बांसवाड़ा. जिले के 281.50 मीटर भराव क्षमता वाले माही बांध का पानी हजारों किलोमीटर छोटी-बड़ी नहरों के जरिए जिले के 50% से अधिक भाग में पहुंचता है. इसकी बदौलत छोटी श्रवण और दानपुर को छोड़कर पूरा जिला सर-सब्ज (हराभरा) है.
इसका सबसे बड़ा फायदा काश्तकारों को हो रहा है. पिछले आठ-दस साल से इस जिले में फसली पैदावार में बड़ा बदलाव आया है. मानसून के अलावा रबी के सीजन में बड़े पैमाने पर मक्का की फसल लगाई जा रही है. आज स्थिति ये है कि जिलेभर में करीब 20,000 हेक्टेयर क्षेत्र में मक्का की फसल लहलहा रही है.
किसानों की माने तो रबी सीजन में ली जाने वाली मक्का की पैदावार खरीफ के मुकाबले 2 गुना तक पहुंचती है. प्रति हेक्टेयर 10 से 12 क्विंटल तक उपज होती है, जिसका बाजार भाव भी अपेक्षाकृत डेढ़ गुना तक मिल जाता है.इस कारण किसानों का रुझान गेहूं की बजाए मक्का की ओर बढ़ रहा है.
किसान टेगू लाल गुर्जर का कहना है कि आर्थिक दृष्टि से देखें तो मक्का का दाम गेहूं से भी अच्छा मिल जाता है. वही खरपतवार की झंझट भी नहीं रहती.इस कारण पिछले कुछ सालों में रबी सीजन में फसल लेने के ट्रेंड में बदलाव आया है.
दूसरा बड़ा फायदा यह है कि व्यापारी खेत में ही फसल की सौदेबाजी कर लेते हैं और संबंधित किसान को उसका एक बड़ा अमाउंट उसी समय दे दिया जाता है. ऐसे में किसान को खाद बीज खरीद के लिए इधर-उधर हाथ नहीं फैलाना पड़ता है. कुल मिलाकर मक्का से जनजाति बहुल इस जिले के काश्तकारों के जीवन स्तर में बदलाव आ रहा है.
इसे लेकर उप निदेशक कृषि विस्तार बीएल पाटीदार ने बताया कि रबी सीजन में प्रदेश के सर्वाधिक मक्का की पैदावार बांसवाड़ा में ली जाती है. खर्चा भी काफी कम होता है और उसके मुकाबले फसल की कीमत अच्छी मिल जाती है.
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संभवत प्रदेश में बांसवाड़ा एक ऐसा जिला है जहां रबी में भी गेहूं से ज्यादा किसान मक्का की फसल देने में विश्वास रखते हैं और बड़े पैमाने पर मक्का की फसल ले रहे हैं. इसके पीछे सबसे बड़ा योगदान माही बांध को माना जा सकता है. कुलमिलाकर देखा जाए तो पिछले आठ-दस साल में फसल लेने का ट्रेंड बदला है. भरपूर पानी के साथ साथ जिले की जलवायु इस फसल के लिए काफी उपयुक्त मानी गई है. जिससे ये कहना गलत नहीं होगा कि माही बांध किसानों के लिए सौगात है.