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गद्दार को बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए: राष्ट्रसंत आचार्य सुनील सागर

बांसवाड़ा में चातुर्मास कर रहे राष्ट्रसंत आचार्य सुनील सागर महाराज बाहुबली कॉलोनी स्थित नवनिर्मित छात्रावास भवन में मीडिया से रूबरू हुए. इस दौरान आचार्य ने ना केवल धर्म का मर्म समझाया बल्कि नागरिकता संशोधन कानून पर भी अपनी राय रखी.

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चातुर्मास कर रहे राष्ट्रसंत आचार्य सुनील सागर महाराज
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Published : Jan 11, 2020, 8:51 AM IST

बांसवाड़ा. धर्मनगरी बांसवाड़ा में राष्ट्रसंत आचार्य सुनील सागर महाराज चातुर्मास कर रहे हैं. शुक्रवार को वे बाहुबली कॉलोनी स्थित नवनिर्मित छात्रावास भवन में मीडिया से रूबरू हुए. इस दौरान उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून पर भी अपनी बात रखी.

चातुर्मास कर रहे राष्ट्रसंत आचार्य सुनील सागर महाराज

धर्म को लेकर अलग-अलग राय पर आचार्य ने कहा, कि धर्म ना हिंदू है, ना बुद्ध है और ना ही जैन है, बल्कि हृदय की करुणा मैत्री प्रेम वास्तव में धर्म है. सरलता, शांति, अमृता आनंद, सबके प्रति अपनत्व और कल्याण का भाव जिन्हें हृदय में धारण किया जा सकता है, वही असली धर्म है.

सांप्रदायिक झगड़े का वास्तविक कारण बताते हुए राष्ट्रसंत ने कहा, कि हमने साधना को छोड़ दिया है और साधनों को पकड़ लिया है. शांति, प्रेमस करुणा साध्य हैं, लेकिन आज उन्हें हम छोड़ चुके हैं. देश में धर्म और संप्रदाय को लेकर होने वाले झगड़ों का मूल कारण यही है.

नागरिकता संशोधन कानून पर आचार्य सुनील सागर महाराज ने कहा, कि इस देश में मूल संस्कृति द्रविड़ रही है. उसके चिन्ह आज भी जैनों में पाए जाते हैं. द्रविड़ के बाद इस देश में और भी कई संस्कृतियां पली-बढ़ीं, बाद में पारसी आए, क्रिश्चियन आए अरबी भी आए.

यह भी पढ़ें : JNU विवाद पर बोले मुख्यमंत्री गहलोत, विद्यार्थियों का भविष्य खराब करना चाहती है केंद्र सरकार

उन्होंने कहा, कि इस देश की संस्कृति ने ही सभी को जगह दी है. आज भी देश के साथ ईमानदारी, श्रद्धा और समर्पण के साथ रहने वालों को जगह दी जानी चाहिए, लेकिन यदि कोई गद्दारी करने वाला हो तो चाहे वह इस देश में ही रहने वाला क्यों ना हो, उसे बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए. आपको बता दें, कि मुनि सुनील सागर महाराज प्राकृत भाषा में अबतक 40 से 50 पुस्तकें लिख चुके हैं.

बांसवाड़ा. धर्मनगरी बांसवाड़ा में राष्ट्रसंत आचार्य सुनील सागर महाराज चातुर्मास कर रहे हैं. शुक्रवार को वे बाहुबली कॉलोनी स्थित नवनिर्मित छात्रावास भवन में मीडिया से रूबरू हुए. इस दौरान उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून पर भी अपनी बात रखी.

चातुर्मास कर रहे राष्ट्रसंत आचार्य सुनील सागर महाराज

धर्म को लेकर अलग-अलग राय पर आचार्य ने कहा, कि धर्म ना हिंदू है, ना बुद्ध है और ना ही जैन है, बल्कि हृदय की करुणा मैत्री प्रेम वास्तव में धर्म है. सरलता, शांति, अमृता आनंद, सबके प्रति अपनत्व और कल्याण का भाव जिन्हें हृदय में धारण किया जा सकता है, वही असली धर्म है.

सांप्रदायिक झगड़े का वास्तविक कारण बताते हुए राष्ट्रसंत ने कहा, कि हमने साधना को छोड़ दिया है और साधनों को पकड़ लिया है. शांति, प्रेमस करुणा साध्य हैं, लेकिन आज उन्हें हम छोड़ चुके हैं. देश में धर्म और संप्रदाय को लेकर होने वाले झगड़ों का मूल कारण यही है.

नागरिकता संशोधन कानून पर आचार्य सुनील सागर महाराज ने कहा, कि इस देश में मूल संस्कृति द्रविड़ रही है. उसके चिन्ह आज भी जैनों में पाए जाते हैं. द्रविड़ के बाद इस देश में और भी कई संस्कृतियां पली-बढ़ीं, बाद में पारसी आए, क्रिश्चियन आए अरबी भी आए.

यह भी पढ़ें : JNU विवाद पर बोले मुख्यमंत्री गहलोत, विद्यार्थियों का भविष्य खराब करना चाहती है केंद्र सरकार

उन्होंने कहा, कि इस देश की संस्कृति ने ही सभी को जगह दी है. आज भी देश के साथ ईमानदारी, श्रद्धा और समर्पण के साथ रहने वालों को जगह दी जानी चाहिए, लेकिन यदि कोई गद्दारी करने वाला हो तो चाहे वह इस देश में ही रहने वाला क्यों ना हो, उसे बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए. आपको बता दें, कि मुनि सुनील सागर महाराज प्राकृत भाषा में अबतक 40 से 50 पुस्तकें लिख चुके हैं.

Intro:बांसवाड़ा। धर्मनगरी बांसवाड़ा में चातुर्मास कर रहे राष्ट्रसंत आचार्य सुनील सागर महाराज आज यहां बाहुबली कॉलोनी स्थित नवनिर्मित छात्रावास भवन में मीडिया से मुखातिब हुए। इस दौरान आचार्य ने न केवल धर्म का मर्म समझाया बल्कि केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए नागरिकता संशोधन अधिनियम पर भी अपनी राय रखी।


Body:धर्म को लेकर अलग-अलग राय पर आचार्य ने कहा कि धर्म न हिंदू है ना बुद्ध है और नहीं जैन है बल्कि हृदय की करुणा मैत्री प्रेम वास्तव में धर्म है। सरलता शांति अमृता आनंद सबके प्रति अपनत्व और कल्याण का भाव जिन्हें हृदय में धारण किया जा सकता है यही असली धर्म है। संप्रदायिक झगड़े का वास्तविक कारण बताते हुए राष्ट्रसंत ने कहा कि हमने साधना को छोड़ दिया है और साधनों को पकड़ लिया है। शांति प्रेम करुणा जो कि साध्य है आज उन्हें हम छोड़ चुके हैं। देश में धर्म और संप्रदाय को लेकर होने वाले झगड़ों का मूल कारण यही है। केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए नागरिकता संशोधन विधेयक पर आचार्य सुनील सागर महाराज ने कहा कि इस देश में मूल संस्कृति द्रविड़ रही है। उसके चिन्ह आज भी जैनों में पाए जाते हैं। द्रविड़ के बाद इस देश में और भी कई संस्कृतियों पली-बढ़ी।


Conclusion:बाद में पारसी आए। क्रिश्चियन आए अरबी भी आए। किस देश की संस्कृति नहीं सबको जगह दी है। आज भी देश के साथ ईमानदारी श्रद्धा और समर्पण के साथ रहने वालों को जगह दी जानी चाहिए लेकिन यदि कोई गद्दारी करने वाला हो तो चाहे वह इस देश में ही रहने वाला क्यों ना हो उसे बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए। आपको बता दे कि मुनि सुनील सागर महाराज प्राकृत भाषा में अब तक 40 से 50 पुस्तकें लिख चुके हैं।

पीसी.... आचार्य सुनील सागर महाराज
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