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बांसवाड़ा: किसानों पर 'माही' की मेहरबानी, 20 हजार हेक्टेयर में लहलाने लगी मक्के की फसल - मक्का की पैदावारी

माही बांध जनजाति बाहुल्य बांसवाड़ा के काश्तकारों की तकदीर बदलने में अहम भूमिका निभा रहा है. बांध की मेहरबानी कहे कि जिले के एक बड़े भूभाग में 12 महीने मक्का की फसल ली जाती है. नहरों से सिंचाई की स्थाई रूप से सुविधा मिल रही है. ऐसे में काश्तकार खरीफ सीजन से ज्यादा रबी में मक्का की फसल ले रहे हैं.

बांसवाड़ा की खबर, maize is grown throughout the year
बांसवाड़ा के काश्तकारों की तकदीर बदलने में अहम भूमिका निभा रहा माही बांध
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Published : Jan 25, 2020, 11:05 PM IST

बांसवाड़ा. जिले के 281.50 मीटर भराव क्षमता वाले माही बांध का पानी हजारों किलोमीटर छोटी-बड़ी नहरों के जरिए जिले के 50% से अधिक भाग में पहुंचता है. इसकी बदौलत छोटी श्रवण और दानपुर को छोड़कर पूरा जिला सर-सब्ज (हराभरा) है.

इसका सबसे बड़ा फायदा काश्तकारों को हो रहा है. पिछले आठ-दस साल से इस जिले में फसली पैदावार में बड़ा बदलाव आया है. मानसून के अलावा रबी के सीजन में बड़े पैमाने पर मक्का की फसल लगाई जा रही है. आज स्थिति ये है कि जिलेभर में करीब 20,000 हेक्टेयर क्षेत्र में मक्का की फसल लहलहा रही है.

काश्तकारों की तकदीर बदलने में अहम भूमिका निभा रहा माही बांध

किसानों की माने तो रबी सीजन में ली जाने वाली मक्का की पैदावार खरीफ के मुकाबले 2 गुना तक पहुंचती है. प्रति हेक्टेयर 10 से 12 क्विंटल तक उपज होती है, जिसका बाजार भाव भी अपेक्षाकृत डेढ़ गुना तक मिल जाता है.इस कारण किसानों का रुझान गेहूं की बजाए मक्का की ओर बढ़ रहा है.

किसान टेगू लाल गुर्जर का कहना है कि आर्थिक दृष्टि से देखें तो मक्का का दाम गेहूं से भी अच्छा मिल जाता है. वही खरपतवार की झंझट भी नहीं रहती.इस कारण पिछले कुछ सालों में रबी सीजन में फसल लेने के ट्रेंड में बदलाव आया है.

दूसरा बड़ा फायदा यह है कि व्यापारी खेत में ही फसल की सौदेबाजी कर लेते हैं और संबंधित किसान को उसका एक बड़ा अमाउंट उसी समय दे दिया जाता है. ऐसे में किसान को खाद बीज खरीद के लिए इधर-उधर हाथ नहीं फैलाना पड़ता है. कुल मिलाकर मक्का से जनजाति बहुल इस जिले के काश्तकारों के जीवन स्तर में बदलाव आ रहा है.

इसे लेकर उप निदेशक कृषि विस्तार बीएल पाटीदार ने बताया कि रबी सीजन में प्रदेश के सर्वाधिक मक्का की पैदावार बांसवाड़ा में ली जाती है. खर्चा भी काफी कम होता है और उसके मुकाबले फसल की कीमत अच्छी मिल जाती है.

पढ़ें: बांसवाड़ा: गणतंत्र दिवस समारोह की तैयारियों को लेकर परेड का अभ्यास

संभवत प्रदेश में बांसवाड़ा एक ऐसा जिला है जहां रबी में भी गेहूं से ज्यादा किसान मक्का की फसल देने में विश्वास रखते हैं और बड़े पैमाने पर मक्का की फसल ले रहे हैं. इसके पीछे सबसे बड़ा योगदान माही बांध को माना जा सकता है. कुलमिलाकर देखा जाए तो पिछले आठ-दस साल में फसल लेने का ट्रेंड बदला है. भरपूर पानी के साथ साथ जिले की जलवायु इस फसल के लिए काफी उपयुक्त मानी गई है. जिससे ये कहना गलत नहीं होगा कि माही बांध किसानों के लिए सौगात है.

बांसवाड़ा. जिले के 281.50 मीटर भराव क्षमता वाले माही बांध का पानी हजारों किलोमीटर छोटी-बड़ी नहरों के जरिए जिले के 50% से अधिक भाग में पहुंचता है. इसकी बदौलत छोटी श्रवण और दानपुर को छोड़कर पूरा जिला सर-सब्ज (हराभरा) है.

इसका सबसे बड़ा फायदा काश्तकारों को हो रहा है. पिछले आठ-दस साल से इस जिले में फसली पैदावार में बड़ा बदलाव आया है. मानसून के अलावा रबी के सीजन में बड़े पैमाने पर मक्का की फसल लगाई जा रही है. आज स्थिति ये है कि जिलेभर में करीब 20,000 हेक्टेयर क्षेत्र में मक्का की फसल लहलहा रही है.

काश्तकारों की तकदीर बदलने में अहम भूमिका निभा रहा माही बांध

किसानों की माने तो रबी सीजन में ली जाने वाली मक्का की पैदावार खरीफ के मुकाबले 2 गुना तक पहुंचती है. प्रति हेक्टेयर 10 से 12 क्विंटल तक उपज होती है, जिसका बाजार भाव भी अपेक्षाकृत डेढ़ गुना तक मिल जाता है.इस कारण किसानों का रुझान गेहूं की बजाए मक्का की ओर बढ़ रहा है.

किसान टेगू लाल गुर्जर का कहना है कि आर्थिक दृष्टि से देखें तो मक्का का दाम गेहूं से भी अच्छा मिल जाता है. वही खरपतवार की झंझट भी नहीं रहती.इस कारण पिछले कुछ सालों में रबी सीजन में फसल लेने के ट्रेंड में बदलाव आया है.

दूसरा बड़ा फायदा यह है कि व्यापारी खेत में ही फसल की सौदेबाजी कर लेते हैं और संबंधित किसान को उसका एक बड़ा अमाउंट उसी समय दे दिया जाता है. ऐसे में किसान को खाद बीज खरीद के लिए इधर-उधर हाथ नहीं फैलाना पड़ता है. कुल मिलाकर मक्का से जनजाति बहुल इस जिले के काश्तकारों के जीवन स्तर में बदलाव आ रहा है.

इसे लेकर उप निदेशक कृषि विस्तार बीएल पाटीदार ने बताया कि रबी सीजन में प्रदेश के सर्वाधिक मक्का की पैदावार बांसवाड़ा में ली जाती है. खर्चा भी काफी कम होता है और उसके मुकाबले फसल की कीमत अच्छी मिल जाती है.

पढ़ें: बांसवाड़ा: गणतंत्र दिवस समारोह की तैयारियों को लेकर परेड का अभ्यास

संभवत प्रदेश में बांसवाड़ा एक ऐसा जिला है जहां रबी में भी गेहूं से ज्यादा किसान मक्का की फसल देने में विश्वास रखते हैं और बड़े पैमाने पर मक्का की फसल ले रहे हैं. इसके पीछे सबसे बड़ा योगदान माही बांध को माना जा सकता है. कुलमिलाकर देखा जाए तो पिछले आठ-दस साल में फसल लेने का ट्रेंड बदला है. भरपूर पानी के साथ साथ जिले की जलवायु इस फसल के लिए काफी उपयुक्त मानी गई है. जिससे ये कहना गलत नहीं होगा कि माही बांध किसानों के लिए सौगात है.

Intro:बांसवाड़ा। माही बांध जनजाति बाहुल्य बांसवाड़ा के काश्तकारों की तकदीर बदलने में अहम भूमिका निभा रहा है। बांध की मेहरबानी कहे कि जिले के एक बड़े भूभाग में 12 महीने मक्का की फसल ली जाती है। नहरों से सिंचाई की स्थाई रूप से सुविधा मिल रही है। ऐसे में काश्तकार खरीफ सीजन से ज्यादा रबी में मक्का की फसल ले रहे हैं। पिछले आठ 10 साल में फसल लेने का यह ट्रेंड बदला है। भरपूर पानी के साथ साथ जिले की जलवायु इस फसल के लिए काफी उपयुक्त मानी गई है। संभवत प्रदेश में बांसवाड़ा एक ऐसा जिला है जहां रबी में भी गेहूं से ज्यादा किसान मक्का की फसल देने में विश्वास रखते हैं और बड़े पैमाने पर मक्का की फसल ले रहे हैं।


Body:इसके पीछे सबसे बड़ा योगदान माही बांध को माना जा सकता है। 281.50 मीटर भराव क्षमता वाले इस बांध का पानी हजारों किलोमीटर छोटी बड़ी नहरों के जरिए जिले के 50% से अधिक भाग में पहुंचता है। इसकी बदौलत छोटी श्रवण और दानपुर को छोड़कर पूरा जिला सर सब्ज है। इसका सबसे बड़ा फायदा काश्तकारों को हो रहा है। पिछले आठ 10 साल से इस जिले में फसली पैदावार में बड़ा बदलाव आया है। मानसून के अलावा रबी के सीजन में बड़े पैमाने पर मक्का की फसल ली जा रही है। आज स्थिति यह है कि जिलेभर में करीब 20,000 हेक्टेयर क्षेत्र में मक्का की फसल लहलहा रही है। मक्का की खेती का यह ग्राफ निरंतर बढ़ रहा है।


Conclusion:किसानों की माने तो रबी सीजन में ली जाने वाली मक्का की पैदावार खरीफ के मुकाबले 2 गुना तक पहुंचती है। प्रति हेक्टेयर 10 से 12 क्विंटल तक उपज होती है जिसका बाजार भाव भी अपेक्षाकृत डेढ़ गुना तक मिल जाता है। इस कारण किसानों का रुझान गेहूं की बजाए मक्का की ओर बढ़ रहा है। दूसरा सबसे बड़ा फायदा यह है कि व्यापारी खेत में ही फसल की सौदेबाजी कर लेते हैं और संबंधित किसान को उसका एक बड़ा अमाउंट उसी समय दे दिया जाता है। ऐसे में किसान को खाद बीज खरीद के लिए इधर उधर हाथ नहीं फैलाना पड़ता। मक्का की सर्वाधिक खरीद गुजरात के व्यापारियों द्वारा की जाती है जहां स्टार्च और फास्ट फूड बनाने वाली छोटी-बड़ी कई प्रकार की इंडस्ट्रीज है। वहां के व्यापारी यहां या तो सीधे किसान या फिर लोकल ट्रेडर्स से कांटेक्ट कर माल की खरीदारी करते हैं। कुल मिलाकर मक्का से जनजाति बहुल इस जिले के काश्तकारों के जीवन स्तर में बदलाव आ रहा है। इस बारे में महिला किसान निमिषा का कहना था कि कम मेहनत में अधिक उपज मिल जाती है। माही बांध से मिलने वाले पानी से आज हम 12 महीने खेती कर रहे हैं इसमें सबसे अधिक मक्का की फसल ली जा रही है। टेगू लाल गुर्जर के अनुसार आर्थिक दृष्टि से देखें तो गेहूं से भी मक्का का दाम अच्छा मिल जाता है। वही खरपतवार की झंझट भी नहीं रहती। इस कारण पिछले कुछ सालों में रबी सीजन में फसल लेने के ट्रेंड में बदलाव आया है। उप निदेशक कृषि विस्तार बीएल पाटीदार के अनुसार रबी सीजन में प्रदेश के सर्वाधिक मक्का की पैदावार बांसवाड़ा में ली जाती है। खर्चा भी काफी कम होता है और उसके मुकाबले फसल की कीमत अच्छी मिल जाती है। खासकर गुजरात के व्यापारी यहां से रबी सीजन के मक्का को खरीदते हैं। जिले में रबी सीजन में मक्का की फसल लेने का ट्रेंड लगातार बढ़ रहा है। इससे काश्तकारों के जीवन स्तर में भी बदलाव आ रहा है।

बाइट....... निमिषा
........ टेगू लाल गुर्जर किसान
.......... बीएल पाटीदार उपनिदेशक कृषि विस्तार
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