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बाड़मेर : घाणी में बैलों की जगह देसी जुगाड़ कर मोटरसाइकिल का हो रहा है इस्तेमाल...

बाड़मेर में घाणी में बैलों की जगह मोटरसाइकिल से घाणी से तेल निकल रहा है. जिसमें एक बाइक अपने आप चल रही है ना तो इस पर कोई बैठा है और ना ही इसका कोई गेयर चेंज कर रहा है और ना ही कोई रेस दे रहा है. बावजूद इसके लगातार अपनी स्पीड से मोटरसाइकिल चल रही है.

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घाणी में बैलों की जगह देसी जुगाड़ कर मोटरसाइकिल का हो रहा है इस्तेमाल
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Published : Nov 17, 2020, 10:02 PM IST

बाड़मेर. सर्दी के सीजन में तिलों का तेल सहित अन्य कई सामग्री बनाने के लिए घाणी मे बैलों का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन अब वक्त के साथ इसके भी जुगाड़ बनने शुरू हो गए हैं. ऐसा ही एक जुगाड़ बाड़मेर में देखने को मिला है. जिसमें घाणी में बैलों की जगह मोटरसाइकिल से घाणी से तेल निकल रहा है. जिसमें किस तरीके से एक बाइक अपने आप चल रही है. ना तो इस पर कोई सवार है, ना तो इसका कोई गेयर चेंज कर रहा है और ना ही कोई रेस दे रहा है.

घाणी में बैलों की जगह देसी जुगाड़ कर मोटरसाइकिल का हो रहा है इस्तेमाल

बावजूद इसके, लगातार अपनी स्पीड से मोटरसाइकिल चल रही है. जिसे देखकर आने जाने वाला हर कोई इसके बारे में जानने की इच्छा जाहिर कर रहा है. दरअसल, सर्दियों के सीजन में तिलों के तेल और उसे बनने वाली खाद्य सामग्री को लोग बड़े चाव से खाते हैं. ऐसे में तिलहर से तेल निकालने के लिए घाणी (तेल निकालने वाली चक्की) को पहले बैलों से चलाया जाता था, लेकिन जुगाड़ करके बैलों की जगह बाइक को सेट कर दिया गया है.

जिससे देसी भाषा में सर्दी के सीजन में खाने वाले बदाम, काजू, किसमिस के साथ ही अन्य सामग्री से खीस-खीस कर तैयार किया जाता है. जिसकी कीमत 240 रुपए प्रति किलो बिकता है और लोग इसे सर्दियों के सीजन में खाते हैं.

पढ़ें: फीस भुगतान मामला: संचालकों और अभिभावकों के बीच बढ़ रही खाई को पाटने का काम करेगा निगम

वहीं, इस बारे में भीलवाड़ा निवासी उदय लाल बताते हैं कि बैलों को इतना दूर बाड़मेर लाने में खर्चा और काफी दिक्कत होती. इसलिए इस तरह जुगाड़ करके बैलों की जगह मोटरसाइकिल का इस्तेमाल किया गया है और जो काम बैल 3 घंटों में करता था वह काम इस मोटरसाइकिल के जरिए एक घंटे में ही हो जाता है. इस दौरान कई लोगों से बातचीत की उन्होंने बताया कि यह अपने आप में अलग ही जुगाड़ है.

बाड़मेर. सर्दी के सीजन में तिलों का तेल सहित अन्य कई सामग्री बनाने के लिए घाणी मे बैलों का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन अब वक्त के साथ इसके भी जुगाड़ बनने शुरू हो गए हैं. ऐसा ही एक जुगाड़ बाड़मेर में देखने को मिला है. जिसमें घाणी में बैलों की जगह मोटरसाइकिल से घाणी से तेल निकल रहा है. जिसमें किस तरीके से एक बाइक अपने आप चल रही है. ना तो इस पर कोई सवार है, ना तो इसका कोई गेयर चेंज कर रहा है और ना ही कोई रेस दे रहा है.

घाणी में बैलों की जगह देसी जुगाड़ कर मोटरसाइकिल का हो रहा है इस्तेमाल

बावजूद इसके, लगातार अपनी स्पीड से मोटरसाइकिल चल रही है. जिसे देखकर आने जाने वाला हर कोई इसके बारे में जानने की इच्छा जाहिर कर रहा है. दरअसल, सर्दियों के सीजन में तिलों के तेल और उसे बनने वाली खाद्य सामग्री को लोग बड़े चाव से खाते हैं. ऐसे में तिलहर से तेल निकालने के लिए घाणी (तेल निकालने वाली चक्की) को पहले बैलों से चलाया जाता था, लेकिन जुगाड़ करके बैलों की जगह बाइक को सेट कर दिया गया है.

जिससे देसी भाषा में सर्दी के सीजन में खाने वाले बदाम, काजू, किसमिस के साथ ही अन्य सामग्री से खीस-खीस कर तैयार किया जाता है. जिसकी कीमत 240 रुपए प्रति किलो बिकता है और लोग इसे सर्दियों के सीजन में खाते हैं.

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वहीं, इस बारे में भीलवाड़ा निवासी उदय लाल बताते हैं कि बैलों को इतना दूर बाड़मेर लाने में खर्चा और काफी दिक्कत होती. इसलिए इस तरह जुगाड़ करके बैलों की जगह मोटरसाइकिल का इस्तेमाल किया गया है और जो काम बैल 3 घंटों में करता था वह काम इस मोटरसाइकिल के जरिए एक घंटे में ही हो जाता है. इस दौरान कई लोगों से बातचीत की उन्होंने बताया कि यह अपने आप में अलग ही जुगाड़ है.

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