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Reality Check: 'उज्जवला' से रोशन हुए गरीब के चूल्हे पर चंद दिनों में ही छाया तंगहाली की अमावस का अंधेरा - मोदी सरकार

उज्जवला गैस योजना का मकसद गरीब परिवार को चूल्हे के धुएं से मुक्ति दिलाना था. हालांकि इस गैस योजना से गरीब की रसोई में रोशनी तो आई. लेकिन, चंद दिनों के बाद फिर से धुएं का काला अंधेरा छा गया. ऐसे में जब उज्जवला गैस योजना के रियलिटी चेक के लिए ईटीवी भारत बांसवाड़ा पहुंचा, जहां योजना लोगों की बेरुखी का शिकार होती दिखी, देखिए स्पेशल रिपोर्ट..

Ujjwala gas scheme, Reality check of Ujjwala gas scheme
बांसवाड़ा में उज्जवला योजना का सच
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Published : Feb 22, 2020, 3:05 PM IST

बांसवाड़ा. मोदी सरकार की उज्ज्वला गैस योजना की हकीकत जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम शहर के श्यामपुरा बस्ती क्षेत्र के पार्ट-2 में पहुंची. जहां अधिकांश महिलाएं चूल्हे के धुएं के बीच खाना पकाती मिली. केंद्र सरकार की उज्जवला योजना लोगों की बेरुखी का शिकार होकर रह गई है. हालांकि अधिकांश लोग गरीब वर्ग के ही इसका लाभ ले पाए हैं. लेकिन उनके लिए अधिकांश परिवार लगातार गैस का उपयोग करने में सक्षम नहीं है और गाहे-बगाहे रसोई गैस का उपयोग करते हैं. इन परिवारों में अधिकांश मजदूर और किसान वर्ग के हैं. जिनके लिए समय-समय पर गैस रिफिलिंग कराना बूते से बाहर है.

बांसवाड़ा में उज्जवला गैस योजना का रियलिटी चेक

चूल्हे के धुएं से उबर नहीं पाए परिवार

हालत यह है कि शहरी क्षेत्र में लोग 3 से 4 महीने तक रिफिलिंग नहीं करवाते, तो ग्रामीण क्षेत्र में हालत और भी बदतर कही जा सकती है. जहां बड़ी संख्या में ऐसे उपभोक्ता भी है, जो गैस कनेक्शन के बाद अब तक गैस एजेंसी की दहलीज पर नहीं चढ़ पाए मतलब इन परिवार की महिलाएं अब भी चूल्हे के धुएं से उबर नहीं पाई है.

Ujjwala gas scheme, Reality check of Ujjwala gas scheme
चूल्हे के धुएं से उबर नहीं पाए परिवार

बांसवाड़ा की श्यामपुरा बस्ती के ऐसे हालात

शहर के श्यामपुरा बस्ती क्षेत्र में रहने वाले लोग खेती किसानी या फिर मजदूरी से अपना पेट पाल रहे हैं. जिनके लिए लगातार गैस का उपयोग करना संभव नहीं है. बातचीत में सामने आया कि गैस का अधिकांश उपयोग मेहमानों के आने या फिर आवश्यक कामकाज होने की स्थिति में ही किया जाता है. हर घर में 5 से लेकर 7 मेंबर होते हैं, जिनके लिए यदि गैस पर खाना-पीना बनाया जाए तो सिलेंडर बामुश्किल 25 दिन भी नहीं चल पाता, जबकि रिफिलिंग के लिए ₹880 मौके पर ही जमा कराने होते हैं. हालांकि सरकार द्वारा सब्सिडी भी दी जाती है, लेकिन यह सब्सिडी भी उन्हीं लोगों को मिलती है. जिनकी कनेक्शन राशि सब्सिडी के जरिए जमा हो चुकी हो.

Ujjwala gas scheme, Reality check of Ujjwala gas scheme
चूल्हे पर खाना पकाते परिवार

विसंगति यह है कि अधिकांश लोग इसका उपयोग ही नहीं कर रहे हैं और कनेक्शन के समय जमा कराए जाने वाली राशि बतौर सब्सिडी भी पूरी नहीं हो पाई है. ऐसे में इन परिवारों को सब्सिडी भी नहीं मिलती और रिफिलिंग के दौरान पूरा पैसा जमा कराने का प्रावधान है. इन लोगों के कमाई का कोई स्थाई जरिया भी नहीं है. ऐसे में एक साथ ₹880 जमा कराना इनके बस में नहीं है. इस कारण गैस का उपयोग सोच समझकर करना इनकी मजबूरी बन चुका है.

पढ़ें: स्पेशल स्टोरी: राजसमंद में उज्जवला योजना की हकीकत...1.46 लाख गैस कनेक्शन बांटे..लेकिन फिर भी चूल्हे पर पक रहा खाना

गैस की बजाए लकड़ी ज्यादा पसंद

ये लोग गैस की बजाए लकड़ी का इस्तेमाल करना ज्यादा पसंद करते हैं. इसका मुख्य कारण यहां लकड़ी का सहजता से उपलब्ध होना है. कुछ महिलाओं से बातचीत में सामने आया कि एक सिलेंडर मुश्किल से 1 महीना भी नहीं चलता और उसके ₹880 जमा कराने होते हैं, जबकि इतनी राशि तो 2 महीने की लकड़ी के भी नहीं लगते. इस कारण वे लोग गैस की बजाए लकड़ी को ज्यादा तवज्जों देते हैं.

पढ़ें: 'उज्जवला' के बाद भी 'चूल्हा' जलाने को मजबूर हैं कोटा शहर के ये लोग

बहुत कम लोग करवाते हैं रिफिलिंग

इस संबंध में जब हमने क्षेत्र के गैस एजेंसी के मैनेजर वीरचंद निनामा ने बताया कि योजना के दायरे में आने वाले लोग बहुत कम रिफिलिंग कराने आते हैं. ग्रामीण क्षेत्र में तो कई लोग ऐसे हैं, जो साल 2 साल पहले गैस सिलेंडर ले गए थे, और रिफिलिंग के लिए अब तक नहीं पहुंचे. जो लोग रिफिलिंग कराने आते हैं वह भी कभी घर में होने वाले शादी-ब्याह या फिर किसी कार्यक्रम के दौरान ही आते हैं. इसका कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि रिफिलिंग का पैसा एक साथ जमा कराना होता है और सब्सिडी सप्ताह 10 दिन में उनके खाते में ट्रांसफर की जाती है. सब्सिडी बाद में मिलने के कारण लोग रिफिलिंग नहीं कराते और अपने परंपरागत तरीकों से घर का काम चलाते हैं.

पढ़ें: स्पेशल स्टोरी: 1.90 लाख उज्ज्वला गैस कनेक्शन बांटे, रिफिल के पैसे नहीं इसलिए चूल्हें पर बनता है खाना

बांसवाड़ा जिले में उज्जवला गैस योजना के उपभोक्ता

आपको बता दें कि बांसवाड़ा जिले में योजना के अंतर्गत 1 लाख 94 हजार 676 उपभोक्ता हैं, जिनमें से 65 हजार 173 शहरी उपभोक्ता हैं, वहीं शेष उपभोक्ता ग्रामीण क्षेत्रों से हैं. कुल मिलाकर दो तिहाई उपभोक्ता ग्रामीण क्षेत्रों के हैं. जहां पर योजना कुछ इसी प्रकार के हालात की शिकार है.

बांसवाड़ा. मोदी सरकार की उज्ज्वला गैस योजना की हकीकत जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम शहर के श्यामपुरा बस्ती क्षेत्र के पार्ट-2 में पहुंची. जहां अधिकांश महिलाएं चूल्हे के धुएं के बीच खाना पकाती मिली. केंद्र सरकार की उज्जवला योजना लोगों की बेरुखी का शिकार होकर रह गई है. हालांकि अधिकांश लोग गरीब वर्ग के ही इसका लाभ ले पाए हैं. लेकिन उनके लिए अधिकांश परिवार लगातार गैस का उपयोग करने में सक्षम नहीं है और गाहे-बगाहे रसोई गैस का उपयोग करते हैं. इन परिवारों में अधिकांश मजदूर और किसान वर्ग के हैं. जिनके लिए समय-समय पर गैस रिफिलिंग कराना बूते से बाहर है.

बांसवाड़ा में उज्जवला गैस योजना का रियलिटी चेक

चूल्हे के धुएं से उबर नहीं पाए परिवार

हालत यह है कि शहरी क्षेत्र में लोग 3 से 4 महीने तक रिफिलिंग नहीं करवाते, तो ग्रामीण क्षेत्र में हालत और भी बदतर कही जा सकती है. जहां बड़ी संख्या में ऐसे उपभोक्ता भी है, जो गैस कनेक्शन के बाद अब तक गैस एजेंसी की दहलीज पर नहीं चढ़ पाए मतलब इन परिवार की महिलाएं अब भी चूल्हे के धुएं से उबर नहीं पाई है.

Ujjwala gas scheme, Reality check of Ujjwala gas scheme
चूल्हे के धुएं से उबर नहीं पाए परिवार

बांसवाड़ा की श्यामपुरा बस्ती के ऐसे हालात

शहर के श्यामपुरा बस्ती क्षेत्र में रहने वाले लोग खेती किसानी या फिर मजदूरी से अपना पेट पाल रहे हैं. जिनके लिए लगातार गैस का उपयोग करना संभव नहीं है. बातचीत में सामने आया कि गैस का अधिकांश उपयोग मेहमानों के आने या फिर आवश्यक कामकाज होने की स्थिति में ही किया जाता है. हर घर में 5 से लेकर 7 मेंबर होते हैं, जिनके लिए यदि गैस पर खाना-पीना बनाया जाए तो सिलेंडर बामुश्किल 25 दिन भी नहीं चल पाता, जबकि रिफिलिंग के लिए ₹880 मौके पर ही जमा कराने होते हैं. हालांकि सरकार द्वारा सब्सिडी भी दी जाती है, लेकिन यह सब्सिडी भी उन्हीं लोगों को मिलती है. जिनकी कनेक्शन राशि सब्सिडी के जरिए जमा हो चुकी हो.

Ujjwala gas scheme, Reality check of Ujjwala gas scheme
चूल्हे पर खाना पकाते परिवार

विसंगति यह है कि अधिकांश लोग इसका उपयोग ही नहीं कर रहे हैं और कनेक्शन के समय जमा कराए जाने वाली राशि बतौर सब्सिडी भी पूरी नहीं हो पाई है. ऐसे में इन परिवारों को सब्सिडी भी नहीं मिलती और रिफिलिंग के दौरान पूरा पैसा जमा कराने का प्रावधान है. इन लोगों के कमाई का कोई स्थाई जरिया भी नहीं है. ऐसे में एक साथ ₹880 जमा कराना इनके बस में नहीं है. इस कारण गैस का उपयोग सोच समझकर करना इनकी मजबूरी बन चुका है.

पढ़ें: स्पेशल स्टोरी: राजसमंद में उज्जवला योजना की हकीकत...1.46 लाख गैस कनेक्शन बांटे..लेकिन फिर भी चूल्हे पर पक रहा खाना

गैस की बजाए लकड़ी ज्यादा पसंद

ये लोग गैस की बजाए लकड़ी का इस्तेमाल करना ज्यादा पसंद करते हैं. इसका मुख्य कारण यहां लकड़ी का सहजता से उपलब्ध होना है. कुछ महिलाओं से बातचीत में सामने आया कि एक सिलेंडर मुश्किल से 1 महीना भी नहीं चलता और उसके ₹880 जमा कराने होते हैं, जबकि इतनी राशि तो 2 महीने की लकड़ी के भी नहीं लगते. इस कारण वे लोग गैस की बजाए लकड़ी को ज्यादा तवज्जों देते हैं.

पढ़ें: 'उज्जवला' के बाद भी 'चूल्हा' जलाने को मजबूर हैं कोटा शहर के ये लोग

बहुत कम लोग करवाते हैं रिफिलिंग

इस संबंध में जब हमने क्षेत्र के गैस एजेंसी के मैनेजर वीरचंद निनामा ने बताया कि योजना के दायरे में आने वाले लोग बहुत कम रिफिलिंग कराने आते हैं. ग्रामीण क्षेत्र में तो कई लोग ऐसे हैं, जो साल 2 साल पहले गैस सिलेंडर ले गए थे, और रिफिलिंग के लिए अब तक नहीं पहुंचे. जो लोग रिफिलिंग कराने आते हैं वह भी कभी घर में होने वाले शादी-ब्याह या फिर किसी कार्यक्रम के दौरान ही आते हैं. इसका कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि रिफिलिंग का पैसा एक साथ जमा कराना होता है और सब्सिडी सप्ताह 10 दिन में उनके खाते में ट्रांसफर की जाती है. सब्सिडी बाद में मिलने के कारण लोग रिफिलिंग नहीं कराते और अपने परंपरागत तरीकों से घर का काम चलाते हैं.

पढ़ें: स्पेशल स्टोरी: 1.90 लाख उज्ज्वला गैस कनेक्शन बांटे, रिफिल के पैसे नहीं इसलिए चूल्हें पर बनता है खाना

बांसवाड़ा जिले में उज्जवला गैस योजना के उपभोक्ता

आपको बता दें कि बांसवाड़ा जिले में योजना के अंतर्गत 1 लाख 94 हजार 676 उपभोक्ता हैं, जिनमें से 65 हजार 173 शहरी उपभोक्ता हैं, वहीं शेष उपभोक्ता ग्रामीण क्षेत्रों से हैं. कुल मिलाकर दो तिहाई उपभोक्ता ग्रामीण क्षेत्रों के हैं. जहां पर योजना कुछ इसी प्रकार के हालात की शिकार है.

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