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JLF में सुधा मूर्ति, बोलीं- जिंदगी 3 घंटे की फिल्म नहीं, प्रेशर से बच्चों को रखें दूर - JLF 2025 SESSION

लेखिका और इंफोसिस फाउंडर नारायण ​मूर्ति की पत्नी सुधा मूर्ति जेएलएफ पहुंची. उन्होंने अभिभावकों को बच्चों को जिंदगी जीने की कला सिखाने की सलाह दी.

JLF 2025 Session
वरिष्ठ लेखिका सुधा मूर्ति (ETV Bharat Jaipur)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 1, 2025, 7:43 PM IST

जयपुर: हमें बच्चों को सिखाना होगा कि ये जिंदगी है 3 घंटे की फिल्म नहीं है. ये कहना है वरिष्ठ लेखिका सुधा मूर्ति का. जेएलएफ पहुंची लेखिका सुधा मूर्ति ने अभिभावकों को सलाह देते हुए कहा कि बच्चों को कंपटीशन और कॉपरेटिव से बाहर निकाल कर अच्छी सलाह दें और खुद भी मोबाइल की दुनिया से बाहर निकलें.

देश में आए दिन हो रहे स्टूडेंट के आत्महत्या के मामलों को लेकर सुधा मूर्ति ने अभिभावकों को सलाह दी है. सुधा मूर्ति ने कहा कि माता-पिता, बड़े-बुजुर्ग अपने बच्चों को कहते हैं खूब पढ़ो, अच्छे नंबर लाओ, ये बहुत जरूरी है. इस बात से वो भी इनकार नहीं करती हैं, लेकिन हमें पढ़ने के साथ ही दूसरी बातें भी बच्चों को बतानी चाहिए, जो बात उनके सिलेबस में नहीं है, जो बात उन्हें शिक्षक नहीं बता सकता है, वो माता-पिता को बतानी चाहिए. उन्होंने कहा कि आज के दौर में बच्चों को मानसिक रूप से मजबूत करना बेहद जरूरी है. किसी बच्चे को एप्पल का फोन नहीं मिलता है तो वो डिप्रेशन में चला जाता है. पिता बच्ची को घूमने नहीं जाने देते हैं तो लड़की डिप्रेशन में चली जाती है, यदि पड़ोसी के बच्चे ने आपके बच्चे से बेहतर अंक हासिल किया है तो मां डिप्रेशन में चली जाती है. ये सब इसलिए हो रहा है, क्योंकि हमारा दिमाग कमजोर हो रहा है. हमें बच्चों को सिखाना होगा कि ये जिंदगी है, 3 घंटे की फिल्म नहीं है.

वरिष्ठ लेखिका सुधा मूर्ति (ETV Bharat Jaipur)

पढ़ें: काम और परिवार के बीच संतुलन पर सुधा मूर्ति और उनकी बेटी का संवाद, ब्रिटेन से सुनने पहुंचे दामाद ऋषि सुनक

इंजीनियरिंग नहीं कर पाए, तो जिंदगी खत्म नहीं होती :उन्होंने कहा कि जीवन में अच्छाई और बुराई दोनों होती हैं. कठिनाइयां सबके जीवन में आती है, उतार और चढ़ाव जीवन का एक हिस्सा है, जो आता है और जाता है. हमें बच्चों को सिखाना चाहिए कि वो जहां है, उस स्थिति से कैसे निपटा जाए, क्योंकि कई बार माता-पिता की वजह से भी बच्चों का दिमाग कमजोर हो जाता है. सुधा मूर्ति ने कहा कि हर बच्चा आईआईटी में नहीं जा सकता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि उनमें क्षमता नहीं है. आपके पास एक जीवन है. मान लीजिए कि आप इंजीनियरिंग नहीं कर पाए तो आपका जीवन खत्म हो गया, ऐसा नहीं है. जीवन बहुत बड़ा है.

मां फोन में बीजी, तो बच्चे को सलाह नहीं दे पाएगी :सुधा मूर्ति ने कहा कि हमें अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने होंगे. उन्हें मानसिक रूप से मजबूत बनाना होगा. अगर आप मां है, तो आपको अपने बच्चों की देखभाल कर उन्हें मानसिक रूप से मजबूत बनाना चाहिए. अगर कोई मां ही फोन में बिजी रहेगी और बच्चे से कहेंगे कि तुम पढ़ो तो बच्चा नहीं पढ़ेगा. अगर मैं अपने बच्चों से कुछ कहूंगी, तो मुझे उसके लिए वैसा ही होना पड़ेगा.

बच्चों का ना करें कंपैरिजन : सुधा मूर्ति ने कहा कि पेरेंट्स को अपने बच्चों के साथ कंपैरिजन नहीं करना चाहिए. अगर आपका बच्चा 97% मार्क्स लाया है, तो आपको खुशी मनानी चाहिए, ना कि पड़ोसी के 98% मार्क्स लाने वाले बच्चों के साथ उसका कंपैरिजन करना चाहिए. कंपैरिजन दुख का सबसे बड़ा कारण है, जबकि माता-पिता को ऐसे होने चाहिए, जो अपने बच्चों को मजबूती दें और तनाव से उन्हें दूर रखें. उन्होंने कहा कि हर बच्चा एक जैसा नहीं हो सकता है. सब की क्षमताएं अलग-अलग होती हैं, इसलिए माता-पिता के साथ बच्चों को भी तनाव से निपटने की कला आनी चाहिए.

यह भी पढ़ें: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में सास सुधा मूर्ति और पत्नी अक्षता मूर्ति को सुनने पहुंचे ऋषि सुनक

पैरंट्स बच्चों पर बनाते हैं प्रेशर : उन्होंने कहा कि अगर किसी बच्चे की क्षमता 5 किलो वजन उठाने की है तो वो ज्यादा से ज्यादा 6 किलो वजन उठा सकता है, लेकिन अगर आप 5 किलो क्षमता वाले बच्चे को 25 किलो वजन उठाने के लिए कहेंगे तो वो डिप्रेशन में चला जाएगा. आजकल पेरेंट्स अपने बच्चों को आईआईटी इंजीनियर बनने के लिए मोटिवेट करते हैं, जबकि काफी बच्चे ये करने में सक्षम नहीं होते. उनके पेरेंट्स उन पर प्रेशर बनाते हैं. उन्हें बताते हैं कि हमने आपके लिए जमीन बेच दी. परेशान हालत में आपको पढ़ा रहे हैं. इससे बच्चे और ज्यादा तनाव में आ जाते हैं, जबकि उनकी इंजीनियरिंग में कोई दिलचस्पी नहीं होती है, इसलिए बच्चों को उनकी पसंद पर ही फ्यूचर बनाने की छूट दी जानी चाहिए.

उम्र के साथ बदलते गए लक्ष्य: इस दौरान उन्होंने अपनी जर्नी को शेयर करते हुए कहा कि उम्र के साथ-साथ उनके लक्ष्य बदलते चले गए. उनका विदेश से भी कोई ज्यादा लेना-देना नहीं है, वे सिर्फ अपने नाती नातिन की वजह से लंदन जाती हैं. अब उनकी पारिवारिक जिम्मेदारियां खत्म हो चुकी है अब बच्चे उन्हें संभालते हैं. उन्होंने बताया कि वे आमतौर पर शादियों में बर्थडे पार्टी और अन्य कार्यक्रमों में शामिल नहीं होती हैं. वे हर चीज को समय के हिसाब से महत्व देती हैं. उसमें समय का सबसे ज्यादा ध्यान रखती हैं, यही कारण है कि वो एक बेहतर प्रबंधन में सक्षम हैं.

यह भी पढ़ें:जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में नोबेल पुरस्कार विजेता वेंकी रामकृष्णन ने बताए लंबी उम्र के राज

साहित्य दिल से जुड़ा विषय: मूर्ति ने कहा कि आज के दौर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है, लेकिन साहित्य से इसे नहीं जोड़ा जा सकता है, क्योंकि साहित्य दिल से जुड़ा हुआ सब्जेक्ट है. वहीं, डिजिटल दौर में ऑनलाइन पढ़ने के सवाल पर जवाब देते हुए सुधा मूर्ति ने कहा कि आज के दौर में पढ़ने का तरीका बदल गया है. उनके पूर्वज भोजपत्र से पढ़ते थे. उसके बाद पढ़ने की तकनीक में बदलाव हुआ. वो स्लेट और पत्थर पर पढ़ते थे, और इसके बाद कागज पर पढ़ने लगे हैं. लगातार ज्ञान हासिल करने का तरीका बदल रहा है, लेकिन ज्ञान के प्रति प्रेम नहीं बदला है.

सोचने के तरीके में बदलाव आया: उन्होंने कहा कि आज सोशल मीडिया के दौर में सोचने के तरीके में बदलाव आ गया है. भगवान विष्णु को उनके बच्चे महाभारत के नितीश भारद्वाज की तरह दिखते थे और उनके पोते पोतियों को सौरभ की तरह. ये मीडिया और डिजिटल मीडिया की कल्पना है. लेकिन वो खुद गांव में पैदा हुई और पढ़ी लिखी हैं, उन्होंने विष्णु को 'शांताकारम भुजंग शयनाम पद्मनाभम सुरेशम' के रूप में इमेजिन किया है.

जयपुर: हमें बच्चों को सिखाना होगा कि ये जिंदगी है 3 घंटे की फिल्म नहीं है. ये कहना है वरिष्ठ लेखिका सुधा मूर्ति का. जेएलएफ पहुंची लेखिका सुधा मूर्ति ने अभिभावकों को सलाह देते हुए कहा कि बच्चों को कंपटीशन और कॉपरेटिव से बाहर निकाल कर अच्छी सलाह दें और खुद भी मोबाइल की दुनिया से बाहर निकलें.

देश में आए दिन हो रहे स्टूडेंट के आत्महत्या के मामलों को लेकर सुधा मूर्ति ने अभिभावकों को सलाह दी है. सुधा मूर्ति ने कहा कि माता-पिता, बड़े-बुजुर्ग अपने बच्चों को कहते हैं खूब पढ़ो, अच्छे नंबर लाओ, ये बहुत जरूरी है. इस बात से वो भी इनकार नहीं करती हैं, लेकिन हमें पढ़ने के साथ ही दूसरी बातें भी बच्चों को बतानी चाहिए, जो बात उनके सिलेबस में नहीं है, जो बात उन्हें शिक्षक नहीं बता सकता है, वो माता-पिता को बतानी चाहिए. उन्होंने कहा कि आज के दौर में बच्चों को मानसिक रूप से मजबूत करना बेहद जरूरी है. किसी बच्चे को एप्पल का फोन नहीं मिलता है तो वो डिप्रेशन में चला जाता है. पिता बच्ची को घूमने नहीं जाने देते हैं तो लड़की डिप्रेशन में चली जाती है, यदि पड़ोसी के बच्चे ने आपके बच्चे से बेहतर अंक हासिल किया है तो मां डिप्रेशन में चली जाती है. ये सब इसलिए हो रहा है, क्योंकि हमारा दिमाग कमजोर हो रहा है. हमें बच्चों को सिखाना होगा कि ये जिंदगी है, 3 घंटे की फिल्म नहीं है.

वरिष्ठ लेखिका सुधा मूर्ति (ETV Bharat Jaipur)

पढ़ें: काम और परिवार के बीच संतुलन पर सुधा मूर्ति और उनकी बेटी का संवाद, ब्रिटेन से सुनने पहुंचे दामाद ऋषि सुनक

इंजीनियरिंग नहीं कर पाए, तो जिंदगी खत्म नहीं होती :उन्होंने कहा कि जीवन में अच्छाई और बुराई दोनों होती हैं. कठिनाइयां सबके जीवन में आती है, उतार और चढ़ाव जीवन का एक हिस्सा है, जो आता है और जाता है. हमें बच्चों को सिखाना चाहिए कि वो जहां है, उस स्थिति से कैसे निपटा जाए, क्योंकि कई बार माता-पिता की वजह से भी बच्चों का दिमाग कमजोर हो जाता है. सुधा मूर्ति ने कहा कि हर बच्चा आईआईटी में नहीं जा सकता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि उनमें क्षमता नहीं है. आपके पास एक जीवन है. मान लीजिए कि आप इंजीनियरिंग नहीं कर पाए तो आपका जीवन खत्म हो गया, ऐसा नहीं है. जीवन बहुत बड़ा है.

मां फोन में बीजी, तो बच्चे को सलाह नहीं दे पाएगी :सुधा मूर्ति ने कहा कि हमें अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने होंगे. उन्हें मानसिक रूप से मजबूत बनाना होगा. अगर आप मां है, तो आपको अपने बच्चों की देखभाल कर उन्हें मानसिक रूप से मजबूत बनाना चाहिए. अगर कोई मां ही फोन में बिजी रहेगी और बच्चे से कहेंगे कि तुम पढ़ो तो बच्चा नहीं पढ़ेगा. अगर मैं अपने बच्चों से कुछ कहूंगी, तो मुझे उसके लिए वैसा ही होना पड़ेगा.

बच्चों का ना करें कंपैरिजन : सुधा मूर्ति ने कहा कि पेरेंट्स को अपने बच्चों के साथ कंपैरिजन नहीं करना चाहिए. अगर आपका बच्चा 97% मार्क्स लाया है, तो आपको खुशी मनानी चाहिए, ना कि पड़ोसी के 98% मार्क्स लाने वाले बच्चों के साथ उसका कंपैरिजन करना चाहिए. कंपैरिजन दुख का सबसे बड़ा कारण है, जबकि माता-पिता को ऐसे होने चाहिए, जो अपने बच्चों को मजबूती दें और तनाव से उन्हें दूर रखें. उन्होंने कहा कि हर बच्चा एक जैसा नहीं हो सकता है. सब की क्षमताएं अलग-अलग होती हैं, इसलिए माता-पिता के साथ बच्चों को भी तनाव से निपटने की कला आनी चाहिए.

यह भी पढ़ें: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में सास सुधा मूर्ति और पत्नी अक्षता मूर्ति को सुनने पहुंचे ऋषि सुनक

पैरंट्स बच्चों पर बनाते हैं प्रेशर : उन्होंने कहा कि अगर किसी बच्चे की क्षमता 5 किलो वजन उठाने की है तो वो ज्यादा से ज्यादा 6 किलो वजन उठा सकता है, लेकिन अगर आप 5 किलो क्षमता वाले बच्चे को 25 किलो वजन उठाने के लिए कहेंगे तो वो डिप्रेशन में चला जाएगा. आजकल पेरेंट्स अपने बच्चों को आईआईटी इंजीनियर बनने के लिए मोटिवेट करते हैं, जबकि काफी बच्चे ये करने में सक्षम नहीं होते. उनके पेरेंट्स उन पर प्रेशर बनाते हैं. उन्हें बताते हैं कि हमने आपके लिए जमीन बेच दी. परेशान हालत में आपको पढ़ा रहे हैं. इससे बच्चे और ज्यादा तनाव में आ जाते हैं, जबकि उनकी इंजीनियरिंग में कोई दिलचस्पी नहीं होती है, इसलिए बच्चों को उनकी पसंद पर ही फ्यूचर बनाने की छूट दी जानी चाहिए.

उम्र के साथ बदलते गए लक्ष्य: इस दौरान उन्होंने अपनी जर्नी को शेयर करते हुए कहा कि उम्र के साथ-साथ उनके लक्ष्य बदलते चले गए. उनका विदेश से भी कोई ज्यादा लेना-देना नहीं है, वे सिर्फ अपने नाती नातिन की वजह से लंदन जाती हैं. अब उनकी पारिवारिक जिम्मेदारियां खत्म हो चुकी है अब बच्चे उन्हें संभालते हैं. उन्होंने बताया कि वे आमतौर पर शादियों में बर्थडे पार्टी और अन्य कार्यक्रमों में शामिल नहीं होती हैं. वे हर चीज को समय के हिसाब से महत्व देती हैं. उसमें समय का सबसे ज्यादा ध्यान रखती हैं, यही कारण है कि वो एक बेहतर प्रबंधन में सक्षम हैं.

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साहित्य दिल से जुड़ा विषय: मूर्ति ने कहा कि आज के दौर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है, लेकिन साहित्य से इसे नहीं जोड़ा जा सकता है, क्योंकि साहित्य दिल से जुड़ा हुआ सब्जेक्ट है. वहीं, डिजिटल दौर में ऑनलाइन पढ़ने के सवाल पर जवाब देते हुए सुधा मूर्ति ने कहा कि आज के दौर में पढ़ने का तरीका बदल गया है. उनके पूर्वज भोजपत्र से पढ़ते थे. उसके बाद पढ़ने की तकनीक में बदलाव हुआ. वो स्लेट और पत्थर पर पढ़ते थे, और इसके बाद कागज पर पढ़ने लगे हैं. लगातार ज्ञान हासिल करने का तरीका बदल रहा है, लेकिन ज्ञान के प्रति प्रेम नहीं बदला है.

सोचने के तरीके में बदलाव आया: उन्होंने कहा कि आज सोशल मीडिया के दौर में सोचने के तरीके में बदलाव आ गया है. भगवान विष्णु को उनके बच्चे महाभारत के नितीश भारद्वाज की तरह दिखते थे और उनके पोते पोतियों को सौरभ की तरह. ये मीडिया और डिजिटल मीडिया की कल्पना है. लेकिन वो खुद गांव में पैदा हुई और पढ़ी लिखी हैं, उन्होंने विष्णु को 'शांताकारम भुजंग शयनाम पद्मनाभम सुरेशम' के रूप में इमेजिन किया है.

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