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बांसवाड़ा : वरदान बनी इंदिरा रसोई, नाश्ते के पैसों में दोनों वक्त भोजन कर पा रहे गरीब - food

राज्य सरकार की इंदिरा रसोई योजना गरीबों के लिए सौगात बन कर आई है. मुख्यमंत्री ने योजना का उद्घाटन कर आज से इसकी शुरुआत भी कर दी है. यहां गरीबों को सिर्फ 8 रुपये में भरपेट भोजन मिल रहा है. इंदिरा रसोई में सस्ते में भोजन मिलने से गरीबों को काफी राहत मिली है.

Indira Rasoi became a boon for the poor
गरीबों के लिए वरदान बनी इंदिरा रसोई
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Published : Aug 20, 2020, 7:35 PM IST

बांसवाड़ा. शहर में बड़ी संख्या में लोग मजदूरी कर अपना पेट पालते हैं. दिनभर की मामूली मजदूरी में परिवार क्या खुद का पेट भी वे मुश्किल से भर पाते हैं. इस पर कोरोना महामारी ने भूखे मरने की नौबत ला दी है. हालत ये हैं कि इनमें से कई लोग हल्के-फुल्के नाश्ते पर ही दिनभर मजदूरी कर रहे थे. कई लोगों को दो वक्त का भोजन तक नसीब नहीं हो पा रहा था. ऐसे में लोगों के लिए राज्य सरकार की इंदिरा रसोई योजना सौगात बन कर आई है. मुख्यमंत्री द्वारा लोकार्पण के साथ ही इंदिरा रसोई योजना के अंतर्गत जरूरतमंद लोगों को रियायती दर पर भोजन मिलने लग गया.

गरीबों के लिए वरदान बनी इंदिरा रसोई

बांसवाड़ा शहर में नगर परिषद की ओर से तीन स्थानों पर इंदिरा रसोई शुरू की गई. पहले दिन बड़ी संख्या में गरीब और जरूरतमंद लोगों ने रसोई में भोजन का आनंद लिया. ईटीवी भारत की टीम ने रसोई आए लोगों से भोजन की गुणवत्ता और व्यवस्थाओं को लेकर बातचीत की. इस दौरान 8 रुपये में इस भोजन की अहमियत उभर कर सामने आई. यहां आने वाले अधिकतर फल-सब्जी वाले, मजदूर व छोटी-मोटी दुकानों पर काम कर अपना और परिवार का पेट पालने वाले थे जो सुबह-शाम का भोजन तक ठीक से नहीं जुटा पा रहे थे.

यह भी पढ़ें: मंत्री, विधायक और कलेक्टर ने खाया इंदिरा रसोई में खाना, भंवर सिंह भाटी बोले- अन्नपूर्णा योजना में नहीं थी 'ये' व्यवस्था

फल बेचने वाले एक युवक ने बताया कि सुबह नाश्ता करने के बाद दिनभर दुकान में ही व्यस्त रहता है, लेकिन इतनी इनकम नहीं हो पाती कि दोनों वक्त ठीक से भोजन कर सकूं. दिनभर कुछ कमाई होती है तो शाम को भोजन नसीब हो पाता है. एक अन्य युवक का कहना था कि नाश्ते से ही दिन भर निकाल लेते हैं. अच्छी बिक्री होने पर ही वह भरपेट भोजन कर पाते हैं. कपड़े की दुकान पर काम करने वाले युवक ने बताया कि इतना मेहनताना नहीं मिल पाता कि ढाबा या किसी लॉज पर पेट भर सकें. इंदिरा रसोई हम जैसे लोगों के लिए सौगात बनकर आई है. सरकार को धन्यवाद देते हुए कहा कि अब दोनों वक्त भोजन कर सकेंगे.

दुकान पर कारीगरी का काम करने वाले एक बुजुर्ग का कहना था कि अन्नपूर्णा योजना भी ठीक थी लेकिन अलग-अलग स्थानों पर स्टैंड होने के कारण हम जैसे लोग फायदा नहीं ले पाते थे. स्थाई रसोईघर होने से हमें भटकना नहीं पड़ेगा. कोरोना के बाद मेहनताना भी आधा मिल रहा है, इसमें किराए के भुगतान के बाद ठीक से भोजन करने लायक पैसा ही नहीं बच पाता. अब परिवार सहित हम दोनों वक्त पेट भर सकेंगे.

बांसवाड़ा. शहर में बड़ी संख्या में लोग मजदूरी कर अपना पेट पालते हैं. दिनभर की मामूली मजदूरी में परिवार क्या खुद का पेट भी वे मुश्किल से भर पाते हैं. इस पर कोरोना महामारी ने भूखे मरने की नौबत ला दी है. हालत ये हैं कि इनमें से कई लोग हल्के-फुल्के नाश्ते पर ही दिनभर मजदूरी कर रहे थे. कई लोगों को दो वक्त का भोजन तक नसीब नहीं हो पा रहा था. ऐसे में लोगों के लिए राज्य सरकार की इंदिरा रसोई योजना सौगात बन कर आई है. मुख्यमंत्री द्वारा लोकार्पण के साथ ही इंदिरा रसोई योजना के अंतर्गत जरूरतमंद लोगों को रियायती दर पर भोजन मिलने लग गया.

गरीबों के लिए वरदान बनी इंदिरा रसोई

बांसवाड़ा शहर में नगर परिषद की ओर से तीन स्थानों पर इंदिरा रसोई शुरू की गई. पहले दिन बड़ी संख्या में गरीब और जरूरतमंद लोगों ने रसोई में भोजन का आनंद लिया. ईटीवी भारत की टीम ने रसोई आए लोगों से भोजन की गुणवत्ता और व्यवस्थाओं को लेकर बातचीत की. इस दौरान 8 रुपये में इस भोजन की अहमियत उभर कर सामने आई. यहां आने वाले अधिकतर फल-सब्जी वाले, मजदूर व छोटी-मोटी दुकानों पर काम कर अपना और परिवार का पेट पालने वाले थे जो सुबह-शाम का भोजन तक ठीक से नहीं जुटा पा रहे थे.

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फल बेचने वाले एक युवक ने बताया कि सुबह नाश्ता करने के बाद दिनभर दुकान में ही व्यस्त रहता है, लेकिन इतनी इनकम नहीं हो पाती कि दोनों वक्त ठीक से भोजन कर सकूं. दिनभर कुछ कमाई होती है तो शाम को भोजन नसीब हो पाता है. एक अन्य युवक का कहना था कि नाश्ते से ही दिन भर निकाल लेते हैं. अच्छी बिक्री होने पर ही वह भरपेट भोजन कर पाते हैं. कपड़े की दुकान पर काम करने वाले युवक ने बताया कि इतना मेहनताना नहीं मिल पाता कि ढाबा या किसी लॉज पर पेट भर सकें. इंदिरा रसोई हम जैसे लोगों के लिए सौगात बनकर आई है. सरकार को धन्यवाद देते हुए कहा कि अब दोनों वक्त भोजन कर सकेंगे.

दुकान पर कारीगरी का काम करने वाले एक बुजुर्ग का कहना था कि अन्नपूर्णा योजना भी ठीक थी लेकिन अलग-अलग स्थानों पर स्टैंड होने के कारण हम जैसे लोग फायदा नहीं ले पाते थे. स्थाई रसोईघर होने से हमें भटकना नहीं पड़ेगा. कोरोना के बाद मेहनताना भी आधा मिल रहा है, इसमें किराए के भुगतान के बाद ठीक से भोजन करने लायक पैसा ही नहीं बच पाता. अब परिवार सहित हम दोनों वक्त पेट भर सकेंगे.

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