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मानवेन्द्र के सामने एक बड़ी दिक्क्त है...बाड़मेर-जैसलमेर से आज दिन तक कांग्रेस के टिकट पर कोई राजपूत नहीं जीत सका

लोकसभा चुनाव के मैदान में बाड़मेर -जैसलमेर सीट को साधते हुए कांग्रेस ने मानवेंद्र सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है. करीब 42 साल के बाद यह पहला मौका है जब इस सीट पर राजपूत नेता को कांग्रेस ने टिकट दिया है....

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Published : Mar 30, 2019, 5:40 PM IST

कांग्रेस ने बाड़मेर-जैसलमेर सीट से मानवेंद्र सिंह को दिया टिकट।

बाड़मेर. लोकसभा चुनाव के मैदान में हर दिन चढ़ते चुनावी पारे के बीच कांग्रेस ने बाड़मेर-जैसलमेर सीट को साधने के लिए 42 साल के बाद मानवेंद्र सिंह के रूप में राजपूत नेता को मैदान में उतारा है. ये सीट कांग्रेस के लिए जितना खास है, उससे कहीं ज्यादा बड़ा स्वाभिमान का प्रश्न मानवेंद्र सिंह के साथ जुड़ा हुआ है. यही वजह है कि मानवेंद्र सिंह के मैदान में आने के साथ ही इस सीट पर सियासत सुर्ख हो चुकी है. लेकिन, एक संयोग यह भी रहा है कि इस सीट पर कांग्रेस के टिकट पर अब तक उतरे राजपूत नेता जीत का स्वाद नहीं चख पाए हैं. ऐसे में इस बार सियासतदारों ही निगाहें यहां के हर एक बदलते समीकरण पर टिक गई है.

भाजपा को छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने वाले मानवेंद्र सिंह ने टिकट मिलने के साथ ही सियासत के मैदान पर मोर्चा संभाल लिया है. वे अपने समर्थकों के साथ जीत के समीकरण को तैयार करने में जुट गए हैं. वहीं, दूसरी तरफ सियासतदारों की निगाहें भाजपा की ओर से इस सीट पर उतारे जाने वाले प्रत्याशी के एलान पर टिक गई है. भाजपा का प्रत्याशी कौन होगा इस पर जहां चर्चाओं का बाजार गरम है. वहीं, कई तरह के राजनीतिक कयास भी लगाए जा रहे हैं. लेकिन, इस सीट के इतिहास पर नजर डालें तो राजपूत प्रत्याशी के जरिए सीट को साधने का अब तक का कांग्रेस का प्रयास सफल नहीं रहा है. इस सीट पर कांग्रेस ने सबसे पहले 1962 में राजपूत नेता के तौर पर ओंकार सिंह को मैदान में उतारा था. लेकिन वे रामराज्य परिषद के तन सिंह से चुनाव हार गए थे. वहीं, कांग्रेस ने 15 साल के बाद 1977 में दोबारा खेत सिंह केर रूप में राजपूत नेता को मैदान में उतारा था. लेकिन, वे भी चुनाव हार गए थे. पार्टी के जानकारों का कहना है कि दो बार मिली इस हार के बाद कांग्रेस ने फिर किसी राजपूत नेता को इस सीट पर प्रत्याशी बनाकर नहीं उतारा. इसके बाद कांग्रेस का भरोसा हमेशा जाट प्रत्याशी पर बना रहा.

इस सीट पर कांग्रेस के लिए जाट, मुस्लिम और अनुसूचित जाति का फैक्टर फायदेमंद रहा. कांग्रेस यहां से कई बार इसी फैक्टर के जरिए चुनाव जीत चुकी है. हालांकि, 2004 में भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे मानवेंद्र सिंह कांग्रेस से गढ़ में सेंध लगाते हुए जीत दर्ज की थी. लेकिन, उसके बाद यह इस सीट पर फिर जाट प्रत्याशी विजयी रहे. लेकिन, इस बार यहां के बदले समीकरण को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने फिर से राजपूत नेता के तौर मानवेंद्र सिंह को मैदान में उतार दिया है. राजनीति के जानकारों का कहना है कि इस सीट के सियासी समीकरण में आए बदलाव और मानवेंद्र की जमीनी पकड़ को देखते हुए कांग्रेस को जीत हासिल करने का भरोसा बना हुआ है. माना जा रहा है कि इस दांव के साथ कांग्रेस राजपूतों मतदाताओं को भी साधने की कोशिश कर रही है. हालांकि, अभी तक भाजपा ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं. ऐसे में बाड़मेर सीट पर कयासों के बीच सियासी उबाल लगातार बना हुआ है.

बाड़मेर. लोकसभा चुनाव के मैदान में हर दिन चढ़ते चुनावी पारे के बीच कांग्रेस ने बाड़मेर-जैसलमेर सीट को साधने के लिए 42 साल के बाद मानवेंद्र सिंह के रूप में राजपूत नेता को मैदान में उतारा है. ये सीट कांग्रेस के लिए जितना खास है, उससे कहीं ज्यादा बड़ा स्वाभिमान का प्रश्न मानवेंद्र सिंह के साथ जुड़ा हुआ है. यही वजह है कि मानवेंद्र सिंह के मैदान में आने के साथ ही इस सीट पर सियासत सुर्ख हो चुकी है. लेकिन, एक संयोग यह भी रहा है कि इस सीट पर कांग्रेस के टिकट पर अब तक उतरे राजपूत नेता जीत का स्वाद नहीं चख पाए हैं. ऐसे में इस बार सियासतदारों ही निगाहें यहां के हर एक बदलते समीकरण पर टिक गई है.

भाजपा को छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने वाले मानवेंद्र सिंह ने टिकट मिलने के साथ ही सियासत के मैदान पर मोर्चा संभाल लिया है. वे अपने समर्थकों के साथ जीत के समीकरण को तैयार करने में जुट गए हैं. वहीं, दूसरी तरफ सियासतदारों की निगाहें भाजपा की ओर से इस सीट पर उतारे जाने वाले प्रत्याशी के एलान पर टिक गई है. भाजपा का प्रत्याशी कौन होगा इस पर जहां चर्चाओं का बाजार गरम है. वहीं, कई तरह के राजनीतिक कयास भी लगाए जा रहे हैं. लेकिन, इस सीट के इतिहास पर नजर डालें तो राजपूत प्रत्याशी के जरिए सीट को साधने का अब तक का कांग्रेस का प्रयास सफल नहीं रहा है. इस सीट पर कांग्रेस ने सबसे पहले 1962 में राजपूत नेता के तौर पर ओंकार सिंह को मैदान में उतारा था. लेकिन वे रामराज्य परिषद के तन सिंह से चुनाव हार गए थे. वहीं, कांग्रेस ने 15 साल के बाद 1977 में दोबारा खेत सिंह केर रूप में राजपूत नेता को मैदान में उतारा था. लेकिन, वे भी चुनाव हार गए थे. पार्टी के जानकारों का कहना है कि दो बार मिली इस हार के बाद कांग्रेस ने फिर किसी राजपूत नेता को इस सीट पर प्रत्याशी बनाकर नहीं उतारा. इसके बाद कांग्रेस का भरोसा हमेशा जाट प्रत्याशी पर बना रहा.

इस सीट पर कांग्रेस के लिए जाट, मुस्लिम और अनुसूचित जाति का फैक्टर फायदेमंद रहा. कांग्रेस यहां से कई बार इसी फैक्टर के जरिए चुनाव जीत चुकी है. हालांकि, 2004 में भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे मानवेंद्र सिंह कांग्रेस से गढ़ में सेंध लगाते हुए जीत दर्ज की थी. लेकिन, उसके बाद यह इस सीट पर फिर जाट प्रत्याशी विजयी रहे. लेकिन, इस बार यहां के बदले समीकरण को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने फिर से राजपूत नेता के तौर मानवेंद्र सिंह को मैदान में उतार दिया है. राजनीति के जानकारों का कहना है कि इस सीट के सियासी समीकरण में आए बदलाव और मानवेंद्र की जमीनी पकड़ को देखते हुए कांग्रेस को जीत हासिल करने का भरोसा बना हुआ है. माना जा रहा है कि इस दांव के साथ कांग्रेस राजपूतों मतदाताओं को भी साधने की कोशिश कर रही है. हालांकि, अभी तक भाजपा ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं. ऐसे में बाड़मेर सीट पर कयासों के बीच सियासी उबाल लगातार बना हुआ है.

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मानवेन्द्र के सामने एक बड़ी दिक्क्त है...बाड़मेर-जैसलमेर से आज दिन तक कांग्रेस के टिकट पर कोई राजपूत नहीं जीत सका





लोकसभा चुनाव के मैदान में बाड़मेर -जैसलमेर सीट को साधते हुए कांग्रेस ने मानवेंद्र सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है. करीब 42 साल के बाद यह पहला मौका है जब इस सीट पर राजपूत नेता को कांग्रेस ने टिकट दिया है....



बाड़मेर. लोकसभा चुनाव के मैदान में हर दिन चढ़ते चुनावी पारे के बीच कांग्रेस ने बाड़मेर-जैसलमेर सीट को साधने के लिए 42 साल के बाद मानवेंद्र सिंह के रूप में राजपूत नेता को मैदान में उतारा है. ये सीट कांग्रेस के लिए जितना खास है, उससे कहीं ज्यादा बड़ा स्वाभिमान का प्रश्न मानवेंद्र सिंह के साथ जुड़ा हुआ है. यही वजह है कि मानवेंद्र सिंह के मैदान में आने के साथ ही इस सीट पर सियासत सुर्ख हो चुकी है. लेकिन, एक संयोग यह भी रहा है कि इस सीट पर कांग्रेस  के टिकट पर अब तक उतरे राजपूत नेता जीत का स्वाद नहीं चख पाए हैं. ऐसे में इस बार सियासतदारों ही निगाहें यहां के हर एक बदलते समीकरण पर टिक गई है.

भाजपा को छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने वाले मानवेंद्र सिंह ने टिकट मिलने के साथ ही सियासत के मैदान पर मोर्चा संभाल लिया है. वे अपने समर्थकों के साथ जीत के समीकरण को तैयार करने में जुट गए हैं. वहीं, दूसरी तरफ  सियासतदारों की निगाहें भाजपा की ओर से इस सीट पर उतारे जाने वाले प्रत्याशी के एलान पर टिक गई है. भाजपा का प्रत्याशी कौन होगा इस पर जहां चर्चाओं का बाजार गरम है. वहीं, कई तरह के राजनीतिक कयास भी लगाए जा रहे हैं. लेकिन, इस सीट के इतिहास पर नजर डालें तो राजपूत प्रत्याशी के जरिए सीट को साधने का अब तक का कांग्रेस का प्रयास सफल नहीं रहा है.  इस सीट पर कांग्रेस  ने सबसे पहले 1962 में राजपूत नेता के तौर पर ओंकार सिंह को मैदान में उतारा था. लेकिन वे रामराज्य परिषद के तन सिंह से चुनाव हार गए थे. वहीं, कांग्रेस ने 15 साल के बाद  1977 में दोबारा खेत सिंह केर रूप में राजपूत नेता को मैदान में उतारा था. लेकिन, वे भी चुनाव  हार गए थे. पार्टी के जानकारों का कहना है कि दो बार मिली इस हार के बाद कांग्रेस ने फिर किसी राजपूत नेता को इस सीट पर प्रत्याशी बनाकर नहीं उतारा. इसके बाद कांग्रेस का भरोसा हमेशा जाट प्रत्याशी पर बना रहा. इस सीट पर कांग्रेस के लिए जाट, मुस्लिम और अनुसूचित जाति का फैक्टर फायदेमंद रहा. कांग्रेस यहां से कई बार इसी फैक्टर के जरिए चुनाव जीत चुकी है. हालांकि,  2004 में भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे मानवेंद्र सिंह कांग्रेस से गढ़ में सेंध लगाते हुए जीत दर्ज की थी. लेकिन, उसके बाद यह इस सीट पर फिर जाट प्रत्याशी विजयी रहे. लेकिन, इस बार यहां के बदले समीकरण को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने फिर से राजपूत नेता के तौर मानवेंद्र सिंह को मैदान में उतार दिया है. राजनीति के जानकारों का कहना है कि इस सीट के  सियासी समीकरण में आए बदलाव और मानवेंद्र की जमीनी पकड़ को देखते हुए कांग्रेस को जीत हासिल करने का भरोसा बना हुआ है. माना जा रहा है कि इस दांव के साथ कांग्रेस राजपूतों मतदाताओं को भी साधने की कोशिश कर रही है. हालांकि, अभी तक भाजपा ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं. ऐसे में बाड़मेर सीट पर कयासों के बीच सियासी उबाल लगातार बना हुआ है.




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