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पलायन का दंश: बांध के किनारे बसे होने के बाद भी पलायन का दंश झेलने को मजबूर, पेट पालने के लिए पड़ोसी राज्य में मजदूरी ही सहारा

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Published : Dec 27, 2019, 6:03 PM IST

Updated : Dec 27, 2019, 6:52 PM IST

किसान को खेती करने के लिए पानी से ज्यादा क्या चाहिए, लेकिन बांसवाड़ा में पानी पास होने के बावजूद भी हजारों की संख्या में किसान पलायन करने को मजबूर है. इसे अजीब स्थिति कहे या किस्मत की मार की बांसवाड़ा का छोटी सरवन उपखंड क्षेत्र माही बांध के पास होने के बावजूद भी पलायन का दंश झेल रहा है. देखिए बांसवाड़ा से स्पेशल स्टोरी...

Villagers migrating, choti sarwan Banswara
बांसवाड़ा के छोटी सरवन में लोग पलायन को मजबूर

बांसवाड़ा. राजस्थान का चेरापूंजी बांसवाड़ा को कहा जाता है, यानी पानी की दृष्टि से प्रदेश का सबसे खुशनसीब जिला माना जा सकता है. माही बांध प्रदेश का दूसरा तो उदयपुर संभाग का सबसे बड़ा बांध है, जोकि यहां के किसानों के लिए एक प्रकार से वरदान बन चुका है. लेकिन बांध के बैक वाटर एरिया में पड़ने वाला छोटी सरवन उपखंड क्षेत्र के लोगों को बांध का पानी अपने घर और गांव से स्पष्ट दिखाई देता है, जो इन लोगों के लिए केवल आंखों को सुकून देने वाली ही साबित हो रहा है. एक ओर समंदर से फैला माही बांध का पानी तो दूसरी तरफ छोटी सरवन उपखंड क्षेत्र की हजारों बीघा जमीन सूखी पड़ी है.

बांसवाड़ा के छोटी सरवन में लोग पलायन को मजबूर

पढ़ें- रोजगार न मिलने से पलायन को मजबूर सहरिया परिवार, रोजी-रोटी के जुगाड़ में दूसरे शहर और पड़ोस के राज्यों का कर रहे रूख

90 हजार की आबादी को माही बांध का पानी तरसा रहा
करीब 90 हजार लोगों की आबादी और 19 ग्राम पंचायतों वाला यह उपखंड क्षेत्र बांध का केचमेंट एरिया है और यहां से निकलने वाला बरसाती पानी इस बांध को लबालब करता है, लेकिन बांध का यह पानी बाद में इन लोगों को केवल तरसाता हुआ प्रतीत करता है. बांध का बैक वाटर एरिया होने के कारण सिंचाई तो दूर की बात यहां के लोग कंठ तर करने तक को तरस जाते हैं.

मानसूनी फसल के बाद पेट भरने के लिए यहां के लोगों के लिए गुजरात और मध्य प्रदेश सहित दूरदराज के इलाकों में मजदूरी ही एकमात्र विकल्प है. हर परिवार से कोई ना कोई सदस्य परिजनों का पेट पालने को पलायन कर जाता है. हालत यह है कि दीपावली से पहले 3 से 4 महीने इन गांव में बड़े बुजुर्गों और बच्चे ही नजर आते हैं. घर के युवा सदस्य दूरदराज मजदूरी के लिए निकल जाते हैं जो दीपावली तक लौटते हैं.

पढ़ें- कोटाः अपने ही क्षेत्र को छोड़ व्यापारी दूसरे जिले से महंगा कोटा स्टोन खरीदने को मजबूर, मजदूर भी क्षेत्र से कर रहे पलायन

मानसूनी फसल के बाद पलायन को मजबूर ग्रामीण
यही नहीं कई परिवारों से लोगों के समक्ष मानसूनी फसल के बाद गुजर बसर के लिए पलायन के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं रहता. रतलाम राजमार्ग पर स्थित छोटी सरवन पंचायत समिति क्षेत्र के हजारों लोगों के समक्ष पलायन मजबूरी बन चुका है. बारिश के बाद से ही यहां पेयजल संकट गहराने लगता है. बांध तल से काफी ऊंचाई पर होने के कारण बांध बनने की करीब 35 साल बाद भी सरकार यहां नहर नहीं पहुंचा पाई.

ईटीवी भारत की टीम ने छोटी सरवन क्षेत्र के कुटुंबी, बारी, पीपली पारा, दानपुर घोड़ी तेजपुर सहित आसपास के एक दर्जन गांवों का दौरा किया, तो चौंकाने वाली तस्वीरें सामने आई. कई कच्चे मकानों पर अभी से ताले नजर आए. पिपली पाड़ा बस स्टैंड पर करीब एक दर्जन लोग खाने-पीने के सामान और बिस्तरों सहित बस का इंतजार करते मिले. यह लोग मजदूरी के लिए उज्जैन जा रहे थे. परिवार के साथ जा रहे लोगों ने बताया कि घर पर अब कोई काम बचा नहीं है. पानी के अभाव में खेत खाली है तो मजदूरी करना उनकी मजबूरी है. इसीलिए गांव से जा रहे है. गांव से पलायन कर रहे लोगों में से कोई 10 दिन रहेगा तो कोई 15 दिन रहेगा. घर खर्च जितना पैसा कमाने के बाद घर लौट आएंगे. यह उनके लिए रूटीन बन चुका है.

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: 24 घंटे डर के साए में जीते हैं सरिस्का के जंगलों में रहने वाले लोग, गांव में पहली बार पहुंचा ईटीवी का कैमरा

करीब 15 से 20 हजार लोग करते है गांव से पलायन
हर गांव से बड़ी संख्या में लोग बाहर मजदूरी करने को मजबूर है. एक अनुमान के अनुसार उपखंड क्षेत्र से करीब 15 से 20 हजार लोग कामकाज के लिहाज से दूरदराज के लिए निकल जाते हैं.वहीं लोगों में सरकार की अनदेखी से काफी नाराज नजर आती है. लोगों का कहना है कि नेता लोग चुनाव आते ही बांध का पानी लाने का वादा कर जाते हैं, लेकिन जैसे ही चुनाव जीते हैं. फिर कोई इस तरफ देखता भी नहीं है. हालत यह है कि पीने के पानी तक की व्यवस्था नहीं हो पाती है. ऐसे में पेट पालने के लिए यहां के लोगों को गुजरात, मध्य प्रदेश और कोई भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, निंबाहेड़ा फैक्ट्रियों में मजदूरी के लिए निकलना पड़ता है.

बांसवाड़ा. राजस्थान का चेरापूंजी बांसवाड़ा को कहा जाता है, यानी पानी की दृष्टि से प्रदेश का सबसे खुशनसीब जिला माना जा सकता है. माही बांध प्रदेश का दूसरा तो उदयपुर संभाग का सबसे बड़ा बांध है, जोकि यहां के किसानों के लिए एक प्रकार से वरदान बन चुका है. लेकिन बांध के बैक वाटर एरिया में पड़ने वाला छोटी सरवन उपखंड क्षेत्र के लोगों को बांध का पानी अपने घर और गांव से स्पष्ट दिखाई देता है, जो इन लोगों के लिए केवल आंखों को सुकून देने वाली ही साबित हो रहा है. एक ओर समंदर से फैला माही बांध का पानी तो दूसरी तरफ छोटी सरवन उपखंड क्षेत्र की हजारों बीघा जमीन सूखी पड़ी है.

बांसवाड़ा के छोटी सरवन में लोग पलायन को मजबूर

पढ़ें- रोजगार न मिलने से पलायन को मजबूर सहरिया परिवार, रोजी-रोटी के जुगाड़ में दूसरे शहर और पड़ोस के राज्यों का कर रहे रूख

90 हजार की आबादी को माही बांध का पानी तरसा रहा
करीब 90 हजार लोगों की आबादी और 19 ग्राम पंचायतों वाला यह उपखंड क्षेत्र बांध का केचमेंट एरिया है और यहां से निकलने वाला बरसाती पानी इस बांध को लबालब करता है, लेकिन बांध का यह पानी बाद में इन लोगों को केवल तरसाता हुआ प्रतीत करता है. बांध का बैक वाटर एरिया होने के कारण सिंचाई तो दूर की बात यहां के लोग कंठ तर करने तक को तरस जाते हैं.

मानसूनी फसल के बाद पेट भरने के लिए यहां के लोगों के लिए गुजरात और मध्य प्रदेश सहित दूरदराज के इलाकों में मजदूरी ही एकमात्र विकल्प है. हर परिवार से कोई ना कोई सदस्य परिजनों का पेट पालने को पलायन कर जाता है. हालत यह है कि दीपावली से पहले 3 से 4 महीने इन गांव में बड़े बुजुर्गों और बच्चे ही नजर आते हैं. घर के युवा सदस्य दूरदराज मजदूरी के लिए निकल जाते हैं जो दीपावली तक लौटते हैं.

पढ़ें- कोटाः अपने ही क्षेत्र को छोड़ व्यापारी दूसरे जिले से महंगा कोटा स्टोन खरीदने को मजबूर, मजदूर भी क्षेत्र से कर रहे पलायन

मानसूनी फसल के बाद पलायन को मजबूर ग्रामीण
यही नहीं कई परिवारों से लोगों के समक्ष मानसूनी फसल के बाद गुजर बसर के लिए पलायन के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं रहता. रतलाम राजमार्ग पर स्थित छोटी सरवन पंचायत समिति क्षेत्र के हजारों लोगों के समक्ष पलायन मजबूरी बन चुका है. बारिश के बाद से ही यहां पेयजल संकट गहराने लगता है. बांध तल से काफी ऊंचाई पर होने के कारण बांध बनने की करीब 35 साल बाद भी सरकार यहां नहर नहीं पहुंचा पाई.

ईटीवी भारत की टीम ने छोटी सरवन क्षेत्र के कुटुंबी, बारी, पीपली पारा, दानपुर घोड़ी तेजपुर सहित आसपास के एक दर्जन गांवों का दौरा किया, तो चौंकाने वाली तस्वीरें सामने आई. कई कच्चे मकानों पर अभी से ताले नजर आए. पिपली पाड़ा बस स्टैंड पर करीब एक दर्जन लोग खाने-पीने के सामान और बिस्तरों सहित बस का इंतजार करते मिले. यह लोग मजदूरी के लिए उज्जैन जा रहे थे. परिवार के साथ जा रहे लोगों ने बताया कि घर पर अब कोई काम बचा नहीं है. पानी के अभाव में खेत खाली है तो मजदूरी करना उनकी मजबूरी है. इसीलिए गांव से जा रहे है. गांव से पलायन कर रहे लोगों में से कोई 10 दिन रहेगा तो कोई 15 दिन रहेगा. घर खर्च जितना पैसा कमाने के बाद घर लौट आएंगे. यह उनके लिए रूटीन बन चुका है.

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: 24 घंटे डर के साए में जीते हैं सरिस्का के जंगलों में रहने वाले लोग, गांव में पहली बार पहुंचा ईटीवी का कैमरा

करीब 15 से 20 हजार लोग करते है गांव से पलायन
हर गांव से बड़ी संख्या में लोग बाहर मजदूरी करने को मजबूर है. एक अनुमान के अनुसार उपखंड क्षेत्र से करीब 15 से 20 हजार लोग कामकाज के लिहाज से दूरदराज के लिए निकल जाते हैं.वहीं लोगों में सरकार की अनदेखी से काफी नाराज नजर आती है. लोगों का कहना है कि नेता लोग चुनाव आते ही बांध का पानी लाने का वादा कर जाते हैं, लेकिन जैसे ही चुनाव जीते हैं. फिर कोई इस तरफ देखता भी नहीं है. हालत यह है कि पीने के पानी तक की व्यवस्था नहीं हो पाती है. ऐसे में पेट पालने के लिए यहां के लोगों को गुजरात, मध्य प्रदेश और कोई भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, निंबाहेड़ा फैक्ट्रियों में मजदूरी के लिए निकलना पड़ता है.

Intro:राहुल जी पांडे के लिए .......

बांसवाड़ा। बांसवाड़ा को राजस्थान का चेरापूंजी भी कहा जाता है अर्थात पानी की दृष्टि से प्रदेश का सबसे खुशनसीब जिला माना जा सकता है। माही बांध प्रदेश का दूसरा तो उदयपुर संभाग का सबसे बड़ा बांध है जोकि यहां के किसानों के लिए एक प्रकार से वरदान बन चुका है लेकिन हम इसकी एक दूसरी तस्वीर भी आपके सामने रख रहे हैं। बांध के बैक वाटर एरिया में पड़ने वाला छोटी सरवन उपखंड क्षेत्र के लोगों को बांध का पानी अपने घर और गांव से स्पष्ट दिखाई देता है जो इन लोगों के लिए केवल मृग मरीचिका साबित हो रहा है। एक और समंदर से फैला बांध का पानी तो दूसरी ओर छोटी सरवन उपखंड क्षेत्र की हजारों बीघा सूखी जमीन।


Body:करीब 90000 लोगों की आबादी और 19 ग्राम पंचायतों वाला यह उपखंड क्षेत्र बांध का केचमेंट एरिया है और यहां से निकलने वाला बरसाती पानी इस बांध को लबालब करता है लेकिन बांध का यह पानी बाद में इन लोगों को केवल तरसाता हुआ प्रतीत होता है। बांध का बैक वाटर एरिया होने के कारण सिंचाई तो दूर की बात यहां के लोग कंठ तर करने तक को तरस जाते हैं। मानसूनी फसल के बाद पेट भरने के लिए यहां के लोगों के लिए गुजरात और मध्य प्रदेश सहित दूरदराज के इलाकों में मजदूरी ही एकमात्र विकल्प है। हर परिवार से कोई न कोई सदस्य परिजनों का पेट पालने को पलायन कर जाता है। हालत यह है कि दीपावली से पहले 3 से 4 महीने इन गांव में बड़े बुजुर्गों और बच्चे ही नजर आते हैं। घर के युवा सदस्य दूरदराज मजदूरी के लिए निकल जाते हैं जो दीपावली तक लौटते हैं। यही नहीं कई परिवारों से लोगों के समक्ष मानसूनी फसल लेने के बाद गुजर बसर के लिए पलायन के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं रहता । ऐसे में दीपावली के बाद ही घर छोड़ना पड़ जाता है। रतलाम राजमार्ग पर स्थित छोटी सरवन पंचायत समिति क्षेत्र के हजारों लोगों के समक्ष पलायन मजबूरी बन चुका है। बारिश के बाद से ही यहां पेयजल संकट गहराने लगता है। बांध तल से काफी ऊंचाई पर होने के कारण बांध बनने की करीब 35 साल बाद भी सरकार यहां नहर नहीं पहुंचा पाई। ईटीवी भारत की टीम ने छोटी सरवन क्षेत्र के कुटुंबी, बारी, पीपली पारा, दानपुर घोड़ी तेजपुर सहित आसपास के एक दर्जन गांवों का दौरा किया तो कई स्तब्ध कर देने वाली बातें सामने आई। कई कच्चे मकानों पर अभी से ताले नजर आए। पिपली पाड़ा बस स्टैंड पर करीब एक दर्जन लोग खाने पीने के सामान और बिस्तरों सहित बस का इंतजार करते मिले। यह लोग मजदूरी के लिए उज्जैन जा रहे थे। परिवार के मुखिया रमेश चंद्र का कहना था कि घर पर अब कोई काम बचा नहीं है। पानी के अभाव में खेत खाली है तो मजबूरी करना उनकी मजबूरी है। इसीलिए उज्जैन जा रहे हैं। कोई 10 दिन रहेगा कोई 15 दिन रहेगा। घर खर्च जितना पैसा कमाने के बाद घर लौट आएंगे। यह हमारे लिए रूटीन बन चुका है। राजू डिंडोर का कहना था कि पानी नहीं है तो खेती कैसे करें। कोई कामकाज नहीं है ऐसे में भूखा तो सो नहीं सकते इसलिए मजदूरी करने जाना पड़ता है।


Conclusion:हरगांव से बड़ी संख्या में लोग बाहर मजदूरी करने को मजबूर है। एक अनुमान के अनुसार उपखंड क्षेत्र से करीब 15 से 20000 लोग कामकाज के लिहाज से दूरदराज के लिए निकल जाते हैं। बारी के लाल शंकर मईडा सरकार की अनदेखी से काफी नाराज नजर आए। उनका कहना था कि नेता लोग चुनाव आते ही बांध का पानी लाने का वादा कर जाते हैं लेकिन जैसे ही चुनाव जीते हैं अगले चुनाव तक मोहब्बत नहीं बताते। हालत यह है कि पीने के पानी तक का जुगाड़ नहीं हो पाता। ऐसे में पेट पालने के लिए कोई गुजरात तो कोई मध्य प्रदेश और कोई भीलवाड़ा चित्तौड़गढ़ निंबाहेड़ा फैक्ट्रियों में मजदूरी के लिए निकल जाता है। इसके सिवा और अन्य कोई विकल्प भी तो नहीं है। अंकित का कहना था कि इन गांवों में रोजगार का कोई साधन नहीं है और युवा इधर उधर भटकने को मजबूर है। बुड्ढे माता-पिता और बच्चों को छोड़कर उनके सामने दूरदराज मजबूरी पर जाना ही एकमात्र विकल्प है। राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय कटुंबी के व्याख्याता श्याम बिहारी का कहना था कि बांध से ऊंचाई पर होना इस क्षेत्र के लिए श्राप बन चुका है। खरीफ की फसल लेने के बाद पानी के अभाव में कोई अन्य फसल नहीं ली जा सकती। ऐसे में यहां के लोगों के लिए पलायन एक मजबूरी बन चुका है।



बाइट.......1. रमेश चंद्र ग्रामीण
.........2. राजू डिंडोर ग्रामीण
..........3. लाल शंकर मईडा बेरोजगार युवा
...........4. अंकित कुमार छात्र
...........5. श्याम बिहारी व्याख्याता राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय कटुंबी
Last Updated : Dec 27, 2019, 6:52 PM IST
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