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अगर हमें MSP हटानी होती तो स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू ही क्यों करते : कैलाश चौधरी

केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने किसानों द्वारा सरकार के साथ वार्ता के लिए भेजे गए प्रस्ताव का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि किसानों का हित ही मोदी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है. अगर सरकार को एमएसपी हटानी होती तो स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू ही क्यों करती.

Kailash Chaudhary statement, Minister of State for Agriculture Kailash Chaudhary
कैलाश चौधरी का बयान
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Published : Dec 28, 2020, 8:35 PM IST

बाड़मेर. केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने कहा कि 29 दिसंबर को किसानों की ओर से वार्ता का प्रस्ताव स्वीकार करने के फैसले का स्वागत करते हैं. सरकार बहुत पहले से ये कहती आ रही है कि हम बातचीत करना चाहते हैं. अब किसान नेताओं ने सरकार को चिट्ठी लिख बैठक की तारीख तय की है. हम उसका स्वागत करते हैं, वे आएं, बैठें और बातचीत करें.

कैलाश चौधरी ने कहा कि सरकार जानती है कि किसी भी समस्या का हल बातचीत से ही निकलता है और मुझे विश्वास है कि इस बार होने वाली बैठक में जरूर कोई हल निकल जाएगा. कैलाश चौधरी ने आगे कहा कि ये तीनों कानून किसानों के हित में हैं, लेकिन फिर भी किसी सुधार की आवश्यकता किसानों को लगती है, तो सरकार विचार करने को तैयार है. हम 6 दौर की वार्ता कर चुके हैं और मुझे उम्मीद है कि ये बातचीत का दौर अच्छा रहेगा. मुझे उम्मीद है कि ये बातचीत का अंतिम दौर होगा और समस्या का समाधान होगा.

साथ ही कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने विपक्ष पर निशाना साधते हुए नए कृषि कानूनों के लाभ गिनाए. कैलाश चौधरी ने कहा कि विपक्ष कृषि कानून को लेकर किसानों को गुमराह कर रहा है. पिछले 6 महीने से कानून लागू हैं, लेकिन कोई शिकायत नहीं आई है. उन्होंने कहा कि कृषि सुधार के बाद एक सबसे बड़ा झूठ एमएसपी पर बोला जा रहा है. अगर हमें एमएसपी हटानी होती तो स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू ही क्यों करते. हर बार हमारी सरकार एमएसपी की घोषणा करती है, ताकि किसानों को परेशानी ना हो.

पढ़ें- बूथ की मजबूती पर जोर...पूनिया ने अब ली भरतपुर संभाग की बैठक

कृषि राज्यमंत्री बोले कि हर किसान को ये भरोसा देता हूं कि पहले जैसे एमएसपी दी जाती थी, वैसे ही दी जाती रहेगी. यूपीए सरकार की तुलना में मोदी सरकार ने किसानों को बड़ी राहत देते हुए एमएसपी रेट को लागत डेढ़ गुना तक बढ़ा दिया है. चौधरी ने कहा कि किसानों का हित ही मोदी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है. नए कृषि कानून किसानों के हित में हैं. इससे किसान भाइयों को कृषि उपज के विक्रय के लिए विकल्पों एवं आर्थिक निर्णय शक्ति में वृद्धि होगी. इससे कृषि उपज मंडी समितियों (एपीएमसी) के अधिकार पूर्व की तरह रहेंगे. इसलिए किसानों के पास सरकारी एजेंसियों का विकल्प खुला रहेगा.

बाड़मेर. केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने कहा कि 29 दिसंबर को किसानों की ओर से वार्ता का प्रस्ताव स्वीकार करने के फैसले का स्वागत करते हैं. सरकार बहुत पहले से ये कहती आ रही है कि हम बातचीत करना चाहते हैं. अब किसान नेताओं ने सरकार को चिट्ठी लिख बैठक की तारीख तय की है. हम उसका स्वागत करते हैं, वे आएं, बैठें और बातचीत करें.

कैलाश चौधरी ने कहा कि सरकार जानती है कि किसी भी समस्या का हल बातचीत से ही निकलता है और मुझे विश्वास है कि इस बार होने वाली बैठक में जरूर कोई हल निकल जाएगा. कैलाश चौधरी ने आगे कहा कि ये तीनों कानून किसानों के हित में हैं, लेकिन फिर भी किसी सुधार की आवश्यकता किसानों को लगती है, तो सरकार विचार करने को तैयार है. हम 6 दौर की वार्ता कर चुके हैं और मुझे उम्मीद है कि ये बातचीत का दौर अच्छा रहेगा. मुझे उम्मीद है कि ये बातचीत का अंतिम दौर होगा और समस्या का समाधान होगा.

साथ ही कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने विपक्ष पर निशाना साधते हुए नए कृषि कानूनों के लाभ गिनाए. कैलाश चौधरी ने कहा कि विपक्ष कृषि कानून को लेकर किसानों को गुमराह कर रहा है. पिछले 6 महीने से कानून लागू हैं, लेकिन कोई शिकायत नहीं आई है. उन्होंने कहा कि कृषि सुधार के बाद एक सबसे बड़ा झूठ एमएसपी पर बोला जा रहा है. अगर हमें एमएसपी हटानी होती तो स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू ही क्यों करते. हर बार हमारी सरकार एमएसपी की घोषणा करती है, ताकि किसानों को परेशानी ना हो.

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कृषि राज्यमंत्री बोले कि हर किसान को ये भरोसा देता हूं कि पहले जैसे एमएसपी दी जाती थी, वैसे ही दी जाती रहेगी. यूपीए सरकार की तुलना में मोदी सरकार ने किसानों को बड़ी राहत देते हुए एमएसपी रेट को लागत डेढ़ गुना तक बढ़ा दिया है. चौधरी ने कहा कि किसानों का हित ही मोदी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है. नए कृषि कानून किसानों के हित में हैं. इससे किसान भाइयों को कृषि उपज के विक्रय के लिए विकल्पों एवं आर्थिक निर्णय शक्ति में वृद्धि होगी. इससे कृषि उपज मंडी समितियों (एपीएमसी) के अधिकार पूर्व की तरह रहेंगे. इसलिए किसानों के पास सरकारी एजेंसियों का विकल्प खुला रहेगा.

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