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म्हानें डर नहीं लागे युद्ध ऊं...चाये बम फूटै अर चाये मिसायल, दुश्मन ने हिन्दूस्तान मांय ना आण देयंगाः बॉर्डर के लोग

पुलवामा हमले के बाद दोनों देशों की ओर से हुई कार्रावईयों के बाद सीमावर्ती क्षेत्रों में सेना हाई अलर्ट पर है. हालांकि इस अलर्ट को किसी युद्ध के तौर पर नहीं देखा जा रहा लेकिन सुरक्षा के लिहाज से सीमा पर चौकसी बढ़ाई गई है.

सीमावर्ती गांव के लोग
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Published : Feb 28, 2019, 5:46 PM IST

बाड़मेर. भारत और पाकिस्तान के बीच लगातार जारी तनाव के बीच हालांकी थोड़ी नरमी देखी जा रही है लेकिन भारत-पाक अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटे गांवों के लोग अपना सीना तानकर सेना के साथ किसी भी परिस्थिती में मदद के लिए तैयार हैं.

वीडियोः सेना की हर संभव मदद के लिए तैयार हैं सीमावर्ती गांव के लोग

पुलवामा हमले के बाद दोनों देशों की ओर से हुई कार्रावईयों के बाद सीमावर्ती क्षेत्रों में सेना हाई अलर्ट पर है. हालांकि इस अलर्ट को किसी युद्ध के तौर पर नहीं देखा जा रहा लेकिन सुरक्षा के लिहाज से सीमा पर चौकसी बढ़ाई गई है. राजस्थान की बात करें तो 1000 किलोमीटर से अधिक लंबी रेडक्लिफ (बॉर्डर) से सटे गावों में भी भारत-पाकिस्तान के बीच जारी इस माहौल की हर खबर पहुंच रही है.

खास बात यह है कि सीमावर्ती गांवों के लोगो में किसी प्रकार का भय नहीं है. पश्चिमी राजस्थान के बॉर्डर पर भी उस पार से पाकिस्तानी सेना की हलचल बढ़ी है जिसको लेकर गांव वालों का एकटूक कहन है कि वे किसी भी परिस्थिती से निपटने के लिए तैयार हैं और सीमा पर तैनात सेनाओं की मदद वे कंधे से कंधा मिलाकर करेंगे.

गांव वालों का कहना है कि उन्होंने और उनके परिजनों ने 1965 और 1971 में भारत-पाकिस्तान की जंग को करीब से देखा है. उनका कहना है कि वे उन हालातों में भी डरे नहीं थे और सेना की हर संभव मदद की थी. गांव के हर शख्स ने युद्ध लड़ने में व्यस्त सेना को मदद पहुंचाई थी. उनका कहन है कि उनकी मदद की बदौलत ही सेना ने पाकिस्तान को मात दी थी और आज भी वे पाकिस्तान को मात देने के लिए हर पल तैयार खड़े हैं.

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राजस्थान से सटी अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर ज्यादा तो रेत के टीले हैं. सीमा के इस पार से लेकर उस पार तक रेतीला रेगिस्तान नजर आता है. परिस्थितियां विपरीत तब हो जाती हैं जब तूफानी हवाएं चलती हैं...पीने के पानी के लिए भी आपको कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. ऐसे में अगर युद्ध होता है तो सेना हमेशा यहां पर ग्रामीण लोगों की मदद लेती है.

ग्रामीणों का कहना है कि जब 1965 और 1971 के युद्ध हुआ था तो हमने सेना की मदद की थी. क्योंकि रेगिस्तान का इलाका इतना जटिल है कि हर कोई इसको समझ नहीं सकता. इसलिए सेना हमेशा से ग्रामीणों की मदद लेती आई है. ग्रामीण कहते हैं कि हम ने 1965 और 71 में सेना को पीने का पानी अपने सामान ऊंट की मदद से बंकरों तक पहुंचाया था. आज भी अगर ऐसी परिस्थितियां बनती हैं तो वे छाती ठोककर तैयार हैं.

बाड़मेर. भारत और पाकिस्तान के बीच लगातार जारी तनाव के बीच हालांकी थोड़ी नरमी देखी जा रही है लेकिन भारत-पाक अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटे गांवों के लोग अपना सीना तानकर सेना के साथ किसी भी परिस्थिती में मदद के लिए तैयार हैं.

वीडियोः सेना की हर संभव मदद के लिए तैयार हैं सीमावर्ती गांव के लोग

पुलवामा हमले के बाद दोनों देशों की ओर से हुई कार्रावईयों के बाद सीमावर्ती क्षेत्रों में सेना हाई अलर्ट पर है. हालांकि इस अलर्ट को किसी युद्ध के तौर पर नहीं देखा जा रहा लेकिन सुरक्षा के लिहाज से सीमा पर चौकसी बढ़ाई गई है. राजस्थान की बात करें तो 1000 किलोमीटर से अधिक लंबी रेडक्लिफ (बॉर्डर) से सटे गावों में भी भारत-पाकिस्तान के बीच जारी इस माहौल की हर खबर पहुंच रही है.

खास बात यह है कि सीमावर्ती गांवों के लोगो में किसी प्रकार का भय नहीं है. पश्चिमी राजस्थान के बॉर्डर पर भी उस पार से पाकिस्तानी सेना की हलचल बढ़ी है जिसको लेकर गांव वालों का एकटूक कहन है कि वे किसी भी परिस्थिती से निपटने के लिए तैयार हैं और सीमा पर तैनात सेनाओं की मदद वे कंधे से कंधा मिलाकर करेंगे.

गांव वालों का कहना है कि उन्होंने और उनके परिजनों ने 1965 और 1971 में भारत-पाकिस्तान की जंग को करीब से देखा है. उनका कहना है कि वे उन हालातों में भी डरे नहीं थे और सेना की हर संभव मदद की थी. गांव के हर शख्स ने युद्ध लड़ने में व्यस्त सेना को मदद पहुंचाई थी. उनका कहन है कि उनकी मदद की बदौलत ही सेना ने पाकिस्तान को मात दी थी और आज भी वे पाकिस्तान को मात देने के लिए हर पल तैयार खड़े हैं.

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राजस्थान से सटी अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर ज्यादा तो रेत के टीले हैं. सीमा के इस पार से लेकर उस पार तक रेतीला रेगिस्तान नजर आता है. परिस्थितियां विपरीत तब हो जाती हैं जब तूफानी हवाएं चलती हैं...पीने के पानी के लिए भी आपको कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. ऐसे में अगर युद्ध होता है तो सेना हमेशा यहां पर ग्रामीण लोगों की मदद लेती है.

ग्रामीणों का कहना है कि जब 1965 और 1971 के युद्ध हुआ था तो हमने सेना की मदद की थी. क्योंकि रेगिस्तान का इलाका इतना जटिल है कि हर कोई इसको समझ नहीं सकता. इसलिए सेना हमेशा से ग्रामीणों की मदद लेती आई है. ग्रामीण कहते हैं कि हम ने 1965 और 71 में सेना को पीने का पानी अपने सामान ऊंट की मदद से बंकरों तक पहुंचाया था. आज भी अगर ऐसी परिस्थितियां बनती हैं तो वे छाती ठोककर तैयार हैं.

Intro:भारत और पाकिस्तान के बीच लगातार तनाव बढ़ता जा रहा है आज फिर एक बार पाकिस्तान ने अपने प्लेन से भारतीय सीमा में घुसपैठ करने की कोशिश की इसी बीच अब सबसे बड़ी बात यह है कि पश्चिमी राजस्थान के बॉर्डर पर भी इस वक्त दोनों देशों के बीच तनाव देखा जा सकता है हम आपको बताने हैं किस तरीके से 1965 और 1971 में भारत-पाकिस्तान की जंग के बॉर्डर पर रहने वाले राम इन लोगों ने अपना एक अहम किरदार निभाया था उनकी बदौलत ही सेना ने पाकिस्तान को मात दी थी आज भी बॉर्डर के ग्रामीण पाकिस्तान को मात देने के लिए हर पल तैयार खड़े नजर आते हैं


Body:राजस्थान की बॉर्डर की सीमा 1070 किलोमीटर जिसमें ज्यादा तो रेत के टीले हैं सीमा के इस पार और उस पार दोनों जगहों पर दूर-दूर तक रेतीला रेगिस्तान नजर आता है परिस्थितियां इतनी भी समय है कि पानी पीने के लिए भी आपको कई किलोमीटर चलना पड़ता है ऐसे में अगर युद्ध होता है तो सेना हमेशा यहां पर ग्रामीण लोगों की मदद लेती है ग्रामीण लोग कहते हैं कि जब 1965 और 1971 के युद्ध हुआ था तो हमने सेना को पाकिस्तान को धूल चटाने में अपना अहम रोल अदा किया था ग्रामीणों के अनुसार रेगिस्तान का इलाका इतना जटिल है कि हर कोई इसको समझ नहीं सकता इसलिए सेना ग्रामीणों की मदद लेती है और उसी के जरिए पाकिस्तान को टारगेट करती है क्योंकि यहां के ग्रामीण रेगिस्तान के हर रास्ते से जानकार होते हैं साथ ही ग्रामीण कहते हैं कि हम ने 1965 और 71 में सेना को पीने का पानी अपने सामान ऊंट के साथ ही हर वह संभव मदद की थी जिसकी सेना को जरूरत थी और उसी की बदौलत सेना ने पाकिस्तान को धूल चटाई थी


Conclusion:बॉर्डर के ग्रामीणों का साफ तौर पर कहना है कि आज अगर ऐसी कोई स्थिति होती है तो हम पूरी तरीके से तैयार हैं सेना का साथ देने के लिए तैयार है अगर सेना हमारे से चाहे वो ट्रैक्टर पीने का पानी राशन का सामान या कुछ और हम सेना को मदद के लिए कुछ भी कर सकते हैं और जंग होती है तो हम अपने इलाके में सेना के साथ डटे रहेंगे
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