जयपुर: भारतीय क्रिकेट टीम भारत की टीम नहीं, ये उन इंडियन सिटीजन की टीम है जो बीसीसीआई के लिए खेलती है. ये कहना है खेल, कानून विशेषज्ञ नंदन कामथ का. शनिवार को जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में 'द स्पिरिट ऑफ द गेम' सेशन में खेल प्रशासन, खिलाड़ियों के अधिकारों और खेलों में सुधार को लेकर चर्चा करते हुए उन्होंने ये बात कही.
खेलों के प्रति नीतिगत रवैये और व्यवस्थागत खामियों पर चर्चा के लिए जेएलएफ के पैनल में पैरालंपियन दीपा मलिक, खेल कानून विशेषज्ञ नंदन कामथ और एक्टर-स्पोर्ट्स एंबेसडर राहुल बोस शामिल हुए. इस दौरान नंदन कामथ ने भारतीय खेल ढांचे और खिलाड़ियों के अधिकारों पर बात करते हुए कहा कि खेल सिर्फ एक मनोरंजन नहीं, बल्कि एक सार्वजनिक संपत्ति है. उन्होंने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के रवैये पर सवाल उठाते हुए कहा कि भारतीय क्रिकेट टीम भारत की टीम नहीं, ये उन इंडियन सिटीजन की टीम है जो बीसीसीआई के लिए खेलती है.
उन्होंने कहा कि वे बीसीसीआई के लोगो वाली जर्सी पहनते हैं. उन्होंने प्लेयर्स के जर्सी पर लोगो को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई का भी जिक्र किया. साथ ही कहा कि बीसीसीआई सोच चले, तो एमएस धोनी को हेलिकॉप्टर शॉट का पेटेंट लेने की इजाजत मिल जानी चाहिए, क्योंकि वे इसे करने वाले पहले खिलाड़ी थे. साथ ही तंज कसते हुए शास्त्री के चपाती शॉट को भी इससे जोड़ा.
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स्कूलों में अनिवार्य हों खेल: वहीं नंदन कामथ ने खेलों में एक मजबूत गवर्नेंस सिस्टम की जरूरत पर जोर दिया और कहा कि भारत में कई खेल ऐसे हैं जिनमें हम अभी भी वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा तक नहीं पहुंच पाए हैं. उन्होंने सरकार को सुझाव दिया कि खेलों को स्कूल एजुकेशन में अनिवार्य किया जाए, ताकि ज्यादा से ज्यादा मेडल देश में आ सकें. नंदन कामथ ने खेलों के इकोसिस्टम और व्यापक प्रभाव पर चर्चा करते हुए कहा कि भारत में 75 फीसदी युवा पर्याप्त रूप से शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं हैं. खेलों की सफलता को केवल ओलंपिक और पैरालंपिक मेडल तालिका से नहीं आंका जाना चाहिए. खेलों का रिपोर्ट कार्ड 'तीन एफ-फन, फ्रेंड्स और फिटनेस' के आधार पर मापना चाहिए.
TOPS स्कीम का नाम बदलने की मांग: वहीं इस दौरान पैरालंपिक गोल्ड मेडलिस्ट दीपा मलिक ने अपने संघर्षों और पैरालंपिक खेलों में सुधारों पर बात की. उन्होंने बताया कि जब उन्हें 2015 में टार्गेट ओलंपिक पोडियम स्कीम (TOPS) में शामिल किया गया, तभी उनके करियर में बड़ा बदलाव आया. इस स्कीम के तहत उन्हें प्रोफेशनल ट्रेनिंग और सपोर्ट मिला, लेकिन सरकारी नीतियों की कुछ सीमाएं थीं, जिसके कारण उन्हें अपने बायोमैकेनिक ट्रेनर को हायर करने के लिए हाईकोर्ट तक जाना पड़ा. उन्होंने पैरालंपिक खेलों के बढ़ते कद पर बात करते हुए कहा कि 1968 से 2016 तक भारत ने सिर्फ 12 मेडल जीते थे, जबकि 2021 पैरालंपिक में ये संख्या 48 हो गई. उन्होंने TOPS स्कीम का नाम बदलने की मांग की ताकि ये केवल ओलंपिक तक सीमित न रहे, बल्कि टार्गेट ओलंपिक और पैरालंपिक पोडियम स्कीम बनकर समावेशिता को दर्शाए.
महिला खिलाड़ियों का पोषण प्रभावित: वहीं राहुल बोस ने खेलों में न्यूट्रिशन और सही प्लानिंग की कमी को लेकर अपनी चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा कि कई छोटे शहरों और गांवों में खिलाड़ी सही डाइट तक नहीं ले पाते. जब उन्होंने नेशनल लेवल की महिला खिलाड़ियों से उनकी डाइट के बारे में पूछा, तो शुरुआत में कोई खुलकर कुछ नहीं बोली, लेकिन बाद में पता चला कि कई महिला खिलाड़ी अपने घर में सबसे बाद में खाती हैं, जिससे उनका पोषण प्रभावित होता है.
खेल संघों को आजादी और जिम्मेदारी दें: उन्होंने खेल संघों की जवाबदेही पर भी सवाल उठाया और कहा कि फेडरेशन को पूरी आजादी चाहिए, लेकिन उनके ऊपर जिम्मेदारी भी होनी चाहिए. खेल संघों का काम केवल खिलाड़ियों को अवसर देना है, न कि गरीबी दूर करना या सामाजिक सुधार करना. बोस ने खेल संरचना के भविष्य पर बात करते हुए कहा कि अगले 10 सालों में खेलों की दिशा ज्यादा स्पष्ट और संगठित होगी. हर खेल के लिए इंडिविजुअल लीग मॉडल काम नहीं करता और कई लीग गलत फाइनेंशियल प्लानिंग की वजह से असफल हुई हैं.