बालोतरा (बाड़मेर). दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंक पर पीता है...यह कहावत रिफाइनरी क्षेत्र पचपदरा पर इन दिनों सटिक बैठ रही है. क्योंकि रिफाइनरी की घोषणा के बाद पचपदरा में जमीन के खरीददारों का मेला लगता है. वहां अब कोई नजर नहीं आ रहा. याद है 2013 में जब बाड़मेर में रिफाइनरी की घोषणा हुई थी, तो यहां जमीन के खरीददारों का मेला लग गया था और रातों रात लाखों-करोड़ों के सौदे हुए, लेकिन इसके बाद रिफाइनरी को लेकर हुई देरी ने अब हालात यह कर दिए है कि पिछले दो साल से यहां करीब 2 हजार करोड़ का काम हो चुका है, लेकिन जमीन को अभी भी ऐतबार नहीं है. तभी तो जमीनों के दाम जस के तस है. जसोल और पचपदरा उप तहसील और तहसील कार्यालयों में जमीनों की रजिस्ट्री के औसत में भी बदलाव नहीं आया है.
बालोतरा के राजेश भाई गहलोत रियल स्टेट के कारोबारी है, वो कहते है कि रिफाइनरी का काम आगे बढने के साथ जमीनों के दाम में 2013 जैसा बूम नहीं है और अब कुछ सौदे जरूर हुए है, लेकिन बड़ा बदलाव अभी नहीं आ रहा है. अब हमें बड़े सौदे की जरूरत है. जमीन के खरीददार आ रहे है, लेकिन सही जमीन नहीं मिल रही है. पचपदरा के गुलाब तेली कहते है कि जैसे-जैसे रिफाइनरी का काम हो रहा है, लोग जमीनों के चक्कर काटकर तो जा रहे है, लेकिन जितने में वो लेना चाहते है, उतने में यहां के लोग बेचना नहीं चाहते हैं. कुल मिलाकर अभी तेजी शुरू हुई है. पचपदरा, सांभरा, तिलवाड़ा, खेड़, जसोल, बालोतरा व आसपास के इलाके में यह स्थिति सभी जगह पर है.
यह भी पढ़ें- बाड़मेर: NGT की सुनवाई में बालोतरा के उद्योग धंधों पर गिर सकती है गाज
रिफाइनरी तो पचपदरा में बन रही है, लेकिन स्कील डवलपमेंट सेंटर, पेट्रो केमिकल कॉम्पलैक्स और अन्य सुविधाएं कहां-कहां होगी, इसको लेकर असमंजश बरकरार है. सौ किमी की दूरी में इन सुविधाओं का विस्तार जहां होना है, उसके इर्द-गिर्द ही जमीन लेने को लेकर भी लोग अभी इंतजार कर रहे है. स्थानीय लोगों को अभी एक फायदा जरूर होने लगा है कि विभिन्न कंपनियां अब यहां अपने काम के लिए किराए पर जमीन और मकान लेने लगी है. इन जमीनों को मासिक किराए पर देने के लिए लोग जुगाड़ लगाने में लगे है. बाड़मेर और बालोतरा शहर में मकान भी किराए पर लिए जा रहे हैं, जिनका अच्छा किराया मिलने लगा है.