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बांसवाड़ा : एक अरब के बकाया के चलते मनरेगा में पक्के निर्माण कार्य ठप, सरपंचों का बाजार से निकलना मुश्किल

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Published : Sep 22, 2019, 3:44 PM IST

बांसवाड़ा के ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को रोजगार देने की दृष्टि से चलाई जा रही मनरेगा में पक्के निर्माण कार्य ठप हो गए हैं. जिसका मुख्य कारण बकाया राशि का ग्राफ एक अरब तक पहुंचना बताया जा रहा है.

banswara latest news, बांसवाड़ा की ताजा खबर

बांसवाड़ा. ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को रोजगार देने की दृष्टि से चलाई जा रही महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कार्यक्रम (मनरेगा) में पक्के निर्माण कार्य ठप हो गए हैं. सामग्री मद का भुगतान कछुआ चाल से चल रहा है जिससे बकाया राशि का ग्राफ एक अरब तक पहुंच गया है. नतीजा यह निकला कि व्यापारियों के तकाजे के चलते सरपंचों का बाजार से निकलना मुश्किल हो गया है.

बांसवाड़ा के ग्रामीण क्षेत्र में बकाया के चलते मनरेगा में पक्के निर्माण कार्य ठप

अकेले बांसवाड़ा जिले में ही करीब 100 करोड़ की राशि बकाया चल रही है. भुगतान की स्थिति पर नजर डालें तो किश्तों में कभी 5 तो कभी 10 करोड़ रुपए भेजे जा रहे हैं और पंचायत समितियों में मात्र 50 लाख से 1 करोड़ रुपए भुगतान के लिए पहुंच रहे हैं.

हर निर्माण कार्य पर 40 फीसदी राशि-
मनरेगा में श्रम और सामग्री राशि का अनुपात निर्धारित है. इसके तहत हर निर्माण कार्य में 60 फीसदी राशि श्रम पर खर्च करना होता है जबकि 40 फीसदी राशि सामग्री के लिए तय की गई है. पक्के निर्माण कार्यों में गांव में श्मशान निर्माण केटल शेड, कुआ निर्माण, खेतों में धोरे तथा व्यक्तिगत कामकाज आदि शामिल है. इसके लिए पंचायत समिति स्तर पर टेंडर किए जाते हैं.

डेढ़ साल से पेंडेंसी-

सामग्री राशि की पेंडेंसी पिछले सवा से डेढ़ साल से चल रही है जबकि व्यक्तिगत योजनाओं में कई बार संबंधित सरपंच अपनी क्रेडिट के बूते लाभार्थी को मार्केट से सामग्री उपलब्ध करवा देते हैं. सामग्री का भुगतान नहीं होने के कारण अब ऐसे में सरपंच मुश्किल में नजर आ रहे हैं. जिनका अब बाजार से निकलना भी दूभर हो गया है.

खुद जिला प्रमुख रेशमा मालवीय ने सरपंचों की यह व्यथा गत दिनों प्रभारी मंत्री राजेंद्र यादव के समक्ष रखी थी. जिला प्रमुख का कहना था कि सामग्री मदद के भुगतान को लेकर सरपंच खासे परेशान हैं. व्यापारी भुगतान के लिए उनसे तकाजा कर रहे हैं. इसके चलते कई सरपंच घर से निकलने में भी कतरा रहे हैं.

पढ़ें: गहलोत सरकार ने किया बड़ा प्रशासनिक फेरबदल, 9 कलेक्टर सहित 70 आईएएस का तबादला

2 साल से गड़बड़ाया भुगतान का गणित-
आंकड़े बताते हैं कि बांसवाड़ा जिले में पिछले 2 साल से सामग्री मद के भुगतान का गणित गड़बड़ा गया है. वर्ष 2018-19 और 2019-20 के वित्तीय वर्ष के दौरान करीब 97 करोड़ रुपए का भुगतान अटका हुआ है. जैसे-जैसे भुगतान किया जाता है, नए काम काज की बकाया राशि बराबरी पर ले आती है. इस कारण बकाया राशि का आंकड़ा बहुत कम ऊपर नीचे हो पा रहा है.

इस संबंध में जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी गोविंद सिंह राणावत से संपर्क किया गया तो उन्होंने माना कि सामग्री मद का भुगतान लंबित है. लेकिन जैसे-जैसे एफटीओ जारी हो रहे हैं उनका भुगतान भी हो रहा है. गत दिनों 10 करोड़ का भुगतान हुआ था. यह पूरा काम ऑनलाइन सिस्टम से होता है, ऐसे में जैसे-जैसे राशि आएगी भुगतान कर पाएंगे.

बांसवाड़ा. ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को रोजगार देने की दृष्टि से चलाई जा रही महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कार्यक्रम (मनरेगा) में पक्के निर्माण कार्य ठप हो गए हैं. सामग्री मद का भुगतान कछुआ चाल से चल रहा है जिससे बकाया राशि का ग्राफ एक अरब तक पहुंच गया है. नतीजा यह निकला कि व्यापारियों के तकाजे के चलते सरपंचों का बाजार से निकलना मुश्किल हो गया है.

बांसवाड़ा के ग्रामीण क्षेत्र में बकाया के चलते मनरेगा में पक्के निर्माण कार्य ठप

अकेले बांसवाड़ा जिले में ही करीब 100 करोड़ की राशि बकाया चल रही है. भुगतान की स्थिति पर नजर डालें तो किश्तों में कभी 5 तो कभी 10 करोड़ रुपए भेजे जा रहे हैं और पंचायत समितियों में मात्र 50 लाख से 1 करोड़ रुपए भुगतान के लिए पहुंच रहे हैं.

हर निर्माण कार्य पर 40 फीसदी राशि-
मनरेगा में श्रम और सामग्री राशि का अनुपात निर्धारित है. इसके तहत हर निर्माण कार्य में 60 फीसदी राशि श्रम पर खर्च करना होता है जबकि 40 फीसदी राशि सामग्री के लिए तय की गई है. पक्के निर्माण कार्यों में गांव में श्मशान निर्माण केटल शेड, कुआ निर्माण, खेतों में धोरे तथा व्यक्तिगत कामकाज आदि शामिल है. इसके लिए पंचायत समिति स्तर पर टेंडर किए जाते हैं.

डेढ़ साल से पेंडेंसी-

सामग्री राशि की पेंडेंसी पिछले सवा से डेढ़ साल से चल रही है जबकि व्यक्तिगत योजनाओं में कई बार संबंधित सरपंच अपनी क्रेडिट के बूते लाभार्थी को मार्केट से सामग्री उपलब्ध करवा देते हैं. सामग्री का भुगतान नहीं होने के कारण अब ऐसे में सरपंच मुश्किल में नजर आ रहे हैं. जिनका अब बाजार से निकलना भी दूभर हो गया है.

खुद जिला प्रमुख रेशमा मालवीय ने सरपंचों की यह व्यथा गत दिनों प्रभारी मंत्री राजेंद्र यादव के समक्ष रखी थी. जिला प्रमुख का कहना था कि सामग्री मदद के भुगतान को लेकर सरपंच खासे परेशान हैं. व्यापारी भुगतान के लिए उनसे तकाजा कर रहे हैं. इसके चलते कई सरपंच घर से निकलने में भी कतरा रहे हैं.

पढ़ें: गहलोत सरकार ने किया बड़ा प्रशासनिक फेरबदल, 9 कलेक्टर सहित 70 आईएएस का तबादला

2 साल से गड़बड़ाया भुगतान का गणित-
आंकड़े बताते हैं कि बांसवाड़ा जिले में पिछले 2 साल से सामग्री मद के भुगतान का गणित गड़बड़ा गया है. वर्ष 2018-19 और 2019-20 के वित्तीय वर्ष के दौरान करीब 97 करोड़ रुपए का भुगतान अटका हुआ है. जैसे-जैसे भुगतान किया जाता है, नए काम काज की बकाया राशि बराबरी पर ले आती है. इस कारण बकाया राशि का आंकड़ा बहुत कम ऊपर नीचे हो पा रहा है.

इस संबंध में जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी गोविंद सिंह राणावत से संपर्क किया गया तो उन्होंने माना कि सामग्री मद का भुगतान लंबित है. लेकिन जैसे-जैसे एफटीओ जारी हो रहे हैं उनका भुगतान भी हो रहा है. गत दिनों 10 करोड़ का भुगतान हुआ था. यह पूरा काम ऑनलाइन सिस्टम से होता है, ऐसे में जैसे-जैसे राशि आएगी भुगतान कर पाएंगे.

Intro:बांसवाड़ाl ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को रोजगार देने की दृष्टि से चलाई जा रही महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कार्यक्रम( मनरेगा) मैं पक्के निर्माण कार्य ठप हो गए हैं। सामग्री मद का भुगतान कछुआ चाल से चल रहा है जिससे बकाया राशि का ग्राफ एक अरब तक पहुंच गया है। नतीजा यह निकला कि व्यापारियों के तकाजे के चलते सरपंचों का बाजार से निकलना मुश्किल हो गया है।


Body:अकेले बांसवाड़ा जिले में ही करीब 100 करोड रूपया बकाया चल रहा है। भुगतान की स्थिति पर नजर डालें तो किस्तों में कभी 5 तो कभी 10 करोड रुपए भेजे जा रहे हैं और पंचायत समितियों में मात्र 5000000 से 10000000 रुपए भुगतान के लिए पहुंच रहे हैं जबकि 8 से लेकर ₹100000000 तक पंचायत समितियों में सामग्री मगध का भुगतान बकाया चल रहा है।

हर निर्माण कार्य पर 40% राशि

मनरेगा में श्रम और सामग्री राशि का अनुपात निर्धारित है। इसके तहत हर निर्माण कार्य मैं 60% राशि श्रम पर खर्च करना होता है जबकि 40% राशि सामग्री के लिए तय की गई है। पक्के निर्माण कार्यों में गांव में शमशान निर्माण केटल शेड कुआ निर्माण खेतों में धोरे तथा व्यक्तिगत कामकाज आदि शामिल है। इसके लिए पंचायत समिति स्तर पर टेंडर किए जाते हैं।


Conclusion:डेढ़ साल से पेंडेंसी

सामग्री राशि डिपेंडेंसी पिछले सवा से डेढ़ साल से चल रही है। जबकि व्यक्तिगत योजनाओं में कई बार संबंधित सरपंच अपनी क्रेडिट के बूते लाभार्थी को मार्केट से सामग्री उपलब्ध करवा देते हैं। सामग्री का भुगतान नहीं होने के कारण अब ऐसे सरपंच मुश्किल में नजर आ रहे हैं जिनका अब बाजार से निकलना भी दूभर हो गया है। खुद जिला प्रमुख रेशमा मालवीय ने सरपंचों की यह व्यथा गत दिनों प्रभारी मंत्री राजेंद्र यादव के समक्ष रखी थी। जिला प्रमुख का कहना था कि सामग्री मदद के भुगतान को लेकर सरपंच खासे परेशान हैं। व्यापारी भुगतान के लिए उनसे तकाजा कर रहे हैं। इसके चलते कई सरपंच घर से निकलने में भी कतरा रहे हैं।

2 साल से गड़बड़ाया भुगतान का गणित

आंकड़े बताते हैं कि बांसवाड़ा जिले में पिछले 2 साल से सामग्री मद के भुगतान का गणित गड़बड़ा गया है। वर्ष 2018- 19 और 2019- 20 के वित्तीय वर्ष के दौरान करीब 97 करोड रुपए का भुगतान अटका हुआ है। जैसे-जैसे भुगतान किया जाता है नए काम काज की बकाया राशि बराबरी पर ले आती है। इस कारण बकाया राशि का आंकड़ा बहुत कम ऊपर नीचे हो पा रहा है। इस संबंध में जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी गोविंद सिंह राणावत से संपर्क किया गया तो उन्होंने माना कि सामग्री मद का भुगतान लंबित है। लेकिन जैसे-जैसे एफटीओ जारी हो रहे हैं उनका भुगतान भी हो रहा है। गत दिनों ₹100000000 का भुगतान हुआ था। यह पूरा काम ऑनलाइन सिस्टम से होता है ऐसे में जैसे जैसे राशि आएगी भुगतान कर पाएंगे।

बाइट...... गोविंद सिंह राणावत मुख्य कार्यकारी अधिकारी जिला परिषद बांसवाड़ा
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