के करीब तीन जोड़ा (6 पक्षी) हैं. ये टेरिटोरियल बर्ड हैं, जो अपने क्षेत्र में अन्य किसी पक्षी को नहीं आने देती. इस पक्षी ने कई साल के इंतजार के बाद घना में नेस्टिंग की है. इसी तरह डस्की ऑउल ने भी नेस्टिंग की है. उम्मीद है कि इस बार दोनों पक्षियों के बच्चे भी देखने को मिलेंगे.
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पहुंच रहे सैकड़ों पर्यटक: मानस सिंह ने बताया कि उद्यान में पक्षियों के साथ ही पर्यटकों की संख्या भी बढ़ने लगी है. दिल्ली, नोएडा, आगरा, उत्तर प्रदेश व देश के अन्य क्षेत्र समेत विदेशों से भी पर्यटक पहुंचने लगे हैं. हर दिन करीब 400 से 500 पर्यटक घना पहुंच रहे हैं. वीकेंड पर पर्यटकों की संख्या अच्छी पहुंच रही है. मानस सिंह ने बताया कि उद्यान में एक पर्यटन सीजन के लिए 550 एमसीएफटी पानी की जरूरत होती है. इस बार अब तक करीब 400 एमसीएफटी पानी मिल चुका है, जो की उद्यान के लिए पर्याप्त है. इसमें से करीब 25 एमसीएफटी पानी चंबल परियोजना से मिल चुका है.