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ऐसे कैसे लड़े कोरोना से...स्क्रीनिंग के नाम पर केवल थर्मामीटर, नर्सिंगकर्मी खुद असुरक्षित

जिले में बाहर से आने वाले संदिग्ध लोगों की पहचान के लिए गुजरात, मध्य प्रदेश और जयपुर राजमार्ग पर चेक पोस्ट बना दी गई. ईटीवी भारत की टीम ने जयपुर राजमार्ग बॉर्डर पर चेक पोस्ट की हकीकत को टटोला तो चौंकाने वाली बात सामने आई.

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Published : Mar 28, 2020, 11:58 PM IST

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ऐसे कैसे लड़ें कोरोना से

बांसवाड़ा. जिले में बाहर से आने वाले संदिग्ध लोगों की पहचान के लिए गुजरात, मध्य प्रदेश और जयपुर राजमार्ग पर चेक पोस्ट बनाई. ईटीवी भारत की टीम ने जयपुर राजमार्ग बॉर्डर पर चेक पोस्ट की हकीकत को टटोला तो चौंकाने वाली बात सामने आई. आवश्यक चिकित्सा उपकरणों के अभाव में यह चेक पोस्ट मात्र औपचारिकता के रुप में दिखाई दी.

ऐसे कैसे लड़ें कोरोना से

टीम ने पता किया तो देखा पुलिसकर्मियों द्वारा इक्का-दुक्का वाहनों को रोका जा रहा था लेकिन पूछताछ और अनुमान के आधार पर छोड़ा जा रहा था. बड़ी संख्या में दोपहिया वाहन ना केवल जिले की सीमा में बेरोकटोक प्रवेश करते नजर आए बल्कि कई लोगों को केवल चेहरा देखकर छोड़ा जा रहा था. इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि चिकित्सा टीम के पास स्क्रीनिंग के नाम पर केवल थर्मामीटर था, जबकि नियमानुसार संदिग्ध रोगियों की पहचान के लिए मेडिकल ऑफिसर का मौके पर होना जरूरी है.

यह भी पढ़ें- मजदूरों की मजबूरी : कोरोना पर सरकारी दावे फेल...ना हेल्पलाइन नंबर लगता है, ना खाने-पान की सुध

चिकित्सा विभाग द्वारा केवल नर्सिंग कर्मचारियों के जरिए स्क्रीनिंग कराई जा रही थी. हालत यह थी कि खुद कर्मचारी कोरोना संक्रमण को लेकर आशंकित देखे गए क्योंकि विभाग द्वारा कर्मचारियों को ग्लव्स तो दूर की बात मास्क तक उपलब्ध नहीं कराए गए थे. पिछले 2 दिनों से यहां पर प्रतिदिन 250 से लेकर 300 लोगों की स्क्रीनिंग की जा रही है. स्क्रीनिंग के नाम पर चिकित्सा विभाग द्वारा हर शिफ्ट के लिए एक एक नर्सिग कर्मचारी की ड्यूटी लगाई गई, जबकि इस राजमार्ग से चित्तौड़गढ़, नीमच, मंदसौर आदि से बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं. एक नर्सिंग कर्मचारी के बूते इतने लोगों की स्क्रीनिंग मुश्किल मानी जा रही है.

यह भी पढ़ें- कामगारों का दर्द: नहीं है राशन, बचा लो सरकार

सुरक्षा उपकरणों के अभाव में चिकित्सा कर्मचारी भी संक्रमण को लेकर आशंकित है और थोक के मारे पर्याप्त रुचि नहीं ले रहे हैं. हालांकि आने जाने वाले लोगों के एड्रेस आदि का रजिस्टर मेंटेन किया जा रहा है. जिसके लिए शिक्षा और कृषि विभाग के कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई है. प्रतापगढ़ और बांसवाड़ा की पीपलखूंट को सीमा माना जाता है, जो कि बांसवाड़ा शहर से करीब 50 किलोमीटर दूरी पर है. यहां सुरक्षा के लिहाज से दिन में एक सहायक पुलिस उप निरीक्षक और 3 कॉस्टेबल तथा रात्रि को एक हेड कांस्टेबल और 3 कांस्टेबल को तैनात रहते हैं. कुल मिलाकर व्यवस्थाओं के नाम पर प्रतापगढ़ राजमार्ग पर पीपलखूंट चेक पोस्ट केवल नाम की चेकपोस्ट ही नजर आई. जहां पर बाहर से आने वाले लोगों को कुछ समय रोककर अपने गंतव्य के लिए रवाना किया जा रहा था जबकि नियमानुसार बाहर से आने वाले हर शख्स की स्क्रीनिंग का प्रावधान है.

चेक पोस्ट पर काम कर रहे नर्सिंग कर्मी गणेश निनामा के अनुसार उनके पास स्क्रीनिंग के लिए केवल थर्मामीटर है. प्रतिदिन ढाई सौ से लेकर 300 आदमियों की स्क्रीनिंग थर्मामीटर के सहारे मुश्किल है. संक्रमण को देखते हुए मॉस्क सैनिटाइजेशन और अन्य उपकरण आवश्यक है लेकिन केवल थर्मामीटर थमा दिए गए हैं. इससे संक्रमण को लेकर वे खुद भी भयभीत रहते हैं.

आपको बता दें कि राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 113 वागड़ अंचल को गुजरात और जयपुर दिल्ली से जोड़ता है. गुजरात और मध्य प्रदेश में बड़ी संख्या में वागड़ अंचल के लोग निवासरत है, जो कोरोना महामारी के बाद अपने घरों को लौट रहे हैं. चेक पोस्ट औपचारिकता मात्र साबित हो रही है जो वागड़ अंचल के लिए घातक सिद्ध हो सकता है.

बांसवाड़ा. जिले में बाहर से आने वाले संदिग्ध लोगों की पहचान के लिए गुजरात, मध्य प्रदेश और जयपुर राजमार्ग पर चेक पोस्ट बनाई. ईटीवी भारत की टीम ने जयपुर राजमार्ग बॉर्डर पर चेक पोस्ट की हकीकत को टटोला तो चौंकाने वाली बात सामने आई. आवश्यक चिकित्सा उपकरणों के अभाव में यह चेक पोस्ट मात्र औपचारिकता के रुप में दिखाई दी.

ऐसे कैसे लड़ें कोरोना से

टीम ने पता किया तो देखा पुलिसकर्मियों द्वारा इक्का-दुक्का वाहनों को रोका जा रहा था लेकिन पूछताछ और अनुमान के आधार पर छोड़ा जा रहा था. बड़ी संख्या में दोपहिया वाहन ना केवल जिले की सीमा में बेरोकटोक प्रवेश करते नजर आए बल्कि कई लोगों को केवल चेहरा देखकर छोड़ा जा रहा था. इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि चिकित्सा टीम के पास स्क्रीनिंग के नाम पर केवल थर्मामीटर था, जबकि नियमानुसार संदिग्ध रोगियों की पहचान के लिए मेडिकल ऑफिसर का मौके पर होना जरूरी है.

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चिकित्सा विभाग द्वारा केवल नर्सिंग कर्मचारियों के जरिए स्क्रीनिंग कराई जा रही थी. हालत यह थी कि खुद कर्मचारी कोरोना संक्रमण को लेकर आशंकित देखे गए क्योंकि विभाग द्वारा कर्मचारियों को ग्लव्स तो दूर की बात मास्क तक उपलब्ध नहीं कराए गए थे. पिछले 2 दिनों से यहां पर प्रतिदिन 250 से लेकर 300 लोगों की स्क्रीनिंग की जा रही है. स्क्रीनिंग के नाम पर चिकित्सा विभाग द्वारा हर शिफ्ट के लिए एक एक नर्सिग कर्मचारी की ड्यूटी लगाई गई, जबकि इस राजमार्ग से चित्तौड़गढ़, नीमच, मंदसौर आदि से बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं. एक नर्सिंग कर्मचारी के बूते इतने लोगों की स्क्रीनिंग मुश्किल मानी जा रही है.

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सुरक्षा उपकरणों के अभाव में चिकित्सा कर्मचारी भी संक्रमण को लेकर आशंकित है और थोक के मारे पर्याप्त रुचि नहीं ले रहे हैं. हालांकि आने जाने वाले लोगों के एड्रेस आदि का रजिस्टर मेंटेन किया जा रहा है. जिसके लिए शिक्षा और कृषि विभाग के कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई है. प्रतापगढ़ और बांसवाड़ा की पीपलखूंट को सीमा माना जाता है, जो कि बांसवाड़ा शहर से करीब 50 किलोमीटर दूरी पर है. यहां सुरक्षा के लिहाज से दिन में एक सहायक पुलिस उप निरीक्षक और 3 कॉस्टेबल तथा रात्रि को एक हेड कांस्टेबल और 3 कांस्टेबल को तैनात रहते हैं. कुल मिलाकर व्यवस्थाओं के नाम पर प्रतापगढ़ राजमार्ग पर पीपलखूंट चेक पोस्ट केवल नाम की चेकपोस्ट ही नजर आई. जहां पर बाहर से आने वाले लोगों को कुछ समय रोककर अपने गंतव्य के लिए रवाना किया जा रहा था जबकि नियमानुसार बाहर से आने वाले हर शख्स की स्क्रीनिंग का प्रावधान है.

चेक पोस्ट पर काम कर रहे नर्सिंग कर्मी गणेश निनामा के अनुसार उनके पास स्क्रीनिंग के लिए केवल थर्मामीटर है. प्रतिदिन ढाई सौ से लेकर 300 आदमियों की स्क्रीनिंग थर्मामीटर के सहारे मुश्किल है. संक्रमण को देखते हुए मॉस्क सैनिटाइजेशन और अन्य उपकरण आवश्यक है लेकिन केवल थर्मामीटर थमा दिए गए हैं. इससे संक्रमण को लेकर वे खुद भी भयभीत रहते हैं.

आपको बता दें कि राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 113 वागड़ अंचल को गुजरात और जयपुर दिल्ली से जोड़ता है. गुजरात और मध्य प्रदेश में बड़ी संख्या में वागड़ अंचल के लोग निवासरत है, जो कोरोना महामारी के बाद अपने घरों को लौट रहे हैं. चेक पोस्ट औपचारिकता मात्र साबित हो रही है जो वागड़ अंचल के लिए घातक सिद्ध हो सकता है.

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