अंता (बारां). इसे बदकिस्मती कहें या कुदरत का कहर. जिन माता-पिता के चार-चार बेटे हों, उन्हें बुढ़ापे की चिंता नहीं रहती. लेकिन बच्चे अगर निर्दयी, निर्मोही होकर माता-पिता को घर से बेघर कर दें, तो शायद उससे बदकिस्मत इंसान कोई और नहीं हो सकता. यह कहानी है बारां जिले के अंता में रहने वाले 80 साल के एक असहाय बुजुर्ग पिता की. चार-चार बेटे व एक बेटी के होते हुए भी आज सड़कों पर दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर है. घर-घर जाकर दो वक्त की रोटी मांग कर कैसे-जैसे गुजारा कर रहे हैं. 8 साल हो चुके हैं, लेकिन चारों बेटों में से एक ने भी इस बात की खबर नहीं ली कि उनका पिता किस हाल में है.
यह भी पढ़ें: बाड़मेरः बंद पड़े ट्यूबवेल से निकल रही दो दिन से आग की लपटें, ग्रामीणों में दहशत का माहौल
खाने के पड़े लाले
जानकारी के अनुसार, 80 वर्षीय एक बुजुर्ग 4 लड़कों का पिता होने के बावजूद उम्र के आखिरी पड़ाव में दर दर की ठोकरें खा रहा है. चारों लड़को ने बुजुर्ग की जमीन को अपने नाम करवाने के बाद बुजुर्ग को घर से बाहर निकाल दिया. ऐसे में गत 8 वर्षों से बुजुर्ग के सामने रहने और खाने के लाले पड़े हुए हैं.
भगवान बना सहारा
बुजुर्ग ने फिलहाल एक मंदिर को अपना आशियाना बना रखा है. लेकिन, खाने के लिए अब भी दर दर भटकना पड़ता है. ठिकरिया गांव निवासी 80 वर्षीय जयनारायण माली बुजुर्ग अपनी पत्नी की मौत के बाद गत 8 वर्षों से दर दर की ठोकरे खाने पर मजबूर है. बुजुर्ग के 4 जवान लड़के तथा एक लड़की होने के बावजूद आज जीवन यापन करना मुश्किल हो रहा है.
यह भी पढ़ें: ओवैसी की एंट्री की आहट के बाद स्ट्रेटजी में जुटी राजस्थान कांग्रेस, मुस्लिम अल्पसंख्यकों को ऐसे करेगी खुश
बुजुर्ग द्वारा भरण पोषण को लेकर एसडीओ कार्यालय में फरियाद की गई थी, जिस पर 25 अक्टूबर 2012 से 5 हजार रुपये देने के आदेश दिए गए थे. परन्तु लड़कों द्वारा प्रथम क़िस्त के रूप में 5 हजार रुपये देने के बाद मना कर दिया. ऐसे में बुजुर्ग भरण पोषण की राशि को लेकर प्रशासनिक अधिकारियों के भी चक्कर लगा लगा कर थक चुका है. बुजुर्ग का कहना है कि उसके पास 28 बीघा जमीन थी, जिसे लड़कों ने अपने नाम करवा लिया था, रहने का मकान भी बेच डाला. ऐसे में वह बेघर हो चुका है. कई बार तो खाने का जुगाड़ नहीं होने के कारण भूखे सोने तक की नौबत भी आ जाती है.