बांसवाड़ा. राजस्थान का चेरापूंजी बांसवाड़ा को कहा जाता है, यानी पानी की दृष्टि से प्रदेश का सबसे खुशनसीब जिला माना जा सकता है. माही बांध प्रदेश का दूसरा तो उदयपुर संभाग का सबसे बड़ा बांध है, जोकि यहां के किसानों के लिए एक प्रकार से वरदान बन चुका है. लेकिन बांध के बैक वाटर एरिया में पड़ने वाला छोटी सरवन उपखंड क्षेत्र के लोगों को बांध का पानी अपने घर और गांव से स्पष्ट दिखाई देता है, जो इन लोगों के लिए केवल आंखों को सुकून देने वाली ही साबित हो रहा है. एक ओर समंदर से फैला माही बांध का पानी तो दूसरी तरफ छोटी सरवन उपखंड क्षेत्र की हजारों बीघा जमीन सूखी पड़ी है.
90 हजार की आबादी को माही बांध का पानी तरसा रहा
करीब 90 हजार लोगों की आबादी और 19 ग्राम पंचायतों वाला यह उपखंड क्षेत्र बांध का केचमेंट एरिया है और यहां से निकलने वाला बरसाती पानी इस बांध को लबालब करता है, लेकिन बांध का यह पानी बाद में इन लोगों को केवल तरसाता हुआ प्रतीत करता है. बांध का बैक वाटर एरिया होने के कारण सिंचाई तो दूर की बात यहां के लोग कंठ तर करने तक को तरस जाते हैं.
मानसूनी फसल के बाद पेट भरने के लिए यहां के लोगों के लिए गुजरात और मध्य प्रदेश सहित दूरदराज के इलाकों में मजदूरी ही एकमात्र विकल्प है. हर परिवार से कोई ना कोई सदस्य परिजनों का पेट पालने को पलायन कर जाता है. हालत यह है कि दीपावली से पहले 3 से 4 महीने इन गांव में बड़े बुजुर्गों और बच्चे ही नजर आते हैं. घर के युवा सदस्य दूरदराज मजदूरी के लिए निकल जाते हैं जो दीपावली तक लौटते हैं.
मानसूनी फसल के बाद पलायन को मजबूर ग्रामीण
यही नहीं कई परिवारों से लोगों के समक्ष मानसूनी फसल के बाद गुजर बसर के लिए पलायन के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं रहता. रतलाम राजमार्ग पर स्थित छोटी सरवन पंचायत समिति क्षेत्र के हजारों लोगों के समक्ष पलायन मजबूरी बन चुका है. बारिश के बाद से ही यहां पेयजल संकट गहराने लगता है. बांध तल से काफी ऊंचाई पर होने के कारण बांध बनने की करीब 35 साल बाद भी सरकार यहां नहर नहीं पहुंचा पाई.
ईटीवी भारत की टीम ने छोटी सरवन क्षेत्र के कुटुंबी, बारी, पीपली पारा, दानपुर घोड़ी तेजपुर सहित आसपास के एक दर्जन गांवों का दौरा किया, तो चौंकाने वाली तस्वीरें सामने आई. कई कच्चे मकानों पर अभी से ताले नजर आए. पिपली पाड़ा बस स्टैंड पर करीब एक दर्जन लोग खाने-पीने के सामान और बिस्तरों सहित बस का इंतजार करते मिले. यह लोग मजदूरी के लिए उज्जैन जा रहे थे. परिवार के साथ जा रहे लोगों ने बताया कि घर पर अब कोई काम बचा नहीं है. पानी के अभाव में खेत खाली है तो मजदूरी करना उनकी मजबूरी है. इसीलिए गांव से जा रहे है. गांव से पलायन कर रहे लोगों में से कोई 10 दिन रहेगा तो कोई 15 दिन रहेगा. घर खर्च जितना पैसा कमाने के बाद घर लौट आएंगे. यह उनके लिए रूटीन बन चुका है.
करीब 15 से 20 हजार लोग करते है गांव से पलायन
हर गांव से बड़ी संख्या में लोग बाहर मजदूरी करने को मजबूर है. एक अनुमान के अनुसार उपखंड क्षेत्र से करीब 15 से 20 हजार लोग कामकाज के लिहाज से दूरदराज के लिए निकल जाते हैं.वहीं लोगों में सरकार की अनदेखी से काफी नाराज नजर आती है. लोगों का कहना है कि नेता लोग चुनाव आते ही बांध का पानी लाने का वादा कर जाते हैं, लेकिन जैसे ही चुनाव जीते हैं. फिर कोई इस तरफ देखता भी नहीं है. हालत यह है कि पीने के पानी तक की व्यवस्था नहीं हो पाती है. ऐसे में पेट पालने के लिए यहां के लोगों को गुजरात, मध्य प्रदेश और कोई भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, निंबाहेड़ा फैक्ट्रियों में मजदूरी के लिए निकलना पड़ता है.