छीपाबड़ौद (बारां). जिले के छीपाबड़ौद में काला सोना कहलाने वाली अफीम की फसल में सफेद फूल और डोडिया आ चुकी है. बस अब चीरा लगाने का काम शुरू हो गया है. काला सोना कही जाने वाली अफीम की फसल को स्थानीय तस्करों, प्राकृतिक प्रकोप, मवेशियों और पक्षियों से बचाने के लिए किसान सुरक्षा में जुटे हुए हैं.
अफीम उत्पादक किसान इन दिनों अफीम के खेतों में ही झोपड़ियां बनाकर दिन-रात वहां रहकर काले सोने की रखवाली कर रहे हैं. जब से अफीम में फूल और डोडे आने लगे हैं. तब से किसान खेतों को नहीं छोड़ रहे है. क्योंकि जरा सी चूक से आर्थिक नुकसान के साथ अफीम पट्टा कटने तक की नौबत आ सकती है.
क्षेत्र में इस साल अबतक के मौसम को देखते हुए अफीम का अच्छा उत्पादन होने की संभावना है. हाड़ौती की प्रमुख फसलों में से एक अफीम की फसल को यूं ही काला सोना नहीं कहा जाता. किसानों को बुवाई से लेकर तौल तक इसे सोने की तरह सहेजना पड़ता है.
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25 हेक्टेयर में खेती
छबड़ा तहसील के 66 गांव में 408 लाइसेंस विभाग द्वारा दिए गए हैं. लगभग 25 हेक्टेयर में बुवाई की गई है. कृषि अधिकारी के मुताबिक किसान अब अफीम की फसल में चीरा लगाने का काम शुरू करने लगे हैं. अप्रैल के महीने में नारकोटिक्स विभाग द्वारा अफीम तुलाई का कार्य किया जाएगा.
क्षेत्र के ग्राम भटखेड़ी निवासी अफीम की खेती कर रहे किसान बाबूलाल, कैलाश नारायण, हरिप्रसाद, सौदान मेहता और सुरेश कुमार ने बताया, कि नारकोटिक्स विभाग द्वारा अफीम फसल के लिए रकबा कम करने से किसानों की अफीम की फसल की बुवाई करने में रुचि कम हुई है.
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पहले छीपाबड़ौद क्षेत्र अफीम उत्पादक क्षेत्र की गिनती में आता था. इस क्षेत्र में हजारों की संख्या में अफीम के पट्टे हुआ करते थे, लेकिन तस्करी होने और नशीले मादक पदार्थ बनने के चलते अब इस क्षेत्र में नारकोटिक्स विभाग द्वारा अफीम के पट्टे नाम मात्र के कर दिए गए हैं. क्योंकि इस क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय तस्कर तक यहां से नशीले मादक पदार्थों की तस्करी करते थे और आज भी चोरी छिपे इस क्षेत्र में तस्करी होती है.
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छीपाबड़ौद क्षेत्र का ढोलम गांव पहले नशे की चपेट में था. लेकिन अब कम पट्टे मिलने से गांव के हालात काफी सुधर गए है. नशे की गिरफ्त में आकर इस क्षेत्र में हजारों परिवार घर से बेघर हो गए हैं. लेकिन आज भी इस क्षेत्र में चोरी छिपे नशीले मादक पदार्थों की तस्करी समेत बिक्री जारी है.