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बाड़मेर की पहली एससी महिला सब इंस्पेक्टर लक्ष्मी के संघर्ष की कहानी, लोग देते थे पढ़ाई के लिए ताना - Women Sub Inspector Laxmi Meghwal

बाड़मेर में लक्ष्मी मेघवाल पहली एससी महिला सब इंस्पेक्टर बनी हैं. लक्ष्मी मेघवाल ने विपरीत परिस्थितियों में रहकर लगातार संघर्ष करके उस जमाने में जब लक्ष्मी दसवीं के बाद पढ़ाई के लिए आस-पास कोई स्कूल नहीं थी, तो परिवार के लोगों ने उसे निजी स्कूल से 12वीं कक्षा की पढ़ाई करवाई.

Women Sub Inspector Laxmi Meghwal
एससी महिला सब इंस्पेक्टर लक्ष्मी के संघर्ष की कहानी
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Published : Sep 6, 2020, 10:27 PM IST

बाड़मेर. जिले में एससी समाज की पहली महिला सब इंस्पेक्टर लक्ष्मी मेघवाल बनी है. जब लक्ष्मी मेघवाल की कहानी सामने आई तो हर कोई चौकन्ना रह गया. लक्ष्मी मेघवाल ने विपरीत परिस्थितियों में रहकर लगातार संघर्ष करके उस जमाने में जब लक्ष्मी दसवीं के बाद पढ़ाई के लिए आस-पास कोई स्कूल नहीं थी, तो परिवार के लोगों ने उसे निजी स्कूल से 12वीं कक्षा की पढ़ाई करवाई.

एससी महिला सब इंस्पेक्टर लक्ष्मी के संघर्ष की कहानी

इस दौरान लक्ष्मी और उसके परिवार को गांव के लोगों ने जमकर ताने दिए कि बेटी को पढ़ा कर क्या करोगे, लेकिन घरवालों ने ठान रखी थी की बेटी को पढ़ाएंगे और आज बेटी ने पूरे जिले में परिवार और समाज का नाम रोशन कर दिया है.

लक्ष्मी बताती हैं कि जब वह गांव में स्कूल में पढ़ती थी, तो उस दौरान बेटियों को पढ़ाने के लिए घर वाले राजी नहीं होते थे और समाज में भी दसवीं तक पढ़ा कर बेटियों को स्कूल छोड़ा देते थे, क्योंकि उस जमाने में न तो दसवीं के बाद स्कूल आसपास नहीं होती थी और उसके बाद अगर बेटी बाहर जाकर पढ़ती थी, तो यह गांव वालों और घर के लोगों को भी अच्छा नहीं लगता था.

लेकिन मेरे परिवार और मेरे भाई ने हमेशा मेरा साथ दिया और मेरी पढ़ने की इच्छा थी और उसके बाद 2011 में मैंने 12वीं कक्षा पास करने के बाद कांस्टेबल का एग्जाम दिया और मेरा सिलेक्शन हो गया, और उसके बाद में लगातार अपनी पढ़ाई के साथ ही पारिवारिक परिस्थितियों को देखते हुए मैंने पढ़ाई कभी नहीं छोड़ी.

पढ़ें- शिक्षक दिवस पर राष्ट्रपति की ओर से बाड़मेर की गीता कुमारी हुईं सम्मानित, ऑनलाइन मोड में आयोजित हुआ समारोह

लक्ष्मी मेघवाल बताती है कि 2016 में सब इंस्पेक्टर का एग्जाम दिया. जिसका परिणाम कुछ दिन पहले ही आया है और उसके बाद लगातार समाज के साथ ही परिवार के लोग बधाई दे रहे हैं. लेकिन मेरे लिए सबसे खुशी के लिए बात है कि मेरे मां-बाप का सम्मान बढ़ गया है. हर कोई उनका स्वागत कर रहा है. इससे ज्यादा बेहद खुशी की बात मेरे लिए कुछ नहीं हो नही सकती हैं.

लक्ष्मी बताती है कि आज भी हमारी ग्रामीण इलाकों में परिवार के लोग बेटे और बेटियों में बहुत फर्क समझते हैं, और बेटियों को पढ़ाने में हिचकते हैं. ऐसे में उन सबके लिए एक नई उम्मीद की किरण हूं. मेरी ग्रामीण इलाकों के लोगों से अपील है कि वह अपनी बेटी को पढ़ा है और आगे बढ़ाएं.

बाड़मेर. जिले में एससी समाज की पहली महिला सब इंस्पेक्टर लक्ष्मी मेघवाल बनी है. जब लक्ष्मी मेघवाल की कहानी सामने आई तो हर कोई चौकन्ना रह गया. लक्ष्मी मेघवाल ने विपरीत परिस्थितियों में रहकर लगातार संघर्ष करके उस जमाने में जब लक्ष्मी दसवीं के बाद पढ़ाई के लिए आस-पास कोई स्कूल नहीं थी, तो परिवार के लोगों ने उसे निजी स्कूल से 12वीं कक्षा की पढ़ाई करवाई.

एससी महिला सब इंस्पेक्टर लक्ष्मी के संघर्ष की कहानी

इस दौरान लक्ष्मी और उसके परिवार को गांव के लोगों ने जमकर ताने दिए कि बेटी को पढ़ा कर क्या करोगे, लेकिन घरवालों ने ठान रखी थी की बेटी को पढ़ाएंगे और आज बेटी ने पूरे जिले में परिवार और समाज का नाम रोशन कर दिया है.

लक्ष्मी बताती हैं कि जब वह गांव में स्कूल में पढ़ती थी, तो उस दौरान बेटियों को पढ़ाने के लिए घर वाले राजी नहीं होते थे और समाज में भी दसवीं तक पढ़ा कर बेटियों को स्कूल छोड़ा देते थे, क्योंकि उस जमाने में न तो दसवीं के बाद स्कूल आसपास नहीं होती थी और उसके बाद अगर बेटी बाहर जाकर पढ़ती थी, तो यह गांव वालों और घर के लोगों को भी अच्छा नहीं लगता था.

लेकिन मेरे परिवार और मेरे भाई ने हमेशा मेरा साथ दिया और मेरी पढ़ने की इच्छा थी और उसके बाद 2011 में मैंने 12वीं कक्षा पास करने के बाद कांस्टेबल का एग्जाम दिया और मेरा सिलेक्शन हो गया, और उसके बाद में लगातार अपनी पढ़ाई के साथ ही पारिवारिक परिस्थितियों को देखते हुए मैंने पढ़ाई कभी नहीं छोड़ी.

पढ़ें- शिक्षक दिवस पर राष्ट्रपति की ओर से बाड़मेर की गीता कुमारी हुईं सम्मानित, ऑनलाइन मोड में आयोजित हुआ समारोह

लक्ष्मी मेघवाल बताती है कि 2016 में सब इंस्पेक्टर का एग्जाम दिया. जिसका परिणाम कुछ दिन पहले ही आया है और उसके बाद लगातार समाज के साथ ही परिवार के लोग बधाई दे रहे हैं. लेकिन मेरे लिए सबसे खुशी के लिए बात है कि मेरे मां-बाप का सम्मान बढ़ गया है. हर कोई उनका स्वागत कर रहा है. इससे ज्यादा बेहद खुशी की बात मेरे लिए कुछ नहीं हो नही सकती हैं.

लक्ष्मी बताती है कि आज भी हमारी ग्रामीण इलाकों में परिवार के लोग बेटे और बेटियों में बहुत फर्क समझते हैं, और बेटियों को पढ़ाने में हिचकते हैं. ऐसे में उन सबके लिए एक नई उम्मीद की किरण हूं. मेरी ग्रामीण इलाकों के लोगों से अपील है कि वह अपनी बेटी को पढ़ा है और आगे बढ़ाएं.

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